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अध्याय 1

Chapter 1

1 मैं पौलुस हूँ और मुझे परमेश्वर की इच्छा से बुलाहट मिली। और परमेश्वर ने मुझे यीशु मसीह का प्रेरित बनाया। भाई सोस्थिनेस मेरे साथ है।
2 और हम उसके साथ कुरिन्थुस में परमेश्वर के चर्च को नमस्कार करते हैं। परमेश्वर ने आपको पवित्र बनाया क्योंकि आप यीशु मसीह के हैं। परमेश्वर ने आपको बुलाहट दी और आप उसके पवित्र लोग बन गए। परमेश्वर ने यह उन सब के लिए किया जो अलग-अलग स्थानों में यीशु के नाम को पुकारते हैं और जो उसको प्रभु के रूप में अपनाते हैं। मसीह हमारे लिए प्रभु है और उन सब के लिए जो उस पर विश्वास करते हैं।
3 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से आपको अनुग्रह और शान्ति मिले।
4 आप यीशु मसीह के हैं और परमेश्वर ने आपको अपना अनुग्रह दिया। इसलिए मैं हमेशा आपके लिए अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ।
5 मसीह के कारण परमेश्वर ने आपको सभी उपहारों से अमीर बनाया। उसने आपको सभी ज्ञान और अच्छी तरह से बोलने की क्षमता दी।
6 जब आपने मसीह के बारे में सुना तब उसके वचन ने आपके दिलों में गहरी जड़ें पकड़ लीं।
7 इसलिए आपको आत्मिक उपहारों की कोई कमी नहीं। और बड़ी आशा के साथ आप उस दिन का बेसब्री से इन्तज़ार करते हैं जब हमारा प्रभु यीशु मसीह वापस आएगा।
8 प्रभु आपको बिल्कुल अन्त तक मजबूत बनाता रहेगा। वह समय आएगा जब हमारा प्रभु यीशु मसीह धरती पर वापस आएगा। उस दिन आप उसके सामने खड़े होंगे और वह आपको पाप में दोषी नहीं पाएगा।
9 परमेश्वर यह करेगा क्योंकि वह अपने वादों के प्रति विश्वासयोग्य है। उसने आपको अपने पास बुलाया। और अब आपके पास उसके बेटे यीशु मसीह की संगति है जो हमारे प्रभु बन गये।
10 हे भाइयों, हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में मैं आपसे विनती करता हूँ कि मेल मिलाप से रहें और एक दूसरे से झगड़ा न करें क्योंकि झगड़ों से फूट पड़ती है। एक दूसरे को समझना और एक ही लक्ष्य बनाना सीखें।
11 हे भाइयों, खलोए के परिवार ने मुझे बताया कि आप एक दूसरे के साथ बहस कर रहे हैं।
12 उन्होंने मुझे बताया कि आप में से कुछ लोग कहते हैं, "मैं पौलुस का चेला हूँ।" दूसरा कहता है, "मैं अपुल्लोस का चेला हूँ।" और तीसरा बहस करता है, "मैं पतरस का चेला हूँ।" और कोई और कहता है, "मैं मसीह का चेला हूँ।”
13 लेकिन मसीह हमें एकजुट करता है, बाँटता नहीं। आप कहते हैं कि आप पौलुस के चेले हैं। लेकिन क्या पौलुस आपके पापों के लिए क्रूस पर मरा? क्या आपको पौलुस के नाम में पानी का बपतिस्मा मिला? बिल्कुल नहीं।
14 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि आपके चर्च में मैंने सिर्फ़ क्रिस्पुस और गयुस को बपतिस्मा दिया।
15 और कोई यह न कहें कि मैंने अपने नाम से बपतिस्मा दिया।
16 मैंने स्तिफनास के परिवार को भी बपतिस्मा दिया। और मुझे किसी और को बपतिस्मा देना याद नहीं।
17 मसीह ने मुझे लोगों को बपतिस्मा देने के लिए नहीं लेकिन अच्छी खबर को फैलाने के लिए भेजा था। लेकिन मैं इंसान के नज़रिये से क्रूस पर चढ़ाए गए मसीह के बारे में प्रचार नहीं करता। नहीं तो, मेरा सन्देश अपनी शक्ति खो देगा।
18 जो अनन्त विनाश की ओर जा रहा है वह सोचता है कि क्रूस के बारे में सन्देश मूर्खता है। लेकिन हम उद्धार की ओर जा रहे हैं। हम क्रूस पर चढ़ाए गये मसीह पर विश्वास करते हैं और हम परमेश्वर की शक्ति को देख सकते हैं।
19 परमेश्वर शास्त्रों में कहता है, “मैं इंसानी बुद्धि को शून्य में बदल दूँगा। मैं बुद्धिमान लोगों के नज़रिये को ठुकरा दूँगा।”
20 दुनियाँ क्रूस पर चढ़ाए गए मसीह के सन्देश को नहीं समझ सकती। पढ़े लिखे लोग, वैज्ञानिक और ज्ञानी लोग इन्सान के नज़रिये से क्रूस के विषय में बहस करते हैं जिसे परमेश्वर मूर्खता कहता है।
21 दुनियाँ इंसानी बुद्धि के नज़रिये से परमेश्वर के बारे में बहस करती है। लेकिन फिर भी लोग नहीं समझ पाते कि परमेश्वर कौन है। इसलिए परमेश्वर ने अपनी बुद्धि दिखाई। उसने उन लोगों को बचाने का फैसला किया जो क्रूस पर चढ़ाए गये मसीह के सन्देश पर विश्वास करते हैं। लेकिन ऐसा सन्देश इस दुनियाँ के लोगों को बेवकूफी लगता है।
22 जब यहूदी लोग क्रूस के बारे में सन्देश सुनते हैं तब वे माँग करते हैं कि हम इसे अलौकिक शक्ति के साथ साबित करें। लेकिन अन्यजाति लोगों के लिए हमारे सन्देश का कोई मतलब नहीं, क्योंकि वे इसमें कुछ भी बुद्धिमानी नहीं देखते।
23 जब हम प्रचार करते हैं कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था तब इससे यहूदियों को ठेस लगती है। और अन्यजाति लोगों को हमारा सन्देश मूर्खता लगता है।
24 लेकिन परमेश्वर ने हमें अपने पास बुलाया। और हमारे बीच में यहूदी और अन्यजाति लोग हैं। क्रूस पर चढ़ाया गया मसीह हमारे लिए परमेश्वर की शक्ति और परमेश्वर की बुद्धि बन गया।
25 अविश्वासी सोचते ​​हैं कि मसीह की मौत परमेश्वर की मूर्खतापूर्ण योजना है। लेकिन मैं ऐसे लोगों से कहूँगा कि परमेश्वर की मूर्खता इंसान की बुद्धि से अधिक है। दुनियाँ कहती है कि जब मसीह क्रूस पर मरा तब परमेश्वर ने अपनी कमज़ोरी दिखाई। लेकिन मैं इन लोगों से कहूँगा कि परमेश्वर की कमज़ोरी इन्सान की शक्ति से अधिक है।
26 हे भाइयों, वह परमेश्वर था जिसने आपको बुलाया। लेकिन सोचिए कि आप कौन हैं। इन्सान के नज़रिये से आपके बीच में कुछ पढ़े लिखे और कुछ प्रभावशाली लोग हैं। आपके बीच कुछ ऊँचे सामाजिक पदों वाले लोग हैं।
27 इस दुनियाँ के लोग कहते हैं कि आप मूर्ख और कमज़ोर हैं। और वे खुद को बुद्धिमान और मजबूत मानते हैं। लेकिन परमेश्वर ने आपको चुना ताकि यह दुनियाँ एहसास कर सके कि यह परमेश्वर के सामने मूर्ख और कमज़ोर है।
28 आपके पास समाज में ऊँचा सामाजिक पद नहीं, इसलिए दुनियाँ आपसे घृणा करती है। दुनियाँ की नज़रों में आपकी कोई कीमत नहीं। लेकिन परमेश्वर ने आपको चुना ताकि इस दुनियाँ के लोग यह समझ सकें कि उनके पास घमंड करने के लिए कुछ भी नहीं।
29 और जब हम परमेश्वर के सामने खड़े होंगे तब कोई भी व्यक्ति उसके सामने अपनी बड़ाई नहीं कर सकेगा।
30 परमेश्वर ने हमें यीशु मसीह के साथ एकजुट किया जो हमारे लिए परमेश्वर की बुद्धि बन गया। मसीह हमारी धार्मिकता, हमारी शुद्धता और हमारा छुटकारा बन गया।
31 इसलिए शास्त्र कहते हैं, “अपने आप की प्रशंसा न करें। उसके कामों के लिए प्रभु की स्तुति करें।”
1 I am Paul, and I received a calling by the will of God. And God appointed me as an apostle of Jesus Christ. Brother Sosthenes is here with me.
2 And together with him we greet the church of God in Corinth.
God made you holy because you belong to Jesus Christ. God gave you a calling, and you became His holy people. He did it for all who call on the name of Jesus in different places and who accept Him as the Lord. Christ is the Lord for us and for all who believe in Him.
3 Receive grace and peace from our God the Father and from the Lord Jesus Christ.
4 You belong to Jesus Christ, and God gave you His grace. So I always thank my God for you.
5 Because of Christ, God made you rich with all the gifts. He gave you all the knowledge and the ability to speak well.
6 When you heard of Christ, His Word took deep roots in your hearts.
7 That is why you have no lack in spiritual gifts. And you look forward with great hope to the day when our Lord Jesus Christ comes back.
8 The Lord will keep strengthening you until the very end. The time will come when our Lord Jesus Christ returns to earth. On that day you will stand before Him, and He will not find you guilty of sin.
9 God will do this because He is faithful to His promises. He called you to Himself. And now you have fellowship with His Son Jesus Christ who became our Lord.
10 Brothers, in the name of our Lord Jesus Christ I urge you to live in unity and do not quarrel because quarrels lead to division. Learn to understand one another and set common goals.
11 Brothers, the family of Chloe told me that you are arguing with one another.
12 They informed me that some of you say, “I am a disciple of Paul.” Another one says, “I am a disciple of Apollos.” And the third one argues, “I am a disciple of Peter.” And someone else adds, “I am a disciple of Christ.”
13 But Christ unites us, He does not divide. You say that you are disciples of Paul. But did Paul die on the cross for your sins? Were you baptized in the name of Paul? Of course not.
14 I thank God that in your church I baptized only Crispus and Gaius.
15 And let no one say that I baptized in my name.
16 I also baptized the family of Stephanas. And I do not remember baptizing anyone else.
17 Christ did not send me to baptize people, but to spread the Good News. But I do not preach about the crucified Christ from a human point of view. Otherwise, my message would lose its power.
18 The one who is going towards eternal destruction thinks that the message about the cross is foolishness. But we are going towards salvation. We believe in the crucified Christ, and we can see the power of God.
19 God says in the Scriptures, “I will make the wisdom of men come to nothing. I will reject the point of view of the wise.”
20 The world cannot understand the message about the crucified Christ. Educated people, scientists and philosophers debate the cross from a human point of view which God calls insane.
21 The world debates God from the point of view of human wisdom. But still people cannot understand who God is. That is why God revealed His wisdom. He decided to save those who would believe in the message about the crucified Christ. But such a message sounds foolish to the people of this world.
22 When the Jews listen to the message about the cross, they demand that we would confirm it with supernatural manifestations. But for the Gentiles our message makes no sense because they can see nothing wise in it.
23 When we preach that Christ was crucified on the cross, it offends the Jews. And for the Gentiles our message sounds foolish.
24 God called us to Himself, and there are both Jews and Gentiles among us. The crucified Christ became God’s power and God’s wisdom for us.
25 Unbelievers think that the death of Christ is the foolish plan of God. I will tell such people that the foolishness of God surpasses human wisdom. The world says that when Christ died on the cross, God showed His weakness. And I will tell these people that the weakness of God is greater than human power.
26 Brothers, it was God who called you. But think of who you are. From a human point of view there are few educated and influential people among you. There are few who hold high social position among you.
27 The people of this world say that you are foolish and weak. And they consider themselves wise and strong. But God chose you to make this world realize that it is foolish and weak before God.
28 You do not hold high social position in the society that is why the world despises you. In the eyes of the world you are considered of no value. But God chose you so that the people of this world would understand that they have nothing to be proud of.
29 And when we stand before God, no person will be able to boast before Him.
30 God united us with Jesus Christ who became God’s wisdom for us. Christ became our righteousness, our sanctification and our redemption.
31 That is why the Scriptures say, “Do not praise yourselves. Praise the Lord for His works.”

अध्याय 2

Chapter 2

1 हे भाइयों, जब मैं आपके पास आया तब मैं आपको परमेश्वर के बारे में प्रचार सुनाया। लेकिन मैंने आपको सुन्दर शब्दों से खुश करने की कोशिश नहीं की। और मैंने इन्सान के नज़रिये से परमेश्वर के बारे में बात नहीं की।
2 मैंने आपको सिर्फ़ यीशु मसीह के बारे में प्रचार करने का फ़ैसला किया जिसे क्रूस पर चढ़ाया गया था। और मैं किसी और बात के बारे में प्रचार नहीं करना चाहता था।
3 जब मैं आप के साथ था तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना मजबूर था और मैं समझ गया कि मुझे परमेश्वर की शक्ति की ज़रूरत थी। मैंने परमेश्वर की उपस्थिति में बड़ा भय और कंपकंपी का अनुभव किया।
4 जब मैंने क्रूस पर चढ़ाए गये यीशु के बारे में प्रचार किया तब इन्सान के नज़रिये से मेरे शब्द ठोस नहीं थे। लेकिन पवित्र आत्मा ने अपनी शक्ति दिखाई।
5 मैं चाहता था कि आप परमेश्वर की शक्ति को अनुभव करें जिससे कि आपका विश्वास मज़बूत बन सके। लेकिन अगर कोई व्यक्ति इन्सान के नज़रिये से क्रूस पर चढ़ाए गये यीशु की बात करता है तो उसका विश्वास मज़बूत नींव पर खड़ा नहीं रह पाएगा।
6 जब हम आत्मिक रूप से परिपक्व विश्वासियों के बीच में होते हैं तब हम बुद्धि के बारे में प्रचार करते हैं। लेकिन इस बुद्धि का इस दुनियाँ की बुद्धि से कोई लेना-देना नहीं। आपको जानना चाहिए कि इस दुनियाँ के शासक जिस बुद्धि से जीते हैं, उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।
7 दुनियाँ को बनाने से पहले ही परमेश्वर ने फ़ैसला कर लिया था कि वह अपनी गुप्त बुद्धि को हम पर प्रकट करेगा ताकि हम उसकी महिमा में प्रवेश कर सकें। और अब हम खुलकर परमेश्वर की इस बुद्धि के बारे में बात करते हैं।
8 इस दुनियाँ के शासकों ने परमेश्वर की बुद्धि को नहीं समझा। और अगर वे इसे समझते तो वे हमारे तेजस्वी प्रभु को क्रूस पर नहीं चढ़ाते।
9 शास्त्र कहते हैं, “न किसी ने देखा, न किसी ने सुना और न कोई अपने दिल में कल्पना कर सका कि परमेश्वर ने उन लोगों के लिए क्या तैयार किया है जो उस से प्यार करते हैं।”
10 लेकिन पवित्र आत्मा ने परमेश्वर की योजनाओं को हम पर प्रकट किया। यह आत्मा हर जगह प्रवेश करती है और हमें परमेश्वर के प्रकाशन की गहराई को दिखाती है।
11 कोई भी नहीं जानता कि व्यक्ति क्या सोचता है। लेकिन व्यक्ति की आत्मा उसके विचारों को जानती है। उसी तरह से कोई भी नहीं जानता कि परमेश्वर क्या सोचता है। लेकिन परमेश्वर की आत्मा परमेश्वर के विचारों को जानती है।
12 परमेश्वर ने हमें अपनी आत्मा दी जिसका इस दुनियाँ की आत्मा से कोई लेना-देना नहीं। परमेश्वर की आत्मा हमारे अंदर रहती है ताकि हम जान सकें कि परमेश्वर ने हमें उपहार के रूप में क्या दिया है।
13 इन्सान की बुद्धि हमें आत्मिक बातें नहीं सिखा सकती। इसलिए हम आत्मिक बातों को इन्सान के नज़रिये से नहीं बोलते। पवित्र आत्मा हमें सिखाती है। और हम आत्मिक बातों को आत्मिक नज़रिये से बोलते हैं।
14 सांसारिक दिमाग वाला व्यक्ति अपनी समझ का सहारा लेता है। वह उसे स्वीकार नहीं करता जो परमेश्वर की आत्मा की ओर से आता है और वह इसे मूर्खता समझता है। सांसारिक दिमाग वाला व्यक्ति आत्मिक बातों के बारे में इन्सान के नज़रिये से सोचता है। इसलिए वह आत्मिक बातों को समझ नहीं पाता।
15 आत्मिक व्यक्ति सब चीज़ों को आत्मिक नज़रिये से आंकता है। लेकिन सांसारिक दिमाग वाला व्यक्ति अपनी समझ का सहारा लेता है और वह किसी आत्मिक व्यक्ति को सही से आंक नहीं सकता।
16 प्रभु के विचारों को कौन समझ सकता है? उसे कौन सिखा सकता है? परमेश्वर की आत्मा ने हमें मसीह की तरह सोचने की योग्यता दी इसलिए हमारे पास मसीह का दिमाग है।
1 Brothers, when I came to visit you, I preached to you about God. But I did not try to impress you with my beautiful words. And I did not speak of God from a human point of view.
2 I decided to preach to you only about Jesus Christ who was crucified. And I did not want to speak about anything else.
3 When I was with you, I realized how helpless I was, and I saw that I needed the power of God. I experienced great fear and trembling in the presence of God.
4 When I preached about the crucified Christ, my words did not sound convincing from a human point of view. But the Holy Spirit demonstrated His power.
5 I wanted you to experience the power of God which could strengthen your faith. But if someone speaks of the crucified Christ from a human point of view, his faith will not be established on a firm foundation.
6 When we are among spiritually mature believers, we preach about wisdom. But this wisdom has nothing in common with the wisdom of this world. You should know that the wisdom that the rulers of this world live by will come to an end.
7 Even before the creation of the world God determined that He would reveal His secret wisdom to us, so that we could enter His glory. And now we openly speak of this wisdom of God.
8 The rulers of this world did not understand the wisdom of God. And if they understood it, they would not crucify our glorious Lord.
9 The Scriptures say, “No one saw, no one heard, and no one could imagine in his heart what God prepared for those who love Him.”
10 But the Spirit of God revealed to us the plans of God. This Spirit penetrates everywhere and shows us the depths of God’s revelations.
11 No one knows what a person thinks of. But the spirit of a person knows the thoughts of a person. The same way no one knows what God thinks of. But the Spirit of God knows the thoughts of God.
12 God gave us His Spirit which has nothing to do with the spirit of this world. The Spirit of God lives within us so that we could know the gift God gave us.
13 Human wisdom cannot teach us spiritual things. That is why we do not speak of spiritual things from a human point of view. The Holy Spirit teaches us. And we speak of spiritual things from the spiritual point of view.
14 A worldly-minded person relies on his understanding. He does not accept what comes from the Spirit of God, and he considers it foolishness. A worldly-minded person thinks of the spiritual things from a human point of view. That is why he is not able to understand the spiritual things.
15 A spiritual person evaluates everything from a spiritual point of view. But a worldly-minded person relies on his understanding, and he cannot evaluate a spiritual person correctly.
16 Who can understand the thoughts of the Lord? Who can teach Him? The Spirit of God gave us the ability to think like Christ that is why we have the mind of Christ.

