First Letter to the Corinthians

First Letter to the Corinthians

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अध्याय 1

1 मैं पौलुस हूँ और मुझे परमेश्वर की इच्छा से बुलाहट मिली। और परमेश्वर ने मुझे यीशु मसीह का प्रेरित बनाया। भाई सोस्थिनेस मेरे साथ है।
2 और हम उसके साथ कुरिन्थुस में परमेश्वर के चर्च को नमस्कार करते हैं। परमेश्वर ने आपको पवित्र बनाया क्योंकि आप यीशु मसीह के हैं। परमेश्वर ने आपको बुलाहट दी और आप उसके पवित्र लोग बन गए। परमेश्वर ने यह उन सब के लिए किया जो अलग-अलग स्थानों में यीशु के नाम को पुकारते हैं और जो उसको प्रभु के रूप में अपनाते हैं। मसीह हमारे लिए प्रभु है और उन सब के लिए जो उस पर विश्वास करते हैं।
3 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से आपको अनुग्रह और शान्ति मिले।
4 आप यीशु मसीह के हैं और परमेश्वर ने आपको अपना अनुग्रह दिया। इसलिए मैं हमेशा आपके लिए अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ।
5 मसीह के कारण परमेश्वर ने आपको सभी उपहारों से अमीर बनाया। उसने आपको सभी ज्ञान और अच्छी तरह से बोलने की क्षमता दी।
6 जब आपने मसीह के बारे में सुना तब उसके वचन ने आपके दिलों में गहरी जड़ें पकड़ लीं।
7 इसलिए आपको आत्मिक उपहारों की कोई कमी नहीं। और बड़ी आशा के साथ आप उस दिन का बेसब्री से इन्तज़ार करते हैं जब हमारा प्रभु यीशु मसीह वापस आएगा।
8 प्रभु आपको बिल्कुल अन्त तक मजबूत बनाता रहेगा। वह समय आएगा जब हमारा प्रभु यीशु मसीह धरती पर वापस आएगा। उस दिन आप उसके सामने खड़े होंगे और वह आपको पाप में दोषी नहीं पाएगा।
9 परमेश्वर यह करेगा क्योंकि वह अपने वादों के प्रति विश्वासयोग्य है। उसने आपको अपने पास बुलाया। और अब आपके पास उसके बेटे यीशु मसीह की संगति है जो हमारे प्रभु बन गये।
10 हे भाइयों, हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में मैं आपसे विनती करता हूँ कि मेल मिलाप से रहें और एक दूसरे से झगड़ा न करें क्योंकि झगड़ों से फूट पड़ती है। एक दूसरे को समझना और एक ही लक्ष्य बनाना सीखें।
11 हे भाइयों, खलोए के परिवार ने मुझे बताया कि आप एक दूसरे के साथ बहस कर रहे हैं।
12 उन्होंने मुझे बताया कि आप में से कुछ लोग कहते हैं, “मैं पौलुस का चेला हूँ।” दूसरा कहता है, “मैं अपुल्लोस का चेला हूँ।” और तीसरा बहस करता है, “मैं पतरस का चेला हूँ।” और कोई और कहता है, “मैं मसीह का चेला हूँ।”
13 लेकिन मसीह हमें एकजुट करता है, बाँटता नहीं। आप कहते हैं कि आप पौलुस के चेले हैं। लेकिन क्या पौलुस आपके पापों के लिए क्रूस पर मरा? क्या आपको पौलुस के नाम में पानी का बपतिस्मा मिला? बिल्कुल नहीं।
14 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि आपके चर्च में मैंने सिर्फ़ क्रिस्पुस और गयुस को बपतिस्मा दिया।
15 और कोई यह न कहें कि मैंने अपने नाम से बपतिस्मा दिया।
16 मैंने स्तिफनास के परिवार को भी बपतिस्मा दिया। और मुझे किसी और को बपतिस्मा देना याद नहीं।
17 मसीह ने मुझे लोगों को बपतिस्मा देने के लिए नहीं लेकिन अच्छी खबर को फैलाने के लिए भेजा था। लेकिन मैं इंसान के नज़रिये से क्रूस पर चढ़ाए गए मसीह के बारे में प्रचार नहीं करता। नहीं तो, मेरा सन्देश अपनी शक्ति खो देगा।
18 जो अनन्त विनाश की ओर जा रहा है वह सोचता है कि क्रूस के बारे में सन्देश मूर्खता है। लेकिन हम उद्धार की ओर जा रहे हैं। हम क्रूस पर चढ़ाए गये मसीह पर विश्वास करते हैं और हम परमेश्वर की शक्ति को देख सकते हैं।
19 परमेश्वर शास्त्रों में कहता है, “मैं इंसानी बुद्धि को शून्य में बदल दूँगा। मैं बुद्धिमान लोगों के नज़रिये को ठुकरा दूँगा।”
20 दुनियाँ क्रूस पर चढ़ाए गए मसीह के सन्देश को नहीं समझ सकती। पढ़े लिखे लोग, वैज्ञानिक और ज्ञानी लोग इन्सान के नज़रिये से क्रूस के विषय में बहस करते हैं जिसे परमेश्वर मूर्खता कहता है।
21 दुनियाँ इंसानी बुद्धि के नज़रिये से परमेश्वर के बारे में बहस करती है। लेकिन फिर भी लोग नहीं समझ पाते कि परमेश्वर कौन है। इसलिए परमेश्वर ने अपनी बुद्धि दिखाई। उसने उन लोगों को बचाने का फैसला किया जो क्रूस पर चढ़ाए गये मसीह के सन्देश पर विश्वास करते हैं। लेकिन ऐसा सन्देश इस दुनियाँ के लोगों को बेवकूफी लगता है।
22 जब यहूदी लोग क्रूस के बारे में सन्देश सुनते हैं तब वे माँग करते हैं कि हम इसे अलौकिक शक्ति के साथ साबित करें। लेकिन अन्यजाति लोगों के लिए हमारे सन्देश का कोई मतलब नहीं, क्योंकि वे इसमें कुछ भी बुद्धिमानी नहीं देखते।
23 जब हम प्रचार करते हैं कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था तब इससे यहूदियों को ठेस लगती है। और अन्यजाति लोगों को हमारा सन्देश मूर्खता लगता है।
24 लेकिन परमेश्वर ने हमें अपने पास बुलाया। और हमारे बीच में यहूदी और अन्यजाति लोग हैं। क्रूस पर चढ़ाया गया मसीह हमारे लिए परमेश्वर की शक्ति और परमेश्वर की बुद्धि बन गया।
25 अविश्वासी सोचते ​​हैं कि मसीह की मौत परमेश्वर की मूर्खतापूर्ण योजना है। लेकिन मैं ऐसे लोगों से कहूँगा कि परमेश्वर की मूर्खता इंसान की बुद्धि से अधिक है। दुनियाँ कहती है कि जब मसीह क्रूस पर मरा तब परमेश्वर ने अपनी कमज़ोरी दिखाई। लेकिन मैं इन लोगों से कहूँगा कि परमेश्वर की कमज़ोरी इन्सान की शक्ति से अधिक है।
26 हे भाइयों, वह परमेश्वर था जिसने आपको बुलाया। लेकिन सोचिए कि आप कौन हैं। इन्सान के नज़रिये से आपके बीच में कुछ पढ़े लिखे और कुछ प्रभावशाली लोग हैं। आपके बीच कुछ ऊँचे सामाजिक पदों वाले लोग हैं।
27 इस दुनियाँ के लोग कहते हैं कि आप मूर्ख और कमज़ोर हैं। और वे खुद को बुद्धिमान और मजबूत मानते हैं। लेकिन परमेश्वर ने आपको चुना ताकि यह दुनियाँ एहसास कर सके कि यह परमेश्वर के सामने मूर्ख और कमज़ोर है।
28 आपके पास समाज में ऊँचा सामाजिक पद नहीं, इसलिए दुनियाँ आपसे घृणा करती है। दुनियाँ की नज़रों में आपकी कोई कीमत नहीं। लेकिन परमेश्वर ने आपको चुना ताकि इस दुनियाँ के लोग यह समझ सकें कि उनके पास घमंड करने के लिए कुछ भी नहीं।
29 और जब हम परमेश्वर के सामने खड़े होंगे तब कोई भी व्यक्ति उसके सामने अपनी बड़ाई नहीं कर सकेगा।
30 परमेश्वर ने हमें यीशु मसीह के साथ एकजुट किया जो हमारे लिए परमेश्वर की बुद्धि बन गया। मसीह हमारी धार्मिकता, हमारी शुद्धता और हमारा छुटकारा बन गया।
31 इसलिए शास्त्र कहते हैं, “अपने आप की प्रशंसा न करें। उसके कामों के लिए प्रभु की स्तुति करें।”

अध्याय 2

1 हे भाइयों, जब मैं आपके पास आया तब मैं आपको परमेश्वर के बारे में प्रचार सुनाया। लेकिन मैंने आपको सुन्दर शब्दों से खुश करने की कोशिश नहीं की। और मैंने इन्सान के नज़रिये से परमेश्वर के बारे में बात नहीं की।
2 मैंने आपको सिर्फ़ यीशु मसीह के बारे में प्रचार करने का फ़ैसला किया जिसे क्रूस पर चढ़ाया गया था। और मैं किसी और बात के बारे में प्रचार नहीं करना चाहता था।
3 जब मैं आप के साथ था तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना मजबूर था और मैं समझ गया कि मुझे परमेश्वर की शक्ति की ज़रूरत थी। मैंने परमेश्वर की उपस्थिति में बड़ा भय और कंपकंपी का अनुभव किया।
4 जब मैंने क्रूस पर चढ़ाए गये यीशु के बारे में प्रचार किया तब इन्सान के नज़रिये से मेरे शब्द ठोस नहीं थे। लेकिन पवित्र आत्मा ने अपनी शक्ति दिखाई।
5 मैं चाहता था कि आप परमेश्वर की शक्ति को अनुभव करें जिससे कि आपका विश्वास मज़बूत बन सके। लेकिन अगर कोई व्यक्ति इन्सान के नज़रिये से क्रूस पर चढ़ाए गये यीशु की बात करता है तो उसका विश्वास मज़बूत नींव पर खड़ा नहीं रह पाएगा।
6 जब हम आत्मिक रूप से परिपक्व विश्वासियों के बीच में होते हैं तब हम बुद्धि के बारे में प्रचार करते हैं। लेकिन इस बुद्धि का इस दुनियाँ की बुद्धि से कोई लेना-देना नहीं। आपको जानना चाहिए कि इस दुनियाँ के शासक जिस बुद्धि से जीते हैं, उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।
7 दुनियाँ को बनाने से पहले ही परमेश्वर ने फ़ैसला कर लिया था कि वह अपनी गुप्त बुद्धि को हम पर प्रकट करेगा ताकि हम उसकी महिमा में प्रवेश कर सकें। और अब हम खुलकर परमेश्वर की इस बुद्धि के बारे में बात करते हैं।
8 इस दुनियाँ के शासकों ने परमेश्वर की बुद्धि को नहीं समझा। और अगर वे इसे समझते तो वे हमारे तेजस्वी प्रभु को क्रूस पर नहीं चढ़ाते।
9 शास्त्र कहते हैं, “न किसी ने देखा, न किसी ने सुना और न कोई अपने दिल में कल्पना कर सका कि परमेश्वर ने उन लोगों के लिए क्या तैयार किया है जो उस से प्यार करते हैं।”
10 लेकिन पवित्र आत्मा ने परमेश्वर की योजनाओं को हम पर प्रकट किया। यह आत्मा हर जगह प्रवेश करती है और हमें परमेश्वर के प्रकाशन की गहराई को दिखाती है।
11 कोई भी नहीं जानता कि व्यक्ति क्या सोचता है। लेकिन व्यक्ति की आत्मा उसके विचारों को जानती है। उसी तरह से कोई भी नहीं जानता कि परमेश्वर क्या सोचता है। लेकिन परमेश्वर की आत्मा परमेश्वर के विचारों को जानती है।
12 परमेश्वर ने हमें अपनी आत्मा दी जिसका इस दुनियाँ की आत्मा से कोई लेना-देना नहीं। परमेश्वर की आत्मा हमारे अंदर रहती है ताकि हम जान सकें कि परमेश्वर ने हमें उपहार के रूप में क्या दिया है।
13 इन्सान की बुद्धि हमें आत्मिक बातें नहीं सिखा सकती। इसलिए हम आत्मिक बातों को इन्सान के नज़रिये से नहीं बोलते। पवित्र आत्मा हमें सिखाती है। और हम आत्मिक बातों को आत्मिक नज़रिये से बोलते हैं।
14 सांसारिक दिमाग वाला व्यक्ति अपनी समझ का सहारा लेता है। वह उसे स्वीकार नहीं करता जो परमेश्वर की आत्मा की ओर से आता है और वह इसे मूर्खता समझता है। सांसारिक दिमाग वाला व्यक्ति आत्मिक बातों के बारे में इन्सान के नज़रिये से सोचता है। इसलिए वह आत्मिक बातों को समझ नहीं पाता।
15 आत्मिक व्यक्ति सब चीज़ों को आत्मिक नज़रिये से आंकता है। लेकिन सांसारिक दिमाग वाला व्यक्ति अपनी समझ का सहारा लेता है और वह किसी आत्मिक व्यक्ति को सही से आंक नहीं सकता।
16 प्रभु के विचारों को कौन समझ सकता है? उसे कौन सिखा सकता है? परमेश्वर की आत्मा ने हमें मसीह की तरह सोचने की योग्यता दी इसलिए हमारे पास मसीह का दिमाग है।

