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अध्याय 1

Chapter 1

1 प्रभु में मेरी प्यारी बहन को जिसे परमेश्वर ने चुना है, नमस्कार। मैं, यूहन्ना, जो एक बूढ़ा और आदरणीय व्यक्ति हूँ आपको लिख रहा हूँ। मैं आपके बच्चों को भी लिख रहा हूँ जिनसे मैं सचमुच प्यार करता हूँ। उनको बताएं कि हम सभी उनसे प्यार करते हैं क्योंकि हम सच्चाई जानते हैं कि परमेश्वर कौन है।
2 यह सच्चाई हमारे अन्दर रहती है और यह उम्र भर हमारे साथ रहेगी।
3 अनुग्रह, दया और शान्ति प्राप्त करें जो परमेश्वर पिता से और उसके बेटे प्रभु यीशु मसीह की ओर से आते हैं। आइए, हम सच्चाई और प्यार के अनुसार काम करें।
4 हमें पिता से आज्ञा मिली कि हम उस तरह से जियें जैसे सच्चाई हमें सिखाती है। और मैं बहुत खुश हूँ कि आपके बच्चे इस आज्ञा को मानते हैं।
5 प्रभु में मेरी प्यारी बहन, अब मैं आपको एक और आज्ञा की याद दिलाना चाहूँगा कि हमें एक दूसरे से प्यार करना है। मैं आपको कुछ नया नहीं लिख रहा हूँ। लेकिन यह वह आज्ञा है जो परमेश्वर ने शुरुआत से ही हमें दी थी।
6 जब हम दूसरों से प्यार करते हैं तब हम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं। याद रखें कि शुरुआत से ही परमेश्वर ने हमें एक दूसरे से प्यार करने के लिए कहा था।
7 दुनियाँ में बहुत से झूठे लोग हैं। वे विश्वास नहीं करते कि यीशु मसीह मानव शरीर में पृथ्वी पर आया। ऐसे लोग दूसरों को धोखा देते हैं। वे मसीह विरोधी हैं और मसीह के दुश्मन हैं।
8 इसलिए आपको ध्यान देना चाहिए कि आप किस की बातें सुनते हैं। नहीं तो, जो काम हमने किया था वह हम खो देंगे और पूरा इनाम प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
9 अगर कोई व्यक्ति मसीह की शिक्षाओं को नहीं मानता और उसके अनुसार काम नहीं करता तो वह परमेश्वर का नहीं। और अगर कोई व्यक्ति मसीह की शिक्षाओं के अनुसार जीता है तो वह पिता और पुत्र का है।
10 मान लीजिए कि कोई व्यक्ति आपके पास आए और जो मसीह ने हमें सिखाया उन बातों से अलग प्रचार करना शुरू कर दे। ऐसे मामले में उसे अपने घर में न बुलाएं और उसके साथ बातें न करें।
11 ऐसे व्यक्ति के साथ समय न बिताएं ताकि आप उसके बुरे कामों में हिस्सा न लें।
12 मुझे आपके साथ कई दूसरी बातों पर चर्चा करने की भी इच्छा है। लेकिन मैं इसे कागज और कलम के साथ नहीं करना चाहता। मुझे उम्मीद है कि मैं आपके पास आऊँगा और अकेले में इसके बारे में बात करूँगा। और यह मुलाकात हमें बहुत आनन्द देगी।
13 प्रभु ने आपकी बहन को वैसे ही चुना है जैसे उसने आपको चुना है। और उसके बच्चे आपको नमस्कार भेज रहे हैं। आमीन।
1 I am greeting you, my dear sister in the Lord, whom God has chosen. I am John, an elderly and respected man, who is writing to you. I am also writing to your children whom I truly love. Tell them that we all love them because we know the truth about who God is.
2 This truth lives inside of us, and it will be with us throughout all the ages.
3 Receive grace, mercy and peace which come from God the Father and from His Son the Lord Jesus Christ. Let’s act according to the truth and love.
4 We received a commandment from the Father to live according to the teaching of the truth. And I am very glad that your children keep this commandment.
5 My dear sister in the Lord, now I would like to remind you of one more commandment that we must love one another. I am not writing to you about something new. But this is the commandment which God gave us from the very beginning.
6 When we love others, we obey God's commandments. Remember that from the very beginning God told us to love one another.
7 There are many liars in this world. They do not believe that Jesus Christ came to the earth in a human body. Such people deceive others. They are antichrists who are hostile to Christ.
8 That is why you should pay attention to who you listen to. Otherwise, we might lose what we worked for and would not receive the full reward.
9 A person who breaks the teaching of Christ and does not act the way Jesus teaches does not belong to God. And a person who lives as Christ teaches belongs to the Father and the Son.
10 Suppose, someone comes to visit you and starts preaching something that contradicts the teachings of Christ. In this case, do not invite him into your house and do not communicate with him.
11 Do not spend time with such a person so that you would not participate in his evil deeds.
12 I also have a desire to discuss many other things with you. But I do not want to write about it in ink on paper. I hope to visit you and talk about these matters in person. And this meeting will bring us a lot of joy.
13 The Lord has chosen your sister just as he chose you. And her children are sending greetings to you. Amen.