अध्याय 3

Chapter 3

1 हे भाइयों, मैं आपसे आत्मिक लोगों की तरह बात नहीं कर सका क्योंकि आप अभी भी अपने पुराने पापी स्वभाव के अधीन हैं। इसलिए मैंने आपसे बच्चों की तरह बात की जिन्हें मसीह में आत्मिक रूप से बढ़ना चाहिए।
2 जब मैंने आपको सिखाया तब मेरी शिक्षा दूध की तरह थी। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि आप सख्त खाना नहीं खा सकते थे। और अब तक आप उन बातों को नहीं समझ सकते जिन्हें आत्मिक रूप से परिपक्व विश्वासी समझते हैं।
3 अभी तक आप अपने पुराने पापी स्वभाव के अधीन हैं। आप जलन रखते हैं और आप एक दूसरे के साथ झगड़ा करते हैं। आप अपने बीच में बंटवारा करते हैं। आपके काम दिखाते हैं कि आप अपने पुराने पापी स्वभाव के अधीन हैं। आप इस दुनियाँ के लोगों की तरह व्यवहार करते हैं।
4 एक कहता है, "मैं पौलुस का चेला हूँ।" और दूसरा कहता है, “मैं अपुल्लोस का चेला हूँ।” आप एक दूसरे के विरोधी हैं और आप वैसे काम करते हैं जैसे आपका पापी स्वभाव चाहता है।
5 और पौलुस कौन है? और अपुल्लोस कौन है? हम परमेश्वर के सेवक हैं। और परमेश्वर ने हमारा उपयोग किया ताकि आप मसीह पर विश्वास कर सकें। हम में से हर एक ने वह काम किया जो प्रभु ने हमें सौंपा था।
6 मैंने आपके दिल में परमेश्वर के वचन के बीज बोए और अपुल्लोस ने उनमें पानी डाला। लेकिन यह परमेश्वर था जिसने बीजों को बढ़ाया।
7 इसलिए यह महत्वपूर्ण नहीं कि बीजों को कौन बोता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनमें पानी कौन डालता है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि उन बीजों को उगाने वाला परमेश्वर है।
8 जब हम बीज बोते हैं और पानी देते हैं तब हम अपने सामने एक ही लक्ष्य रखते हैं। लेकिन हर किसी को वह इनाम मिलेगा जिसका वह हकदार है।
9 मैं और अपुल्लोस एक ही खेत में परमेश्वर के लिए मिलकर काम करते हैं। और यह आप ही थे जो परमेश्वर का खेत बन गए। आप वह इमारत भी बन गए जिसे हम साथ-साथ परमेश्वर के लिए बनाते हैं।
10 परमेश्वर ने मुझे अपना अनुग्रह दिया। और मैंने अनुभवी बनाने वाले की तरह नींव रखी और अब दूसरा इसके ऊपर बना रहा है। लेकिन हर बनाने वाले को अपना काम अच्छी तरह से करना है।
11 यीशु मसीह परमेश्वर की इमारत की नींव है। और कोई भी दूसरी नींव नहीं डाल सकता।
12 लेकिन अलग-अलग बनाने वाले अलग-अलग सामान का इस्तेमाल करके इस नींव के ऊपर बनाते हैं। कुछ सोने, चाँदी और कीमती पत्थरों का उपयोग करते हैं। और दुसरे लोग लकड़ी, घास-फूस और भूसे का इस्तेमाल करते हैं।
13 लेकिन वह दिन आएगा जब परमेश्वर हर एक बनाने वाले के काम को आग से परखेगा। आग दिखाएगी कि हर व्यक्ति ने अपना काम कितना अच्छा किया है।
14 अगर व्यक्ति का काम आग से नहीं जलेगा तो ऐसे बनाने वाले को उसका इनाम मिलेगा।
15 और अगर इन्सान का काम जल जाएगा तो वह उसे खो देगा जो उसने बनाया था। लेकिन वह बनाने वाला उसी तरह बच जाएगा जिस तरह से लोगों को आग में जलने से बचाया जाता है।
16 क्या आप नहीं जानते कि आप परमेश्वर के मन्दिर बन गए और परमेश्वर की आत्मा आपके अन्दर रहती है?
17 परमेश्वर ने अपने मन्दिर को पवित्र किया। और यह आप ही थे जो यह मन्दिर बनें। अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के मन्दिर को नष्ट करेगा तो परमेश्वर ऐसे व्यक्ति के जीवन को नष्ट कर देगा।
18 इस दुनियाँ के लोग कभी नहीं समझ पाएंगे कि परमेश्वर की बुद्धि क्या है। इसलिए अगर दुनियाँ मानती है कि आपके पास बुद्धि है तो आपके पास परमेश्वर की बुद्धि नहीं। और आप अपने आप को धोखा देते हैं। लेकिन अगर इस दुनियाँ के लोग आपको मूर्ख समझते हैं तो इसका मतलब है कि परमेश्वर ने आपको क्रूस पर चढ़ाये हुए मसीह के द्वारा अपनी बुद्धि से भर दिया है।
19 इन्सान की बुद्धि परमेश्वर की दृष्टि में मूर्खता है। शास्त्र कहते हैं, “इस दुनियाँ के लोग खुद को बुद्धिमान कहते हैं। लेकिन परमेश्वर दिखाएगा कि लोग अपनी बुद्धि से खुद को धोखा देते हैं और वे अपने ही जाल में फंस जाते हैं।”
20 शास्त्र यह भी कहते हैं, “प्रभु जानता है कि इस दुनियाँ के बुद्धिमान लोग क्या सोचते हैं। प्रभु जानता है कि उनकी बुद्धि उनके लिए कोई भलाई नहीं करेगी।”
21 अपने जीवन पर असर डालने वाले किसी भी व्यक्ति की प्रशंसा न करें क्योंकि यह परमेश्वर है जो इन सभी लोगों के द्वारा काम करता है।
22 परमेश्वर आपके जीवन में पौलुस, अपुल्लोस और पतरस के द्वारा काम करता है। जो कुछ भी इस दुनियाँ में आपके साथ होता है परमेश्वर आपके लाभ के लिए उसका इस्तेमाल करता है। परमेश्वर आपके जीवन, मौत, वर्तमान और भविष्य पर अधिकार रखता है।
23 याद रखें कि आप मसीह के हैं। और मसीह परमेश्वर का है।
1 Brothers, I could not speak to you as spiritual people because you still submit to your old sinful nature. That is why I spoke to you as babies who should grow spiritually in Christ.
2 When I taught you, my teaching was like milk. I did it because you could not eat solid food. And even now you are not able to understand what spiritually mature believers understand.
3 You still submit to your old sinful nature. You are jealous and quarrel with one another. You make divisions among yourselves. Your actions show that you submit to your old sinful nature. You behave like people of this world.
4 One says, “I am a disciple of Paul.” And another one states, “I am a disciple of Apollos.” You are hostile to one another, and you do what your sinful nature desires.
5 Who is Paul? And who is Apollos? We are servants of God. And God used us to make you believe in Christ. Each of us did the work the Lord entrusted us.
6 I planted the seeds of the Word of God in your hearts, and Apollos watered them. But it was God who grew the seeds up.
7 So it is not important who plants the seeds. It does not matter who waters them. But the important thing is that God grows the seeds.
8 We set a common goal before us when we plant and water the seeds. But everyone will receive the reward he deserves.
9 Apollos and I work together for God in the same field. And it was you who became that field of God. You also became the building we build together for the Lord.
10 God gave me His grace. And as an experienced builder I laid the foundation, and another one is now building on it. But every builder must do his job well.
11 Jesus Christ is the foundation of God’s building. And no one can lay any other foundation.
12 But on this foundation different builders build using different materials. Some use gold, silver and precious stones. And others use wood, hay and straw.
13 But the day will come when God tests the work of each builder with fire. The fire will show how well each person did his job.
14 If the work of the person does not burn in the fire, such a builder will receive a reward.
15 But if the work of the person burns down, he will lose what he built. Yet the builder will be saved as people are saved from fire.
16 Don’t you know that you became the temple of God, and the Spirit of God lives within you?
17 God sanctified His temple. And it was you who became this temple. If someone destroys God’s temple, God will bring destruction upon that person’s life.
18 The people of this world will never understand what the wisdom of God is. That is why if the world recognizes that you have wisdom, you do not have the wisdom of God. And you are deceiving yourselves. But if the people of this world consider you fools, it means that God filled you with His wisdom through the crucified Christ.
19 Human wisdom is foolishness in the sight of God. The Scriptures say, “The people of this world call themselves wise. But God will show that people deceive themselves with their wisdom and fall into their own traps.”
20 The Scriptures also say, “The Lord knows what the wise people of this world think of. He knows that their wisdom will do them no good.”
21 Do not exalt any person who influences your life because it is God who works through all these people.
22 God works in your life through Paul, Apollos, and Peter. He uses everything that happens to you in this world for your benefit. God has authority over your life and death, your present and future.
23 Remember that you belong to Christ. And Christ belongs to God.

अध्याय 4

Chapter 4

1 आपको हमारे साथ मसीह के सेवक की तरह व्यवहार करना चाहिए। परमेश्वर ने अपने रहस्यों को हम पर खोला और लोगों को उन के बारे में बताने का काम हमें सौंपा।
2 हम परमेश्वर के घर में काम के लिए जिम्मेदार हैं और हमें इसे ईमानदारी से करना है।
3 मैं जानता हूँ कि आप और दूसरे लोग इन्सान के नज़रिये से मुझे आंकते हैं। लेकिन मेरे लिए यह ज़्यादा मायने नहीं रखता। और यहाँ तक ​​कि मैं इन्सान के नज़रिये से खुद को भी नहीं आंकता।
4 मेरी अंतरात्मा साफ़ है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं सही हूँ। सिर्फ़ प्रभु ही मेरे जीवन को सही रूप से आंक सकता है।
5 इसलिए निश्चित समय के पूरे होने तक आप दूसरे लोगों की सेवा के बारे में सही परिणाम नहीं निकाल सकते। लेकिन जब प्रभु आएगा तब वह अपना प्रकाश उन सभी पर चमकाएगा जो अन्धकार में छिपे हुए है। प्रभु दिखाएगा कि किस तरह के गुप्त विचारों से व्यक्ति का दिल भरा हुआ है। और तब हर कोई परमेश्वर से प्रशंसा पाएगा जिसका वह हकदार है।
6 हे भाइयों, मैंने आपको अपना और अपुल्लोस का उदाहरण दिया। और मैं चाहता था कि मेरी शिक्षा से आपको लाभ पहुँचे। हमारे बारे में सोचें कि मैंने आपको किस तरह लिखा और इसमें कुछ भी न जोड़ें। एक दूसरे के सामने घमंड से न फूलें।
7 क्या आप दूसरे व्यक्ति से बेहतर हैं? यह परमेश्वर ही था जिसने आप को वह सब कुछ दिया जो आपके पास है। लेकिन आप घमंड करते हैं और कहते हैं कि आपने सब कुछ खुद हासिल किया है।
8 आपने अपनी ज़रूरतों को हद से ज़्यादा संतुष्ट किया। आप अमीर हो गए और आप हमारे बिना राज्य करने लगे। मैं चाहूँगा कि आप सचमुच में राज्य करें। फिर हम भी आपके साथ राज्य करें।
9 लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूँ कि परमेश्वर ने हमें प्रेरित बनाया और हम बिल्कुल अंत तक जाने और मसीह के लिए मरने के लिए तैयार हैं। हम पूरी दुनियाँ, स्वर्गदूतों और लोगों के लिए तमाशा बन गए।
10 हम मसीह की इतनी ईमानदारी से सेवा करते हैं कि दुनियाँ हमें मूर्ख समझती है। लेकिन आप मसीह पर विश्वास करना चाहते हैं और इस दुनियाँ की नज़र में बुद्धिमान दिखना चाहते हैं। हम परमेश्वर पर भरोसा करते हैं और एहसास करते हैं कि हम कमज़ोर हैं। लेकिन आप कहते हैं कि आप मजबूत हैं। आप चाहते हैं कि दुनियाँ आपका आदर करें। लेकिन दुनियाँ हमसे घृणा करती है।
11 अब तक हम भूखे-प्यासे रहते हैं। हम खराब कपड़े पहने हैं, लोग हमें पीटते हैं और हमारे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं।
12 हम अपने हाथों से मेहनत करते हैं। जब लोग हमारा अपमान करते हैं तब हम उन्हें आशीर्वाद देते हैं। जब लोग हमें सताते हैं तब हम धीरज से सताव को सहते हैं।
13 जब लोग हमें श्राप देते हैं तब हम उनके लिए दिल से प्रार्थना करते हैं। लेकिन इन सब के बावजूद, दुनियाँ हमें कूड़ा करकट समझती है।
14 मैं अपने बच्चों की तरह आप से प्यार करता हूँ। और मैं नहीं चाहता कि मेरे शब्द आप पर अप्रिय प्रभाव डालें। लेकिन मैं आपको लिख रहा हूँ ताकि आप बदल जाएं।
15 आपके पास हजारों शिक्षक हो सकते हैं जो आपको मसीह के बारे में सिखाते हैं। लेकिन आपके कई पिता नहीं हो सकते। मैंने आपको अच्छी खबर का प्रचार किया। और मैं मसीह यीशु में आपका पिता बन गया।
16 मैं उसी तरह से काम करता हूँ जिस तरह से मसीह ने किया था। इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ — मुझसे उदाहरण लीजिए।
17 मैंने तीमुथियुस को आपके पास भेजा। वह ईमानदारी से प्रभु की सेवा करता है और मैं उसे अपने बेटे की तरह प्यार करता हूँ। तीमुथियुस आपको याद दिलाएगा कि मैं किस तरह मसीह के पीछे चलता हूँ। वह आपको बताएगा कि मैं हर चर्च में क्या सिखाता हूँ।
18 लेकिन आपमें से कुछ लोग घमंडी हो गये। वे सोचते हैं कि मैं अब आपके पास नहीं आऊँगा।
19 अगर प्रभु मुझे अनुमति दे तो मैं जल्दी ही आपके पास आऊँगा। और मैं देखूँगा क्या पवित्र आत्मा की अलौकिक शक्ति उनके जीवन में काम करती है या नहीं। घमंडियों के सुन्दर शब्द मुझे प्रभावित नहीं करेंगे।
20 हमें लोगों को परमेश्वर के राज्य की शक्ति दिखानी है, न कि हमारे शब्दों की सुन्दरता।
21 मुझे बताइये, मुझे आपके साथ क्या करना चाहिए? मैं आपको सुधारने और ठीक करने के लिए आ सकता हूँ। या मैं प्रेम और दया की आत्मा के साथ भी आ सकता हूँ।
1 You should treat us as the servants of Christ. God revealed His secrets to us and entrusted us to share them with people.
2 We are responsible for the work in the house of God, and we must do it faithfully.
3 I know that you and everyone else evaluate me from a human point of view. But it does not matter much for me. I do not even evaluate myself from a human point of view.
4 My conscience is clear, but it does not mean that I am right. Only the Lord can accurately evaluate my life.
5 So until a certain time you will not be able to make right conclusions about the ministry of others. But when the Lord comes, He will shine His light on what everyone has hidden in the darkness. The Lord will reveal the secret thoughts that filled each person’s heart. Then everyone will receive from God the praise he deserves.
6 Brothers, I gave you an example of myself and Apollos. And I did it for your benefit to teach you. Treat us as I wrote you and add nothing more to this. Do not be puffed up with pride in front of one another.
7 Are you better than another person? It was God who gave you everything you have. But you boast and say that you achieved everything by yourself.
8 You satisfied your needs beyond measure. You became rich and began to reign without us. I wish you really were reigning, so we could reign with you.
9 But I tell you that God appointed us as apostles, and we are ready to go to the end and die for Christ. We became a show to the whole world, angels and people.
10 We serve Christ so faithfully that the world considers us fools. But you want to believe in Christ and look wise in the eyes of this world. We rely on God and realize that we are weak. But you say that you are strong. You want the world to respect you. But the world despises us.
11 Until now we are still hungry and thirsty. We are poorly dressed, we are beaten, and we have no place to live.
12 We work hard with our hands. When people insult us, we bless them. When we are persecuted, we endure it patiently.
13 When people curse us, we pray hard for them. Despite all of this, the world treats us like garbage and waste.
14 I love you as my children. And I do not want my words to leave an unpleasant impression on you. But I am writing to you so that you might change.
15 You may have thousands of teachers who teach you about Christ. But you cannot have many fathers. I preached the Good News to you. And I became your father in Christ Jesus.
16 I act as Christ did. That is why I urge you to follow my example.
17 I sent Timothy to you. He serves the Lord faithfully, and I love him like my son. Timothy will remind you of how I follow Christ. He will share with you what I teach in every church.
18 But some of you became proud. They think that I will not come to you anymore.
19 If the Lord allows, I will visit you soon. And I will find out whether the supernatural power of the Holy Spirit works in their lives or not. I will not be impressed by the beautiful words of those who are proud.
20 We should show people the power of the Kingdom of God, not the beauty of our words.
21 Tell me, what should I do with you? I can come to discipline and correct you. Or I can come in the spirit of love and kindness.

अध्याय 5

Chapter 5

1 दूसरों ने मुझे बताया कि आपके चर्च में क्या हो रहा है। आपके बीच में एक व्यक्ति है जो भ्रष्ट जीवन जीता है। वह इतना अनैतिक रूप से काम करता है कि अन्यजाति लोग भी उसकी तरह काम नहीं करते। आप में से एक अपनी सौतेली माँ के साथ सोता है।
2 आपको इस बात के लिए रोना चाहिए कि यह व्यक्ति क्या कर रहा है। लेकिन इसके बजाय, आप खुद पर घमंड करते हैं। उसे अपनी सभाओं में आने की अनुमति न दें और उसके साथ संगति करने से बचें।
3 शारीरिक रूप से मैं आप से दूर हूँ लेकिन आत्मिक रूप में मैं आप के साथ हूँ। और मैंने पहले ही फैसला कर लिया था कि इस व्यक्ति के साथ क्या करना है जो भ्रष्ट जीवन जीता है।
4 जब आप इकट्ठे होंगे तब आत्मिक रूप से मैं आपके साथ रहूँगा। और हमारे प्रभु यीशु मसीह की शक्ति भी आपके बीच में होगी।
5 और तब हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में इस भ्रष्ट आदमी को शैतान की शक्ति के अधीन कर देना ताकि शैतान उसके शरीर को नष्ट कर दे। और अगर वह व्यक्ति मन फिराएगा तो परमेश्वर उसकी आत्मा को उस दिन बचा लेगा जब हमारा प्रभु यीशु मसीह पृथ्वी पर वापस आएगा।
6 आपके पास घमंड करने की कोई बात नहीं। क्या आप नहीं जानते कि थोड़ा सा खमीर सारे गूंथे हुए आटे को खमीरी कर देता है?
7 आपको बिना खमीर के ताजे गूंथे हुए आटे की तरह होना चाहिए। अपने पाप को उसी तरह से हटा दें जैसे कि फसह से पहले यहूदी लोग पुराने खमीर को हटाते हैं। और जैसे फसह के दिन मेमना बलिदान बन गया वैसे ही मसीह हमारे पापों के लिए बलिदान बन गया।
8 पुराना खमीर पाप और बुराई को दिखाता है। और बिना खमीर की रोटी शुद्धता और सच्चाई को दिखाती है। हमें पाप में नहीं रहना है, हमें पवित्र जीवन जीना है।
9 मैंने आपको पहले ही लिखा था कि आपका चरित्रहीन लोगों से कोई लेना-देना नहीं।
10 लेकिन मेरा मतलब अविश्वासियों से नहीं था। इस दुनियाँ के लोग चरित्रहीन जीवन जीते हैं। वे गैरकानूनी तरीकों से लाभ कमाना चाहते हैं, धोखाधड़ी करते हैं और मूर्तियों की पूजा करते हैं। और जब तक आप इस दुनियाँ में रहते हैं, आपको अविश्वासियों का सामना करना पड़ेगा।
11 लेकिन मैंने आपको लिखा था कि आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संबंध न रखें जो खुद को मसीही भाई कहता है लेकिन भ्रष्ट जीवन जीता है। ऐसा व्यक्ति विश्वासी होने का दिखावा करता है लेकिन वह गैरकानूनी तरीकों से लाभ कमाना चाहता है और मूर्तियों की पूजा करता है। वह कसम खाकर दूसरों का अपमान करता है, शराब पीता है और धोखाधड़ी करता है। आपको ऐसे व्यक्ति के साथ संबंध नहीं रखना चाहिए और उसके साथ एक ही मेज़ पर खाना भी नहीं खाना चाहिए।
12 आपको उन लोगों के कामों का न्याय करना है जो चर्च का हिस्सा बन गये। लेकिन अविश्वासियों का न्याय करना मेरी जिम्मेदारी नहीं।
13 यह परमेश्वर है जो अविश्वासियों का न्याय करता है। भ्रष्ट व्यक्ति को अपनी संगति से निकाल दें जो खुद को मसीही भाई कहता है।
1 I was informed about what is happening in your church. There is a man among you who lives an immoral lifestyle. He acts so immorally that even the Gentiles do not act this way. One of you sleeps with his stepmother.
2 You should grieve over what this person is doing. But instead, you are proud of yourselves. Do not allow him to attend your meetings and avoid fellowship with him.
3 Physically I am far from you, but spiritually I am with you. And I have already decided what to do with this man who lives an immoral lifestyle.
4 When you gather together, I will be with you spiritually. And the power of our Lord Jesus Christ will also be present among you.
5 Then in the name of our Lord Jesus Christ hand over this immoral man to the power of Satan so that Satan may destroy his body. And if this person repents, God will save his spirit on the day when our Lord Jesus Christ returns to the earth.
6 You have nothing to be proud of. Don’t you know that small amount of yeast ferments the whole dough?
7 You must be like fresh dough without yeast. Remove sin as the Jews removed old yeast before the Passover. And as on the day of Passover a lamb became a sacrifice, so Christ became the sacrifice for our sins.
8 The old yeast symbolizes sin and evil. And bread without yeast symbolizes purity and truth. We must not live in sin, we must live a holy life.
9 I have already written you earlier that you must have nothing to do with sexually immoral people.
10 But I did not mean unbelievers. The people of this world live an immoral lifestyle. They are eager to gain profit by illegal means, commit fraud and worship idols. And as long as you live in this world, you will have to deal with unbelievers.
11 I wrote you that you should not communicate with anyone who calls himself a brother in Christ, but lives an immoral lifestyle. Such a person pretends to be a believer, but he is eager to gain profit by illegal means and worships idols. He insults others with swear words, gets drunk and commits fraud. You should not communicate with such a person or even eat with him at the same table.
12 You must judge the actions of those people who became part of the church. But it is not my responsibility to judge unbelievers.
13 It is God who judges unbelievers. Remove from your fellowship an immoral person who calls himself a brother in Christ.