अध्याय 3

1 हे भाइयों, मैं आपसे आत्मिक लोगों की तरह बात नहीं कर सका क्योंकि आप अभी भी अपने पुराने पापी स्वभाव के अधीन हैं। इसलिए मैंने आपसे बच्चों की तरह बात की जिन्हें मसीह में आत्मिक रूप से बढ़ना चाहिए।
2 जब मैंने आपको सिखाया तब मेरी शिक्षा दूध की तरह थी। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि आप सख्त खाना नहीं खा सकते थे। और अब तक आप उन बातों को नहीं समझ सकते जिन्हें आत्मिक रूप से परिपक्व विश्वासी समझते हैं।
3 अभी तक आप अपने पुराने पापी स्वभाव के अधीन हैं। आप जलन रखते हैं और आप एक दूसरे के साथ झगड़ा करते हैं। आप अपने बीच में बंटवारा करते हैं। आपके काम दिखाते हैं कि आप अपने पुराने पापी स्वभाव के अधीन हैं। आप इस दुनियाँ के लोगों की तरह व्यवहार करते हैं।
4 एक कहता है, “मैं पौलुस का चेला हूँ।” और दूसरा कहता है, “मैं अपुल्लोस का चेला हूँ।” आप एक दूसरे के विरोधी हैं और आप वैसे काम करते हैं जैसे आपका पापी स्वभाव चाहता है।
5 और पौलुस कौन है? और अपुल्लोस कौन है? हम परमेश्वर के सेवक हैं। और परमेश्वर ने हमारा उपयोग किया ताकि आप मसीह पर विश्वास कर सकें। हम में से हर एक ने वह काम किया जो प्रभु ने हमें सौंपा था।
6 मैंने आपके दिल में परमेश्वर के वचन के बीज बोए और अपुल्लोस ने उनमें पानी डाला। लेकिन यह परमेश्वर था जिसने बीजों को बढ़ाया।
7 इसलिए यह महत्वपूर्ण नहीं कि बीजों को कौन बोता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनमें पानी कौन डालता है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि उन बीजों को उगाने वाला परमेश्वर है।
8 जब हम बीज बोते हैं और पानी देते हैं तब हम अपने सामने एक ही लक्ष्य रखते हैं। लेकिन हर किसी को वह इनाम मिलेगा जिसका वह हकदार है।
9 मैं और अपुल्लोस एक ही खेत में परमेश्वर के लिए मिलकर काम करते हैं। और यह आप ही थे जो परमेश्वर का खेत बन गए। आप वह इमारत भी बन गए जिसे हम साथ-साथ परमेश्वर के लिए बनाते हैं।
10 परमेश्वर ने मुझे अपना अनुग्रह दिया। और मैंने अनुभवी बनाने वाले की तरह नींव रखी और अब दूसरा इसके ऊपर बना रहा है। लेकिन हर बनाने वाले को अपना काम अच्छी तरह से करना है।
11 यीशु मसीह परमेश्वर की इमारत की नींव है। और कोई भी दूसरी नींव नहीं डाल सकता।
12 लेकिन अलग-अलग बनाने वाले अलग-अलग सामान का इस्तेमाल करके इस नींव के ऊपर बनाते हैं। कुछ सोने, चाँदी और कीमती पत्थरों का उपयोग करते हैं। और दुसरे लोग लकड़ी, घास-फूस और भूसे का इस्तेमाल करते हैं।
13 लेकिन वह दिन आएगा जब परमेश्वर हर एक बनाने वाले के काम को आग से परखेगा। आग दिखाएगी कि हर व्यक्ति ने अपना काम कितना अच्छा किया है।
14 अगर व्यक्ति का काम आग से नहीं जलेगा तो ऐसे बनाने वाले को उसका इनाम मिलेगा।
15 और अगर इन्सान का काम जल जाएगा तो वह उसे खो देगा जो उसने बनाया था। लेकिन वह बनाने वाला उसी तरह बच जाएगा जिस तरह से लोगों को आग में जलने से बचाया जाता है।
16 क्या आप नहीं जानते कि आप परमेश्वर के मन्दिर बन गए और परमेश्वर की आत्मा आपके अन्दर रहती है?
17 परमेश्वर ने अपने मन्दिर को पवित्र किया। और यह आप ही थे जो यह मन्दिर बनें। अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के मन्दिर को नष्ट करेगा तो परमेश्वर ऐसे व्यक्ति के जीवन को नष्ट कर देगा।
18 इस दुनियाँ के लोग कभी नहीं समझ पाएंगे कि परमेश्वर की बुद्धि क्या है। इसलिए अगर दुनियाँ मानती है कि आपके पास बुद्धि है तो आपके पास परमेश्वर की बुद्धि नहीं। और आप अपने आप को धोखा देते हैं। लेकिन अगर इस दुनियाँ के लोग आपको मूर्ख समझते हैं तो इसका मतलब है कि परमेश्वर ने आपको क्रूस पर चढ़ाये हुए मसीह के द्वारा अपनी बुद्धि से भर दिया है।
19 इन्सान की बुद्धि परमेश्वर की दृष्टि में मूर्खता है। शास्त्र कहते हैं, “इस दुनियाँ के लोग खुद को बुद्धिमान कहते हैं। लेकिन परमेश्वर दिखाएगा कि लोग अपनी बुद्धि से खुद को धोखा देते हैं और वे अपने ही जाल में फंस जाते हैं।”
20 शास्त्र यह भी कहते हैं, “प्रभु जानता है कि इस दुनियाँ के बुद्धिमान लोग क्या सोचते हैं। प्रभु जानता है कि उनकी बुद्धि उनके लिए कोई भलाई नहीं करेगी।”
21 अपने जीवन पर असर डालने वाले किसी भी व्यक्ति की प्रशंसा न करें क्योंकि यह परमेश्वर है जो इन सभी लोगों के द्वारा काम करता है।
22 परमेश्वर आपके जीवन में पौलुस, अपुल्लोस और पतरस के द्वारा काम करता है। जो कुछ भी इस दुनियाँ में आपके साथ होता है परमेश्वर आपके लाभ के लिए उसका इस्तेमाल करता है। परमेश्वर आपके जीवन, मौत, वर्तमान और भविष्य पर अधिकार रखता है।
23 याद रखें कि आप मसीह के हैं। और मसीह परमेश्वर का है।

अध्याय 4

1 आपको हमारे साथ मसीह के सेवक की तरह व्यवहार करना चाहिए। परमेश्वर ने अपने रहस्यों को हम पर खोला और लोगों को उन के बारे में बताने का काम हमें सौंपा।
2 हम परमेश्वर के घर में काम के लिए जिम्मेदार हैं और हमें इसे ईमानदारी से करना है।
3 मैं जानता हूँ कि आप और दूसरे लोग इन्सान के नज़रिये से मुझे आंकते हैं। लेकिन मेरे लिए यह ज़्यादा मायने नहीं रखता। और यहाँ तक ​​कि मैं इन्सान के नज़रिये से खुद को भी नहीं आंकता।
4 मेरी अंतरात्मा साफ़ है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं सही हूँ। सिर्फ़ प्रभु ही मेरे जीवन को सही रूप से आंक सकता है।
5 इसलिए निश्चित समय के पूरे होने तक आप दूसरे लोगों की सेवा के बारे में सही परिणाम नहीं निकाल सकते। लेकिन जब प्रभु आएगा तब वह अपना प्रकाश उन सभी पर चमकाएगा जो अन्धकार में छिपे हुए है। प्रभु दिखाएगा कि किस तरह के गुप्त विचारों से व्यक्ति का दिल भरा हुआ है। और तब हर कोई परमेश्वर से प्रशंसा पाएगा जिसका वह हकदार है।
6 हे भाइयों, मैंने आपको अपना और अपुल्लोस का उदाहरण दिया। और मैं चाहता था कि मेरी शिक्षा से आपको लाभ पहुँचे। हमारे बारे में सोचें कि मैंने आपको किस तरह लिखा और इसमें कुछ भी न जोड़ें। एक दूसरे के सामने घमंड से न फूलें।
7 क्या आप दूसरे व्यक्ति से बेहतर हैं? यह परमेश्वर ही था जिसने आप को वह सब कुछ दिया जो आपके पास है। लेकिन आप घमंड करते हैं और कहते हैं कि आपने सब कुछ खुद हासिल किया है।
8 आपने अपनी ज़रूरतों को हद से ज़्यादा संतुष्ट किया। आप अमीर हो गए और आप हमारे बिना राज्य करने लगे। मैं चाहूँगा कि आप सचमुच में राज्य करें। फिर हम भी आपके साथ राज्य करें।
9 लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूँ कि परमेश्वर ने हमें प्रेरित बनाया और हम बिल्कुल अंत तक जाने और मसीह के लिए मरने के लिए तैयार हैं। हम पूरी दुनियाँ, स्वर्गदूतों और लोगों के लिए तमाशा बन गए।
10 हम मसीह की इतनी ईमानदारी से सेवा करते हैं कि दुनियाँ हमें मूर्ख समझती है। लेकिन आप मसीह पर विश्वास करना चाहते हैं और इस दुनियाँ की नज़र में बुद्धिमान दिखना चाहते हैं। हम परमेश्वर पर भरोसा करते हैं और एहसास करते हैं कि हम कमज़ोर हैं। लेकिन आप कहते हैं कि आप मजबूत हैं। आप चाहते हैं कि दुनियाँ आपका आदर करें। लेकिन दुनियाँ हमसे घृणा करती है।
11 अब तक हम भूखे-प्यासे रहते हैं। हम खराब कपड़े पहने हैं, लोग हमें पीटते हैं और हमारे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं।
12 हम अपने हाथों से मेहनत करते हैं। जब लोग हमारा अपमान करते हैं तब हम उन्हें आशीर्वाद देते हैं। जब लोग हमें सताते हैं तब हम धीरज से सताव को सहते हैं।
13 जब लोग हमें श्राप देते हैं तब हम उनके लिए दिल से प्रार्थना करते हैं। लेकिन इन सब के बावजूद, दुनियाँ हमें कूड़ा करकट समझती है।
14 मैं अपने बच्चों की तरह आप से प्यार करता हूँ। और मैं नहीं चाहता कि मेरे शब्द आप पर अप्रिय प्रभाव डालें। लेकिन मैं आपको लिख रहा हूँ ताकि आप बदल जाएं।
15 आपके पास हजारों शिक्षक हो सकते हैं जो आपको मसीह के बारे में सिखाते हैं। लेकिन आपके कई पिता नहीं हो सकते। मैंने आपको अच्छी खबर का प्रचार किया। और मैं मसीह यीशु में आपका पिता बन गया।
16 मैं उसी तरह से काम करता हूँ जिस तरह से मसीह ने किया था। इसलिए मैं आपसे विनती करता हूँ — मुझसे उदाहरण लीजिए।
17 मैंने तीमुथियुस को आपके पास भेजा। वह ईमानदारी से प्रभु की सेवा करता है और मैं उसे अपने बेटे की तरह प्यार करता हूँ। तीमुथियुस आपको याद दिलाएगा कि मैं किस तरह मसीह के पीछे चलता हूँ। वह आपको बताएगा कि मैं हर चर्च में क्या सिखाता हूँ।
18 लेकिन आपमें से कुछ लोग घमंडी हो गये। वे सोचते हैं कि मैं अब आपके पास नहीं आऊँगा।
19 अगर प्रभु मुझे अनुमति दे तो मैं जल्दी ही आपके पास आऊँगा। और मैं देखूँगा क्या पवित्र आत्मा की अलौकिक शक्ति उनके जीवन में काम करती है या नहीं। घमंडियों के सुन्दर शब्द मुझे प्रभावित नहीं करेंगे।
20 हमें लोगों को परमेश्वर के राज्य की शक्ति दिखानी है, न कि हमारे शब्दों की सुन्दरता।
21 मुझे बताइये, मुझे आपके साथ क्या करना चाहिए? मैं आपको सुधारने और ठीक करने के लिए आ सकता हूँ। या मैं प्रेम और दया की आत्मा के साथ भी आ सकता हूँ।

अध्याय 5

1 दूसरों ने मुझे बताया कि आपके चर्च में क्या हो रहा है। आपके बीच में एक व्यक्ति है जो भ्रष्ट जीवन जीता है। वह इतना अनैतिक रूप से काम करता है कि अन्यजाति लोग भी उसकी तरह काम नहीं करते। आप में से एक अपनी सौतेली माँ के साथ सोता है।
2 आपको इस बात के लिए रोना चाहिए कि यह व्यक्ति क्या कर रहा है। लेकिन इसके बजाय, आप खुद पर घमंड करते हैं। उसे अपनी सभाओं में आने की अनुमति न दें और उसके साथ संगति करने से बचें।
3 शारीरिक रूप से मैं आप से दूर हूँ लेकिन आत्मिक रूप में मैं आप के साथ हूँ। और मैंने पहले ही फैसला कर लिया था कि इस व्यक्ति के साथ क्या करना है जो भ्रष्ट जीवन जीता है।
4 जब आप इकट्ठे होंगे तब आत्मिक रूप से मैं आपके साथ रहूँगा। और हमारे प्रभु यीशु मसीह की शक्ति भी आपके बीच में होगी।
5 और तब हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में इस भ्रष्ट आदमी को शैतान की शक्ति के अधीन कर देना ताकि शैतान उसके शरीर को नष्ट कर दे। और अगर वह व्यक्ति मन फिराएगा तो परमेश्वर उसकी आत्मा को उस दिन बचा लेगा जब हमारा प्रभु यीशु मसीह पृथ्वी पर वापस आएगा।
6 आपके पास घमंड करने की कोई बात नहीं। क्या आप नहीं जानते कि थोड़ा सा खमीर सारे गूंथे हुए आटे को खमीरी कर देता है?
7 आपको बिना खमीर के ताजे गूंथे हुए आटे की तरह होना चाहिए। अपने पाप को उसी तरह से हटा दें जैसे कि फसह से पहले यहूदी लोग पुराने खमीर को हटाते हैं। और जैसे फसह के दिन मेमना बलिदान बन गया वैसे ही मसीह हमारे पापों के लिए बलिदान बन गया।
8 पुराना खमीर पाप और बुराई को दिखाता है। और बिना खमीर की रोटी शुद्धता और सच्चाई को दिखाती है। हमें पाप में नहीं रहना है, हमें पवित्र जीवन जीना है।
9 मैंने आपको पहले ही लिखा था कि आपका चरित्रहीन लोगों से कोई लेना-देना नहीं।
10 लेकिन मेरा मतलब अविश्वासियों से नहीं था। इस दुनियाँ के लोग चरित्रहीन जीवन जीते हैं। वे गैरकानूनी तरीकों से लाभ कमाना चाहते हैं, धोखाधड़ी करते हैं और मूर्तियों की पूजा करते हैं। और जब तक आप इस दुनियाँ में रहते हैं, आपको अविश्वासियों का सामना करना पड़ेगा।
11 लेकिन मैंने आपको लिखा था कि आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संबंध न रखें जो खुद को मसीही भाई कहता है लेकिन भ्रष्ट जीवन जीता है। ऐसा व्यक्ति विश्वासी होने का दिखावा करता है लेकिन वह गैरकानूनी तरीकों से लाभ कमाना चाहता है और मूर्तियों की पूजा करता है। वह कसम खाकर दूसरों का अपमान करता है, शराब पीता है और धोखाधड़ी करता है। आपको ऐसे व्यक्ति के साथ संबंध नहीं रखना चाहिए और उसके साथ एक ही मेज़ पर खाना भी नहीं खाना चाहिए।
12 आपको उन लोगों के कामों का न्याय करना है जो चर्च का हिस्सा बन गये। लेकिन अविश्वासियों का न्याय करना मेरी जिम्मेदारी नहीं।
13 यह परमेश्वर है जो अविश्वासियों का न्याय करता है। भ्रष्ट व्यक्ति को अपनी संगति से निकाल दें जो खुद को मसीही भाई कहता है।