अध्याय 6

Chapter 6

1 मैं जानता हूँ कि आपके चर्च के सदस्यों के बीच में कुछ कानूनी मुद्दे हैं। और आप अदालत में अविश्वासियों के पास जाते हैं फिर आप एक दूसरे पर मुकद्दमा चलाते हैं। आप इस तरह का व्यवहार करने की हिम्मत कैसे करते हैं? आप विश्वासियों से समाधान क्यों नहीं चाहते?
2 क्या आप नहीं जानते कि परमेश्वर के पवित्र लोग दुनियाँ का न्याय करेंगे? और अगर ऐसा है तो क्या आपके बीच में कुछ समझदार लोग नहीं जो इस जीवन के साधारण मुद्दों को हल करने के योग्य हो?
3 क्या आप नहीं जानते कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? और मैं आपको बताना चाहता हूँ कि हम निश्चित रूप से साधारण मुद्दों को खुद हल कर सकते हैं।
4 लेकिन आप अपने साधारण मामलों को लेकर अदालत में अधर्मी न्यायियों के पास जाते हैं। वे पाप भरा जीवन जीते हैं जो चर्च में विश्वासियों के लिए घृणित है।
5 मैं यह आपको शर्म दिलाने के लिए कह रहा हूँ। क्या आपके बीच में एक भी समझदार व्यक्ति नहीं जो भाइयों के बीच में विवाद को सुलझा सकता है?
6 लेकिन इसके बजाय, एक विश्वासी दूसरे विश्वासी पर मुकद्दमा करता है। और यह सब अविश्वासियों के सामने हो रहा है।
7 आपके मुकद्दमे एक दूसरे के खिलाफ़ होते हैं और ऐसा करके आप खुद को हरा देते हैं। आपको यह समझना चाहिए कि जब कोई आपका अपमान करता है और आपको धोखा देता है तब धीरज से सहना बेहतर होता है।
8 लेकिन इसके बजाय, आप अपना अपमान करते हैं और दूसरों को धोखा देते हैं। और आप मसीही भाइयों के साथ भी यह करते हैं।
9 अपने आप को धोखा न दें। क्या आप नहीं जानते कि अधर्मी को परमेश्वर की विरासत नहीं मिलेगी और वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा? ऐसे लोग यह करते हैं। वे चरित्रहीन जीवन जीते हैं और मूर्तियों की पूजा करते हैं। वे अपने जीवनसाथी से वफ़ादार नहीं होते। आदमी पैसों के लिए दूसरे आदमियों के साथ सोते हैं और समलैंगिकता में लगे रहते हैं।
10 ऐसे लोग चोरी करते हैं, रिश्वत लेते हैं और शराब पीते हैं। वे कसम खाकर दूसरों का अपमान करते हैं और धोखाधड़ी करते हैं। याद रखें कि अधर्मी को परमेश्वर की विरासत नहीं मिलेगी और वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा।
11 आप में से कुछ लोग ऐसा जीवन जीते थे। लेकिन अब परमेश्वर ने आप को आप के पाप से धो दिया है। उसने आप को पवित्र किया और आप को अपनी धार्मिकता दी। परमेश्वर ने यह हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में और अपनी आत्मा के द्वारा किया।
12 आप कहते हैं, “जो मैं चाहूँ वह कर सकता हूँ।" लेकिन हमारे काम हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं। आप कहते हैं, "जो मैं चाहूँ वह करने का अधिकार मेरे पास है।" लेकिन हम अपने कामों के कारण अपनी आज़ादी खो सकते हैं।
13 आप कहते हैं, “परमेश्वर ने अलग-अलग ज़रूरतों के साथ मानव शरीर को बनाया है जिसे हमें संतुष्ट करना है। इसलिए हम खाना खाते हैं और अपने शरीर का पालन पोषण करते हैं।” यह सच है लेकिन एक दिन परमेश्वर शरीर और भोजन दोनों को नष्ट कर देगा। आपको अनैतिक जीवन के तरीके को उचित नहीं ठहराना चाहिए। यह न कहें कि व्यक्ति की यौन ज़रूरत होती है जिसे उसको संतुष्ट करना ज़रूरी है इसलिए वह किसी के साथ भी सो सकता है। प्रभु ने हमारे शरीर को अपने लिए बनाया है न कि अनैतिकता के लिए। और परमेश्वर चाहता है कि हमारे शरीर से प्रभु को महिमा मिले।
14 और जैसे परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया उसी तरह से वह हमारे शरीर को भी अपनी शक्ति से जिलाएगा।
15 क्या आप नहीं जानते कि चर्च मसीह का शरीर है और हम उसके शरीर के अंग हैं? इसलिए हमें यह अधिकार नहीं कि जो कुछ मसीह का है उसे ले लें और उसे ऐसी औरत को दे दें जो वेश्यावृत्ति में लगी हुई है। बिल्कुल, हमें यह नहीं करना है!
16 क्या आप नहीं जानते कि अगर कोई आदमी चरित्रहीन औरत के साथ सोता है तो वह उसके साथ एक हो जाता है? और शास्त्र कहते हैं, "जब दो लोग शरीर में जुड़ जाते हैं तब वे एक हो जाते हैं।”
17 और जो प्रभु के साथ जुड़ जाता है वह प्रभु की आत्मा के साथ एक हो जाता है।
18 अनैतिक जीवन के तरीके का इन्कार करें। जो कोई व्यक्ति दूसरे पाप करता है वह उसे दूसरे व्यक्ति के शरीर के साथ एक नहीं करता। जो यौन संबंधी पाप करता है वह अपने शरीर को नष्ट कर देता है।
19 क्या आप नहीं जानते कि आपके शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर बन गये है जो आपके अन्दर रहती है? परमेश्वर ने आपको अपनी आत्मा दी इसलिए आप अपने आप के नहीं।
20 मसीह ने आपके लिए बड़ी कीमत चुकाई। अब आपकी आत्मा और आपका शरीर उसी का है। इसलिए आपके शरीर को परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए।
1 I know that there are legal issues among the members of your church. So you go to the court to unbelievers, and you sue one another there. How do you dare behave like this? Why don’t you seek resolution from believers?
2 Don’t you know that the holy people of God will judge this world? And if it is so, don’t you have some knowledgeable people among you who are capable to resolve ordinary issues of this life?
3 Don’t you know that we will judge angels? And I tell you that we can definitely resolve ordinary issues by ourselves.
4 But you bring your ordinary cases to court and go to ungodly judges. They live a sinful lifestyle which is disgusting to the believers in the church.
5 I am saying this to shame you. Don’t you have a single wise person among you who can resolve a dispute among brothers?
6 But instead, one believer sues another one. And all of this is happening in front of unbelievers.
7 You engage in lawsuits against one another, and by doing this you defeat yourselves. You should understand that it is better to endure patiently when someone offends you and deceives you.
8 But instead, you offend and deceive others. And you do this even to your brothers in Christ.
9 Do not deceive yourselves. Don’t you know that the unrighteous will not receive God’s inheritance and will not enter the Kingdom of God? This is what such people do. They live an immoral lifestyle and worship idols. They are unfaithful to their spouse. Men sleep with other men for money and engage in homosexuality.
10 Such people steal, extort bribes, and get drunk. They insult others with swear words and engage in fraud. Remember that the unrighteous will not receive God’s inheritance and will not enter the Kingdom of God.
11 Some of you used to live like that. But now God cleansed you from your sin. He sanctified you and gave you His righteousness. God did it in the name of our Lord Jesus Christ and by His Spirit.
12 You say, “I can do whatever I wish.” But our actions can harm us. You say, “I have the right to do what I want.” But we can lose our freedom because of our actions.
13 You say, “God created human body with various needs which must be satisfied. So we eat to nourish our bodies.” It is true, but one day God will destroy both the body and food. You should not justify an immoral lifestyle. Do not say that a person has sexual need that he must also satisfy, so he can sleep with anyone. The Lord created our bodies for Himself, not for immorality. And God wants our bodies to bring Him glory.
14 And as God raised the Lord Jesus from the dead so He will raise our bodies by His power.
15 Don’t you know that the Church is the Body of Christ, and we are members of His Body? That is why we have no right to take what belongs to Christ and give it to a woman who is engaged in prostitution. Of course, we must not do this!
16 Don’t you know that if a man sleeps with an immoral woman, he becomes one with her? The Scriptures say, “When two people are united in a physical body, they become one.”
17 And he who is united with the Lord becomes one with the Spirit of the Lord.
18 Refuse an immoral lifestyle. Other sins that a person commits do not unite him with the body of another person. He who commits sexual sins destroys his own body.
19 Don’t you know that your bodies became the temple of the Holy Spirit who lives within you? God gave you His Spirit, that is why you do not belong to yourselves.
20 Christ paid a high price for you. Now your spirit and your body belong to Him. So your bodies should bring glory to God.

अध्याय 7

Chapter 7

1 आपने मुझे लिखा कि आदमी के लिए बेहतर है कि वह शादी न करे और किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध न रखे।
2 लेकिन ऐसा आदमी इस खतरे में है कि वह भ्रष्ट जीवन जीना शुरू कर सकता है। इसलिए हर आदमी की पत्नी और हर औरत का पति होना चाहिए।
3 पति को अपनी पत्नी की यौन ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए। और पत्नी को अपने पति की यौन ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए।
4 पत्नी को अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका शरीर उसके पति का है। पति को भी अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका शरीर उसकी पत्नी का है।
5 एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाने से दूर न रहें। लेकिन अगर आप उपवास और प्रार्थना के लिए समय देना चाहते हैं तो इस समय में आप आपसी समझौते से यौन संबंधों से दूर रह सकते हैं। लेकिन उसके बाद आपको फिर से एक साथ हो जाना चाहिए। नहीं तो, आप खुद पर नियंत्रण खो सकते हैं और यह आपको शैतान के जाल में फंसा देगा।
6 मैं आपको लिख रहा हूँ कि आप उपवास के दौरान यौन संबंधों से बच सकते हैं। लेकिन यह मेरी सलाह है और मैं आपको ऐसा ही करने के लिए नहीं कहता।
7 मैं चाहता हूँ कि सब लोग मुझसे उदाहरण लें। लेकिन परमेश्वर ने हर व्यक्ति की शादी के बारे में अपनी योजना तैयार की है। यही कारण है कि कुछ लोग शादी करते हैं लेकिन दूसरे शादी नहीं करते।
8 मैं अविवाहित और विधवाओं को सलाह देना चाहता हूँ। अभी परिवार शुरू करने का सबसे अच्छा समय नहीं। इसलिए आपको शादी नहीं करनी चाहिए और मेरी तरह परिवार के बिना जीवन जीना चाहिए।
9 लेकिन अगर आप खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकते तो आपको शादी कर लेनी चाहिए। यौन इच्छाओं में जलने की बजाए शादी करना बेहतर है।
10 ये वे आज्ञाएँ हैं जो शादीशुदा लोगों को पूरी करनी चाहिए। और यह प्रभु ही है जो इन महत्वपूर्ण बातों के बारे में कहता है, न कि मैं। पत्नी को अपने पति को तलाक नहीं देना चाहिए।
11 अगर वह अपने पति को छोड़ दे तो उसे दूसरे आदमी से शादी नहीं करनी चाहिए। और अगर औरत अकेली नहीं रहना चाहती है तो उसे अपने पति के साथ फिर से रिश्ता जोड़ लेना चाहिए। और पति को भी अपनी पत्नी को तलाक नहीं देना चाहिए।
12 और यह है जो मैं उन से कहना चाहता हूँ जिन्होंने अविश्वासी से शादी की है। और यह प्रभु की आज्ञा नहीं लेकिन मेरी सलाह है। अगर विश्वासी पति के पास अविश्वासी पत्नी है और वह उसके साथ रहने के लिए सहमत है तो उसको उसे तलाक नहीं देना चाहिए।
13 और अगर विश्वासी पत्नी के पास अविश्वासी पति है और वह उसके साथ रहने के लिए सहमत है तो उसको उसे तलाक नहीं देना चाहिए।
14 विश्वासी पत्नी अपनी शादी में पवित्रता लाती है और आत्मिक रूप से अपने अविश्वासी पति पर प्रभाव डालती है। विश्वासी पति भी अपनी शादी में पवित्रता लाता है और आत्मिक रूप से अपनी अविश्वासी पत्नी पर प्रभाव डालता है। और आप अपने बच्चों के जीवन में भी पापों से बचाने के लिए पवित्रता लाते हैं।
15 अगर कोई अविश्वासी तलाक लेना चाहता है तो उसे तलाक दे दें। इस मामले में, विश्वासी पति या विश्वासी पत्नी अब अविश्वासी के साथ शादी के बंधन में नहीं। प्रभु चाहता है कि हम शान्ति से रहें।
16 हे पत्नी, क्या आप नहीं समझती कि आप अपने अविश्वासी पति को उद्धार दिला सकती हैं? और हे पति, क्या आप नहीं समझते कि आप अपनी अविश्वासी पत्नी को उद्धार दिला सकते हैं?
17 परमेश्वर के पास हम में से हर एक के लिए योजना है। और हर व्यक्ति को वही करना चाहिए जो प्रभु चाहता है। जो मैं सिखाता हूँ उसका पालन सभी चर्चों को करना है।
18 अगर कोई यहूदी व्यक्ति मसीह के पास आया है तो उसे यह नहीं छिपाना चाहिए कि वह खतना किया हुआ है। और अगर अन्यजाति व्यक्ति मसीह के पास आया है तो उसे खतना नहीं कराना चाहिए।
19 अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसका खतना हुआ है और किसका नहीं। लेकिन हकीकत में फर्क इससे पड़ता है कि हम परमेश्वर की आज्ञाओं को मानें।
20 जब हम मसीह के पास आए तब हम में से हर एक अलग-अलग परिस्थितियों में थे। और ये परिस्थितियाँ हमारे जीवन में तब तक रहेंगी जब तक परमेश्वर उन्हें बदल न दे।
21 अगर उस समय आप गुलाम थे जब आप परमेश्वर के पास आए तो अपने बारे में यह न सोचें कि आप दूसरे विश्वासियों से बुरे हैं। लेकिन अगर आपको आज़ाद होने का मौका मिले तो इसका लाभ उठाएं।
22 जो गुलाम प्रभु के पास आया, उसे अपने बारे में सोचना चाहिए कि अब वह प्रभु में आज़ाद हो गया है। और जो आज़ाद व्यक्ति मसीह के पास आया, उसे अपने बारे में सोचना चाहिए कि अब वह मसीह का गुलाम बन गया है।
23 मसीह ने आपके लिए बड़ी कीमत चुकाई है। इसलिए लोगों के गुलाम न बनें।
24 हे भाइयों, जब आप परमेश्वर के पास आए तब आपमें से हर एक की परिस्थितियाँ अलग-अलग थीं। और ये परिस्थितियाँ आपके जीवन में तब तक रहेंगी जब तक परमेश्वर उन्हें बदल नहीं देता।
25 मुझे कुँवारी लड़कियों के लिए प्रभु से कोई आज्ञा नहीं मिली। लेकिन मैं सलाह देना चाहता हूँ क्योंकि मुझे प्रभु से दया मिली है और मैं ईमानदारी से उसकी सेवा करता हूँ।
26 अब हम कठिन परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं। इसलिए मैं सोचता हूँ कि किसी व्यक्ति को अपनी वैवाहिक स्थिति को न बदलना ही बेहतर है।
27 अगर आप पहले से ही शादीशुदा हैं तो तलाक न दें। और अगर आपने अपनी पत्नी को खो दिया है तो दूसरी न ढूँढें।
28 लेकिन अगर आप शादी करें तो आप पाप नहीं करेंगे। और अगर किसी लड़की की शादी हो तो वह भी पाप नहीं करेगी। अब हम मुश्किल समय से गुजर रहे हैं। इसलिए शादीशुदा लोग इस जीवन में कष्टों का सामना करेंगे। और मुझे आप पर दया आती है।
29 हे भाइयों, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि हमारे पास ज़्यादा समय नहीं बचा है। इसलिए शादीशुदा व्यक्ति को अपना सारा समय सिर्फ़ अपनी पत्नी को नहीं देना चाहिए।
30 और रोने वाला पूरी तरह से अपने दुःख में डूब न जाए। और आनन्द करने वाले को आनन्द पूरी तरह से पकड़ न ले। और जब आप चीजें खरीदते हैं तब आप उनके साथ चिपक न जाएं।
31 आप इस दुनियाँ की चीजों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आपको किसी भी चीज से चिपकना नहीं चाहिए क्योंकि यह दुनियाँ जल्दी ही गायब हो जाएगी।
32 मैं चाहता हूँ कि आप हर रोज़ की चिन्ताओं से आज़ाद रहें। अविवाहित आदमी प्रभु की योजनाओं को पूरा करना चाहता है।
33 और शादीशुदा आदमी के पास हर रोज़ की बहुत ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। उसे अपनी पत्नी की योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए। और उसी समय उसे परमेश्वर की योजनाओं को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा।
34 कुँवारी लड़की या ऐसी औरत जो अपने पति को खो चुकी है सिर्फ़ प्रभु की योजनाओं को पूरा करना चाहती है। इसलिए वह अपने शरीर और अपनी आत्मा को पवित्र करती है। लेकिन शादीशुदा औरत के पास हर रोज़ की बहुत ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। और उसे अपने पति की योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए।
35 मैं आप को सीमित करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। लेकिन मैं यह आपके लाभ के लिए कहता हूँ ताकि कोई भी बात आपको आपकी सेवा से विचलित न करें। और तब आप बेहतर तरीके से और अधिक समर्पण के साथ प्रभु की सेवा करेंगे।
36 शायद आप में से कुछ ने अपनी मंगेतर से शादी करने का वादा किया था। और हम जिन परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं उनकी वजह से आपने शादी में देरी की। लेकिन अब आप सोचते हैं कि अगर आपकी मंगेतर बूढ़ी हो जाए और उसकी शादी न हो तो यह अच्छा नहीं। इस मामले में, अगर आप अब शादी करें तो कुछ भी गलत नहीं होगा।
37 लेकिन शायद आप में से कुछ ने अपने दिल में दृढ़ता से फ़ैसला किया कि वह शादी न करे। ऐसे व्यक्ति को लगता है कि उसे शादी करने की ज़रूरत नहीं क्योंकि वह खुद पर नियंत्रण कर सकता है। इस मामले में, यह सही बात है क्योंकि अब परिवार शुरू करने का सबसे अच्छा समय नहीं।
38 इसलिए जो शादी करता है वह सही करता है। और जो शादी नहीं करता वह और भी अच्छा करता है।
39 जब औरत शादी करती है तब परमेश्वर का कानून उसे उसके पति के साथ शादी के बंधन में बांधता है। लेकिन अगर उसका पति मर जाए तो उसे अधिकार है कि वह किसी भी आदमी से शादी कर सकती है जिसे वह पसन्द करती है। लेकिन वह आदमी प्रभु पर विश्वास करने वाला होना चाहिए।
40 परमेश्वर ने मुझे अपनी आत्मा दी इसलिए मैं आप को सलाह देना चाहता हूँ। मैं विश्वास करता ​​हूँ कि औरत के लिए यह बेहतर है कि जब हम परीक्षाओं से गुजरते हैं तब वह शादी नहीं करे।
1 You wrote to me that it is better for a man not to marry and not to have intimate relationship with a woman.
2 But such a man may begin to live an immoral lifestyle. That is why every man should have a wife, and every woman should have a husband.
3 The husband should satisfy the sexual needs of his wife. And the wife should satisfy the sexual needs of her husband.
4 The wife should not deny her husband to have intimate relationship, because her body belongs to her husband. The husband also should not deny his wife to have intimate relationship, because his body belongs to his wife.
5 Do not avoid intimacy with each other. But if you want to devote yourselves to fasting and prayer then during this time you may avoid sexual relations by mutual agreement. But after that you should be together again. Otherwise, you may lose control of yourselves, and it will make you fall into the trap of Satan.
6 I am writing to you that you may avoid sexual relations during fasting. But this is my advice, and I do not require you to do so.
7 I wish everyone could follow my example. But God has a plan for each person regarding marriage. That is why some people marry, while others do not.
8 I want to give advice to the unmarried and widows. Now it is not the best time to start a family. That is why you should remain unmarried and live without a family as I do.
9 But if you cannot control yourselves, you should marry. It is better to get married than to burn with sexual desire.
10 These are the requirements which married people should keep. And it is not I who make these demands, but the Lord. A wife must not divorce her husband.
11 If she leaves her husband, she should not marry another man. And if a woman does not want to live alone, she should make peace with her husband. And a husband also must not divorce his wife.
12 Here is what I will say to those who are married to an unbeliever. And it is not the requirement of the Lord, but my advice. If a believing husband has an unbelieving wife, and she agrees to live with him, he must not divorce her.
13 And if a believing wife has an unbelieving husband, and he agrees to live with her, she must not divorce him.
14 The believing wife brings holiness to her marriage and spiritually influences her unbelieving husband. The believing husband also brings holiness to his marriage and spiritually influences his unbelieving wife. You also bring holiness to the lives of your children to save them from sin.
15 If an unbeliever wants to divorce, let him divorce. In this case, the believing husband or believing wife is no longer bound in marriage to the unbeliever. The Lord wants us to live in peace.
16 Wife, don’t you realize that you may lead your unbelieving husband to salvation? And husband, don't you understand that you may lead your unbelieving wife to salvation?
17 God has a plan for each of us. And every person should do what the Lord wants. All churches should follow what I teach.
18 If a Jew turned to Christ, he should not hide that he was circumcised. And if the Gentile turned to Christ, he should not be circumcised.
19 Now it does not matter who was circumcised, and who was not. But what really matters is that we should keep the commandments of God.
20 When we turned to Christ, each of us was in different circumstances. And these circumstances will remain in our lives until God changes them.
21 If you were a slave when you turned to God, do not think that you are less worthy than other believers. But if you have the opportunity to become free, take advantage of this.
22 A slave who turned to the Lord should consider that now he is free in the Lord. And a free person who turned to Christ should consider that now he is the slave of Christ.
23 Christ paid a high price for you. So do not become slaves to people.
24 Brothers, when you turned to God, each of you was in different circumstances. And these circumstances will remain in your life until God changes them.
25 I have no requirements from the Lord regarding unmarried girls. But I want to give advice because I received mercy from the Lord, and I serve Him faithfully.
26 Now we are going through difficult trials. That is why I think it is better for a person not to change his marital status.
27 If you are already married, do not divorce. And if you are left without wife, do not look for another one.
28 But if you marry, you will not sin. And if a girl gets married, she will not sin also. Now we are experiencing difficult times, so married people will face hardships. And I feel very sorry for you.
29 Brothers, I tell you that we do not have much time left. That is why a married man should not devote all his time only to his wife.
30 And those who mourn should not be completely overwhelmed by their sorrow. And those who rejoice should not be entirely consumed by their joy. And when you buy things, you should not be attached to them.
31 You use the things of this world. But you should not get attached to anything because this world will soon pass away.
32 I want you to be free from the worries of this life. An unmarried man wants to fulfill only the plans of the Lord.
33 But a married man has many daily responsibilities. He should pay attention to the plans of his wife. And at the same time, he should make efforts to fulfill God's plans.
34 An unmarried girl or a woman who is left without husband wants to fulfill only the plans of the Lord. So she sanctifies her body and spirit. But a married woman has many daily responsibilities. And she should pay attention to the plans of her husband.
35 I do not limit you. But I speak this for your benefit so that nothing would distract you from your ministry. Then you will serve the Lord more effectively and with greater dedication.
36 Perhaps some of you made a promise to marry your bride. And you postponed the wedding because of the trials we are going through. But now you may think that it is not good if your bride becomes older and remains unmarried. In this case, there is nothing wrong with getting married now.
37 But perhaps some of you decided firmly in your heart not to marry. Such a person feels that he has no need to marry because he can control himself. In this case, it is the right thing to do because now it is not the best time to start a family.
38 So he who marries does the right thing. But he who does not marry does even better.
39 When a woman gets married, the Law of God binds her to her husband in marriage. But if her husband dies, the woman has the right to marry any man she likes. But he must believe in the Lord.
40 God gave me His Spirit that is why I want to give you advice. I think it would be better for a woman not to marry while we are going through the trials.

अध्याय 8

Chapter 8

1 अब उस भोजन के बारे में बात करें जो अन्यजाति लोग मूर्तियों को चढ़ाते हैं। इस विषय पर हम सब के पास थोड़ा ज्ञान है। लेकिन ज्ञान हमें घमंडी बनाता है और प्यार हमें मज़बूत बनाता है।
2 शायद आप में से कुछ लोग ज्ञान को पहले स्थान पर रखते हैं। लेकिन कोई भी इतना ज्ञान नहीं पा सकता कि वह सब कुछ पूरी तरह से समझ सके।
3 लेकिन अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के लिए प्यार को पहले स्थान पर रखता है तो वह परमेश्वर को आनन्द देता है। और ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर अपना ज्ञान देता है कि सही काम कैसे करें।
4 इसलिए उस भोजन के बारे में बात करें जो अन्यजाति लोग मूर्तियों को चढ़ाते हैं। इस दुनियाँ के लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि मूर्ति परमेश्वर नहीं। हम यह भी जानते हैं कि सिर्फ़ एक ही परमेश्वर है और उसके अलावा कोई दूसरा परमेश्वर नहीं।
5 लेकिन अन्यजाति लोग विश्वास करते हैं कि अलग-अलग देवता स्वर्ग और पृथ्वी पर राज करते हैं। इसलिए वे कई देवताओं की पूजा करते हैं और अपने ऊपर उनका अधिकार स्वीकार करते हैं।
6 लेकिन हम एक परमेश्वर पिता पर विश्वास करते हैं जिसने सब कुछ बनाया। और हम परमेश्वर के लिए जीते हैं। हम सिर्फ़ एक और एकमात्र प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं जिसके द्वारा परमेश्वर ने पूरी दुनियाँ को बनाया। और हम मसीह के कारण जीते हैं।
7 लेकिन आप में से सभी नहीं समझते कि सिर्फ़ एक ही परमेश्वर है। आपके बीच में कुछ लोग हैं जो अभी तक मूर्तियों पर विश्वास करते हैं। उनकी अंतरात्मा सही और गलत में फर्क नहीं कर सकती। ऐसे लोगों का परमेश्वर में विश्वास कमज़ोर है। इसलिए वे विश्वास करते हैं कि हमें मूर्तियों को चढ़ाए गये भोजन को खाने की अनुमति है और यह उनकी अंतरात्मा को अशुद्ध करता है।
8 हम जानते हैं कि खाना हमें परमेश्वर के पास नहीं ले जा सकता। और खाना हमें न तो बेहतर बना सकता है न ही और भी बुरा।
9 इसलिए आप में से कुछ लोग कहते हैं कि हमें उस भोजन को खाने की अनुमति है जिसे अन्यजाति लोगों ने मूर्तियों को चढ़ाया। लेकिन ऐसे लोगों को अपने कामों के परिणाम के बारे में सोचना चाहिए। वे उन लोगों को पाप करने के लिए उकसाएंगे जिनका विश्वास कमज़ोर है।
10 आप समझते हैं कि मूर्ति परमेश्वर नहीं। लेकिन मान लीजिए कि आप किसी मूर्ति के मन्दिर में भोजन खाएंगे और कोई व्यक्ति जिसका विश्वास आपसे कमज़ोर है आपको वहाँ देखेगा। सोचिए कि आप उसे किस तरह का उदाहरण देंगे? ऐसा व्यक्ति मूर्तियों को चढ़ाया हुआ भोजन खाना शुरू कर देगा और आप के कारण उनकी पूजा करेगा।
11 क्या आप सोचते हैं कि आप वह भोजन खा सकते हैं जो अन्यजाति लोगों ने मूर्तियों को चढ़ाया? लेकिन अगर आपके मसीही भाई का विश्वास कमज़ोर है तो आप अपने भाई को बर्बाद कर देंगे जिसके लिए मसीह मरा।
12 आप उन भाइयों के खिलाफ़ पाप करते हैं जिनका विश्वास कमज़ोर है। उनकी अंतरात्मा सही और गलत में फर्क नहीं कर सकती। आप उनके विश्वास को नष्ट करते हैं और इस तरह से आप मसीह के खिलाफ़ पाप करते हैं।
13 मुझे क्या करना चाहिए अगर मैं जो भोजन खाता हूँ वह मेरे भाई को पाप करने के लिए उकसाता है? इस मामले में, मैं मूर्तियों को चढ़ाया गया भोजन फिर कभी नहीं खाऊँगा ताकि मैं अपने भाई के विश्वास को बर्बाद न करूँ।
1 Now let's talk about the food which the Gentiles offer to idols. We all have some knowledge about this subject. But knowledge makes us proud, while love makes us strong.
2 Perhaps some of you put knowledge in the first place. But no one can get enough knowledge to understand everything perfectly.
3 But if a person puts the love for God in the first place, he brings joy to God. And to such a person God gives His knowledge of how to do what is right.
4 So let's talk about the food which the Gentiles dedicate to idols. People of this world worship idols. But we know that an idol is not God. We also know that there is only one God, and there is no other God besides Him.
5 But the Gentiles believe that different gods rule over heaven and earth. So they worship many gods and recognize their authority over themselves.
6 But we believe in one God the Father who created everything. And we live for Him. We believe in the one and only Lord Jesus Christ through whom God created the whole world. And we live because of Christ.
7 But not all of you realize that there is only one God. There are people among you who still believe in idols. Their conscience cannot distinguish between what is right and what is wrong. Such people have weak faith in God. That is why they believe that it is allowed to eat the food offered to idols, and it defiles their conscience.
8 We know that food cannot bring us closer to God. And food cannot make us either better or worse.
9 That is why some of you say that it is allowed to eat the food which the Gentiles offered to idols. But such people should think about the consequences of their actions. They will push to sin those people whose faith is weak.
10 You understand that an idol is not God. But suppose, you will have food in an idol temple, and a person whose faith is weaker than yours will see you there. Consider what example you are setting for him? Such a person will start eating the food offered to idols and worshiping them because of you.
11 Do you think that you can eat the food which the Gentiles offered to idols? But if your brother in Christ has weak faith, you will ruin your brother for whom Christ died.
12 You sin against brothers whose faith is weak. Their conscience cannot distinguish between what is right and what is wrong. You destroy their faith, and this way you sin against Christ.
13 What should I do if what I eat causes my brother to sin? In this case, I will never again eat the food offered to idols so that I would not ruin the faith of my brother.

अध्याय 9

Chapter 9

1 परमेश्वर ने मुझे प्रेरित बनाया और मुझे अधिकार के साथ काम करने का हक है। मैंने हमारे प्रभु यीशु मसीह को देखा था और आप मेरी सेवा के परिणाम के रूप में उसके पास आए।
2 शायद, दूसरे लोग मुझे प्रेरित नहीं मानते। लेकिन आपके लिए मैं प्रेरित बन गया क्योंकि आप मेरी सेवा के द्वारा परमेश्वर के पास आए। अब आप प्रभु के हैं और आप इस बात का सबूत हैं कि मैं यीशु मसीह का प्रेरित हूँ।
3 इस तरह से मैं उन लोगों से अपनी सेवकाई की रक्षा करता हूँ जो मुझ पर दोष लगाते हैं।
4 हम प्रभु के लिए काम करते हैं। क्या आप हमारी सेवा के लिए धन्यवाद देने के लिए हमें कुछ खाने-पीने को नहीं दे सकते?
5 पतरस, दूसरे प्रेरित और प्रभु के भाई अपनी विश्वासी पत्नियों के साथ यात्रा करते हैं। क्या हमारे पास अपनी विश्वासी पत्नियों को अपने साथ ले जाने का समान अधिकार नहीं?
6 क्या हमें अपने खर्च के लिए दान का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं? लेकिन मैंने और बरनबास ने इस अधिकार का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया और हम काम करते हैं और अपने आप को सम्भालते हैं।
7 मुझे बताइए, जब कोई सैनिक सेना में काम करता है तब क्या वह अपना खर्च खुद उठाता है? और क्या कोई व्यक्ति अपने लगाए हुए अंगूर के बाग के अंगूर नहीं खाता? और क्या कोई चरवाहा अपनी भेड़-बकरियों के दूध को नहीं पीता?
8 मैं आपको हर रोज़ के जीवन से कुछ उदाहरण देता हूँ और कानून भी यही कहता है।
9 परमेश्वर ने मूसा के द्वारा कहा, “जब बैल खेत में काम करेगा तब वह फसल भी खाएगा। लेकिन आपको उसका मुँह बन्द नहीं करना चाहिए।” मुझे बताइए, क्या परमेश्वर सिर्फ़ बैलों की परवाह करता है?
10 जब परमेश्वर इस के बारे में बात करता है तब क्या इसका मतलब हमसे नहीं? बिल्कुल, मूसा ने इसे हमारे लिए लिखा था। जोतने वाला और काटने वाला दोनों अपना काम करते हैं। और उनमें से हर एक पूरी तरह से निश्चिंत होता है कि फसल का हिस्सा उसी का होगा।
11 हमने आपके जीवन में आत्मिक आशीषें उगाई हैं जो सांसारिक चीज़ों से कहीं अधिक कीमती हैं। और हमें आपसे सांसारिक आशीषों की फसल इकट्ठा करने का अधिकार है।
12 दूसरे सेवक आपसे आर्थिक सहायता प्राप्त करते हैं। हमें आपसे सहायता माँगने का ज़्यादा अधिकार है। लेकिन हम इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं करते। और इस सच के बावजूद कि हम सांसारिक कठिनाइयों का सामना करते हैं, हम रुकते नहीं और मसीह के बारे में अच्छी खबर को फैलाना जारी रखते हैं।
13 क्या आप नहीं जानते कि याजक वह भोजन प्राप्त करते हैं जिसे लोग मन्दिर में लाते हैं और परमेश्वर को भेंट चढ़ाते हैं? क्या आप नहीं जानते कि लोग जो कुछ भी प्रभु को भेंट चढ़ाते हैं, उस में से कुछ भाग वे सेवक अपने लिए ले लेते हैं जो वेदी पर सेवा करते हैं?
14 और यह वह आज्ञा है जो प्रभु ने हमें दी थी। जो मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करता है, उसे उन लोगों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है जिनकी वह सेवा करता है।
15 लेकिन मैंने इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया। और अब मैं यह इसलिए नहीं लिख रहा हूँ ताकि आप आर्थिक रूप से मेरी सहायता करना शुरू कर दें। मैंने फ़ैसला किया कि जिन्हें मैं प्रचार करता हूँ उन लोगों के खर्चे पर जीने की बजाय मरना पसन्द करूँगा। और यह मुझे आनन्द देता है कि मैं अपने लिए बन्दोबस्त कर सकता हूँ।
16 मैं मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार कर रहा हूँ लेकिन मैं इस के लिए आर्थिक सहायता मिलने का इंतेज़ार नहीं करता। यह मेरा कर्तव्य है जिसे मुझे पूरा करना है। और अगर मैं मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करना बन्द कर दूँ तो मुझे बहुत दु:ख होगा।
17 मान लीजिए कि मैंने प्रचारक बनने का फ़ैसला किया ताकि इस तरह से मैं अपनी जीविका कमा सकूँ। इस मामले में, मैं अपने काम के लिए तनख्वाह का इंतेज़ार कर सकता हूँ। लेकिन मेरा ऐसा विचार नहीं था। मैं प्रचार करता हूँ क्योंकि परमेश्वर ने मुझे अपनी सेवा सौंपी है और मुझे इसे पूरा करना है।
18 जब मैं आपको मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करता हूँ तब मुझे आपसे आर्थिक सहायता पाने का पूरा अधिकार है। लेकिन मैं इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं करता। मैं आपकी सेवा करता हूँ और आपसे किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता प्राप्त करने की आशा नहीं रखता। और परमेश्वर मुझे उसके लिए इनाम देगा।
19 कोई भी मेरी आज़ादी को सीमित नहीं करता। लेकिन मैंने दूसरे लोगों के लिए अपनी आज़ादी को बलिदान कर दिया ताकि मैं मसीह के लिए और अधिक लोगों को जीत सकूँ।
20 इसलिए यहूदी लोगों को मैं यहूदी नज़रिये से मसीह के बारे में प्रचार करता हूँ। मैं ऐसा इसलिए करता हूँ ताकि यहूदी लोग मसीह के पास आ सकें। जब मैं इस कानून के अनुसार जीने वालों को मसीह के बारे में बताता हूँ तब मैं मूसा के कानून का इस्तेमाल करता हूँ ताकि वे भी मसीह के पास आ सकें।
21 अन्यजाति लोग नहीं जानते कि मूसा का कानून क्या है। इसलिए जब मैं उन्हें प्रचार करता हूँ तब मैं इस कानून का इस्तेमाल नहीं करता और उसके अनुसार नहीं जीता। लेकिन मैं मसीह की आज्ञा का पालन करता हूँ और परमेश्वर के कानून का उल्लंघन नहीं करता। मैं यह इसलिए करता हूँ क्योंकि मैं अन्यजाति लोगों को परमेश्वर के पास लाना चाहता हूँ।
22 जब मैं दु:खों से गुज़रने वालों को मसीह के बारे में प्रचार करता हूँ तब मैं अपने आप को कमज़ोर व्यक्ति की जगह पर रखता हूँ ताकि उसे परमेश्वर के पास ला सकूँ। मैं उन में से कम से कम कुछ को बचाने के लिए सभी लोगों के साथ एक सा आधार ढूँढता हूँ।
23 मैं इस तरह से काम करता हूँ ताकि मैं मसीह के बारे में अच्छी खबर फैला सकूँ। और इस तरह से मैं परमेश्वर के काम में हिस्सा लेता हूँ।
24 आप जानते हैं कि दौड़ प्रतियोगिता में कई खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। लेकिन उनमें से सिर्फ़ एक व्यक्ति ही इनाम पाता है। इसलिए आपको जीतने के लिए दौड़ना है।
25 सभी प्रतियोगी हर चीज में खुद को तैयार और अनुशासित करते हैं। वे ऐसा मुकुट पाने के लिए सब कुछ करते हैं जो हमेशा नहीं रहेगा। लेकिन हम अपने आप को अनुशासित करते हैं ताकि वह अविनाशी इनाम पा सकें जिसे परमेश्वर हमें देगा।
26 मैं ऐसे खिलाड़ी की तरह काम करता हूँ जिसका एक लक्ष्य है। मैं अन्तिम रेखा तक पहुँचना चाहता हूँ। मैं ऐसे मुक्केबाज़ की तरह काम करता हूँ जो हर मुक्के के बारे में सोचता है। मैं हवा को नहीं पीटता।
27 मैं दूसरों को प्रचार करता हूँ। लेकिन मुझे अपने आप को भी अनुशासित करना पड़ेगा ताकि मैं पूरी तरह से अपने शरीर को नियंत्रित कर सकूँ। नहीं तो, मैं अन्तिम रेखा तक नहीं पहुँच पाऊँगा और अपना इनाम नहीं पाऊँगा।
1 God appointed me as an apostle, and I have the right to act with authority. I saw our Lord Jesus Christ, and you turned to Him as a result of my ministry.
2 Perhaps, others do not consider me an apostle. But for you I became an apostle because you turned to God through my ministry. Now you belong to the Lord, and you are the proof that I am an apostle of Jesus Christ.
3 This way I protect my ministry from those who criticize me.
4 We work for the Lord. Can't you offer us something to eat and drink to thank us for our ministry?
5 Peter, the other apostles and the Lord’s brothers travel with their believing wives. Don’t we have the same right to take our believing wives with us?
6 Don’t we have the right to use donations for our expense? But Barnabas and I gave up this right, and we work to support ourselves.
7 Tell me, does a soldier pay for his expenses when he serves in the army? And doesn’t a person eat the grapes of the vineyard he planted? And doesn’t a shepherd drink the milk produced by his flock?
8 I give you examples from everyday life, and the Law says the same thing.
9 God said through Moses, “When an ox works in the field, he eats the harvest. But you should not close his mouth.” Tell me, does God care only about oxen?
10 Doesn't God mean us when He talks about it? Of course, Moses wrote it for us. The one who plows and the one who harvests do their job. And each of them is completely confident that part of the crop will belong to him.
11 We have planted spiritual blessings in your life which are far more valuable than material things. And we have the right to reap the harvest of the material blessings from you.
12 Other ministers receive financial support from you. We have much greater right to ask for your support. But we do not use this right. And even though we face financial difficulties, we do not stop and continue to spread the Good News about Christ.
13 Don’t you know that the priests receive the food which people bring to the temple and offer to God? Don’t you know that the ministers who serve at the altar take a portion of what people offer to the Lord?
14 And this is the instruction given to us by the Lord. He who preaches the Good News about Christ has the right to receive the financial support from those he ministers to.
15 But I did not use this right. And now I am not writing this so that you would start supporting me financially. I decided that I would rather die than live at the expense of those to whom I preach. And it brings me joy that I can provide for myself.
16 I am preaching the Good News about Christ, but I do not expect to receive financial support for this. It is my duty which I must fulfill. And woe to me if I stop preaching the Good News about Christ.
17 Suppose, I decided to become a preacher to earn my living. In that case, I would expect payment for my work. But I didn’t have such an intention. I preach because God entrusted me with His ministry which I must fulfill.
18 When I preach the Good News about Christ to you, I have every right to receive financial support from you. But I do not use this right. I minister to you without expecting any financial support from you. And God will give me a reward for that.
19 No one limits my freedom. But I sacrificed my freedom for the sake of others to win more people for Christ.
20 That is why to the Jews I preach about Jesus from a Jewish point of view. I do this so that they would turn to Christ. I use the Law of Moses when I share about Jesus with those who live according to this Law so that they would also turn to Christ.
21 Gentiles do not know what the Law of Moses is. That is why when I preach to them, I do not use the Law and do not live according to it. But I obey Christ and do not break the Law of God. I do it to bring the Gentiles to God.
22 When I preach about Christ to those who are going through sufferings, I put myself in the place of a weak person to bring him to God. I find a common ground with all people to save at least some of them.
23 I act like this to spread the Good News about Christ. And this way, I take part in the work of God.
24 You know that many athletes participate in a running competition. But only one of them will receive a reward. So you must run to win.
25 All competitors train and discipline themselves in everything. They do it to receive a reward that will not last. But we discipline ourselves to receive the eternal reward which God will give us.
26 I act like an athlete who has a goal. I want to reach the finish line. I act like a boxer who thinks about every strike. I don’t beat the air.
27 I preach to others. But I also should discipline and have complete control over my body. Otherwise, I will not be able to reach the finish line to receive a reward.