अध्याय 6

1 मैं जानता हूँ कि आपके चर्च के सदस्यों के बीच में कुछ कानूनी मुद्दे हैं। और आप अदालत में अविश्वासियों के पास जाते हैं फिर आप एक दूसरे पर मुकद्दमा चलाते हैं। आप इस तरह का व्यवहार करने की हिम्मत कैसे करते हैं? आप विश्वासियों से समाधान क्यों नहीं चाहते?
2 क्या आप नहीं जानते कि परमेश्वर के पवित्र लोग दुनियाँ का न्याय करेंगे? और अगर ऐसा है तो क्या आपके बीच में कुछ समझदार लोग नहीं जो इस जीवन के साधारण मुद्दों को हल करने के योग्य हो?
3 क्या आप नहीं जानते कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? और मैं आपको बताना चाहता हूँ कि हम निश्चित रूप से साधारण मुद्दों को खुद हल कर सकते हैं।
4 लेकिन आप अपने साधारण मामलों को लेकर अदालत में अधर्मी न्यायियों के पास जाते हैं। वे पाप भरा जीवन जीते हैं जो चर्च में विश्वासियों के लिए घृणित है।
5 मैं यह आपको शर्म दिलाने के लिए कह रहा हूँ। क्या आपके बीच में एक भी समझदार व्यक्ति नहीं जो भाइयों के बीच में विवाद को सुलझा सकता है?
6 लेकिन इसके बजाय, एक विश्वासी दूसरे विश्वासी पर मुकद्दमा करता है। और यह सब अविश्वासियों के सामने हो रहा है।
7 आपके मुकद्दमे एक दूसरे के खिलाफ़ होते हैं और ऐसा करके आप खुद को हरा देते हैं। आपको यह समझना चाहिए कि जब कोई आपका अपमान करता है और आपको धोखा देता है तब धीरज से सहना बेहतर होता है।
8 लेकिन इसके बजाय, आप अपना अपमान करते हैं और दूसरों को धोखा देते हैं। और आप मसीही भाइयों के साथ भी यह करते हैं।
9 अपने आप को धोखा न दें। क्या आप नहीं जानते कि अधर्मी को परमेश्वर की विरासत नहीं मिलेगी और वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा? ऐसे लोग यह करते हैं। वे चरित्रहीन जीवन जीते हैं और मूर्तियों की पूजा करते हैं। वे अपने जीवनसाथी से वफ़ादार नहीं होते। आदमी पैसों के लिए दूसरे आदमियों के साथ सोते हैं और समलैंगिकता में लगे रहते हैं।
10 ऐसे लोग चोरी करते हैं, रिश्वत लेते हैं और शराब पीते हैं। वे कसम खाकर दूसरों का अपमान करते हैं और धोखाधड़ी करते हैं। याद रखें कि अधर्मी को परमेश्वर की विरासत नहीं मिलेगी और वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा।
11 आप में से कुछ लोग ऐसा जीवन जीते थे। लेकिन अब परमेश्वर ने आप को आप के पाप से धो दिया है। उसने आप को पवित्र किया और आप को अपनी धार्मिकता दी। परमेश्वर ने यह हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में और अपनी आत्मा के द्वारा किया।
12 आप कहते हैं, “जो मैं चाहूँ वह कर सकता हूँ।” लेकिन हमारे काम हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं। आप कहते हैं, “जो मैं चाहूँ वह करने का अधिकार मेरे पास है।” लेकिन हम अपने कामों के कारण अपनी आज़ादी खो सकते हैं।
13 आप कहते हैं, “परमेश्वर ने अलग-अलग ज़रूरतों के साथ मानव शरीर को बनाया है जिसे हमें संतुष्ट करना है। इसलिए हम खाना खाते हैं और अपने शरीर का पालन पोषण करते हैं।” यह सच है लेकिन एक दिन परमेश्वर शरीर और भोजन दोनों को नष्ट कर देगा। आपको अनैतिक जीवन के तरीके को उचित नहीं ठहराना चाहिए। यह न कहें कि व्यक्ति की यौन ज़रूरत होती है जिसे उसको संतुष्ट करना ज़रूरी है इसलिए वह किसी के साथ भी सो सकता है। प्रभु ने हमारे शरीर को अपने लिए बनाया है न कि अनैतिकता के लिए। और परमेश्वर चाहता है कि हमारे शरीर से प्रभु को महिमा मिले।
14 और जैसे परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया उसी तरह से वह हमारे शरीर को भी अपनी शक्ति से जिलाएगा।
15 क्या आप नहीं जानते कि चर्च मसीह का शरीर है और हम उसके शरीर के अंग हैं? इसलिए हमें यह अधिकार नहीं कि जो कुछ मसीह का है उसे ले लें और उसे ऐसी औरत को दे दें जो वेश्यावृत्ति में लगी हुई है। बिल्कुल, हमें यह नहीं करना है!
16 क्या आप नहीं जानते कि अगर कोई आदमी चरित्रहीन औरत के साथ सोता है तो वह उसके साथ एक हो जाता है? और शास्त्र कहते हैं, “जब दो लोग शरीर में जुड़ जाते हैं तब वे एक हो जाते हैं।”
17 और जो प्रभु के साथ जुड़ जाता है वह प्रभु की आत्मा के साथ एक हो जाता है।
18 अनैतिक जीवन के तरीके का इन्कार करें। जो कोई व्यक्ति दूसरे पाप करता है वह उसे दूसरे व्यक्ति के शरीर के साथ एक नहीं करता। जो यौन संबंधी पाप करता है वह अपने शरीर को नष्ट कर देता है।
19 क्या आप नहीं जानते कि आपके शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर बन गये है जो आपके अन्दर रहती है? परमेश्वर ने आपको अपनी आत्मा दी इसलिए आप अपने आप के नहीं।
20 मसीह ने आपके लिए बड़ी कीमत चुकाई। अब आपकी आत्मा और आपका शरीर उसी का है। इसलिए आपके शरीर को परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए।

अध्याय 7

1 आपने मुझे लिखा कि आदमी के लिए बेहतर है कि वह शादी न करे और किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध न रखे।
2 लेकिन ऐसा आदमी इस खतरे में है कि वह भ्रष्ट जीवन जीना शुरू कर सकता है। इसलिए हर आदमी की पत्नी और हर औरत का पति होना चाहिए।
3 पति को अपनी पत्नी की यौन ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए। और पत्नी को अपने पति की यौन ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए।
4 पत्नी को अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका शरीर उसके पति का है। पति को भी अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका शरीर उसकी पत्नी का है।
5 एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाने से दूर न रहें। लेकिन अगर आप उपवास और प्रार्थना के लिए समय देना चाहते हैं तो इस समय में आप आपसी समझौते से यौन संबंधों से दूर रह सकते हैं। लेकिन उसके बाद आपको फिर से एक साथ हो जाना चाहिए। नहीं तो, आप खुद पर नियंत्रण खो सकते हैं और यह आपको शैतान के जाल में फंसा देगा।
6 मैं आपको लिख रहा हूँ कि आप उपवास के दौरान यौन संबंधों से बच सकते हैं। लेकिन यह मेरी सलाह है और मैं आपको ऐसा ही करने के लिए नहीं कहता।
7 मैं चाहता हूँ कि सब लोग मुझसे उदाहरण लें। लेकिन परमेश्वर ने हर व्यक्ति की शादी के बारे में अपनी योजना तैयार की है। यही कारण है कि कुछ लोग शादी करते हैं लेकिन दूसरे शादी नहीं करते।
8 मैं अविवाहित और विधवाओं को सलाह देना चाहता हूँ। अभी परिवार शुरू करने का सबसे अच्छा समय नहीं। इसलिए आपको शादी नहीं करनी चाहिए और मेरी तरह परिवार के बिना जीवन जीना चाहिए।
9 लेकिन अगर आप खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकते तो आपको शादी कर लेनी चाहिए। यौन इच्छाओं में जलने की बजाए शादी करना बेहतर है।
10 ये वे आज्ञाएँ हैं जो शादीशुदा लोगों को पूरी करनी चाहिए। और यह प्रभु ही है जो इन महत्वपूर्ण बातों के बारे में कहता है, न कि मैं। पत्नी को अपने पति को तलाक नहीं देना चाहिए।
11 अगर वह अपने पति को छोड़ दे तो उसे दूसरे आदमी से शादी नहीं करनी चाहिए। और अगर औरत अकेली नहीं रहना चाहती है तो उसे अपने पति के साथ फिर से रिश्ता जोड़ लेना चाहिए। और पति को भी अपनी पत्नी को तलाक नहीं देना चाहिए।
12 और यह है जो मैं उन से कहना चाहता हूँ जिन्होंने अविश्वासी से शादी की है। और यह प्रभु की आज्ञा नहीं लेकिन मेरी सलाह है। अगर विश्वासी पति के पास अविश्वासी पत्नी है और वह उसके साथ रहने के लिए सहमत है तो उसको उसे तलाक नहीं देना चाहिए।
13 और अगर विश्वासी पत्नी के पास अविश्वासी पति है और वह उसके साथ रहने के लिए सहमत है तो उसको उसे तलाक नहीं देना चाहिए।
14 विश्वासी पत्नी अपनी शादी में पवित्रता लाती है और आत्मिक रूप से अपने अविश्वासी पति पर प्रभाव डालती है। विश्वासी पति भी अपनी शादी में पवित्रता लाता है और आत्मिक रूप से अपनी अविश्वासी पत्नी पर प्रभाव डालता है। और आप अपने बच्चों के जीवन में भी पापों से बचाने के लिए पवित्रता लाते हैं।
15 अगर कोई अविश्वासी तलाक लेना चाहता है तो उसे तलाक दे दें। इस मामले में, विश्वासी पति या विश्वासी पत्नी अब अविश्वासी के साथ शादी के बंधन में नहीं। प्रभु चाहता है कि हम शान्ति से रहें।
16 हे पत्नी, क्या आप नहीं समझती कि आप अपने अविश्वासी पति को उद्धार दिला सकती हैं? और हे पति, क्या आप नहीं समझते कि आप अपनी अविश्वासी पत्नी को उद्धार दिला सकते हैं?
17 परमेश्वर के पास हम में से हर एक के लिए योजना है। और हर व्यक्ति को वही करना चाहिए जो प्रभु चाहता है। जो मैं सिखाता हूँ उसका पालन सभी चर्चों को करना है।
18 अगर कोई यहूदी व्यक्ति मसीह के पास आया है तो उसे यह नहीं छिपाना चाहिए कि वह खतना किया हुआ है। और अगर अन्यजाति व्यक्ति मसीह के पास आया है तो उसे खतना नहीं कराना चाहिए।
19 अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसका खतना हुआ है और किसका नहीं। लेकिन हकीकत में फर्क इससे पड़ता है कि हम परमेश्वर की आज्ञाओं को मानें।
20 जब हम मसीह के पास आए तब हम में से हर एक अलग-अलग परिस्थितियों में थे। और ये परिस्थितियाँ हमारे जीवन में तब तक रहेंगी जब तक परमेश्वर उन्हें बदल न दे।
21 अगर उस समय आप गुलाम थे जब आप परमेश्वर के पास आए तो अपने बारे में यह न सोचें कि आप दूसरे विश्वासियों से बुरे हैं। लेकिन अगर आपको आज़ाद होने का मौका मिले तो इसका लाभ उठाएं।
22 जो गुलाम प्रभु के पास आया, उसे अपने बारे में सोचना चाहिए कि अब वह प्रभु में आज़ाद हो गया है। और जो आज़ाद व्यक्ति मसीह के पास आया, उसे अपने बारे में सोचना चाहिए कि अब वह मसीह का गुलाम बन गया है।
23 मसीह ने आपके लिए बड़ी कीमत चुकाई है। इसलिए लोगों के गुलाम न बनें।
24 हे भाइयों, जब आप परमेश्वर के पास आए तब आपमें से हर एक की परिस्थितियाँ अलग-अलग थीं। और ये परिस्थितियाँ आपके जीवन में तब तक रहेंगी जब तक परमेश्वर उन्हें बदल नहीं देता।
25 मुझे कुँवारी लड़कियों के लिए प्रभु से कोई आज्ञा नहीं मिली। लेकिन मैं सलाह देना चाहता हूँ क्योंकि मुझे प्रभु से दया मिली है और मैं ईमानदारी से उसकी सेवा करता हूँ।
26 अब हम कठिन परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं। इसलिए मैं सोचता हूँ कि किसी व्यक्ति को अपनी वैवाहिक स्थिति को न बदलना ही बेहतर है।
27 अगर आप पहले से ही शादीशुदा हैं तो तलाक न दें। और अगर आपने अपनी पत्नी को खो दिया है तो दूसरी न ढूँढें।
28 लेकिन अगर आप शादी करें तो आप पाप नहीं करेंगे। और अगर किसी लड़की की शादी हो तो वह भी पाप नहीं करेगी। अब हम मुश्किल समय से गुजर रहे हैं। इसलिए शादीशुदा लोग इस जीवन में कष्टों का सामना करेंगे। और मुझे आप पर दया आती है।
29 हे भाइयों, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि हमारे पास ज़्यादा समय नहीं बचा है। इसलिए शादीशुदा व्यक्ति को अपना सारा समय सिर्फ़ अपनी पत्नी को नहीं देना चाहिए।
30 और रोने वाला पूरी तरह से अपने दुःख में डूब न जाए। और आनन्द करने वाले को आनन्द पूरी तरह से पकड़ न ले। और जब आप चीजें खरीदते हैं तब आप उनके साथ चिपक न जाएं।
31 आप इस दुनियाँ की चीजों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आपको किसी भी चीज से चिपकना नहीं चाहिए क्योंकि यह दुनियाँ जल्दी ही गायब हो जाएगी।
32 मैं चाहता हूँ कि आप हर रोज़ की चिन्ताओं से आज़ाद रहें। अविवाहित आदमी प्रभु की योजनाओं को पूरा करना चाहता है।
33 और शादीशुदा आदमी के पास हर रोज़ की बहुत ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। उसे अपनी पत्नी की योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए। और उसी समय उसे परमेश्वर की योजनाओं को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा।
34 कुँवारी लड़की या ऐसी औरत जो अपने पति को खो चुकी है सिर्फ़ प्रभु की योजनाओं को पूरा करना चाहती है। इसलिए वह अपने शरीर और अपनी आत्मा को पवित्र करती है। लेकिन शादीशुदा औरत के पास हर रोज़ की बहुत ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। और उसे अपने पति की योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए।
35 मैं आप को सीमित करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। लेकिन मैं यह आपके लाभ के लिए कहता हूँ ताकि कोई भी बात आपको आपकी सेवा से विचलित न करें। और तब आप बेहतर तरीके से और अधिक समर्पण के साथ प्रभु की सेवा करेंगे।
36 शायद आप में से कुछ ने अपनी मंगेतर से शादी करने का वादा किया था। और हम जिन परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं उनकी वजह से आपने शादी में देरी की। लेकिन अब आप सोचते हैं कि अगर आपकी मंगेतर बूढ़ी हो जाए और उसकी शादी न हो तो यह अच्छा नहीं। इस मामले में, अगर आप अब शादी करें तो कुछ भी गलत नहीं होगा।
37 लेकिन शायद आप में से कुछ ने अपने दिल में दृढ़ता से फ़ैसला किया कि वह शादी न करे। ऐसे व्यक्ति को लगता है कि उसे शादी करने की ज़रूरत नहीं क्योंकि वह खुद पर नियंत्रण कर सकता है। इस मामले में, यह सही बात है क्योंकि अब परिवार शुरू करने का सबसे अच्छा समय नहीं।
38 इसलिए जो शादी करता है वह सही करता है। और जो शादी नहीं करता वह और भी अच्छा करता है।
39 जब औरत शादी करती है तब परमेश्वर का कानून उसे उसके पति के साथ शादी के बंधन में बांधता है। लेकिन अगर उसका पति मर जाए तो उसे अधिकार है कि वह किसी भी आदमी से शादी कर सकती है जिसे वह पसन्द करती है। लेकिन वह आदमी प्रभु पर विश्वास करने वाला होना चाहिए।
40 परमेश्वर ने मुझे अपनी आत्मा दी इसलिए मैं आप को सलाह देना चाहता हूँ। मैं विश्वास करता ​​हूँ कि औरत के लिए यह बेहतर है कि जब हम परीक्षाओं से गुजरते हैं तब वह शादी नहीं करे।