अध्याय 10

Chapter 10

1 हे भाइयों, मैं आप को याद दिलाना चाहता हूँ कि मूसा हमारे यहूदी लोगों को मिस्र से जंगल में लाया। जब मिस्र की सेना परमेश्वर के लोगों का पीछा कर रही थी तब प्रभु मिस्र की सेना और यहूदी लोगों के बीच बादल में खड़ा हुआ और अपने लोगों की रक्षा की। समुद्र दो भाग हो गया और इस्राएली समुद्र में से होकर दूसरी ओर ज़मीन पर चले गए लेकिन मिस्र की सेना डूब गई।
2 परमेश्वर के लोग मूसा के पीछे चले। और उन सभी को बादल और समुद्र में मूसा के नाम से बपतिस्मा मिला।
3 सभी लोग एक ही आत्मिक भोजन खाते थे।
4 सभी लोग उसी आत्मिक सोते से पीते थे जो आत्मिक चट्टान से बहता था। यह चट्टान मसीह था। और मसीह जंगल में अपने लोगों के साथ था।
5 लेकिन सभी इस्राएलियों ने परमेश्वर को आनन्द नहीं दिया। उन्होंने पाप किया इसलिए वे जंगल में मर गए।
6 लोग बुराई करना चाहते थे और उनकी बुरी इच्छाओं ने उन्हें नष्ट कर दिया। यह हमारे लिए एक उदाहरण होना चाहिए ताकि हम बुराई करने की इच्छा से दूर रहें।
7 मूर्तियों की पूजा भी न करें जैसा कि कुछ इस्राएलियों ने की थी। शास्त्र उनके बारे में कहते हैं, “लोग सोने के बछड़े के सामने बैठ गए और खाना-पीना शुरू कर दिया। और फिर वे पागलों की तरह मूर्ति के चारों ओर कूदने लगे।”
8 गलत यौन संबंधों में हिस्सा न लें जैसा कि कुछ इस्राएलियों ने किया। लोगों ने पाप किया और एक दिन में 23,000 लोग मारे गए।
9 जब परमेश्वर जंगल में अपने लोगों के आगे आगे चला तब उनमें से कुछ ने परमेश्वर की योजना पर शक किया। उन्होंने परमेश्वर के खिलाफ़ बोला और अपने पापों से मसीह के धीरज की परीक्षा की। इसलिए सांपों ने उन्हें काटा और इसकी वजह से लोग मर गए। इसलिए हमें प्रभु की योजनाओं पर शक नहीं करना चाहिए। इस बात की परीक्षा न करें कि प्रभु हमारे पापी व्यवहार को किस हद तक सहन करेगा।
10 कुछ इस्राएली मर गए थे क्योंकि वे कुड़कुड़ाये और शिकायत करने लगे। यही कारण था कि वे नाश हो गए। लेकिन हमें शिकायत नहीं करनी और कुड़कुड़ाना नहीं चाहिए।
11 हम आखिरी दिनों में जीते हैं। और भविष्यवक्ताओं ने हमारे लिए वह सब कुछ लिखा था जो इस्राएल के लोगों के साथ हुआ। ये बातें हमारे लिए उदाहरण बन जानी चाहिए ताकि हम उनकी तरह पाप न करें।
12 आप सोचते हैं कि आप अपने पैरों पर स्थिर खड़े हैं। लेकिन आपको सावधान रहना है और पाप करने से बचना है। नहीं तो, आप गिर जाएंगे।
13 अगर आप पाप के बारे में सोचते हैं तो ऐसे विचार आपको पाप के कामों की ओर ले जायेंगे। और ऐसी चीजों का सामना हर किसी को करना पड़ता है। लेकिन आपको जानना चाहिए कि परमेश्वर अपने वचन के प्रति वफ़ादार है और वह आपको कभी असफल नहीं करेगा। वह आपको शक्ति देगा ताकि आप अपनी पाप भरी इच्छा के पीछे न चलें। परमेश्वर आपको धीरज से भर देगा और आपके पापी विचारों पर विजय पाने में आपकी मदद करेगा।
14 हे मेरे प्यारे भाइयों, मूर्तियों की पूजा न करें। उनसे दूर रहें।
15 आप बुद्धिमान लोग हैं। और आप समझ सकते हैं कि मैं आपसे क्या कह रहा हूँ।
16 जब हम प्रभु भोज लेते हैं तब हम मसीह की मौत को याद करते हैं। हम परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं और इस आशीषित प्याले से पीते हैं। इस तरह से, मसीह हमें अपने खून से एकजुट करता है। हम इस रोटी को भी तोड़ते हैं और खाते हैं। इस तरह से, मसीह हमें अपने शरीर में एकजुट करता है।
17 चर्च मसीह का शरीर है जिसमें कई अलग-अलग अंग हैं। जब हम सभी एक रोटी खाते हैं तब हम मसीह का शरीर बन जाते हैं।
18 इस्राएल के लोगों के बारे में सोचें। जब लोगों ने परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाए तब उन्हें वेदी पर खाया और इसने उन्हें परमेश्वर के साथ एकजुट कर दिया।
19 हम जानते हैं कि मूर्ति परमेश्वर नहीं। इसलिए मूर्तियों को बलिदान चढ़ाने का कोई मतलब नहीं।
20 लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि जब लोग मूर्तियों को बलिदान चढ़ाते हैं तब वे उन्हें दुष्टात्माओं को चढ़ाते हैं न कि परमेश्वर को। और मैं नहीं चाहता कि आप बुरी आत्माओं से संबंध रखें।
21 आप प्रभु के प्याले और दुष्टात्माओं के प्याले दोनों में से नहीं पी सकते। जो रोटी आपने प्रभु को समर्पित की और जो बलिदान का खाना अन्यजाति लोगों ने बुरी आत्माओं को समर्पित किया आप उन दोनों में से नहीं खा सकते।
22 क्या हम प्रभु को गुस्सा करने के लिए उकसाने की हिम्मत कर सकते हैं? क्या हम उससे मजबूत हो गए हैं?
23 आप कहते हैं, "जो मैं चाहूँ वह कर सकता हूँ।" लेकिन हमारे काम हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं। आप कहते हैं, "जो मैं चाहूँ वह करने का अधिकार मेरे पास है।" लेकिन हमारे काम हमारे विश्वास को कमज़ोर बना सकते हैं।
24 हमें अपने हितों का पीछा नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, हम में से हर एक को एक दूसरे का ख्याल रखना चाहिए।
25 जब आप बाजार जाते हैं तब यह न पूछें कि अन्यजाति लोगों ने कौन सी वस्तुएं मूर्तियों को चढ़ाई। जो कुछ भी आप बाजार से खरीदते हैं उसे साफ़ अंतरात्मा के साथ खाएं।
26 शास्त्र कहते हैं कि पृथ्वी प्रभु की है। और जो कुछ पृथ्वी पर मौजूद है वह भी उसी का है।
27 मान लीजिए कि कुछ अविश्वासी आपको अपने घर बुलाए और आप वहाँ जाना चाहें। इस मामले में, जो कुछ वह आपको दे उसे साफ़ अंतरात्मा के साथ खाएं। और यह न पूछें कि क्या यह खाना मूर्तियों को चढ़ाया गया था।
28 याद रखें कि पृथ्वी परमेश्वर की है। और जो कुछ पृथ्वी पर मौजूद है, वह भी उसी का है। लेकिन मान लीजिए कि कोई व्यक्ति आपको बताए, "यह खाना मूर्तियों को चढ़ाया गया था।” इस मामले में वह खाना खाने से इनकार कर दें। आपको उस व्यक्ति के लिए बलिदान किया हुआ खाना नहीं खाना चाहिए जिसने आपको इसके बारे में बताया है। और आपको दूसरे विश्वासी के लिए भी बलिदान किया हुआ यह खाना नहीं खाना चाहिए जिसका परमेश्वर पर विश्वास कमज़ोर है। अभी तक इस व्यक्ति की अंतरात्मा इस बात में फर्क नहीं कर सकती कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। इसलिए ऐसा व्यक्ति मूर्तियों को चढ़ाया हुआ खाना खाना शुरू कर देगा और आपके कारण मूर्तियों की पूजा करना शुरू कर देगा।
29 मैं जानता हूँ कि सब कुछ प्रभु का है इसलिए मेरी अंतरात्मा मुझे दोषी नहीं ठहराती। लेकिन मुझे यह सोचना पड़ेगा कि मेरे काम दूसरे व्यक्ति पर कैसा असर डालेंगे जिसका परमेश्वर पर विश्वास कमजोर है। आप में से कुछ कहते हैं, “प्रभु ने मुझे आज़ादी दी। और कोई भी मेरा न्याय नहीं कर सकता और कोई भी मुझे नहीं बता सकता कि मुझे कैसे व्यवहार करना चाहिए।”
30 और दूसरा कहता है, “मैं मूर्तियों को चढ़ाया हुआ खाना खाता हूँ और इसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ। आप इसके लिए मुझ पर कैसे दोष लगा सकते हैं?”
31 आपको यह समझना चाहिए कि आपके सभी कामों से परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए। जब आप खाते या पीते हैं तब इस से भी उसकी महिमा मिलनी चाहिए।
32 इसलिए आपको इस तरह से व्यवहार करना चाहिए कि आप न तो यहूदी लोगों को, न अन्यजाति लोगों को और न ही चर्च को, जो परमेश्वर का है पाप के लिए उकसाएं।
33 मैं चाहता हूँ कि लोगों को उद्धार मिले। इसलिए मैं प्रयास करता हूँ और दूसरों के हितों को अपने से ऊँचा रखता हूँ। मैं हर व्यक्ति का ख्याल रखने का हर संभव प्रयास करता हूँ।
1 Brothers, I want you to remember how Moses led our Jewish people out of Egypt into the wilderness. When the Egyptians chased the people of God, the Lord stood in the cloud between the Egyptians and the Jews to protect His people. Then the sea was divided, and the Israelites walked through the sea on the ground to the other side, but the Egyptians drowned.
2 The people of God followed Moses. And all of them were baptized in the name of Moses in the cloud and in the sea.
3 All the people ate the same spiritual food.
4 All the people drank from the same spiritual source which flowed from the spiritual Rock. This Rock was Christ. And Christ accompanied His people in the wilderness.
5 But not all the Israelites brought joy to God. They sinned so they died in the wilderness.
6 People wanted to do evil, and their evil desires destroyed them. Let it be an example for us and keep us from the desire to do evil.
7 Also do not worship idols, as some of the Israelites did. The Scriptures say about them, “The people sat down in front of the golden calf and started eating and drinking. Then they began to jump around the idol like crazy.”
8 Do not indulge in sexual immorality, as some of the Israelites did. They sinned, and 23,000 people died in one day.
9 When God led His people through the wilderness, some of them doubted the plan of God. They spoke against God and tested the patience of Christ with their sins. That is why the snakes bit them, and people died. But we should not doubt the plans of the Lord. Let’s not test to what extent the Lord will tolerate our sinful behavior.
10 Some of the Israelites died because they grumbled and complained. It was the reason why they were destroyed. But we must not complain and grumble.
11 We live in the last days. And the prophets wrote for us everything what happened with the people of Israel. It should become an example to prevent us from sinning like them.
12 You may think that you stand firm on your feet. But you must be careful and avoid sinning. Otherwise, you will fall down.
13 If you think about sin, such thoughts will lead you to sinful actions. And this is something that everyone faces. But you should know that God is faithful to His Word, and He will never fail you. He will give you strength so that you would not follow your sinful desire. God will fill you with patience and help you overcome your sinful thoughts.
14 My dear brothers, do not worship idols. Stay far away from them.
15 You are intelligent people. And you can understand what I am talking about.
16 When we take part in communion, we remember the death of Christ. We thank God and drink from the blessed cup. In this way, Christ unites us by His Blood. We also break the bread and eat it. In this way, Christ unites us in His Body.
17 The Church is the Body of Christ made of many different parts. When we all eat the same bread, we become one Body of Christ.
18 Think about the people of Israel. When people offered sacrifices to God, they ate them at the altar, and this united them with God.
19 We know that idol is not God. So the sacrifices the Gentiles offer to idols have no meaning.
20 But you must understand that when people offer sacrifices to idols, they offer them to demons, not to God. And I do not want you to communicate with evil spirits.
21 You cannot drink from the cup which belongs to the Lord and also drink from the cup which belongs to demons. You cannot eat the bread offered to the Lord and also eat the food sacrificed by the Gentiles to evil spirits.
22 Do we dare to provoke the Lord to anger? Are we stronger than Him?
23 You say, “I can do whatever I wish.” But our actions can harm us. You say, “I have the right to do what I want.” But our actions can make our faith weaker.
24 We should not pursue our own interests. Instead, each of us should take care of one another.
25 When you go to the market, do not ask which of the products the Gentiles offered to idols. Eat everything you buy at the market with a clear conscience.
26 The Scriptures say that the earth belongs to the Lord. And everything that exists on it also belongs to Him.
27 Suppose, some unbeliever will invite you to his place, and you would like to go there. In this case, you can eat whatever he offers you with a clear conscience. And do not ask him if the food was offered to idols.
28 Remember that the earth belongs to the Lord. And everything that exists on it also belongs to Him. But suppose, someone will tell you, “This food was offered to idols.” In this case, refuse to eat it. You should not eat the sacrificed food for the sake of the person who told you about it. And also you should not eat the sacrificed food for the sake of another believer who has weak faith in God. The conscience of this person still cannot distinguish between what is good and what is bad. So such a person will start eating the food offered to idols and worshipping them because of you.
29 I know that everything belongs to the Lord, so my conscience does not condemn me. But I have to consider how my action will affect another person who has weak faith in God. Some of you say, “The Lord gave me freedom. And no one can judge me or tell me how I should behave.”
30 And another one says, “I eat the food offered to idols and thank God for it. How can you blame me for this?”
31 You should understand that all your actions should glorify God. When you eat or drink, it should also bring glory to Him.
32 That is why you should behave in such a way that you would not provoke to sin either the Jews, or the Gentiles, or the Church which belongs to God.
33 I want people to receive salvation. So I make efforts and put the interests of others above my own. I do my best to take care of every person.

अध्याय 11

Chapter 11

1 मेरा उदाहरण लें जैसे मैं यीशु मसीह का उदाहरण लेता हूँ।
2 हे भाइयों, मुझे आनन्द है कि आप मुझे याद करते हैं और जैसे मैंने आपको पढ़ाया आप वैसे ही काम करते हैं।
3 मैं चाहता हूँ कि आप यह भी जानें कि मसीह हर एक आदमी का सिर है। पति अपनी पत्नी का सिर है। और परमेश्वर मसीह का सिर है।
4 अगर कोई आदमी औरत की तरह अपना सिर ढके हुए प्रार्थना या भविष्यवाणी करता है तो वह अपना और प्रभु का अपमान करता है।
5 और अगर कोई औरत आदमी की तरह अपना सिर गंजा करके प्रार्थना या भविष्यवाणी करती है तो वह अपना और अपने पति का अपमान करती है।
6 आपके बीच में कुछ औरतें हैं जो अपना सिर ढकना नहीं चाहती। लेकिन वे छोटे बालों के कारण आदमियों की तरह दिखाई देती हैं। औरत को अपना सिर गंजा नहीं करवाना चाहिए और न ही किसी आदमी की तरह अपने बाल कटवाने चाहिए। उसे इस बात पर शर्म आनी चाहिए और उसे अपना सिर ढकना चाहिए।
7 आदमी को अपना सिर नहीं ढकना चाहिए और औरत की तरह दिखाई देना नहीं चाहिए। परमेश्वर ने आदमी को अपने रूप में बनाया ताकि आदमी परमेश्वर की महिमा करे। और पत्नी को अपने पति की प्रतिष्ठा का ध्यान रखना चाहिए और उसका अपमान नहीं करना चाहिए।
8 शुरुआत में परमेश्वर ने आदमी को बनाया। और फिर परमेश्वर ने उसकी पसली से औरत को बनाया।
9 परमेश्वर ने आदमी को औरत के लिए नहीं बनाया। लेकिन उसने औरत को आदमी के लिए बनाया।
10 इसलिए स्वर्गदूतों को दिखाई देना चाहिए कि औरत अपने ऊपर अपने पति के अधिकार को पहचानती है। और अगर औरत अपने छोटे बालों के कारण आदमी की तरह दिखाई देती है तो उसे औरत की तरह दिखाई देने के लिए अपना सिर ढकना चाहिए।
11 हम प्रभु के हैं और हम समझते हैं कि आदमी औरतों पर निर्भर होते हैं और औरतें आदमियों पर निर्भर होती हैं।
12 पहली औरत आदमी की पसली से आई लेकिन बाकी सभी आदमी औरतों से पैदा हुए। और परमेश्वर ने हम सभी को बनाया।
13 आपके बीच में कुछ औरतें छोटे बालों के कारण आदमियों की तरह दिखाई देती हैं। इसके बारे में सोचें। क्या यह सही है जब ऐसी औरत अपना सिर बिना ढके परमेश्वर से प्रार्थना करती है?
14 अगर कोई आदमी अपने बालों को बढ़ाता है और औरत की तरह बनता है तो वह अपने स्वभाव के खिलाफ़ काम करता है और प्रकृति के खिलाफ़ व्यवहार करता है। और इस तरह से वह अपना अपमान करता है।
15 लेकिन जब कोई औरत अपने बालों को बढ़ाती है तब वह अपने औरत होने को महत्त्व देती है। और उसके लम्बे बाल प्राकृतिक रूप से उसे घूंघट की तरह ढकते हैं।
16 और अगर कोई व्यक्ति इस के बारे में बहस करना चाहता है तो मैं उससे कहूँगा, “आदमियों और औरतों को एक दूसरे से अलग दिखना ही चाहिए। और हमें इस नियम का पालन करना है। ऐसी आज्ञा परमेश्वर के सभी चर्चों में होनी चाहिए।”
17 मैं कुछ दूसरी बातों के लिए भी आपकी प्रशंसा नहीं कर सकता जो आपके बीच में होती हैं। जब आप इकट्ठे होते हैं तब यह आपको अच्छाई से ज़्यादा नुकसान पहुँचाता है।
18 मैंने सुना कि आपकी सभाओं के समय क्या होता है। सबसे पहली बात, जब आप चर्च आते हैं तब आपके बीच में कुछ फूट होती हैं। और कुछ हद तक, मैं मानता हूँ कि ऐसा हो सकता है।
19 आपके अलग-अलग नज़रिये हो सकते हैं ताकि आप देख सकें कि आप में से किस के विचार सही हैं जिन्हें परमेश्वर मंजूरी देता है।
20 दूसरी बात, जब आप इकट्ठे होते हैं तब आप प्रभु भोज लेते हैं। लेकिन आप इसे इस तरह से लेते हैं जैसे इसका सच्चे प्रभु भोज से कोई लेना-देना ही नहीं।
21 आप एक दूसरे के साथ नहीं बाँटते। आप अपने साथ लाया हुआ खाना खाने के लिए लालच करते हैं। इसलिए आप में से कुछ लोग भूखे रह जाते हैं और दूसरे लोग नशे में चूर हो जाते हैं।
22 आपको घर पर खाना और पीना चाहिए। परमेश्वर के चर्च को अपमान न करें और गरीबों को न दबाएं। मैं आपको क्या बताऊँ? क्या आप सोचते हैं कि मैं इसके लिए आपकी प्रशंसा करूँगा? बिल्कुल नहीं।
23 जो प्रभु ने मुझे सिखाया वह मैंने आप को बता दिया। जब यहूदा ने प्रभु यीशु को धोखा दिया, उस रात को प्रभु ने रोटी ली।
24 उसने परमेश्वर को धन्यवाद दिया, उस रोटी के टुकड़े किये और अपने चेलों से कहा, “इस रोटी को लें और खाएं। यह रोटी मेरा शरीर है जो आपके लिए दु:ख उठाएगा। जब आप इस रोटी को तोड़ते हैं और इसे खाते हैं तब आपको मुझे याद करना चाहिए।”
25 रात के खाने के बाद प्रभु ने प्याला लिया और कहा, “यह प्याला परमेश्वर और लोगों के बीच में नए समझौते को स्थापित करता है जिस पर मैं अपने खून से मुहर लगाऊँगा। जब आप इस प्याले में से पीएंगे तब हमेशा मुझे याद करना।”
26 जब आप इस रोटी को खाएंगे और इस प्याले में से पीएंगे तब हर बार आप प्रभु की मौत की घोषणा करेंगे। तब तक ऐसा करते रहें जब तक प्रभु इस धरती पर दोबारा न आए।
27 आप में से कुछ इस रोटी को खाते और प्रभु के प्याले में से पीते हैं लेकिन आप इसे गंभीरता से नहीं लेते। ऐसे लोग प्रभु के शरीर और उस के खून के खिलाफ़ पाप के दोषी होंगे।
28 इस रोटी को खाने और इस प्याले में से पीने से पहले व्यक्ति को अपने दिल को जाँचना चाहिए।
29 अगर आप खाते और पीते हैं लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लेते तो परमेश्वर इसके लिए आपका न्याय करेगा। आपको समझना चाहिए कि मसीह के शरीर का क्या मतलब है।
30 आप गलत तरीके से प्रभु भोज लेते हैं। इसलिए आपके चर्च में कुछ लोग कमज़ोर और बीमार हैं और कुछ लोग मर रहे हैं।
31 हमें अपने कामों के बारे में सोचना चाहिए और खुद को सही करना चाहिए। और तब परमेश्वर हमारा न्याय नहीं करेगा।
32 लेकिन अगर हम यह नहीं करते तो प्रभु हमारा न्याय करता और हमें अनुशासित करता है। लेकिन वह उस तरह से हमारा न्याय नहीं करता जिस तरह से वह इस दुनियाँ का न्याय करेगा।
33 हे मेरे भाइयों, जब आप प्रभु भोज के लिए इकट्ठा होते हैं तब एक दूसरे का इंतजार करें और एक साथ प्रभु भोज लें।
34 और अगर आप जानते हैं कि आपको भूख लगेगी तो आने से पहले घर पर खाना खाकर आएं। तब प्रभु भोज के समय परमेश्वर आपके गलत व्यवहार के लिए आपका न्याय नहीं करेगा। जब मैं आपके पास आऊँगा तब मैं आपके साथ कुछ और बातों के बारे में भी बात करूँगा।
1 Follow my example as I follow the example of Jesus Christ.
2 Brothers, I rejoice that you remember me and act as I taught you.
3 I also want you to know that Christ is the head of every man. Husband is the head of his wife. And God is the head of Christ.
4 If a man prays or prophesies with his head covered as a woman does, he dishonors himself and the Lord.
5 And if a woman prays or prophesies with her head shaved as a man does, she dishonors herself and her husband.
6 There are some women among you who do not want to cover their heads. But they look like men because they have short hair. A woman should not shave her hair or cut her hair like a man. She should be ashamed of this, and she should cover her head.
7 A man should not cover his head and resemble a woman. God created man in His image so that man would glorify God. And the wife should take care of her husband’s reputation, and she should not disgrace him.
8 In the beginning God created man. Then God created woman from the rib of man.
9 God did not create man for woman. But He created woman for man.
10 That is why angels must see that woman recognizes the authority of her husband over herself. And if a woman looks like a man because she has short hair, she should cover her head to look like a woman.
11 We belong to the Lord and understand that men depend on women, and women depend on men.
12 God created the first woman from the rib of a man, and all the other men were born of women. And God created us all.
13 There are some women among you who look like men because they have short hair. Think about it. Is it proper when such a woman prays to God with her head uncovered?
14 If a man grows his hair and becomes womanlike, he acts against his nature and behaves unnaturally. And this way, he dishonors himself.
15 But when a woman grows her hair, she emphasizes her femininity. And her long hair naturally covers her like a veil.
16 And if anyone wants to argue about it, I will say, “Men and women must look differently. And we must follow this rule. Such an order should operate in all churches which belong to God.”
17 I cannot praise you for some other things which also happen among you. When you get together, it does you more harm than good.
18 I was informed about what happens during your meetings. First, when you come to church, you have some disagreements among you. And to some extent, I admit that it could happen.
19 You may have some different points of view so that you could see which of you holds the right position approved by God.
20 Second, when you get together, you take communion. But you do it in such a way that it has nothing to do with true communion.
21 You do not share with one another. You greedily eat the food you brought. That is why some of you remain hungry while others get drunk.
22 You should eat and drink at home. Do not dishonor the church of God and do not humiliate the poor. What should I tell you? Do you think that I will praise you for this? Of course not.
23 I passed on to you what the Lord taught me. On the night when Judas betrayed the Lord Jesus, the Lord took the bread.
24 He thanked God, broke the bread into pieces, and said to His disciples, “Take the bread and eat it. The bread is My Body which will suffer for you. That is why when you break this bread and eat it, you should remember Me.”
25 After the supper the Lord also took the cup and said, “Between God and people this cup establishes the New Agreement which I will seal with My Blood. When you drink from this cup, always remember Me.”
26 When you eat this bread and drink from this cup, every time you will proclaim the death of the Lord. Do it until the Lord returns to this earth again.
27 Some of you eat this bread and drink from the cup of the Lord, but do not take it seriously. Such people will be guilty of sinning against the Body and the Blood of the Lord.
28 A person should examine his heart before he eats this bread and drinks from this cup.
29 If you eat and drink without taking it seriously, God will judge you for this. You must realize what the Body of Christ is.
30 You take communion in a wrong way. That is why many people are getting weak, sick and die in your church.
31 We should think about our actions and correct ourselves. Then God will not condemn us.
32 But if we do not do it, the Lord judges and disciplines us. But He does not judge us the way He will judge this world.
33 My brothers, when you gather for communion, wait for one another and take communion together.
34 And if you know that you will get hungry, eat at home before coming. Then God will not judge you for your wrong behavior during communion. When I come to visit you, I will also talk to you about other things.

अध्याय 12

Chapter 12

1 हे भाइयों, मैं चाहता हूँ कि आप आत्मिक उपहारों के बारे में जानें।
2 आपको याद है कि आप अन्यजाति लोग थे। और उस समय गूंगी मूर्तियों ने आपको गुमराह किया। आपने उनकी पूजा ऐसे की जैसे कोई आप से ऐसा करने के लिए कह रहा हो।
3 और आपको यह जानना चाहिए। जो व्यक्ति परमेश्वर की आत्मा में होकर बोलता है वह यीशु को श्राप नहीं दे सकता। और जब कोई व्यक्ति यीशु को प्रभु की तरह स्वीकार करता है तब यह सिर्फ़ पवित्र आत्मा के कारण ही होता है।
4 विश्वासियों के पास अलग-अलग उपहार होते हैं। लेकिन यह एक ही आत्मा है जो उन्हें ये सारे उपहार देती है।
5 हम अलग-अलग सेवाओं में भाग लेते हैं लेकिन हम एक ही प्रभु की सेवा करते हैं।
6 प्रभु अलग-अलग तरीके से काम करता है। लेकिन यह एक ही परमेश्वर है जो अपना काम हम सभी के अन्दर करता है।
7 आत्मा हम में से हर एक में अपनी उपस्थिति को प्रकट करती है और यह हम सभी को लाभ पहुँचाती है।
8 आत्मा एक विश्वासी को बुद्धि की बातें देती है। यही आत्मा दूसरे विश्वासी को ज्ञान की बातें देती है।
9 किसी को विश्वास मिलता है जो उसी आत्मा से आता है। और किसी दूसरे व्यक्ति को यही आत्मा चंगाई का उपहार देती है।
10 किसी और को चमत्कार करने की क्षमता मिलती है। एक विश्वासी को आत्मा भविष्यवाणी का उपहार देती है। और दूसरे को वह आत्माओं को पहचानने का उपहार देती है। और किसी और को अलग-अलग भाषाओं में प्रार्थना करने की अलौकिक क्षमता मिलती है। और दूसरे विश्वासी को अनजानी भाषा में प्रार्थना का अनुवाद करने का उपहार मिलता है।
11 यह वही आत्मा है जो इन सभी आत्मिक उपहारों के द्वारा काम करती है। और यह वही आत्मा है जो फ़ैसला करती है कि हर एक विश्वासी को उपहार कैसे बाँटने है।
12 मानव शरीर के कई अंग होते हैं और वे सभी मिलकर एक शरीर को बनाते हैं। मैं चर्च के बारे में भी यही कह सकता हूँ। चर्च मसीह का एक शरीर है जिसमें कई अलग-अलग अंग हैं। और मसीह के शरीर के सभी अंगों को एक साथ मिलकर एक दूसरे के साथ काम करना है।
13 हमारे बीच में यहूदी, अन्यजाति, गुलाम और आज़ाद लोग हैं। लेकिन वह एक ही आत्मा है जिसने हम सभी को बपतिस्मा दिया ताकि हम मसीह का एक शरीर बन जाएं। और हम सभी एक ही आत्मा से पीते हैं।
14 मानव शरीर में एक नहीं लेकिन कई अंग होते हैं।
15 मान लीजिए कि पैर कहे, "मैं वह नहीं कर सकता जो हाथ करता है इसलिए मैं शरीर का हिस्सा नहीं।" पैर और हाथ अलग-अलग काम करते हैं लेकिन वे एक ही शरीर के अंग हैं।
16 मान लीजिए कि कान कहे, "मैं वह नहीं कर सकता जो आँख करती है इसलिए मैं शरीर का हिस्सा नहीं।" कान और आँखें अलग-अलग काम करते हैं लेकिन वे एक ही शरीर के अंग हैं।
17 अगर पूरा शरीर आँख बन जाए तो हम कैसे सुनेंगे? और अगर पूरा शरीर कान बन जाए तो हम अलग-अलग महक को कैसे पहचान पाएंगे?
18 शरीर के कई अंग होते हैं। और परमेश्वर ने शरीर के हर एक अंग को एक खास स्थान पर रखने की योजना बनाई।
19 मान लीजिए कि शरीर के सभी अंग एक जैसे बन जाएं। ऐसा शरीर कैसे काम कर सकता है?
20 शरीर के कई अलग-अलग अंग होते हैं और सभी एक शरीर को बनाते हैं।
21 आँख नहीं कह सकती, “हे हाथ, मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं।" और सिर भी यह नहीं कह सकता, “हे पैर, मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं।”
22 और हम सोच सकते हैं कि जो अंग हमारे जीवन का आधार हैं वे हमारे शरीर के दूसरे अंगों की तरह महत्वपूर्ण नहीं।
23 और अगर हम अपने शरीर में कोई कमीं देखते हैं तो हम अपने शरीर के इस अंग की ज़्यादा देखभाल करते हैं।
24 और हमारे शरीर के दूसरे अंगों को किसी खास देखभाल की ज़रूरत नहीं होती। हम अपनी कमियों को और अपने शरीर के उन अंगों को कपड़ों के नीचे छिपाते हैं जिन्हें किसी को भी नहीं देखना चाहिए। परमेश्वर ने शरीर को इस तरह से बनाया है कि हम अपने शरीर के उन अंगों का खास ध्यान रखते हैं जिनको सच में देखभाल की ज़रूरत है।
25 हमारे शरीर के अंग एक दूसरे के साथ लड़ाई नहीं कर सकते। इसके बजाय, शरीर के सभी अंग एक दूसरे के लिए बराबर चिन्ता करते हैं।
26 इसलिए अगर हमारे शरीर के किसी अंग को दु:ख होता है तो शरीर के दूसरे अंगों को भी दु:ख होगा। और अगर हम अपने शरीर के किसी हिस्से पर ज़्यादा ध्यान देते हैं तो यह पूरे शरीर को लाभ पहुँचाता है।
27 आप सब मिलकर मसीह का शरीर हैं। और आप में से हर एक उसके शरीर का एक अलग अंग हैं।
28 सबसे पहले, परमेश्वर ने चर्च में प्रेरितों को नियुक्त किया। दूसरा, उसने भविष्यद्वक्ताओं को नियुक्त किया। और तीसरा, परमेश्वर ने शिक्षकों को नियुक्त किया। कुछ लोगों को उसने चमत्कार करने की क्षमता दी। दूसरों को परमेश्वर ने चंगाई का उपहार दिया। किसी और को उसने दूसरे लोगों की मदद करने की क्षमता दी। आपके बीच में ऐसे भी हैं जिन्हें परमेश्वर ने मार्गदर्शन करने की क्षमता दी। दूसरों को उसने अलग-अलग भाषाओं में प्रार्थना करने की अलौकिक क्षमता दी।
29 लेकिन क्या हम सभी प्रेरित, भविष्यद्वक्ता या शिक्षक बन गए? क्या हम सभी के पास चमत्कार करने की अलौकिक क्षमता है?
30 क्या हम सभी को चंगाई का उपहार मिला? क्या हम सभी के पास अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करने की अलौकिक क्षमता है? क्या हर कोई अनजानी भाषाओं में प्रार्थना का अनुवाद कर सकता है?
31 ऐसे उपहारों से पूरे दिल से एक दूसरे की सेवा करने का हर संभव प्रयास करें यह आपको सबसे अधिक लाभ पहुँचाएगा। और मैं आपको सबसे महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूँ ताकि आप सिद्ध मार्ग पर चल सकें।
1 Brothers, I want you to know about spiritual gifts.
2 You remember that you used to be Gentiles. And at that time mute idols misled you. You worshiped them as if someone was guiding you.
3 And here is what you should know. A person who speaks from the Spirit of God cannot curse Jesus. And when someone accepts Jesus as Lord, it happens only because of the Holy Spirit.
4 Believers have different gifts. But it is the same Spirit who gives all these gifts to them.
5 We participate in different ministries, but we serve the same Lord.
6 The Lord works in different ways. But it is the same God who does His work in all of us.
7 The Spirit manifests His presence in each of us, and it brings benefits to all of us.
8 To one believer the Spirit gives the word of wisdom. To another believer the same Spirit gives the word of knowledge.
9 Someone receives faith which comes from the same Spirit. And to some other person the same Spirit gives the gifts of healings.
10 Someone else receives the ability to perform miracles. To one believer the Spirit gives the gift of prophecy. And to another He gives the gift of discerning spirits. And someone else receives the supernatural ability to pray in different languages. And another believer receives the gift to interpret prayer in unknown languages.
11 It is the same Spirit who works through all these spiritual gifts. And it is the same Spirit who decides how to distribute the gifts to each believer.
12 Human body has many parts, and all of them form a single organism. The same thing happens in the Church. The Church is one Body of Christ which has many different parts. And all the parts of the Body of Christ must work together with one another in unity.
13 There are Jews and Gentiles, slaves and free people among us. But it is one Spirit who baptized all of us so that we would become one Body of Christ. And we all drink from the same Spirit.
14 Human body does not have one part, but many parts.
15 Suppose, the foot would say, “I am not able to do what the hand does that is why I am not a part of the body.” Feet and hands perform different functions, but they are parts of the same body.
16 Suppose, the ear would say, “I am not able to do what the eye does that is why I am not a part of the body.” Ears and eyes perform different functions, but they are parts of the same body.
17 If the whole body becomes an eye, how will we hear? And if the whole body becomes an ear, how will we distinguish smells?
18 The body has many parts. And God planned to place each part of the body in a certain place.
19 Suppose, all parts of the body would become the same. Could such a body be able to function?
20 The body has many different parts, and all of them form a single organism.
21 The eye cannot say, “Hand, I do not need you.” And the head also cannot say, “Feet, I do not need you.”
22 And it happens that we may think that our vital organs are not as significant as the other parts of our body.
23 And if we notice any imperfection, we care more about this part of our body.
24 And the other parts of our body do not need any special care. We hide our imperfections and those parts of our body that no one should see under the clothes. God created the body in such a way that we take special care of those parts of the body which really need it.
25 The parts of our body cannot be at war with one another. Instead, all the parts of the body have mutual concern for one another.
26 That is why if some part of the body suffers, the other parts of the body will also suffer. And if we pay more attention to a specific part of the body, it benefits the whole body.
27 All together you form the Body of Christ. And each of you is a separate part in His Body.
28 First, God appointed the apostles in the Church. Second, He appointed the prophets. And third, God appointed the teachers. To some people He gave the ability to perform miracles. To others God gave the gifts of healings. To someone else He gave the ability to help others. There are also those among you to whom God gave the ability to lead. To others He gave supernatural ability to pray in different languages.
29 But did all of us become apostles, prophets or teachers? Do all of us have supernatural abilities to perform miracles?
30 Did all of us receive the gifts of healings? Do all of us have supernatural ability to pray in tongues? Is everyone capable of interpreting prayer in unknown languages?
31 Make every effort to sincerely serve one another with the gifts which will benefit you the most. And I want to tell you about the most important thing so that you could walk the perfect way.

अध्याय 13

Chapter 13

1 अगर मैं लोगों और स्वर्गदूतों की अलग-अलग भाषाओं में प्रार्थना करता हूँ लेकिन मैं यह बिना प्यार के करता हूँ तो मैं परेशान करने वाली घंटी या शोर मचाने वाली थाली की तरह हूँ।
2 मान लीजिए कि मैं सब कुछ जानता हूँ क्योंकि मेरे पास भविष्यवाणी का उपहार है जो मेरे लिए सभी राज खोलता है। मान लीजिए कि मैं पहाड़ों को हिला सकता हूँ क्योंकि मेरे पास पूरा विश्वास है। लेकिन अगर मैं लोगों से प्यार के साथ व्यवहार नहीं करता तो मैं निकम्मा व्यक्ति हूँ।
3 जो मेरे पास है वह मैं सब कुछ दे सकता हूँ। मैं शहीद की तरह आग में जलकर मर सकता हूँ। लेकिन अगर मैं अपने आप को बिना प्यार के बलिदान करता हूँ तो यह बलिदान बेकार है।
4 जो प्यार करता है वह बहुत धीरज दिखाता है और लोगों के साथ दया से व्यवहार करता है। जो प्यार करता है वह दूसरों से ईर्ष्या नहीं करता, खुद की प्रशंसा नहीं करता और खुद पर घमंड नहीं करता।
5 जो प्यार करता है वह दूसरों का अपमान नहीं करता और अपनी इच्छा को दूसरे लोगों की इच्छा से ज़्यादा महत्व नहीं देता। जो प्यार करता है वह चिढ़ता नहीं और यह नहीं सोचता कि बुराई कैसे करें।
6 जो प्यार करता है वह अन्याय के जीतने पर दुखी होता है। जो प्यार करता है वह आनन्दित होता है जब सच्चाई की जीत होती है।
7 जो प्यार करता है वह सब कुछ माफ़ कर देता है और विश्वास कभी नहीं खोता। जो प्यार करता है वह हमेशा आशा रखता है और धीरज के साथ सभी कठिनाइयों से गुजरता है।
8 वह समय आएगा जब लोग भविष्यवाणी करना, अनजानी भाषा में प्रार्थना करना बन्द कर देंगे और उन्हें किसी ज्ञान की ज़रूरत नहीं होगी। लेकिन हम प्यार करना कभी नहीं छोड़ेंगे।
9 अभी हमारे पास पूरा ज्ञान नहीं। और जब हम भविष्यवाणी करते हैं तब हम सारी बातें नहीं देखते।
10 लेकिन जब सही समय आएगा तब जो कुछ अस्थायी है वह खत्म हो जाएगा।
11 बचपन में मैं बच्चे की तरह बात करता, सोचता और समझता था। लेकिन जब मैं आदमी बन गया तब मैंने बच्चे की तरह काम करना बन्द कर दिया।
12 अब हम भविष्य को धुंधली छाया की तरह देखते हैं जो मंद दर्पण में परछाई की तरह दिखाई देती है। लेकिन वह समय आएगा और तब हम सब कुछ साफ़-साफ़ देखेंगे जैसे कि हम एक दूसरे को आमने-सामने देखते हैं। अभी मेरे पास पूरा ज्ञान नहीं। लेकिन वह समय आएगा और मैं भी परमेश्वर को जानूँगा जैसे वह मुझे जानता है।
13 अब हमें विश्वास करना चाहिए, आशा रखनी चाहिए और प्यार करना चाहिए। लेकिन सबसे बढ़कर, हमें एक दूसरे के साथ प्यार से रहने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
1 If I pray in different languages of people and angels, but I do it without love then I am acting like an annoying bell or a noisy musical plate.
2 Suppose, I know everything because I have the gift of prophecy which reveals all the secrets to me. Suppose, I can move mountains because I have all the faith. But if I treat people without love, I am of no value.
3 I can give away everything I have. I can die in the fire like a martyr. But if I sacrifice myself without love, this sacrifice is in vain.
4 He who loves shows great patience and treats people kindly. He who loves does not envy others, does not praise himself and is not proud of himself.
5 He who loves does not insult people and does not put his own interests above the interests of others. He who loves does not get irritated and does not think of how to do evil.
6 He who loves grieves when injustice wins. He who loves rejoices when the truth triumphs.
7 He who loves forgives everything and never loses faith. He who loves always has hope and patiently goes through all difficulties.
8 The time will come when people stop prophesying, praying in tongues, and they will no longer need knowledge. But we will never stop loving.
9 Now we do not have complete knowledge. And when we prophesy, we do not see all the details.
10 But when the perfect time comes then all what is temporary will stop existing.
11 When I was little I spoke, thought and reasoned like a child. But when I became a man, I stopped acting like a child.
12 Now we can see the future like an unclear image which resembles a reflection in a dim mirror. But the time will come and then we will see everything as clearly as we can see each other in person. Now I do not have complete knowledge. But the time will come, and I will know God as well as He knows me.
13 Now we should believe, have hope and love. But most of all, we should make every effort to treat one another with love.