अध्याय 8

1 अब उस भोजन के बारे में बात करें जो अन्यजाति लोग मूर्तियों को चढ़ाते हैं। इस विषय पर हम सब के पास थोड़ा ज्ञान है। लेकिन ज्ञान हमें घमंडी बनाता है और प्यार हमें मज़बूत बनाता है।
2 शायद आप में से कुछ लोग ज्ञान को पहले स्थान पर रखते हैं। लेकिन कोई भी इतना ज्ञान नहीं पा सकता कि वह सब कुछ पूरी तरह से समझ सके।
3 लेकिन अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के लिए प्यार को पहले स्थान पर रखता है तो वह परमेश्वर को आनन्द देता है। और ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर अपना ज्ञान देता है कि सही काम कैसे करें।
4 इसलिए उस भोजन के बारे में बात करें जो अन्यजाति लोग मूर्तियों को चढ़ाते हैं। इस दुनियाँ के लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि मूर्ति परमेश्वर नहीं। हम यह भी जानते हैं कि सिर्फ़ एक ही परमेश्वर है और उसके अलावा कोई दूसरा परमेश्वर नहीं।
5 लेकिन अन्यजाति लोग विश्वास करते हैं कि अलग-अलग देवता स्वर्ग और पृथ्वी पर राज करते हैं। इसलिए वे कई देवताओं की पूजा करते हैं और अपने ऊपर उनका अधिकार स्वीकार करते हैं।
6 लेकिन हम एक परमेश्वर पिता पर विश्वास करते हैं जिसने सब कुछ बनाया। और हम परमेश्वर के लिए जीते हैं। हम सिर्फ़ एक और एकमात्र प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं जिसके द्वारा परमेश्वर ने पूरी दुनियाँ को बनाया। और हम मसीह के कारण जीते हैं।
7 लेकिन आप में से सभी नहीं समझते कि सिर्फ़ एक ही परमेश्वर है। आपके बीच में कुछ लोग हैं जो अभी तक मूर्तियों पर विश्वास करते हैं। उनकी अंतरात्मा सही और गलत में फर्क नहीं कर सकती। ऐसे लोगों का परमेश्वर में विश्वास कमज़ोर है। इसलिए वे विश्वास करते हैं कि हमें मूर्तियों को चढ़ाए गये भोजन को खाने की अनुमति है और यह उनकी अंतरात्मा को अशुद्ध करता है।
8 हम जानते हैं कि खाना हमें परमेश्वर के पास नहीं ले जा सकता। और खाना हमें न तो बेहतर बना सकता है न ही और भी बुरा।
9 इसलिए आप में से कुछ लोग कहते हैं कि हमें उस भोजन को खाने की अनुमति है जिसे अन्यजाति लोगों ने मूर्तियों को चढ़ाया। लेकिन ऐसे लोगों को अपने कामों के परिणाम के बारे में सोचना चाहिए। वे उन लोगों को पाप करने के लिए उकसाएंगे जिनका विश्वास कमज़ोर है।
10 आप समझते हैं कि मूर्ति परमेश्वर नहीं। लेकिन मान लीजिए कि आप किसी मूर्ति के मन्दिर में भोजन खाएंगे और कोई व्यक्ति जिसका विश्वास आपसे कमज़ोर है आपको वहाँ देखेगा। सोचिए कि आप उसे किस तरह का उदाहरण देंगे? ऐसा व्यक्ति मूर्तियों को चढ़ाया हुआ भोजन खाना शुरू कर देगा और आप के कारण उनकी पूजा करेगा।
11 क्या आप सोचते हैं कि आप वह भोजन खा सकते हैं जो अन्यजाति लोगों ने मूर्तियों को चढ़ाया? लेकिन अगर आपके मसीही भाई का विश्वास कमज़ोर है तो आप अपने भाई को बर्बाद कर देंगे जिसके लिए मसीह मरा।
12 आप उन भाइयों के खिलाफ़ पाप करते हैं जिनका विश्वास कमज़ोर है। उनकी अंतरात्मा सही और गलत में फर्क नहीं कर सकती। आप उनके विश्वास को नष्ट करते हैं और इस तरह से आप मसीह के खिलाफ़ पाप करते हैं।
13 मुझे क्या करना चाहिए अगर मैं जो भोजन खाता हूँ वह मेरे भाई को पाप करने के लिए उकसाता है? इस मामले में, मैं मूर्तियों को चढ़ाया गया भोजन फिर कभी नहीं खाऊँगा ताकि मैं अपने भाई के विश्वास को बर्बाद न करूँ।

अध्याय 9

1 परमेश्वर ने मुझे प्रेरित बनाया और मुझे अधिकार के साथ काम करने का हक है। मैंने हमारे प्रभु यीशु मसीह को देखा था और आप मेरी सेवा के परिणाम के रूप में उसके पास आए।
2 शायद, दूसरे लोग मुझे प्रेरित नहीं मानते। लेकिन आपके लिए मैं प्रेरित बन गया क्योंकि आप मेरी सेवा के द्वारा परमेश्वर के पास आए। अब आप प्रभु के हैं और आप इस बात का सबूत हैं कि मैं यीशु मसीह का प्रेरित हूँ।
3 इस तरह से मैं उन लोगों से अपनी सेवकाई की रक्षा करता हूँ जो मुझ पर दोष लगाते हैं।
4 हम प्रभु के लिए काम करते हैं। क्या आप हमारी सेवा के लिए धन्यवाद देने के लिए हमें कुछ खाने-पीने को नहीं दे सकते?
5 पतरस, दूसरे प्रेरित और प्रभु के भाई अपनी विश्वासी पत्नियों के साथ यात्रा करते हैं। क्या हमारे पास अपनी विश्वासी पत्नियों को अपने साथ ले जाने का समान अधिकार नहीं?
6 क्या हमें अपने खर्च के लिए दान का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं? लेकिन मैंने और बरनबास ने इस अधिकार का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया और हम काम करते हैं और अपने आप को सम्भालते हैं।
7 मुझे बताइए, जब कोई सैनिक सेना में काम करता है तब क्या वह अपना खर्च खुद उठाता है? और क्या कोई व्यक्ति अपने लगाए हुए अंगूर के बाग के अंगूर नहीं खाता? और क्या कोई चरवाहा अपनी भेड़-बकरियों के दूध को नहीं पीता?
8 मैं आपको हर रोज़ के जीवन से कुछ उदाहरण देता हूँ और कानून भी यही कहता है।
9 परमेश्वर ने मूसा के द्वारा कहा, “जब बैल खेत में काम करेगा तब वह फसल भी खाएगा। लेकिन आपको उसका मुँह बन्द नहीं करना चाहिए।” मुझे बताइए, क्या परमेश्वर सिर्फ़ बैलों की परवाह करता है?
10 जब परमेश्वर इस के बारे में बात करता है तब क्या इसका मतलब हमसे नहीं? बिल्कुल, मूसा ने इसे हमारे लिए लिखा था। जोतने वाला और काटने वाला दोनों अपना काम करते हैं। और उनमें से हर एक पूरी तरह से निश्चिंत होता है कि फसल का हिस्सा उसी का होगा।
11 हमने आपके जीवन में आत्मिक आशीषें उगाई हैं जो सांसारिक चीज़ों से कहीं अधिक कीमती हैं। और हमें आपसे सांसारिक आशीषों की फसल इकट्ठा करने का अधिकार है।
12 दूसरे सेवक आपसे आर्थिक सहायता प्राप्त करते हैं। हमें आपसे सहायता माँगने का ज़्यादा अधिकार है। लेकिन हम इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं करते। और इस सच के बावजूद कि हम सांसारिक कठिनाइयों का सामना करते हैं, हम रुकते नहीं और मसीह के बारे में अच्छी खबर को फैलाना जारी रखते हैं।
13 क्या आप नहीं जानते कि याजक वह भोजन प्राप्त करते हैं जिसे लोग मन्दिर में लाते हैं और परमेश्वर को भेंट चढ़ाते हैं? क्या आप नहीं जानते कि लोग जो कुछ भी प्रभु को भेंट चढ़ाते हैं, उस में से कुछ भाग वे सेवक अपने लिए ले लेते हैं जो वेदी पर सेवा करते हैं?
14 और यह वह आज्ञा है जो प्रभु ने हमें दी थी। जो मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करता है, उसे उन लोगों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है जिनकी वह सेवा करता है।
15 लेकिन मैंने इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया। और अब मैं यह इसलिए नहीं लिख रहा हूँ ताकि आप आर्थिक रूप से मेरी सहायता करना शुरू कर दें। मैंने फ़ैसला किया कि जिन्हें मैं प्रचार करता हूँ उन लोगों के खर्चे पर जीने की बजाय मरना पसन्द करूँगा। और यह मुझे आनन्द देता है कि मैं अपने लिए बन्दोबस्त कर सकता हूँ।
16 मैं मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार कर रहा हूँ लेकिन मैं इस के लिए आर्थिक सहायता मिलने का इंतेज़ार नहीं करता। यह मेरा कर्तव्य है जिसे मुझे पूरा करना है। और अगर मैं मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करना बन्द कर दूँ तो मुझे बहुत दु:ख होगा।
17 मान लीजिए कि मैंने प्रचारक बनने का फ़ैसला किया ताकि इस तरह से मैं अपनी जीविका कमा सकूँ। इस मामले में, मैं अपने काम के लिए तनख्वाह का इंतेज़ार कर सकता हूँ। लेकिन मेरा ऐसा विचार नहीं था। मैं प्रचार करता हूँ क्योंकि परमेश्वर ने मुझे अपनी सेवा सौंपी है और मुझे इसे पूरा करना है।
18 जब मैं आपको मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करता हूँ तब मुझे आपसे आर्थिक सहायता पाने का पूरा अधिकार है। लेकिन मैं इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं करता। मैं आपकी सेवा करता हूँ और आपसे किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता प्राप्त करने की आशा नहीं रखता। और परमेश्वर मुझे उसके लिए इनाम देगा।
19 कोई भी मेरी आज़ादी को सीमित नहीं करता। लेकिन मैंने दूसरे लोगों के लिए अपनी आज़ादी को बलिदान कर दिया ताकि मैं मसीह के लिए और अधिक लोगों को जीत सकूँ।
20 इसलिए यहूदी लोगों को मैं यहूदी नज़रिये से मसीह के बारे में प्रचार करता हूँ। मैं ऐसा इसलिए करता हूँ ताकि यहूदी लोग मसीह के पास आ सकें। जब मैं इस कानून के अनुसार जीने वालों को मसीह के बारे में बताता हूँ तब मैं मूसा के कानून का इस्तेमाल करता हूँ ताकि वे भी मसीह के पास आ सकें।
21 अन्यजाति लोग नहीं जानते कि मूसा का कानून क्या है। इसलिए जब मैं उन्हें प्रचार करता हूँ तब मैं इस कानून का इस्तेमाल नहीं करता और उसके अनुसार नहीं जीता। लेकिन मैं मसीह की आज्ञा का पालन करता हूँ और परमेश्वर के कानून का उल्लंघन नहीं करता। मैं यह इसलिए करता हूँ क्योंकि मैं अन्यजाति लोगों को परमेश्वर के पास लाना चाहता हूँ।
22 जब मैं दु:खों से गुज़रने वालों को मसीह के बारे में प्रचार करता हूँ तब मैं अपने आप को कमज़ोर व्यक्ति की जगह पर रखता हूँ ताकि उसे परमेश्वर के पास ला सकूँ। मैं उन में से कम से कम कुछ को बचाने के लिए सभी लोगों के साथ एक सा आधार ढूँढता हूँ।
23 मैं इस तरह से काम करता हूँ ताकि मैं मसीह के बारे में अच्छी खबर फैला सकूँ। और इस तरह से मैं परमेश्वर के काम में हिस्सा लेता हूँ।
24 आप जानते हैं कि दौड़ प्रतियोगिता में कई खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। लेकिन उनमें से सिर्फ़ एक व्यक्ति ही इनाम पाता है। इसलिए आपको जीतने के लिए दौड़ना है।
25 सभी प्रतियोगी हर चीज में खुद को तैयार और अनुशासित करते हैं। वे ऐसा मुकुट पाने के लिए सब कुछ करते हैं जो हमेशा नहीं रहेगा। लेकिन हम अपने आप को अनुशासित करते हैं ताकि वह अविनाशी इनाम पा सकें जिसे परमेश्वर हमें देगा।
26 मैं ऐसे खिलाड़ी की तरह काम करता हूँ जिसका एक लक्ष्य है। मैं अन्तिम रेखा तक पहुँचना चाहता हूँ। मैं ऐसे मुक्केबाज़ की तरह काम करता हूँ जो हर मुक्के के बारे में सोचता है। मैं हवा को नहीं पीटता।
27 मैं दूसरों को प्रचार करता हूँ। लेकिन मुझे अपने आप को भी अनुशासित करना पड़ेगा ताकि मैं पूरी तरह से अपने शरीर को नियंत्रित कर सकूँ। नहीं तो, मैं अन्तिम रेखा तक नहीं पहुँच पाऊँगा और अपना इनाम नहीं पाऊँगा।