अध्याय 14

Chapter 14

1 एक दूसरे से प्यार करने का हर संभव प्रयास करें। आत्मिक उपहार पाने की आपकी बड़ी इच्छा होनी चाहिए। और सबसे बढ़कर आपको भविष्यवाणी करने की इच्छा होनी चाहिए।
2 जो अनजानी भाषा में प्रार्थना करता है वह लोगों से नहीं लेकिन परमेश्वर से बात करता है। जब कोई व्यक्ति आत्मा में प्रार्थना करता है तब वह उन रहस्यों को बोलता है जिन्हें कोई भी समझ नहीं सकता।
3 लेकिन जो भविष्यवाणी करता है वह लोगों से बात करता है। भविष्यवाणी लोगों को मजबूत बनाती है। यह उत्साहित करती है और उनके दिलों में शान्ति लाती है।
4 जो अनजानी भाषा में प्रार्थना करता है वह खुद को मजबूत बनाता है। लेकिन जो भविष्यवाणी करता है वह पूरे चर्च को मजबूत बनाता है।
5 मैं चाहता हूँ कि आप सभी अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करें। लेकिन मैं और ज़्यादा चाहता हूँ कि आप भविष्यवाणी करें। भविष्यवाणी करने वाला अनजानी भाषा में प्रार्थना करने वाले से ज़्यादा चर्च को लाभ पहुँचाता है। लेकिन अनजानी भाषा में प्रार्थना चर्च को मजबूत भी बना सकती है। इस उद्देश्य के लिए जो भाषाओं में प्रार्थना करता है उसे चर्च में खुद अपनी प्रार्थना का अनुवाद करना चाहिए।
6 हे भाइयों, अगर मैं आप के पास आऊँ और अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करना शुरू करूँ तो इससे आप को कोई लाभ नहीं होगा। लेकिन अगर मैं आपके साथ कुछ प्रकाशन, ज्ञान, भविष्यवाणी या प्रचार बाटूँ तो यह आपके लिए उपयोगी होगा।
7 बांसुरी और वीणा को देखें जो बेजान वस्तुएं हैं। अगर वे धुन से बाहर बजेंगी तो कोई भी राग को नहीं पहचान पाएगा।
8 और अगर तुरही से साफ़ आवाज़ सुनाई न दे तो सैनिक लड़ाई के लिए तैयार नहीं होंगे।
9 यही बात आप पर लागू होती है। जब आप अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करते हैं तब कोई भी समझ नहीं सकता जो आप कहते हैं। आप हवा से बातें करने वाले ठहरते हैं।
10 दुनियाँ में अलग-अलग भाषाओं में बहुत से शब्द हैं और हर शब्द का अपना मतलब है।
11 लेकिन अगर मैं दूसरे व्यक्ति की भाषा नहीं समझता और वह मेरी भाषा नहीं समझता तो हम एक दूसरे के लिए विदेशी हैं।
12 आपकी बड़ी इच्छा है कि आत्मिक उपहार आप के द्वारा काम करें। लेकिन आपको ऐसे उपहारों की बहुतायत के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए जो आपके चर्च को मजबूत बनाएंगे।
13 इसलिए अगर कोई अनजानी भाषा में बात करता है तो उसे भाषा का अनुवाद करने का उपहार प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
14 जब मैं अनजानी भाषा में बोलता हूँ तब सिर्फ़ मेरी आत्मा प्रार्थना करती है। लेकिन जो मैं कह रहा हूँ उसे मेरा दिमाग नहीं समझता।
15 इसलिए मुझे प्रार्थना कैसे करनी चाहिए? मैं आत्मा में अनजानी भाषा में प्रार्थना करूँगा। और मैं अपने दिमाग से भी प्रार्थना करूँगा और उन शब्दों को बोलूँगा जिन्हें मैं समझता हूँ। मैं आत्मा में अनजानी भाषा में गाऊँगा। और मैं अपने दिमाग से भी ऐसी भाषा में गाऊँगा जिसे मैं समझता हूँ।
16 जब आप अनजानी भाषा में प्रार्थना करते हैं तब आप परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं और उसे आत्मा में धन्य कहते हैं। लेकिन मान लीजिए कि आपके पास कोई व्यक्ति है जो आत्मिक उपहारों का मतलब नहीं समझता। वह आपकी प्रार्थना को समझ नहीं पाएगा और वह “आमीन” नहीं कहेगा।
17 जब आप भाषाओं में प्रार्थना करते हैं तब आप अच्छी तरह से परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं। लेकिन ऐसी प्रार्थना दूसरे व्यक्ति को मजबूत नहीं बना सकती।
18 मैं अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ क्योंकि मैं आप सभी से ज़्यादा अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करता हूँ।
19 लेकिन जब मैं चर्च आता हूँ तब मैं चाहता हूँ कि दूसरे लोग कुछ सीखें। इसलिए मैं चर्च में अनजानी भाषा में बहुत सारे शब्द बोलने से अच्छा समझ में आने वाले पाँच शब्द कहूँगा।
20 हे भाइयों, आपको बुराई नहीं करनी चाहिए। बच्चों की तरह निर्दोष बनें। लेकिन आत्मिक उपहारों के बारे में आपको बडों की तरह होना चाहिए, न कि बच्चों की तरह।
21 प्रभु ने शास्त्रों में कहा, “मैं उन लोगों के द्वारा इस राष्ट्र से बात करूँगा जो अनजानी भाषाओं में बोलते हैं। और यह राष्ट्र मुझ पर विश्वास नहीं करेगा।”
22 भाषाएँ अलौकिक घोषणा हैं। लेकिन यह उपहार किसी अविश्वासी को बदल नहीं सकता और उसे विश्वासी नहीं बना सकता। लेकिन भविष्यवाणी किसी अविश्वासी को प्रभावित कर सकती है और उसे विश्वासी बना सकती है।
23 मान लीजिए कि पूरा चर्च एक साथ आता है और हर कोई अनजानी भाषाओं में बोलना शुरू कर देता है। और इस समय कुछ अविश्वासी या ऐसे लोग आपके पास आएं जो आत्मिक उपहारों का मतलब नहीं समझते। क्या वे नहीं कहेंगे कि आप पागल हैं?
24 लेकिन मान लीजिए कि चर्च में हर एक भविष्यवाणी करता है। और इस समय कुछ अविश्वासी या ऐसे लोग आपके पास आएं जो आत्मिक उपहारों के बारे में कुछ नहीं जानते। भविष्यवाणी के कारण वे महसूस करेंगे कि वे पापी हैं। और वे अपने जीने के तरीके के बारे में सोचेंगे।
25 भविष्यवाणी व्यक्ति के गुप्त विचारों को प्रकट करेगी जो वह अपने दिल में छिपाता है। और तब यह व्यक्ति परमेश्वर के सामने घुटने टेककर कहेगा, “सच में, परमेश्वर आप के बीच में मौजूद है।”
26 हे भाइयों, मैं आपको यह बताना चाहता हूँ। जब आप एक साथ होते हैं तब हर कोई गीत के साथ परमेश्वर की महिमा कर सकता है। आप में से कुछ प्रचार कर सकते हैं और दूसरा व्यक्ति प्रकाशन बाँट सकता है। एक व्यक्ति अनजानी भाषा में प्रार्थना कर सकता है और दूसरा वाला इस भाषा का अनुवाद कर सकता है। और जो कुछ आप करते हैं उससे आपका चर्च मजबूत बनना चाहिए।
27 दो या ज़्यादा से ज़्यादा तीन लोग अनजानी भाषा में प्रार्थना कर सकते हैं। और जो कुछ उन्होंने कहा है कोई और उसका अनुवाद करे।
28 शायद आपके बीच में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो अनजानी भाषाओं में प्रार्थना का अनुवाद कर सकता है। इस मामले में, ज़ोर से अनजानी भाषाओं में प्रार्थना न करें ताकि पूरा चर्च आपको सुनें। लेकिन चुपचाप प्रार्थना करें और भाषाओं में परमेश्वर से बात करें, न कि चर्च से।
29 दो या तीन भविष्यवक्ताओं को प्रभु का वचन बोलने दें। और जो भविष्यवक्ताओं ने कहा है बाकी लोग उसकी चर्चा करें।
30 मान लीजिए कि परमेश्वर चर्च में किसी और को प्रकाशन देगा। इस मामले में, जिसने पहले बोलना शुरू किया, उसे रुकना चाहिए और अगले व्यक्ति को बोलने का मौका देना चाहिए।
31 आप सब एक के बाद एक भविष्यवाणी कर सकते हैं। और इस तरह से, आप सब एक दूसरे से सीखेंगे और आप सब को उत्साह मिलेगा।
32 हर भविष्यवक्ता अपने भविष्यवाणी के उपहार को काबू कर पाने के योग्य है।
33 परमेश्वर गड़बड़ी नहीं फैलाता। इसके बजाय, वह अनुशासन और शान्ति स्थापित करता है। ऐसे नियम सभी चर्चों में लागू होने चाहिए जहाँ परमेश्वर के पवित्र लोग इकट्ठा होते हैं।
34 जब औरतें चर्च में आती हैं तब उन्हें सुनना चाहिए और बात नहीं करनी चाहिए। चर्च की सभा के समय उन्हें अनुशासन नहीं तोड़ना चाहिए। मूसा का कानून भी इसके बारे में बोलता है।
35 अगर सभा के समय किसी औरत के पास कोई सवाल है तो उसे घर पर अपने पति से इसके बारे में पूछना चाहिए। औरत को दूसरे लोगों को टोकने और चर्च में अनुशासन तोड़ने के लिए शर्म महसूस करनी चाहिए।
36 आप पहली नहीं थी जिसने परमेश्वर के वचन का प्रचार करना शुरू किया। और आप पहली नहीं थी जिसने परमेश्वर का वचन सुना।
37 आपके चर्च में ऐसे लोग हैं जो खुद को भविष्यवक्ता या आत्मिक लोग मानते हैं। इस मामले में, उन्हें समझना चाहिए कि मैं आपको वे आज्ञाएँ लिख रहा हूँ जो प्रभु ने हमें दिए।
38 और अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं अपनाता तो परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को नहीं अपनाएगा।
39 हे भाइयों, भविष्यवाणी करने का हर संभव प्रयास करें। और अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करने से भी मना न करें।
40 लेकिन आपको अपनी सभाएँ सही तरीके से करनी चाहिए और गड़बड़ी नहीं फैलानी चाहिए।
1 Make every effort to love one another. You should have a strong desire to receive spiritual gifts. And most of all, you should desire to prophesy.
2 He who prays in an unknown language does not speak to people, but to God. When a person prays in the Spirit, he speaks mysteries which no one can understand.
3 But he who prophesies speaks to people. Prophecy makes people strong. It inspires and brings peace to their hearts.
4 He who prays in an unknown language strengthens himself. But he who prophesies makes the whole church strong.
5 I want all of you to pray in unknown languages. But even more, I want you to prophesy. He who prophesies brings more benefit to the church than he who prays in tongues. But prayer in unknown languages ​​can also strengthen the church. For this to happen, the one who prays in tongues should interpret his prayer for the church.
6 Brothers, if I come to you and start praying in unknown languages, it will not bring you any benefit. But if I share with you some revelation, knowledge, prophecy or sermon, it will be useful for you.
7 Look at lifeless objects such as the flute and harp. If they play out of tune, no one will recognize the melody.
8 And if the trumpet makes an unclear signal, the soldiers will not prepare for the battle.
9 The same thing applies to you. When you pray in unknown languages, no one can understand what you are saying. You shake the air with your words in vain.
10 There are many words in different languages in the world, and each word has its meaning.
11 But if I do not understand the language of another person, and he does not understand me then we are foreigners to each other.
12 You have a strong desire for spiritual gifts to work through you. But you should make every effort to have an abundance of such gifts which will strengthen your church.
13 That is why if someone speaks in an unknown language, he should pray to receive the gift of interpretation of tongues.
14 When I speak in an unknown language, only my spirit prays. But my mind does not understand what I am saying.
15 So how should I pray? I will pray in the Spirit in an unknown language. And I will also pray with my mind and speak words which I understand. I will sing in the Spirit in an unknown language. And I will also sing with my mind in a language which I understand.
16 When you pray in an unknown language, you thank God and bless Him in the Spirit. But suppose, there is a person next to you who does not understand what spiritual gifts are. He will not be able to understand your prayer, so he will not say, “Amen.”
17 When you pray in tongues, you thank God well. But such a prayer cannot strengthen another person.
18 I thank my God that I pray in unknown languages ​​more than all of you.
19 But when I come to church, I want other people to learn something. That is why in church I would rather say five understandable words than many words in an unknown language.
20 Brothers, you should not do evil. Be innocent like children. But you should approach spiritual gifts like adults, not like children.
21 The Lord said in the Scriptures, “I will speak to this nation through people who speak in unknown languages. And this nation will not believe in Me.”
22 Tongues ​​are supernatural manifestation. But this gift cannot change an unbeliever and make him a believer. But prophecy can influence an unbeliever so that he will turn to God.
23 Suppose, the whole church gathered together, and everyone started speaking in unknown languages. And at this time some unbelievers or those who do not understand what spiritual gifts are came to you. Wouldn’t they say that you are crazy?
24 But suppose, everyone in the church is prophesying. And at this time some unbelievers or those who know nothing about spiritual gifts came to you. Because of the prophecy they will feel that they are sinners. And they will think about the way they live.
25 Prophecy will reveal the secret thoughts hidden in a person's heart. Then he will kneel before God and exclaim, “God is truly present among you!”
26 Brothers, here is what I want to tell you. When you get together, each of you can praise God with a song. Some of you may preach, and others may share a revelation. One person can pray in an unknown language, and another one can interpret that language. And everything you do should strengthen your church.
27 Two or a maximum of three people can take turns praying in an unknown language. And let someone else interpret what they said.
28 Perhaps there will be no one among you who could interpret prayer in unknown languages. In that case, do not pray in tongues loudly so that the whole church could hear you. But pray silently and speak in tongues to God, not to the church.
29 Two or three prophets may speak a word from the Lord, and the rest should discuss what they have said.
30 Suppose, God will give a revelation to someone else in the church. In this case, the one who started speaking first should stop and allow the next person to speak.
31 You all can prophesy one after another. And this way, you all will learn from one another, and you all will be inspired.
32 Each prophet is able to control his prophetic gift.
33 God does not create chaos. Instead, He establishes order and peace. Such rules should be applied in all churches where the holy people of God meet together.
34 When women come to church, they should listen, not talk. They should not break order during church meetings. The Law of Moses also speaks about it.
35 If a woman has a question during a meeting, she should ask her husband about it at home. A woman should be ashamed to interrupt others and break order in the church.
36 You were not the first ones who started preaching the Word of God. And you were not the first ones who heard the Word of God.
37 There are those in your church who consider themselves to be prophets or spiritual people. In this case, they should understand that I am writing to you about the commandments given to us by the Lord.
38 And if someone does not accept the commandments of God, God will not accept such a person.
39 Brothers, make every effort to prophesy. And also do not forbid praying in tongues.
40 But you should conduct your meetings properly and avoid creating disorder.