अध्याय 10

1 हे भाइयों, मैं आप को याद दिलाना चाहता हूँ कि मूसा हमारे यहूदी लोगों को मिस्र से जंगल में लाया। जब मिस्र की सेना परमेश्वर के लोगों का पीछा कर रही थी तब प्रभु मिस्र की सेना और यहूदी लोगों के बीच बादल में खड़ा हुआ और अपने लोगों की रक्षा की। समुद्र दो भाग हो गया और इस्राएली समुद्र में से होकर दूसरी ओर ज़मीन पर चले गए लेकिन मिस्र की सेना डूब गई।
2 परमेश्वर के लोग मूसा के पीछे चले। और उन सभी को बादल और समुद्र में मूसा के नाम से बपतिस्मा मिला।
3 सभी लोग एक ही आत्मिक भोजन खाते थे।
4 सभी लोग उसी आत्मिक सोते से पीते थे जो आत्मिक चट्टान से बहता था। यह चट्टान मसीह था। और मसीह जंगल में अपने लोगों के साथ था।
5 लेकिन सभी इस्राएलियों ने परमेश्वर को आनन्द नहीं दिया। उन्होंने पाप किया इसलिए वे जंगल में मर गए।
6 लोग बुराई करना चाहते थे और उनकी बुरी इच्छाओं ने उन्हें नष्ट कर दिया। यह हमारे लिए एक उदाहरण होना चाहिए ताकि हम बुराई करने की इच्छा से दूर रहें।
7 मूर्तियों की पूजा भी न करें जैसा कि कुछ इस्राएलियों ने की थी। शास्त्र उनके बारे में कहते हैं, “लोग सोने के बछड़े के सामने बैठ गए और खाना-पीना शुरू कर दिया। और फिर वे पागलों की तरह मूर्ति के चारों ओर कूदने लगे।”
8 गलत यौन संबंधों में हिस्सा न लें जैसा कि कुछ इस्राएलियों ने किया। लोगों ने पाप किया और एक दिन में 23,000 लोग मारे गए।
9 जब परमेश्वर जंगल में अपने लोगों के आगे आगे चला तब उनमें से कुछ ने परमेश्वर की योजना पर शक किया। उन्होंने परमेश्वर के खिलाफ़ बोला और अपने पापों से मसीह के धीरज की परीक्षा की। इसलिए सांपों ने उन्हें काटा और इसकी वजह से लोग मर गए। इसलिए हमें प्रभु की योजनाओं पर शक नहीं करना चाहिए। इस बात की परीक्षा न करें कि प्रभु हमारे पापी व्यवहार को किस हद तक सहन करेगा।
10 कुछ इस्राएली मर गए थे क्योंकि वे कुड़कुड़ाये और शिकायत करने लगे। यही कारण था कि वे नाश हो गए। लेकिन हमें शिकायत नहीं करनी और कुड़कुड़ाना नहीं चाहिए।
11 हम आखिरी दिनों में जीते हैं। और भविष्यवक्ताओं ने हमारे लिए वह सब कुछ लिखा था जो इस्राएल के लोगों के साथ हुआ। ये बातें हमारे लिए उदाहरण बन जानी चाहिए ताकि हम उनकी तरह पाप न करें।
12 आप सोचते हैं कि आप अपने पैरों पर स्थिर खड़े हैं। लेकिन आपको सावधान रहना है और पाप करने से बचना है। नहीं तो, आप गिर जाएंगे।
13 अगर आप पाप के बारे में सोचते हैं तो ऐसे विचार आपको पाप के कामों की ओर ले जायेंगे। और ऐसी चीजों का सामना हर किसी को करना पड़ता है। लेकिन आपको जानना चाहिए कि परमेश्वर अपने वचन के प्रति वफ़ादार है और वह आपको कभी असफल नहीं करेगा। वह आपको शक्ति देगा ताकि आप अपनी पाप भरी इच्छा के पीछे न चलें। परमेश्वर आपको धीरज से भर देगा और आपके पापी विचारों पर विजय पाने में आपकी मदद करेगा।
14 हे मेरे प्यारे भाइयों, मूर्तियों की पूजा न करें। उनसे दूर रहें।
15 आप बुद्धिमान लोग हैं। और आप समझ सकते हैं कि मैं आपसे क्या कह रहा हूँ।
16 जब हम प्रभु भोज लेते हैं तब हम मसीह की मौत को याद करते हैं। हम परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं और इस आशीषित प्याले से पीते हैं। इस तरह से, मसीह हमें अपने खून से एकजुट करता है। हम इस रोटी को भी तोड़ते हैं और खाते हैं। इस तरह से, मसीह हमें अपने शरीर में एकजुट करता है।
17 चर्च मसीह का शरीर है जिसमें कई अलग-अलग अंग हैं। जब हम सभी एक रोटी खाते हैं तब हम मसीह का शरीर बन जाते हैं।
18 इस्राएल के लोगों के बारे में सोचें। जब लोगों ने परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाए तब उन्हें वेदी पर खाया और इसने उन्हें परमेश्वर के साथ एकजुट कर दिया।
19 हम जानते हैं कि मूर्ति परमेश्वर नहीं। इसलिए मूर्तियों को बलिदान चढ़ाने का कोई मतलब नहीं।
20 लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि जब लोग मूर्तियों को बलिदान चढ़ाते हैं तब वे उन्हें दुष्टात्माओं को चढ़ाते हैं न कि परमेश्वर को। और मैं नहीं चाहता कि आप बुरी आत्माओं से संबंध रखें।
21 आप प्रभु के प्याले और दुष्टात्माओं के प्याले दोनों में से नहीं पी सकते। जो रोटी आपने प्रभु को समर्पित की और जो बलिदान का खाना अन्यजाति लोगों ने बुरी आत्माओं को समर्पित किया आप उन दोनों में से नहीं खा सकते।
22 क्या हम प्रभु को गुस्सा करने के लिए उकसाने की हिम्मत कर सकते हैं? क्या हम उससे मजबूत हो गए हैं?
23 आप कहते हैं, “जो मैं चाहूँ वह कर सकता हूँ।” लेकिन हमारे काम हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं। आप कहते हैं, “जो मैं चाहूँ वह करने का अधिकार मेरे पास है।” लेकिन हमारे काम हमारे विश्वास को कमज़ोर बना सकते हैं।
24 हमें अपने हितों का पीछा नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, हम में से हर एक को एक दूसरे का ख्याल रखना चाहिए।
25 जब आप बाजार जाते हैं तब यह न पूछें कि अन्यजाति लोगों ने कौन सी वस्तुएं मूर्तियों को चढ़ाई। जो कुछ भी आप बाजार से खरीदते हैं उसे साफ़ अंतरात्मा के साथ खाएं।
26 शास्त्र कहते हैं कि पृथ्वी प्रभु की है। और जो कुछ पृथ्वी पर मौजूद है वह भी उसी का है।
27 मान लीजिए कि कुछ अविश्वासी आपको अपने घर बुलाए और आप वहाँ जाना चाहें। इस मामले में, जो कुछ वह आपको दे उसे साफ़ अंतरात्मा के साथ खाएं। और यह न पूछें कि क्या यह खाना मूर्तियों को चढ़ाया गया था।
28 याद रखें कि पृथ्वी परमेश्वर की है। और जो कुछ पृथ्वी पर मौजूद है, वह भी उसी का है। लेकिन मान लीजिए कि कोई व्यक्ति आपको बताए, “यह खाना मूर्तियों को चढ़ाया गया था।” इस मामले में वह खाना खाने से इनकार कर दें। आपको उस व्यक्ति के लिए बलिदान किया हुआ खाना नहीं खाना चाहिए जिसने आपको इसके बारे में बताया है। और आपको दूसरे विश्वासी के लिए भी बलिदान किया हुआ यह खाना नहीं खाना चाहिए जिसका परमेश्वर पर विश्वास कमज़ोर है। अभी तक इस व्यक्ति की अंतरात्मा इस बात में फर्क नहीं कर सकती कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। इसलिए ऐसा व्यक्ति मूर्तियों को चढ़ाया हुआ खाना खाना शुरू कर देगा और आपके कारण मूर्तियों की पूजा करना शुरू कर देगा।
29 मैं जानता हूँ कि सब कुछ प्रभु का है इसलिए मेरी अंतरात्मा मुझे दोषी नहीं ठहराती। लेकिन मुझे यह सोचना पड़ेगा कि मेरे काम दूसरे व्यक्ति पर कैसा असर डालेंगे जिसका परमेश्वर पर विश्वास कमजोर है। आप में से कुछ कहते हैं, “प्रभु ने मुझे आज़ादी दी। और कोई भी मेरा न्याय नहीं कर सकता और कोई भी मुझे नहीं बता सकता कि मुझे कैसे व्यवहार करना चाहिए।”
30 और दूसरा कहता है, “मैं मूर्तियों को चढ़ाया हुआ खाना खाता हूँ और इसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ। आप इसके लिए मुझ पर कैसे दोष लगा सकते हैं?”
31 आपको यह समझना चाहिए कि आपके सभी कामों से परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए। जब आप खाते या पीते हैं तब इस से भी उसकी महिमा मिलनी चाहिए।
32 इसलिए आपको इस तरह से व्यवहार करना चाहिए कि आप न तो यहूदी लोगों को, न अन्यजाति लोगों को और न ही चर्च को, जो परमेश्वर का है पाप के लिए उकसाएं।
33 मैं चाहता हूँ कि लोगों को उद्धार मिले। इसलिए मैं प्रयास करता हूँ और दूसरों के हितों को अपने से ऊँचा रखता हूँ। मैं हर व्यक्ति का ख्याल रखने का हर संभव प्रयास करता हूँ।

अध्याय 11

1 मेरा उदाहरण लें जैसे मैं यीशु मसीह का उदाहरण लेता हूँ।
2 हे भाइयों, मुझे आनन्द है कि आप मुझे याद करते हैं और जैसे मैंने आपको पढ़ाया आप वैसे ही काम करते हैं।
3 मैं चाहता हूँ कि आप यह भी जानें कि मसीह हर एक आदमी का सिर है। पति अपनी पत्नी का सिर है। और परमेश्वर मसीह का सिर है।
4 अगर कोई आदमी औरत की तरह अपना सिर ढके हुए प्रार्थना या भविष्यवाणी करता है तो वह अपना और प्रभु का अपमान करता है।
5 और अगर कोई औरत आदमी की तरह अपना सिर गंजा करके प्रार्थना या भविष्यवाणी करती है तो वह अपना और अपने पति का अपमान करती है।
6 आपके बीच में कुछ औरतें हैं जो अपना सिर ढकना नहीं चाहती। लेकिन वे छोटे बालों के कारण आदमियों की तरह दिखाई देती हैं। औरत को अपना सिर गंजा नहीं करवाना चाहिए और न ही किसी आदमी की तरह अपने बाल कटवाने चाहिए। उसे इस बात पर शर्म आनी चाहिए और उसे अपना सिर ढकना चाहिए।
7 आदमी को अपना सिर नहीं ढकना चाहिए और औरत की तरह दिखाई देना नहीं चाहिए। परमेश्वर ने आदमी को अपने रूप में बनाया ताकि आदमी परमेश्वर की महिमा करे। और पत्नी को अपने पति की प्रतिष्ठा का ध्यान रखना चाहिए और उसका अपमान नहीं करना चाहिए।
8 शुरुआत में परमेश्वर ने आदमी को बनाया। और फिर परमेश्वर ने उसकी पसली से औरत को बनाया।
9 परमेश्वर ने आदमी को औरत के लिए नहीं बनाया। लेकिन उसने औरत को आदमी के लिए बनाया।
10 इसलिए स्वर्गदूतों को दिखाई देना चाहिए कि औरत अपने ऊपर अपने पति के अधिकार को पहचानती है। और अगर औरत अपने छोटे बालों के कारण आदमी की तरह दिखाई देती है तो उसे औरत की तरह दिखाई देने के लिए अपना सिर ढकना चाहिए।
11 हम प्रभु के हैं और हम समझते हैं कि आदमी औरतों पर निर्भर होते हैं और औरतें आदमियों पर निर्भर होती हैं।
12 पहली औरत आदमी की पसली से आई लेकिन बाकी सभी आदमी औरतों से पैदा हुए। और परमेश्वर ने हम सभी को बनाया।
13 आपके बीच में कुछ औरतें छोटे बालों के कारण आदमियों की तरह दिखाई देती हैं। इसके बारे में सोचें। क्या यह सही है जब ऐसी औरत अपना सिर बिना ढके परमेश्वर से प्रार्थना करती है?
14 अगर कोई आदमी अपने बालों को बढ़ाता है और औरत की तरह बनता है तो वह अपने स्वभाव के खिलाफ़ काम करता है और प्रकृति के खिलाफ़ व्यवहार करता है। और इस तरह से वह अपना अपमान करता है।
15 लेकिन जब कोई औरत अपने बालों को बढ़ाती है तब वह अपने औरत होने को महत्त्व देती है। और उसके लम्बे बाल प्राकृतिक रूप से उसे घूंघट की तरह ढकते हैं।
16 और अगर कोई व्यक्ति इस के बारे में बहस करना चाहता है तो मैं उससे कहूँगा, “आदमियों और औरतों को एक दूसरे से अलग दिखना ही चाहिए। और हमें इस नियम का पालन करना है। ऐसी आज्ञा परमेश्वर के सभी चर्चों में होनी चाहिए।”
17 मैं कुछ दूसरी बातों के लिए भी आपकी प्रशंसा नहीं कर सकता जो आपके बीच में होती हैं। जब आप इकट्ठे होते हैं तब यह आपको अच्छाई से ज़्यादा नुकसान पहुँचाता है।
18 मैंने सुना कि आपकी सभाओं के समय क्या होता है। सबसे पहली बात, जब आप चर्च आते हैं तब आपके बीच में कुछ फूट होती हैं। और कुछ हद तक, मैं मानता हूँ कि ऐसा हो सकता है।
19 आपके अलग-अलग नज़रिये हो सकते हैं ताकि आप देख सकें कि आप में से किस के विचार सही हैं जिन्हें परमेश्वर मंजूरी देता है।
20 दूसरी बात, जब आप इकट्ठे होते हैं तब आप प्रभु भोज लेते हैं। लेकिन आप इसे इस तरह से लेते हैं जैसे इसका सच्चे प्रभु भोज से कोई लेना-देना ही नहीं।
21 आप एक दूसरे के साथ नहीं बाँटते। आप अपने साथ लाया हुआ खाना खाने के लिए लालच करते हैं। इसलिए आप में से कुछ लोग भूखे रह जाते हैं और दूसरे लोग नशे में चूर हो जाते हैं।
22 आपको घर पर खाना और पीना चाहिए। परमेश्वर के चर्च को अपमान न करें और गरीबों को न दबाएं। मैं आपको क्या बताऊँ? क्या आप सोचते हैं कि मैं इसके लिए आपकी प्रशंसा करूँगा? बिल्कुल नहीं।
23 जो प्रभु ने मुझे सिखाया वह मैंने आप को बता दिया। जब यहूदा ने प्रभु यीशु को धोखा दिया, उस रात को प्रभु ने रोटी ली।
24 उसने परमेश्वर को धन्यवाद दिया, उस रोटी के टुकड़े किये और अपने चेलों से कहा, “इस रोटी को लें और खाएं। यह रोटी मेरा शरीर है जो आपके लिए दु:ख उठाएगा। जब आप इस रोटी को तोड़ते हैं और इसे खाते हैं तब आपको मुझे याद करना चाहिए।”
25 रात के खाने के बाद प्रभु ने प्याला लिया और कहा, “यह प्याला परमेश्वर और लोगों के बीच में नए समझौते को स्थापित करता है जिस पर मैं अपने खून से मुहर लगाऊँगा। जब आप इस प्याले में से पीएंगे तब हमेशा मुझे याद करना।”
26 जब आप इस रोटी को खाएंगे और इस प्याले में से पीएंगे तब हर बार आप प्रभु की मौत की घोषणा करेंगे। तब तक ऐसा करते रहें जब तक प्रभु इस धरती पर दोबारा न आए।
27 आप में से कुछ इस रोटी को खाते और प्रभु के प्याले में से पीते हैं लेकिन आप इसे गंभीरता से नहीं लेते। ऐसे लोग प्रभु के शरीर और उस के खून के खिलाफ़ पाप के दोषी होंगे।
28 इस रोटी को खाने और इस प्याले में से पीने से पहले व्यक्ति को अपने दिल को जाँचना चाहिए।
29 अगर आप खाते और पीते हैं लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लेते तो परमेश्वर इसके लिए आपका न्याय करेगा। आपको समझना चाहिए कि मसीह के शरीर का क्या मतलब है।
30 आप गलत तरीके से प्रभु भोज लेते हैं। इसलिए आपके चर्च में कुछ लोग कमज़ोर और बीमार हैं और कुछ लोग मर रहे हैं।
31 हमें अपने कामों के बारे में सोचना चाहिए और खुद को सही करना चाहिए। और तब परमेश्वर हमारा न्याय नहीं करेगा।
32 लेकिन अगर हम यह नहीं करते तो प्रभु हमारा न्याय करता और हमें अनुशासित करता है। लेकिन वह उस तरह से हमारा न्याय नहीं करता जिस तरह से वह इस दुनियाँ का न्याय करेगा।
33 हे मेरे भाइयों, जब आप प्रभु भोज के लिए इकट्ठा होते हैं तब एक दूसरे का इंतजार करें और एक साथ प्रभु भोज लें।
34 और अगर आप जानते हैं कि आपको भूख लगेगी तो आने से पहले घर पर खाना खाकर आएं। तब प्रभु भोज के समय परमेश्वर आपके गलत व्यवहार के लिए आपका न्याय नहीं करेगा। जब मैं आपके पास आऊँगा तब मैं आपके साथ कुछ और बातों के बारे में भी बात करूँगा।

अध्याय 12

1 हे भाइयों, मैं चाहता हूँ कि आप आत्मिक उपहारों के बारे में जानें।
2 आपको याद है कि आप अन्यजाति लोग थे। और उस समय गूंगी मूर्तियों ने आपको गुमराह किया। आपने उनकी पूजा ऐसे की जैसे कोई आप से ऐसा करने के लिए कह रहा हो।
3 और आपको यह जानना चाहिए। जो व्यक्ति परमेश्वर की आत्मा में होकर बोलता है वह यीशु को श्राप नहीं दे सकता। और जब कोई व्यक्ति यीशु को प्रभु की तरह स्वीकार करता है तब यह सिर्फ़ पवित्र आत्मा के कारण ही होता है।
4 विश्वासियों के पास अलग-अलग उपहार होते हैं। लेकिन यह एक ही आत्मा है जो उन्हें ये सारे उपहार देती है।
5 हम अलग-अलग सेवाओं में भाग लेते हैं लेकिन हम एक ही प्रभु की सेवा करते हैं।
6 प्रभु अलग-अलग तरीके से काम करता है। लेकिन यह एक ही परमेश्वर है जो अपना काम हम सभी के अन्दर करता है।
7 आत्मा हम में से हर एक में अपनी उपस्थिति को प्रकट करती है और यह हम सभी को लाभ पहुँचाती है।
8 आत्मा एक विश्वासी को बुद्धि की बातें देती है। यही आत्मा दूसरे विश्वासी को ज्ञान की बातें देती है।
9 किसी को विश्वास मिलता है जो उसी आत्मा से आता है। और किसी दूसरे व्यक्ति को यही आत्मा चंगाई का उपहार देती है।
10 किसी और को चमत्कार करने की क्षमता मिलती है। एक विश्वासी को आत्मा भविष्यवाणी का उपहार देती है। और दूसरे को वह आत्माओं को पहचानने का उपहार देती है। और किसी और को अलग-अलग भाषाओं में प्रार्थना करने की अलौकिक क्षमता मिलती है। और दूसरे विश्वासी को अनजानी भाषा में प्रार्थना का अनुवाद करने का उपहार मिलता है।
11 यह वही आत्मा है जो इन सभी आत्मिक उपहारों के द्वारा काम करती है। और यह वही आत्मा है जो फ़ैसला करती है कि हर एक विश्वासी को उपहार कैसे बाँटने है।
12 मानव शरीर के कई अंग होते हैं और वे सभी मिलकर एक शरीर को बनाते हैं। मैं चर्च के बारे में भी यही कह सकता हूँ। चर्च मसीह का एक शरीर है जिसमें कई अलग-अलग अंग हैं। और मसीह के शरीर के सभी अंगों को एक साथ मिलकर एक दूसरे के साथ काम करना है।
13 हमारे बीच में यहूदी, अन्यजाति, गुलाम और आज़ाद लोग हैं। लेकिन वह एक ही आत्मा है जिसने हम सभी को बपतिस्मा दिया ताकि हम मसीह का एक शरीर बन जाएं। और हम सभी एक ही आत्मा से पीते हैं।
14 मानव शरीर में एक नहीं लेकिन कई अंग होते हैं।
15 मान लीजिए कि पैर कहे, “मैं वह नहीं कर सकता जो हाथ करता है इसलिए मैं शरीर का हिस्सा नहीं।” पैर और हाथ अलग-अलग काम करते हैं लेकिन वे एक ही शरीर के अंग हैं।
16 मान लीजिए कि कान कहे, “मैं वह नहीं कर सकता जो आँख करती है इसलिए मैं शरीर का हिस्सा नहीं।” कान और आँखें अलग-अलग काम करते हैं लेकिन वे एक ही शरीर के अंग हैं।
17 अगर पूरा शरीर आँख बन जाए तो हम कैसे सुनेंगे? और अगर पूरा शरीर कान बन जाए तो हम अलग-अलग महक को कैसे पहचान पाएंगे?
18 शरीर के कई अंग होते हैं। और परमेश्वर ने शरीर के हर एक अंग को एक खास स्थान पर रखने की योजना बनाई।
19 मान लीजिए कि शरीर के सभी अंग एक जैसे बन जाएं। ऐसा शरीर कैसे काम कर सकता है?
20 शरीर के कई अलग-अलग अंग होते हैं और सभी एक शरीर को बनाते हैं।
21 आँख नहीं कह सकती, “हे हाथ, मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं।” और सिर भी यह नहीं कह सकता, “हे पैर, मुझे तुम्हारी ज़रूरत नहीं।”
22 और हम सोच सकते हैं कि जो अंग हमारे जीवन का आधार हैं वे हमारे शरीर के दूसरे अंगों की तरह महत्वपूर्ण नहीं।
23 और अगर हम अपने शरीर में कोई कमीं देखते हैं तो हम अपने शरीर के इस अंग की ज़्यादा देखभाल करते हैं।
24 और हमारे शरीर के दूसरे अंगों को किसी खास देखभाल की ज़रूरत नहीं होती। हम अपनी कमियों को और अपने शरीर के उन अंगों को कपड़ों के नीचे छिपाते हैं जिन्हें किसी को भी नहीं देखना चाहिए। परमेश्वर ने शरीर को इस तरह से बनाया है कि हम अपने शरीर के उन अंगों का खास ध्यान रखते हैं जिनको सच में देखभाल की ज़रूरत है।
25 हमारे शरीर के अंग एक दूसरे के साथ लड़ाई नहीं कर सकते। इसके बजाय, शरीर के सभी अंग एक दूसरे के लिए बराबर चिन्ता करते हैं।
26 इसलिए अगर हमारे शरीर के किसी अंग को दु:ख होता है तो शरीर के दूसरे अंगों को भी दु:ख होगा। और अगर हम अपने शरीर के किसी हिस्से पर ज़्यादा ध्यान देते हैं तो यह पूरे शरीर को लाभ पहुँचाता है।
27 आप सब मिलकर मसीह का शरीर हैं। और आप में से हर एक उसके शरीर का एक अलग अंग हैं।
28 सबसे पहले, परमेश्वर ने चर्च में प्रेरितों को नियुक्त किया। दूसरा, उसने भविष्यद्वक्ताओं को नियुक्त किया। और तीसरा, परमेश्वर ने शिक्षकों को नियुक्त किया। कुछ लोगों को उसने चमत्कार करने की क्षमता दी। दूसरों को परमेश्वर ने चंगाई का उपहार दिया। किसी और को उसने दूसरे लोगों की मदद करने की क्षमता दी। आपके बीच में ऐसे भी हैं जिन्हें परमेश्वर ने मार्गदर्शन करने की क्षमता दी। दूसरों को उसने अलग-अलग भाषाओं में प्रार्थना करने की अलौकिक क्षमता दी।
29 लेकिन क्या हम सभी प्रेरित, भविष्यद्वक्ता या शिक्षक बन गए? क्या हम सभी के पास चमत्कार करने की अलौकिक क्षमता है?
30 क्या हम सभी को चंगाई का उपहार मिला? क्या हम सभी के पास अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करने की अलौकिक क्षमता है? क्या हर कोई अनजानी भाषाओं में प्रार्थना का अनुवाद कर सकता है?
31 ऐसे उपहारों से पूरे दिल से एक दूसरे की सेवा करने का हर संभव प्रयास करें यह आपको सबसे अधिक लाभ पहुँचाएगा। और मैं आपको सबसे महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूँ ताकि आप सिद्ध मार्ग पर चल सकें।

अध्याय 13

1 अगर मैं लोगों और स्वर्गदूतों की अलग-अलग भाषाओं में प्रार्थना करता हूँ लेकिन मैं यह बिना प्यार के करता हूँ तो मैं परेशान करने वाली घंटी या शोर मचाने वाली थाली की तरह हूँ।
2 मान लीजिए कि मैं सब कुछ जानता हूँ क्योंकि मेरे पास भविष्यवाणी का उपहार है जो मेरे लिए सभी राज खोलता है। मान लीजिए कि मैं पहाड़ों को हिला सकता हूँ क्योंकि मेरे पास पूरा विश्वास है। लेकिन अगर मैं लोगों से प्यार के साथ व्यवहार नहीं करता तो मैं निकम्मा व्यक्ति हूँ।
3 जो मेरे पास है वह मैं सब कुछ दे सकता हूँ। मैं शहीद की तरह आग में जलकर मर सकता हूँ। लेकिन अगर मैं अपने आप को बिना प्यार के बलिदान करता हूँ तो यह बलिदान बेकार है।
4 जो प्यार करता है वह बहुत धीरज दिखाता है और लोगों के साथ दया से व्यवहार करता है। जो प्यार करता है वह दूसरों से ईर्ष्या नहीं करता, खुद की प्रशंसा नहीं करता और खुद पर घमंड नहीं करता।
5 जो प्यार करता है वह दूसरों का अपमान नहीं करता और अपनी इच्छा को दूसरे लोगों की इच्छा से ज़्यादा महत्व नहीं देता। जो प्यार करता है वह चिढ़ता नहीं और यह नहीं सोचता कि बुराई कैसे करें।
6 जो प्यार करता है वह अन्याय के जीतने पर दुखी होता है। जो प्यार करता है वह आनन्दित होता है जब सच्चाई की जीत होती है।
7 जो प्यार करता है वह सब कुछ माफ़ कर देता है और विश्वास कभी नहीं खोता। जो प्यार करता है वह हमेशा आशा रखता है और धीरज के साथ सभी कठिनाइयों से गुजरता है।
8 वह समय आएगा जब लोग भविष्यवाणी करना, अनजानी भाषा में प्रार्थना करना बन्द कर देंगे और उन्हें किसी ज्ञान की ज़रूरत नहीं होगी। लेकिन हम प्यार करना कभी नहीं छोड़ेंगे।
9 अभी हमारे पास पूरा ज्ञान नहीं। और जब हम भविष्यवाणी करते हैं तब हम सारी बातें नहीं देखते।
10 लेकिन जब सही समय आएगा तब जो कुछ अस्थायी है वह खत्म हो जाएगा।
11 बचपन में मैं बच्चे की तरह बात करता, सोचता और समझता था। लेकिन जब मैं आदमी बन गया तब मैंने बच्चे की तरह काम करना बन्द कर दिया।
12 अब हम भविष्य को धुंधली छाया की तरह देखते हैं जो मंद दर्पण में परछाई की तरह दिखाई देती है। लेकिन वह समय आएगा और तब हम सब कुछ साफ़-साफ़ देखेंगे जैसे कि हम एक दूसरे को आमने-सामने देखते हैं। अभी मेरे पास पूरा ज्ञान नहीं। लेकिन वह समय आएगा और मैं भी परमेश्वर को जानूँगा जैसे वह मुझे जानता है।
13 अब हमें विश्वास करना चाहिए, आशा रखनी चाहिए और प्यार करना चाहिए। लेकिन सबसे बढ़कर, हमें एक दूसरे के साथ प्यार से रहने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।