अध्याय 15

Chapter 15

1 हे भाइयों, मैंने आपको मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार किया। और मैं आपको याद दिलाता हूँ कि आपने इसे अपनाया और अब आप दृढ़ता से इस पर विश्वास करते हैं।
2 इस खबर के कारण आपने उद्धार पाया। लेकिन जैसे मैंने आपसे कहा और प्रचार किया उस पर आपको विश्वास करना है। और अगर आप किसी और पर विश्वास करें तो ऐसा विश्वास आपको बचा नहीं पाएगा।
3 सबसे पहले, मैंने आपको सबसे महत्वपूर्ण बातें सिखाईं जो मुझे परमेश्वर से मिलीं। शास्त्र कहते हैं कि मसीह हमारे पापों के लिए मर गया।
4 शास्त्र यह भी कहते हैं कि मसीह को दफनाया गया लेकिन तीसरे दिन मसीह फिर से जीवित हो गया।
5 उसके बाद वह पतरस को दिखाई दिया और फिर बारह प्रेरितों को दिखाई दिया।
6 उसके बाद मसीह दूसरे भाइयों को भी दिखाई दिया। उसी समय 5,000 से अधिक लोगों ने उसको देखा। इनमें से ज़्यादातर लोग अभी भी जीवित हैं और कुछ मर गये।
7 उसके बाद मसीह याकूब को दिखाई दिया और सभी प्रेरितों को भी दिखाई दिया।
8 और अंत में, मसीह मुझे भी दिखाई दिया। लेकिन जैसे गर्भपात वाला बच्चा जी नहीं सकता और सेवा नहीं कर सकता, वैसे ही मैं भी मसीह के लिए जीने और उसकी सेवा करने के योग्य नहीं था।
9 मैं सभी प्रेरितों में से सबसे तुच्छ हूँ। और मैं प्रेरित कहलाने के लायक नहीं क्योंकि मैं परमेश्वर के चर्च को सता रहा था।
10 लेकिन परमेश्वर के अनुग्रह ने मुझे बदल दिया और मुझे अलग व्यक्ति बना दिया। यह बेकार नहीं था कि परमेश्वर ने अपना अनुग्रह मेरे जीवन में उंडेल दिया। मैंने दूसरे सभी प्रेरितों से ज़्यादा मेहनत की। लेकिन सच में, मैं इसका श्रेय नहीं ले सकता क्योंकि यह परमेश्वर का अनुग्रह था जिसने मेरे द्वारा काम किया और हमेशा मेरे साथ था।
11 यह मायने नहीं रखता कि आपको मसीह के बारे में किसके द्वारा बताया गया - मेरे द्वारा या दूसरे प्रेरितों के द्वारा। हम सभी उसी सन्देश का प्रचार करते हैं जिस पर आपने विश्वास किया।
12 हमने आपको सिखाया कि मसीह मरे हुओं में से जी उठा। लेकिन आप में से कुछ लोग क्यों कहते हैं कि मरे हुए लोग फिर नहीं जी उठेंगे?
13 अगर मरे हुए लोग नहीं जी उठते हैं तो मसीह भी नहीं जी उठा।
14 और अगर मसीह नहीं जी उठा तो हमारे प्रचार का कोई मतलब नहीं और आपके विश्वास का भी कोई मतलब नहीं।
15 मान लीजिए कि परमेश्वर मरे हुए लोगों को नहीं जिलाएगा। इसका मतलब है कि परमेश्वर ने मसीह को भी नहीं जिलाया। इस मामले में, अगर हम प्रचार करते हैं कि परमेश्वर ने मसीह को जिलाया तो हम झूठे गवाह बन जाते हैं क्योंकि हम परमेश्वर के बारे में झूठ बोल रहे हैं।
16 अगर मरे हुए लोग नहीं जी उठते तो मसीह भी नहीं जी उठा।
17 और अगर मसीह नहीं जी उठा तो आपके विश्वास का कोई मतलब नहीं। और आप अब भी अपने पापों में जीते हैं।
18 इस मामले में, जो लोग मसीह पर विश्वास करते थे और मर गए, वे हमेशा के लिए नष्ट हो गए।
19 अगर हम सिर्फ़ इस जीवन में मसीह पर आशा रखते हैं तो हम सभी लोगों से सबसे अभागे हैं।
20 लेकिन मसीह पहला व्यक्ति बना जो मरे हुओं में से जी उठा। हम मरेंगे लेकिन हम उसी तरह से फिर से जीवित हो जाएंगे जैसे वह हुआ।
21 मौत एक आदमी के द्वारा इस दुनियाँ में आई। उसी तरह से मरे हुओं में से जी उठना भी एक आदमी के द्वारा इस दुनियाँ में आया।
22 जैसे आदम के कारण हर कोई मरता है वैसे ही मसीह में हर कोई जीवित रहेगा।
23 परमेश्वर सभी लोगों को विशेष क्रम में जिलाता है। मसीह पहला व्यक्ति बना जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया। और जब मसीह पृथ्वी पर आएगा तब परमेश्वर उन लोगों को जीवित करेगा जो मसीह के हैं।
24 और उसके बाद अन्त आ जाएगा। मसीह हर एक शासक, अधिकार और शक्ति को नष्ट कर देगा। और वह राज्य को पिता परमेश्वर को वापस कर देगा।
25 मसीह तब तक राज करेगा जब तक वह अपने सभी दुश्मनों को हरा न दे और जब तक वे उसके पैरों के नीचे न जाएं।
26 मौत आखिरी दुश्मन है जिसे मसीह नाश कर देगा।
27 शास्त्र कहते हैं कि परमेश्वर ने सब कुछ मसीह के पैरों के नीचे कर दिया। लेकिन यह साफ़ है कि परमेश्वर खुद मसीह की आज्ञा का पालन नहीं करता।
28 परमेश्वर ने अपने बेटे को अधिकार दिया। और जब हर चीज़ मसीह की आज्ञा का पालन करेगी तब बेटा परमेश्वर को अपना अधिकार वापस दे देगा। उसके बाद परमेश्वर हर जगह और हर चीज़ पर राज करेगा।
29 जब विश्वासी लोग पानी का बपतिस्मा लेते हैं तब उनमें से कुछ को सताया जाता है और वे मसीह के लिए मर जाते हैं। लेकिन नए विश्वासी आते हैं और उनकी जगह ले लेते हैं। वे जानते हैं कि लोग उनके बपतिस्मे के बाद उन्हें भी मार सकते हैं। लेकिन वे विश्वास करते हैं कि वे फिर से जीवित होंगे।
30 हर घंटे हम खतरे का सामना करते हैं। और हम भी विश्वास करते हैं कि अगर हम मर जाएं तो हम फिर से जीवित होंगे।
31 हे भाइयों, मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि हर दिन मैं मौत के खतरे का सामना कर रहा हूँ। लेकिन मैं आनन्दित हूँ कि आप हमारे प्रभु यीशु मसीह के पास आए।
32 जब मैं इफिसुस शहर में था तब जंगली जानवरों ने मुझ पर हमला किया और मैं उनसे लड़ रहा था। लेकिन मुझे भरोसा था कि अगर मैं मर जाऊँगा तो मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा। अगर हम इसे इन्सान के नज़रिये से देखते हैं और विश्वास नहीं करते कि मरे हुए लोग जी उठेंगे तो हम मसीह के पीछे क्यों चलें? आइए, खाते-पीते हैं क्योंकि कल हम मर जाएंगे!
33 अपने आप को धोखा न दें, बुरे दोस्त अच्छे व्यक्ति को बिगाड़ देंगे।
34 आपको अपने जीने के तरीके के बारे में सोचना चाहिए। पाप करना बन्द करें। मैं आपको शर्म महसूस कराने के लिए ऐसा कह रहा हूँ क्योंकि आप में से कुछ लोग परमेश्वर को नहीं जानते।
35 शायद कोई व्यक्ति पूछेगा, “मरे हुए लोग कैसे जी उठेंगे? और उनके शरीर कैसे दिखाई देंगे?”
36 आप ऐसी आसान बातों को क्यों नहीं समझ सकते? जब हम कोई बीज बोते हैं तब पहले वह मरता है और फिर वह जी उठता है।
37 हम पौधे को जमीन में नहीं लगा रहे हैं लेकिन साधारण बीज को। उदाहरण के लिए, हम गेहूं का बीज या कोई दूसरा बीज बो सकते हैं।
38 परमेश्वर ने पहले से ठहराया कि पौधा कैसा दिखाई देगा। और अलग-अलग प्रकार के पौधे अलग-अलग बीजों से उगते हैं।
39 जीवित प्राणी भी अलग-अलग दिखाई देते हैं। मानव शरीर का रूप जानवरों, मछलियों या पक्षियों के शरीर के रूप से अलग होता है।
40 स्वर्गीय शरीर और सांसारिक शरीर भी हैं। लेकिन स्वर्गीय शरीरों की महानता सांसारिक शरीरों से अलग है।
41 सूरज एक प्रकार की रोशनी से चमकता है और चाँद और तारे दूसरी रोशनी से चमकते हैं। तारे भी अपने तेज में एक दूसरे से अलग होते हैं।
42 अगर आप बीज को देखेंगे तो आप समझ नहीं सकेंगे कि उसका पौधा कैसा दिखाई देगा। उसी तरह से मैं मरे हुओं के फिर से जीवित होने के बारे में कह सकता हूँ। लोग नाशवान शरीर को जमीन में गाड़ देते हैं लेकिन अमर शरीर फिर से जीवित हो जाएगा।
43 जब कोई व्यक्ति मर जाता है तब उसके शरीर में कोई महानता नहीं होती। लेकिन जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को जिलाएगा तब परमेश्वर उस व्यक्ति के शरीर को अपनी महिमा से भर देगा। जब कोई व्यक्ति मर जाता है तब उसका शरीर शक्तिहीन हो जाता है। लेकिन जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को जिलाएगा तब परमेश्वर उस व्यक्ति के शरीर को अपनी शक्ति से भर देगा।
44 व्यक्ति का बाहरी शरीर मर जाएगा लेकिन आत्मिक शरीर फिर से जीवित हो जाएगा। बाहरी शरीर और आत्मिक शरीर हैं।
45 शास्त्र कहते हैं, “आदम पहला व्यक्ति था जिसे सांसारिक जीवन मिला। और मसीह आखिरी आदम बना जो आत्मिक जीवन देता है।”
46 पहले बाहरी शरीर जन्म लेता है और उसके बाद आत्मिक शरीर जन्म लेता है लेकिन उल्टा नहीं।
47 पहला आदमी धरती से आया क्योंकि परमेश्वर ने उसे धरती की धूल से बनाया था। और दूसरा आदमी स्वर्ग से आया।
48 सांसारिक लोग सांसारिक आदम की तरह दिखाई देते हैं। और स्वर्गीय लोग मसीह की तरह दिखाई देते हैं जो स्वर्ग से आया था।
49 अभी हम आदम की तरह दिखाई देते हैं जिसे परमेश्वर ने मिट्टी से बनाया। लेकिन हम मसीह की तरह दिखाई देंगे जो स्वर्ग से आया था।
50 हे भाइयों, मैं कह रहा हूँ कि अभी हम बाहरी शरीर में रहते हैं जिसमें खून होता है। लेकिन जब हम परमेश्वर के राज्य में विरासत प्राप्त करेंगे तब हमारे सांसारिक शरीर वहाँ प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि नाशवान अविनाशी विरासत को नहीं पा सकता।
51 मैं आपको भेद की बात बताऊँगा। कुछ विश्वासी अपने सांसारिक जीवन में प्रभु के आगमन को देखेंगे। और फिर सभी जीवित और मरे हुए लोगों के शरीर अचानक बदल दिए जाएंगे।
52 यह तुरन्त होगा जब आखिरी तुरही फूंकी जाएगी। और फिर मरे हुए लोग हमेशा जीवित रहने के लिए जी उठेंगे। और जो विश्वासी प्रभु के आने के समय पृथ्वी पर जीवित रहेंगे, वे बदल जाएंगे।
53 अभी हमारे शरीर मौत के पीछे चलते हैं। लेकिन विश्वासियों को ऐसे शरीर प्राप्त करने हैं जो कभी नहीं मरेंगे। हमारे नाशवान शरीरों को अमर होना है।
54 वह समय आएगा जब मरे हुए लोग अनन्त जीवन के लिए फिर से जीवित हो जाएंगे और वे नाशवान शरीर की जगह अमर शरीर को प्राप्त करेंगे। फिर जो वचन भविष्यवक्ताओं ने शास्त्र में लिखा है, वह पूरा होगा, “परमेश्वर ने विजय को जीता लिया और इसने मौत को नष्ट कर दिया।”
55 हे मौत, तू फिर कभी नहीं जीतेगी! हे मौत, तू फिर कभी अपना डंक नहीं मार पाएगी!
56 मूसा का कानून दिखाता है कि मानव जाती पाप की शक्ति के अधीन है। लोग पाप करते हैं इसलिए मौत उन्हें डंक मारती है।
57 लेकिन हमारे प्रभु यीशु मसीह ने पाप और मौत पर विजय पाई। और हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं जिसने हमें मसीह की विजय दी।
58 हे मेरे प्यारे भाइयों, परमेश्वर पर दृढ़ता से विश्वास करें और शक न करें। आपको जानना चाहिए कि जो कुछ भी आप प्रभु के लिए करते हैं वह फल लाएगा। इसलिए आपको हमेशा पूरे समर्पण के साथ उसके लिए काम करना चाहिए।
1 Brothers, I preached to you the Good News about Christ. And I remind you that you accepted it, and now you firmly believe in it.
2 Through this News you received salvation. But you must believe the way I spoke and preached to you. And if you believe in something else, such faith will not be able to save you.
3 First of all, I taught you the most important things which I received from God. The Scriptures say that Christ died for our sins.
4 The Scriptures also say that Christ was buried, but on the third day He was resurrected.
5 After that He appeared to Peter, and then to the twelve apostles.
6 Then Christ also appeared to the other brothers. At the same time over 5,000 people saw Him. Most of these people are still alive, and some have already died.
7 After that Christ appeared to James and to all the apostles.
8 Finally, Christ also appeared to me. But I was not able to serve Christ just as miscarriage is not able to live.
9 I am the least important of all the apostles. And I am not worthy to be called an apostle because I was persecuting the Church of God.
10 But God's grace changed me and made me a different person. It was not in vain that God poured out His grace into my life. I worked harder than all the other apostles. But actually I cannot take credit for this, because it was God's grace working through me, and it was always with me.
11 It does not matter who shared with you about Christ — whether it was me or the other apostles. We all preach the same message which you believed in.
12 We taught you that Christ rose from the dead. But why do some of you say that the dead will not rise again?
13 If the dead do not rise then Christ did not rise either.
14 And if Christ did not rise then our message has no meaning, and your faith is also meaningless.
15 Suppose, God will not raise the dead. It means that He also did not resurrect Christ. In this case, if we preach that God raised Christ, we become false witnesses, because we are lying about God.
16 If the dead are not raised again, Christ was not raised either.
17 And if Christ was not resurrected, your faith has no meaning. And you still live in your sins.
18 In this case, those people who believed in Christ and died would perish forever.
19 If we have hope in Christ in this life only, we are the most miserable among all people.
20 But Christ was the first who rose from the dead. We will die, but we will be resurrected like Him.
21 Death came into this world through a man. In the same way, the resurrection from the dead came into this world through a Man.
22 Just as everyone dies because of Adam, so in Christ everyone will become alive.
23 God resurrects all people in particular order. Christ was the first raised by God from the dead. And when Christ comes to the earth, God will resurrect those who belong to Christ.
24 And after that the end will come. Christ will destroy every ruler, authority and power. And He will restore the Kingdom back to God the Father.
25 Christ will reign until He conquers all His enemies, and until they fall under His feet.
26 Death is the last enemy which Christ will destroy.
27 The Scriptures say that God put everything under the feet of Christ. But it is clear that God Himself does not submit to Christ.
28 God gave authority to His Son. And when everything submits to Christ, the Son will give back His authority to God. Then God will reign everywhere and over everything.
29 When believers are baptized with water, some of them are persecuted and die for Christ. But new believers step forward to take their place. They know that they could be also killed after baptism. But they believe that they will be resurrected.
30 Every hour we face danger. And we also believe that if we die, we will be resurrected.
31 Brothers, I assure you that every day I am facing mortal danger. But I rejoice that you turned to our Lord Jesus Christ.
32 When I was in the city of Ephesus, I was attacked by wild animals, and I was fighting them. But I was sure that if I die, I would be resurrected. If we look at this from a human point of view and do not believe that the dead will rise then why should we follow Christ? Let's eat and drink, because tomorrow we will die!
33 Do not deceive yourselves — bad friends will spoil a good person.
34 You should think about the way you live. Stop sinning. I am saying this to make you feel ashamed, because some of you do not know God.
35 Perhaps someone will ask, “How will people rise from the dead? And what will their bodies look like?”
36 Why can't you understand such simple things? When we sow a seed, first it dies, and then it comes to life.
37 We do not sow the plant itself, but ordinary grain. For example, we can sow wheat grain or some other grain.
38 God determined in advance the way the plant would look like. And different types of plants grow from different seeds.
39 Living creatures also look differently. The form of human body is different from the form of the body of animals, fish or birds.
40 There are also heavenly and earthly bodies. But the greatness of heavenly bodies is different from earthly ones.
41 The sun shines with one kind of light, and the moon and stars with another one. Stars also differ from one another in their magnificence.
42 If you look at the grain, you cannot tell what the plant will look like. We can say the same thing about the resurrection from the dead. A mortal body is buried in the ground, but an immortal body will be resurrected.
43 When a person dies, there is no greatness in his body. But when God raises a person, He will fill his body with His glory. When a person dies, his body becomes powerless. But when God resurrects a person, He will fill his body with His power.
44 The physical body of a person will die, but the spiritual body will be resurrected. There are physical and spiritual bodies.
45 The Scriptures say, “Adam was the first person who received physical life. And Christ became the last Adam who gives spiritual life.”
46 First, a physical body is born, then a spiritual one, but not the other way around.
47 The first man came from the earth, because God created him from the dust of the earth. And the second Man came from heaven.
48 Earthly people look like earthly Adam. But heavenly people look like Christ who came from heaven.
49 Now we look like Adam whom God created from the earth. But we will look like Christ who came from heaven.
50 Brothers, I am saying that now we live in physical bodies which have blood in them. But when we receive the inheritance in the Kingdom of God, our earthly bodies will not be able to go there because the mortal does not inherit the immortal.
51 I will tell you a secret. Some believers will see the coming of the Lord during their earthly life. Then the bodies of all the living and dead will be transformed suddenly.
52 It will happen instantly when the last trumpet blows. Then the dead will rise to live forever. And those believers who are living on the earth at the time of the Lord’s coming will be also transformed.
53 Now our bodies are subject to death. But believers must receive bodies which will never die. Our mortal bodies must become immortal.
54 The time will come when the dead will be resurrected for eternal life, and they will receive immortal bodies instead of mortal ones. Then the word which the prophet wrote in the Scriptures will be fulfilled, “God won the victory which destroyed death.”
55 Death, you will never win again! Death, you will never strike with your sting again!
56 The Law of Moses shows that humanity is under the power of sin. People sin, that is why death strikes them with its sting.
57 But our Lord Jesus Christ conquered sin and death. And we thank God who gave us the victory of Christ.
58 My dear brothers, believe firmly and have no doubt. You should know that everything you do for the Lord will bring results. That is why you should always work for Him with full dedication.

अध्याय 16

Chapter 16

1 अब मैं यह बात करना चाहूँगा कि आपको यरूशलेम में रहने वाले परमेश्वर के पवित्र लोगों के लिए पैसा कैसे इकट्ठा करना चाहिए। जो आज्ञा मैंने गलातिया के चर्चों में दी थी, उसी का पालन करें।
2 जब मैं आप के पास आऊँगा तब मैं पैसे इकट्ठा नहीं करना चाहता। इसलिए सप्ताह के पहले दिन आप में से हर एक अपनी कमाई के अनुसार जितना हो सके पैसा अलग करें और बचा कर रखें।
3 जब मैं आप के पास आऊँगा तब मैं पत्र लिखूँगा और उन्हें उन लोगों के साथ भेजूँगा जिन्हें आप चुनेंगे। और वे यरूशलेम में आपकी आर्थिक मदद पहुँचाएंगे।
4 और अगर ज़रूरी होगा तो मैं भी यरूशलेम जाऊँगा। और तब आपके लोग मेरे साथ चलेंगे।
5 मैं मकिदुनिया होते हुए यात्रा करने की योजना बना रहा हूँ। और उसके बाद मैं आपसे मिलने आऊँगा।
6 हो सकता है कि मैं कुछ समय आप के साथ रहूँ। और शायद मैं पूरी सर्दी आपके साथ बिताऊँ। और उसके बाद मैं चाहता हूँ कि आप मेरी अगली यात्रा पर जाने में मेरी मदद करें।
7 मैंने फ़ैसला किया कि मैं अभी आप के पास नहीं आऊँगा क्योंकि यह यात्रा बहुत छोटी होगी। लेकिन अगर परमेश्वर चाहेगा तो मैं बाद में आपके पास आऊँगा। और मुझे आशा है कि मैं कुछ समय आपके साथ बिता सकूँगा।
8 मैं आपको यह पत्र इफिसुस से लिख रहा हूँ जहाँ मैं पिन्तेकुस्त के त्यौहार तक रहूँगा।
9 यहाँ परमेश्वर ने मेरे लिए बड़ा दरवाज़ा खोल दिया ताकि मैं बड़ा काम कर सकूँ। लेकिन कई लोग मेरा विरोध करते हैं।
10 शायद तीमुथियुस आप के पास आएगा। उसके साथ दोस्ताना व्यवहार करें ताकि वह शर्मिंदा महसूस न करें। वह प्रभु के लिए वैसे ही काम करता है जैसे मैं करता हूँ।
11 कोई भी तीमुथियुस का अनादर न करे। इसलिए शान्ति से उसे अलविदा कहें और मुझ तक पहुँचने में उसकी मदद करें। मैं दूसरे विश्वासियों के साथ मेरे पास आने के लिए उसका इन्तज़ार कर रहा हूँ।
12 मैंने भाई अपुल्लोस से विनती की कि भाइयों के साथ मिलकर आप से मिलने आए। लेकिन वह अभी आपके पास आना नहीं चाहता। वह आपके पास बाद में आएगा जब उसके पास ऐसा मौका होगा।
13 आत्मिक चीजों में अपनी रुचि न खोएं। जिस पर आप विश्वास करते हैं उसका दृढ़ता से पालन करें। निडर और मजबूत बनें।
14 जो कुछ भी आप करते हैं उसे प्यार से करें।
15 आप जानते हैं कि स्तिफनुस का परिवार पहला था जो अखया में मसीह की ओर फिरा। उन्होंने खुद को परमेश्वर के पवित्र लोगों की सेवा के लिए समर्पित किया।
16 हे भाइयों, मैं उनके जैसे लोगों से उदाहरण लेने के लिए आपसे कहता हूँ। उन लोगों के साथ मिलकर काम करें जो प्रभु की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं।
17 मैं इतना खुश हुआ जब स्तिफनास, फूरतूनातुस और अखिकुस मेरे पास आए। हमने इतना अच्छा समय बिताया कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि मैं आपसे मिलने के लिए गया हूँ।
18 उन्होंने मुझे आत्मिक रूप से उसी तरह से मजबूत किया जिस तरह से उन्होंने आपको मजबूत किया। इसलिए आपको ऐसे लोगों का आदर करना चाहिए।
19 एशिया के देश में स्थित चर्च आपको नमस्कार भेजते हैं। अक्किला और प्रिस्किला और सभी चर्च जो उनके घर पर इकट्ठा होते हैं वे भी आपको प्रभु में हार्दिक नमस्कार भेजते हैं।
20 सभी भाई आपको नमस्कार भेजते हैं। पवित्र चुम्बन के साथ एक दूसरे को नमस्कार करें।
21 मैं, पौलुस, आपको नमस्कार करता हूँ और अपने हाथ से इस पत्र पर हस्ताक्षर करता हूँ।
22 याद रखें जो प्रभु यीशु मसीह से प्रेम नहीं करता वह श्रापित है। हे हमारे प्रभु, आइए!
23 हमारे प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह में जियें।
24 मैं आप सभी से प्यार करता हूँ क्योंकि आप यीशु मसीह के हैं। आमीन।
1 Now I would like to discuss how you should collect money for God's holy people who live in Jerusalem. Follow the order I established in the churches of Galatia.
2 When I come to you, I do not want to be involved in collecting money. So on the first day of the week, let each of you set aside and save as much money as his earnings allow.
3 When I come to you, I will write letters and send them with the people you choose. And they will deliver your financial aid to Jerusalem.
4 And if necessary, I will also go to Jerusalem. Then your people will accompany me.
5 I am planning to travel through Macedonia, and after that I will come to visit you.
6 Perhaps, I will stay with you for a while. And maybe I will spend the whole winter with you. And after that, I want you to help me go on my next trip.
7 I decided not to come to you now, because this visit would be very short. But if the Lord allows, I will come to you later. And I hope that I can spend some time with you.
8 I am writing you this letter from Ephesus where I will stay until the Festival of Pentecost.
9 Here God opened a wide door for me to do great work. But many people are against me.
10 Perhaps Timothy will come to visit you. Be friendly with him so that he would not feel embarrassed. He works for the Lord, just as I do.
11 No one should treat Timothy with disrespect. So peacefully say goodbye to him and help him reach me. I am waiting for him to come to me along with the other believers.
12 I strongly urged brother Apollos to visit you along with the brothers. But he did not want to go to you now. He will come to you later when he has such an opportunity.
13 Do not lose your interest in spiritual things. Firmly follow what you believe in. Be courageous and strong.
14 Show love in everything you do.
15 You know that Stephen’s family was the first who turned to Christ in Achaia. They dedicated themselves to serving the holy people of God.
16 Brothers, I urge you to follow the example of people like them. Work together with those who completely commit themselves to serving the Lord.
17 I was so glad when Stephanas, Fortunatus and Achaicus came to visit me. We had such a great time together that I felt as if I was visiting you.
18 They strengthened me spiritually just as they strengthened you. So you should respect such people.
19 The churches located in the province of Asia send you greetings. Aquila, Priscilla and all the church which meets at their home also send you warm greetings in the Lord.
20 All the brothers send you greetings. Greet each other with a holy kiss.
21 I, Paul, greet you and sign this letter with my own hand.
22 Remember that he who does not love the Lord Jesus Christ falls under the curse. Come, our Lord!
23 Live in the grace of our Lord Jesus Christ.
24 I love you all because you belong to Jesus Christ. Amen.