अध्याय 14

1 एक दूसरे से प्यार करने का हर संभव प्रयास करें। आत्मिक उपहार पाने की आपकी बड़ी इच्छा होनी चाहिए। और सबसे बढ़कर आपको भविष्यवाणी करने की इच्छा होनी चाहिए।
2 जो अनजानी भाषा में प्रार्थना करता है वह लोगों से नहीं लेकिन परमेश्वर से बात करता है। जब कोई व्यक्ति आत्मा में प्रार्थना करता है तब वह उन रहस्यों को बोलता है जिन्हें कोई भी समझ नहीं सकता।
3 लेकिन जो भविष्यवाणी करता है वह लोगों से बात करता है। भविष्यवाणी लोगों को मजबूत बनाती है। यह उत्साहित करती है और उनके दिलों में शान्ति लाती है।
4 जो अनजानी भाषा में प्रार्थना करता है वह खुद को मजबूत बनाता है। लेकिन जो भविष्यवाणी करता है वह पूरे चर्च को मजबूत बनाता है।
5 मैं चाहता हूँ कि आप सभी अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करें। लेकिन मैं और ज़्यादा चाहता हूँ कि आप भविष्यवाणी करें। भविष्यवाणी करने वाला अनजानी भाषा में प्रार्थना करने वाले से ज़्यादा चर्च को लाभ पहुँचाता है। लेकिन अनजानी भाषा में प्रार्थना चर्च को मजबूत भी बना सकती है। इस उद्देश्य के लिए जो भाषाओं में प्रार्थना करता है उसे चर्च में खुद अपनी प्रार्थना का अनुवाद करना चाहिए।
6 हे भाइयों, अगर मैं आप के पास आऊँ और अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करना शुरू करूँ तो इससे आप को कोई लाभ नहीं होगा। लेकिन अगर मैं आपके साथ कुछ प्रकाशन, ज्ञान, भविष्यवाणी या प्रचार बाटूँ तो यह आपके लिए उपयोगी होगा।
7 बांसुरी और वीणा को देखें जो बेजान वस्तुएं हैं। अगर वे धुन से बाहर बजेंगी तो कोई भी राग को नहीं पहचान पाएगा।
8 और अगर तुरही से साफ़ आवाज़ सुनाई न दे तो सैनिक लड़ाई के लिए तैयार नहीं होंगे।
9 यही बात आप पर लागू होती है। जब आप अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करते हैं तब कोई भी समझ नहीं सकता जो आप कहते हैं। आप हवा से बातें करने वाले ठहरते हैं।
10 दुनियाँ में अलग-अलग भाषाओं में बहुत से शब्द हैं और हर शब्द का अपना मतलब है।
11 लेकिन अगर मैं दूसरे व्यक्ति की भाषा नहीं समझता और वह मेरी भाषा नहीं समझता तो हम एक दूसरे के लिए विदेशी हैं।
12 आपकी बड़ी इच्छा है कि आत्मिक उपहार आप के द्वारा काम करें। लेकिन आपको ऐसे उपहारों की बहुतायत के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए जो आपके चर्च को मजबूत बनाएंगे।
13 इसलिए अगर कोई अनजानी भाषा में बात करता है तो उसे भाषा का अनुवाद करने का उपहार प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
14 जब मैं अनजानी भाषा में बोलता हूँ तब सिर्फ़ मेरी आत्मा प्रार्थना करती है। लेकिन जो मैं कह रहा हूँ उसे मेरा दिमाग नहीं समझता।
15 इसलिए मुझे प्रार्थना कैसे करनी चाहिए? मैं आत्मा में अनजानी भाषा में प्रार्थना करूँगा। और मैं अपने दिमाग से भी प्रार्थना करूँगा और उन शब्दों को बोलूँगा जिन्हें मैं समझता हूँ। मैं आत्मा में अनजानी भाषा में गाऊँगा। और मैं अपने दिमाग से भी ऐसी भाषा में गाऊँगा जिसे मैं समझता हूँ।
16 जब आप अनजानी भाषा में प्रार्थना करते हैं तब आप परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं और उसे आत्मा में धन्य कहते हैं। लेकिन मान लीजिए कि आपके पास कोई व्यक्ति है जो आत्मिक उपहारों का मतलब नहीं समझता। वह आपकी प्रार्थना को समझ नहीं पाएगा और वह “आमीन” नहीं कहेगा।
17 जब आप भाषाओं में प्रार्थना करते हैं तब आप अच्छी तरह से परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं। लेकिन ऐसी प्रार्थना दूसरे व्यक्ति को मजबूत नहीं बना सकती।
18 मैं अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ क्योंकि मैं आप सभी से ज़्यादा अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करता हूँ।
19 लेकिन जब मैं चर्च आता हूँ तब मैं चाहता हूँ कि दूसरे लोग कुछ सीखें। इसलिए मैं चर्च में अनजानी भाषा में बहुत सारे शब्द बोलने से अच्छा समझ में आने वाले पाँच शब्द कहूँगा।
20 हे भाइयों, आपको बुराई नहीं करनी चाहिए। बच्चों की तरह निर्दोष बनें। लेकिन आत्मिक उपहारों के बारे में आपको बडों की तरह होना चाहिए, न कि बच्चों की तरह।
21 प्रभु ने शास्त्रों में कहा, “मैं उन लोगों के द्वारा इस राष्ट्र से बात करूँगा जो अनजानी भाषाओं में बोलते हैं। और यह राष्ट्र मुझ पर विश्वास नहीं करेगा।”
22 भाषाएँ अलौकिक घोषणा हैं। लेकिन यह उपहार किसी अविश्वासी को बदल नहीं सकता और उसे विश्वासी नहीं बना सकता। लेकिन भविष्यवाणी किसी अविश्वासी को प्रभावित कर सकती है और उसे विश्वासी बना सकती है।
23 मान लीजिए कि पूरा चर्च एक साथ आता है और हर कोई अनजानी भाषाओं में बोलना शुरू कर देता है। और इस समय कुछ अविश्वासी या ऐसे लोग आपके पास आएं जो आत्मिक उपहारों का मतलब नहीं समझते। क्या वे नहीं कहेंगे कि आप पागल हैं?
24 लेकिन मान लीजिए कि चर्च में हर एक भविष्यवाणी करता है। और इस समय कुछ अविश्वासी या ऐसे लोग आपके पास आएं जो आत्मिक उपहारों के बारे में कुछ नहीं जानते। भविष्यवाणी के कारण वे महसूस करेंगे कि वे पापी हैं। और वे अपने जीने के तरीके के बारे में सोचेंगे।
25 भविष्यवाणी व्यक्ति के गुप्त विचारों को प्रकट करेगी जो वह अपने दिल में छिपाता है। और तब यह व्यक्ति परमेश्वर के सामने घुटने टेककर कहेगा, “सच में, परमेश्वर आप के बीच में मौजूद है।”
26 हे भाइयों, मैं आपको यह बताना चाहता हूँ। जब आप एक साथ होते हैं तब हर कोई गीत के साथ परमेश्वर की महिमा कर सकता है। आप में से कुछ प्रचार कर सकते हैं और दूसरा व्यक्ति प्रकाशन बाँट सकता है। एक व्यक्ति अनजानी भाषा में प्रार्थना कर सकता है और दूसरा वाला इस भाषा का अनुवाद कर सकता है। और जो कुछ आप करते हैं उससे आपका चर्च मजबूत बनना चाहिए।
27 दो या ज़्यादा से ज़्यादा तीन लोग अनजानी भाषा में प्रार्थना कर सकते हैं। और जो कुछ उन्होंने कहा है कोई और उसका अनुवाद करे।
28 शायद आपके बीच में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो अनजानी भाषाओं में प्रार्थना का अनुवाद कर सकता है। इस मामले में, ज़ोर से अनजानी भाषाओं में प्रार्थना न करें ताकि पूरा चर्च आपको सुनें। लेकिन चुपचाप प्रार्थना करें और भाषाओं में परमेश्वर से बात करें, न कि चर्च से।
29 दो या तीन भविष्यवक्ताओं को प्रभु का वचन बोलने दें। और जो भविष्यवक्ताओं ने कहा है बाकी लोग उसकी चर्चा करें।
30 मान लीजिए कि परमेश्वर चर्च में किसी और को प्रकाशन देगा। इस मामले में, जिसने पहले बोलना शुरू किया, उसे रुकना चाहिए और अगले व्यक्ति को बोलने का मौका देना चाहिए।
31 आप सब एक के बाद एक भविष्यवाणी कर सकते हैं। और इस तरह से, आप सब एक दूसरे से सीखेंगे और आप सब को उत्साह मिलेगा।
32 हर भविष्यवक्ता अपने भविष्यवाणी के उपहार को काबू कर पाने के योग्य है।
33 परमेश्वर गड़बड़ी नहीं फैलाता। इसके बजाय, वह अनुशासन और शान्ति स्थापित करता है। ऐसे नियम सभी चर्चों में लागू होने चाहिए जहाँ परमेश्वर के पवित्र लोग इकट्ठा होते हैं।
34 जब औरतें चर्च में आती हैं तब उन्हें सुनना चाहिए और बात नहीं करनी चाहिए। चर्च की सभा के समय उन्हें अनुशासन नहीं तोड़ना चाहिए। मूसा का कानून भी इसके बारे में बोलता है।
35 अगर सभा के समय किसी औरत के पास कोई सवाल है तो उसे घर पर अपने पति से इसके बारे में पूछना चाहिए। औरत को दूसरे लोगों को टोकने और चर्च में अनुशासन तोड़ने के लिए शर्म महसूस करनी चाहिए।
36 आप पहली नहीं थी जिसने परमेश्वर के वचन का प्रचार करना शुरू किया। और आप पहली नहीं थी जिसने परमेश्वर का वचन सुना।
37 आपके चर्च में ऐसे लोग हैं जो खुद को भविष्यवक्ता या आत्मिक लोग मानते हैं। इस मामले में, उन्हें समझना चाहिए कि मैं आपको वे आज्ञाएँ लिख रहा हूँ जो प्रभु ने हमें दिए।
38 और अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं अपनाता तो परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को नहीं अपनाएगा।
39 हे भाइयों, भविष्यवाणी करने का हर संभव प्रयास करें। और अनजानी भाषाओं में प्रार्थना करने से भी मना न करें।
40 लेकिन आपको अपनी सभाएँ सही तरीके से करनी चाहिए और गड़बड़ी नहीं फैलानी चाहिए।

अध्याय 15

1 हे भाइयों, मैंने आपको मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार किया। और मैं आपको याद दिलाता हूँ कि आपने इसे अपनाया और अब आप दृढ़ता से इस पर विश्वास करते हैं।
2 इस खबर के कारण आपने उद्धार पाया। लेकिन जैसे मैंने आपसे कहा और प्रचार किया उस पर आपको विश्वास करना है। और अगर आप किसी और पर विश्वास करें तो ऐसा विश्वास आपको बचा नहीं पाएगा।
3 सबसे पहले, मैंने आपको सबसे महत्वपूर्ण बातें सिखाईं जो मुझे परमेश्वर से मिलीं। शास्त्र कहते हैं कि मसीह हमारे पापों के लिए मर गया।
4 शास्त्र यह भी कहते हैं कि मसीह को दफनाया गया लेकिन तीसरे दिन मसीह फिर से जीवित हो गया।
5 उसके बाद वह पतरस को दिखाई दिया और फिर बारह प्रेरितों को दिखाई दिया।
6 उसके बाद मसीह दूसरे भाइयों को भी दिखाई दिया। उसी समय 5,000 से अधिक लोगों ने उसको देखा। इनमें से ज़्यादातर लोग अभी भी जीवित हैं और कुछ मर गये।
7 उसके बाद मसीह याकूब को दिखाई दिया और सभी प्रेरितों को भी दिखाई दिया।
8 और अंत में, मसीह मुझे भी दिखाई दिया। लेकिन जैसे गर्भपात वाला बच्चा जी नहीं सकता और सेवा नहीं कर सकता, वैसे ही मैं भी मसीह के लिए जीने और उसकी सेवा करने के योग्य नहीं था।
9 मैं सभी प्रेरितों में से सबसे तुच्छ हूँ। और मैं प्रेरित कहलाने के लायक नहीं क्योंकि मैं परमेश्वर के चर्च को सता रहा था।
10 लेकिन परमेश्वर के अनुग्रह ने मुझे बदल दिया और मुझे अलग व्यक्ति बना दिया। यह बेकार नहीं था कि परमेश्वर ने अपना अनुग्रह मेरे जीवन में उंडेल दिया। मैंने दूसरे सभी प्रेरितों से ज़्यादा मेहनत की। लेकिन सच में, मैं इसका श्रेय नहीं ले सकता क्योंकि यह परमेश्वर का अनुग्रह था जिसने मेरे द्वारा काम किया और हमेशा मेरे साथ था।
11 यह मायने नहीं रखता कि आपको मसीह के बारे में किसके द्वारा बताया गया – मेरे द्वारा या दूसरे प्रेरितों के द्वारा। हम सभी उसी सन्देश का प्रचार करते हैं जिस पर आपने विश्वास किया।
12 हमने आपको सिखाया कि मसीह मरे हुओं में से जी उठा। लेकिन आप में से कुछ लोग क्यों कहते हैं कि मरे हुए लोग फिर नहीं जी उठेंगे?
13 अगर मरे हुए लोग नहीं जी उठते हैं तो मसीह भी नहीं जी उठा।
14 और अगर मसीह नहीं जी उठा तो हमारे प्रचार का कोई मतलब नहीं और आपके विश्वास का भी कोई मतलब नहीं।
15 मान लीजिए कि परमेश्वर मरे हुए लोगों को नहीं जिलाएगा। इसका मतलब है कि परमेश्वर ने मसीह को भी नहीं जिलाया। इस मामले में, अगर हम प्रचार करते हैं कि परमेश्वर ने मसीह को जिलाया तो हम झूठे गवाह बन जाते हैं क्योंकि हम परमेश्वर के बारे में झूठ बोल रहे हैं।
16 अगर मरे हुए लोग नहीं जी उठते तो मसीह भी नहीं जी उठा।
17 और अगर मसीह नहीं जी उठा तो आपके विश्वास का कोई मतलब नहीं। और आप अब भी अपने पापों में जीते हैं।
18 इस मामले में, जो लोग मसीह पर विश्वास करते थे और मर गए, वे हमेशा के लिए नष्ट हो गए।
19 अगर हम सिर्फ़ इस जीवन में मसीह पर आशा रखते हैं तो हम सभी लोगों से सबसे अभागे हैं।
20 लेकिन मसीह पहला व्यक्ति बना जो मरे हुओं में से जी उठा। हम मरेंगे लेकिन हम उसी तरह से फिर से जीवित हो जाएंगे जैसे वह हुआ।
21 मौत एक आदमी के द्वारा इस दुनियाँ में आई। उसी तरह से मरे हुओं में से जी उठना भी एक आदमी के द्वारा इस दुनियाँ में आया।
22 जैसे आदम के कारण हर कोई मरता है वैसे ही मसीह में हर कोई जीवित रहेगा।
23 परमेश्वर सभी लोगों को विशेष क्रम में जिलाता है। मसीह पहला व्यक्ति बना जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया। और जब मसीह पृथ्वी पर आएगा तब परमेश्वर उन लोगों को जीवित करेगा जो मसीह के हैं।
24 और उसके बाद अन्त आ जाएगा। मसीह हर एक शासक, अधिकार और शक्ति को नष्ट कर देगा। और वह राज्य को पिता परमेश्वर को वापस कर देगा।
25 मसीह तब तक राज करेगा जब तक वह अपने सभी दुश्मनों को हरा न दे और जब तक वे उसके पैरों के नीचे न जाएं।
26 मौत आखिरी दुश्मन है जिसे मसीह नाश कर देगा।
27 शास्त्र कहते हैं कि परमेश्वर ने सब कुछ मसीह के पैरों के नीचे कर दिया। लेकिन यह साफ़ है कि परमेश्वर खुद मसीह की आज्ञा का पालन नहीं करता।
28 परमेश्वर ने अपने बेटे को अधिकार दिया। और जब हर चीज़ मसीह की आज्ञा का पालन करेगी तब बेटा परमेश्वर को अपना अधिकार वापस दे देगा। उसके बाद परमेश्वर हर जगह और हर चीज़ पर राज करेगा।
29 जब विश्वासी लोग पानी का बपतिस्मा लेते हैं तब उनमें से कुछ को सताया जाता है और वे मसीह के लिए मर जाते हैं। लेकिन नए विश्वासी आते हैं और उनकी जगह ले लेते हैं। वे जानते हैं कि लोग उनके बपतिस्मे के बाद उन्हें भी मार सकते हैं। लेकिन वे विश्वास करते हैं कि वे फिर से जीवित होंगे।
30 हर घंटे हम खतरे का सामना करते हैं। और हम भी विश्वास करते हैं कि अगर हम मर जाएं तो हम फिर से जीवित होंगे।
31 हे भाइयों, मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि हर दिन मैं मौत के खतरे का सामना कर रहा हूँ। लेकिन मैं आनन्दित हूँ कि आप हमारे प्रभु यीशु मसीह के पास आए।
32 जब मैं इफिसुस शहर में था तब जंगली जानवरों ने मुझ पर हमला किया और मैं उनसे लड़ रहा था। लेकिन मुझे भरोसा था कि अगर मैं मर जाऊँगा तो मैं फिर से जीवित हो जाऊँगा। अगर हम इसे इन्सान के नज़रिये से देखते हैं और विश्वास नहीं करते कि मरे हुए लोग जी उठेंगे तो हम मसीह के पीछे क्यों चलें? आइए, खाते-पीते हैं क्योंकि कल हम मर जाएंगे!
33 अपने आप को धोखा न दें, बुरे दोस्त अच्छे व्यक्ति को बिगाड़ देंगे।
34 आपको अपने जीने के तरीके के बारे में सोचना चाहिए। पाप करना बन्द करें। मैं आपको शर्म महसूस कराने के लिए ऐसा कह रहा हूँ क्योंकि आप में से कुछ लोग परमेश्वर को नहीं जानते।
35 शायद कोई व्यक्ति पूछेगा, “मरे हुए लोग कैसे जी उठेंगे? और उनके शरीर कैसे दिखाई देंगे?”
36 आप ऐसी आसान बातों को क्यों नहीं समझ सकते? जब हम कोई बीज बोते हैं तब पहले वह मरता है और फिर वह जी उठता है।
37 हम पौधे को जमीन में नहीं लगा रहे हैं लेकिन साधारण बीज को। उदाहरण के लिए, हम गेहूं का बीज या कोई दूसरा बीज बो सकते हैं।
38 परमेश्वर ने पहले से ठहराया कि पौधा कैसा दिखाई देगा। और अलग-अलग प्रकार के पौधे अलग-अलग बीजों से उगते हैं।
39 जीवित प्राणी भी अलग-अलग दिखाई देते हैं। मानव शरीर का रूप जानवरों, मछलियों या पक्षियों के शरीर के रूप से अलग होता है।
40 स्वर्गीय शरीर और सांसारिक शरीर भी हैं। लेकिन स्वर्गीय शरीरों की महानता सांसारिक शरीरों से अलग है।
41 सूरज एक प्रकार की रोशनी से चमकता है और चाँद और तारे दूसरी रोशनी से चमकते हैं। तारे भी अपने तेज में एक दूसरे से अलग होते हैं।
42 अगर आप बीज को देखेंगे तो आप समझ नहीं सकेंगे कि उसका पौधा कैसा दिखाई देगा। उसी तरह से मैं मरे हुओं के फिर से जीवित होने के बारे में कह सकता हूँ। लोग नाशवान शरीर को जमीन में गाड़ देते हैं लेकिन अमर शरीर फिर से जीवित हो जाएगा।
43 जब कोई व्यक्ति मर जाता है तब उसके शरीर में कोई महानता नहीं होती। लेकिन जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को जिलाएगा तब परमेश्वर उस व्यक्ति के शरीर को अपनी महिमा से भर देगा। जब कोई व्यक्ति मर जाता है तब उसका शरीर शक्तिहीन हो जाता है। लेकिन जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को जिलाएगा तब परमेश्वर उस व्यक्ति के शरीर को अपनी शक्ति से भर देगा।
44 व्यक्ति का बाहरी शरीर मर जाएगा लेकिन आत्मिक शरीर फिर से जीवित हो जाएगा। बाहरी शरीर और आत्मिक शरीर हैं।
45 शास्त्र कहते हैं, “आदम पहला व्यक्ति था जिसे सांसारिक जीवन मिला। और मसीह आखिरी आदम बना जो आत्मिक जीवन देता है।”
46 पहले बाहरी शरीर जन्म लेता है और उसके बाद आत्मिक शरीर जन्म लेता है लेकिन उल्टा नहीं।
47 पहला आदमी धरती से आया क्योंकि परमेश्वर ने उसे धरती की धूल से बनाया था। और दूसरा आदमी स्वर्ग से आया।
48 सांसारिक लोग सांसारिक आदम की तरह दिखाई देते हैं। और स्वर्गीय लोग मसीह की तरह दिखाई देते हैं जो स्वर्ग से आया था।
49 अभी हम आदम की तरह दिखाई देते हैं जिसे परमेश्वर ने मिट्टी से बनाया। लेकिन हम मसीह की तरह दिखाई देंगे जो स्वर्ग से आया था।
50 हे भाइयों, मैं कह रहा हूँ कि अभी हम बाहरी शरीर में रहते हैं जिसमें खून होता है। लेकिन जब हम परमेश्वर के राज्य में विरासत प्राप्त करेंगे तब हमारे सांसारिक शरीर वहाँ प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि नाशवान अविनाशी विरासत को नहीं पा सकता।
51 मैं आपको भेद की बात बताऊँगा। कुछ विश्वासी अपने सांसारिक जीवन में प्रभु के आगमन को देखेंगे। और फिर सभी जीवित और मरे हुए लोगों के शरीर अचानक बदल दिए जाएंगे।
52 यह तुरन्त होगा जब आखिरी तुरही फूंकी जाएगी। और फिर मरे हुए लोग हमेशा जीवित रहने के लिए जी उठेंगे। और जो विश्वासी प्रभु के आने के समय पृथ्वी पर जीवित रहेंगे, वे बदल जाएंगे।
53 अभी हमारे शरीर मौत के पीछे चलते हैं। लेकिन विश्वासियों को ऐसे शरीर प्राप्त करने हैं जो कभी नहीं मरेंगे। हमारे नाशवान शरीरों को अमर होना है।
54 वह समय आएगा जब मरे हुए लोग अनन्त जीवन के लिए फिर से जीवित हो जाएंगे और वे नाशवान शरीर की जगह अमर शरीर को प्राप्त करेंगे। फिर जो वचन भविष्यवक्ताओं ने शास्त्र में लिखा है, वह पूरा होगा, “परमेश्वर ने विजय को जीता लिया और इसने मौत को नष्ट कर दिया।”
55 हे मौत, तू फिर कभी नहीं जीतेगी! हे मौत, तू फिर कभी अपना डंक नहीं मार पाएगी!
56 मूसा का कानून दिखाता है कि मानव जाती पाप की शक्ति के अधीन है। लोग पाप करते हैं इसलिए मौत उन्हें डंक मारती है।
57 लेकिन हमारे प्रभु यीशु मसीह ने पाप और मौत पर विजय पाई। और हम परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं जिसने हमें मसीह की विजय दी।
58 हे मेरे प्यारे भाइयों, परमेश्वर पर दृढ़ता से विश्वास करें और शक न करें। आपको जानना चाहिए कि जो कुछ भी आप प्रभु के लिए करते हैं वह फल लाएगा। इसलिए आपको हमेशा पूरे समर्पण के साथ उसके लिए काम करना चाहिए।

अध्याय 16

1 अब मैं यह बात करना चाहूँगा कि आपको यरूशलेम में रहने वाले परमेश्वर के पवित्र लोगों के लिए पैसा कैसे इकट्ठा करना चाहिए। जो आज्ञा मैंने गलातिया के चर्चों में दी थी, उसी का पालन करें।
2 जब मैं आप के पास आऊँगा तब मैं पैसे इकट्ठा नहीं करना चाहता। इसलिए सप्ताह के पहले दिन आप में से हर एक अपनी कमाई के अनुसार जितना हो सके पैसा अलग करें और बचा कर रखें।
3 जब मैं आप के पास आऊँगा तब मैं पत्र लिखूँगा और उन्हें उन लोगों के साथ भेजूँगा जिन्हें आप चुनेंगे। और वे यरूशलेम में आपकी आर्थिक मदद पहुँचाएंगे।
4 और अगर ज़रूरी होगा तो मैं भी यरूशलेम जाऊँगा। और तब आपके लोग मेरे साथ चलेंगे।
5 मैं मकिदुनिया होते हुए यात्रा करने की योजना बना रहा हूँ। और उसके बाद मैं आपसे मिलने आऊँगा।
6 हो सकता है कि मैं कुछ समय आप के साथ रहूँ। और शायद मैं पूरी सर्दी आपके साथ बिताऊँ। और उसके बाद मैं चाहता हूँ कि आप मेरी अगली यात्रा पर जाने में मेरी मदद करें।
7 मैंने फ़ैसला किया कि मैं अभी आप के पास नहीं आऊँगा क्योंकि यह यात्रा बहुत छोटी होगी। लेकिन अगर परमेश्वर चाहेगा तो मैं बाद में आपके पास आऊँगा। और मुझे आशा है कि मैं कुछ समय आपके साथ बिता सकूँगा।
8 मैं आपको यह पत्र इफिसुस से लिख रहा हूँ जहाँ मैं पिन्तेकुस्त के त्यौहार तक रहूँगा।
9 यहाँ परमेश्वर ने मेरे लिए बड़ा दरवाज़ा खोल दिया ताकि मैं बड़ा काम कर सकूँ। लेकिन कई लोग मेरा विरोध करते हैं।
10 शायद तीमुथियुस आप के पास आएगा। उसके साथ दोस्ताना व्यवहार करें ताकि वह शर्मिंदा महसूस न करें। वह प्रभु के लिए वैसे ही काम करता है जैसे मैं करता हूँ।
11 कोई भी तीमुथियुस का अनादर न करे। इसलिए शान्ति से उसे अलविदा कहें और मुझ तक पहुँचने में उसकी मदद करें। मैं दूसरे विश्वासियों के साथ मेरे पास आने के लिए उसका इन्तज़ार कर रहा हूँ।
12 मैंने भाई अपुल्लोस से विनती की कि भाइयों के साथ मिलकर आप से मिलने आए। लेकिन वह अभी आपके पास आना नहीं चाहता। वह आपके पास बाद में आएगा जब उसके पास ऐसा मौका होगा।
13 आत्मिक चीजों में अपनी रुचि न खोएं। जिस पर आप विश्वास करते हैं उसका दृढ़ता से पालन करें। निडर और मजबूत बनें।
14 जो कुछ भी आप करते हैं उसे प्यार से करें।
15 आप जानते हैं कि स्तिफनुस का परिवार पहला था जो अखया में मसीह की ओर फिरा। उन्होंने खुद को परमेश्वर के पवित्र लोगों की सेवा के लिए समर्पित किया।
16 हे भाइयों, मैं उनके जैसे लोगों से उदाहरण लेने के लिए आपसे कहता हूँ। उन लोगों के साथ मिलकर काम करें जो प्रभु की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं।
17 मैं इतना खुश हुआ जब स्तिफनास, फूरतूनातुस और अखिकुस मेरे पास आए। हमने इतना अच्छा समय बिताया कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि मैं आपसे मिलने के लिए गया हूँ।
18 उन्होंने मुझे आत्मिक रूप से उसी तरह से मजबूत किया जिस तरह से उन्होंने आपको मजबूत किया। इसलिए आपको ऐसे लोगों का आदर करना चाहिए।
19 एशिया के देश में स्थित चर्च आपको नमस्कार भेजते हैं। अक्किला और प्रिस्किला और सभी चर्च जो उनके घर पर इकट्ठा होते हैं वे भी आपको प्रभु में हार्दिक नमस्कार भेजते हैं।
20 सभी भाई आपको नमस्कार भेजते हैं। पवित्र चुम्बन के साथ एक दूसरे को नमस्कार करें।
21 मैं, पौलुस, आपको नमस्कार करता हूँ और अपने हाथ से इस पत्र पर हस्ताक्षर करता हूँ।
22 याद रखें जो प्रभु यीशु मसीह से प्रेम नहीं करता वह श्रापित है। हे हमारे प्रभु, आइए!
23 हमारे प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह में जियें।
24 मैं आप सभी से प्यार करता हूँ क्योंकि आप यीशु मसीह के हैं। आमीन।