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अध्याय 1

Chapter 1

1 मैं पौलुस हूँ और मैं यीशु मसीह का गुलाम बन गया। परमेश्वर ने मुझे बुलाहट दी और मुझे प्रेरित बनाया। उसने मुझे परमेश्वर के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करने के लिए चुन लिया।
2 बहुत समय पहले परमेश्वर ने अपने भविष्यवक्ताओं के द्वारा जो प्रकट किया था उसे पूरा करने का वादा किया। परमेश्वर ने उनसे अच्छी खबर के बारे में बात की और भविष्यवक्ताओं ने उसे पवित्र शास्त्र में लिखा।
3 और अच्छी खबर इसी के बारे में है। परमेश्वर का बेटा मनुष्य के शरीर में पैदा हुआ और राजा दाऊद की सन्तान बना।
4 और जब मसीह मरा तब परमेश्वर ने उसे पवित्र आत्मा की शक्ति से जीवित कर दिया। इसलिए हम जानते हैं कि हमारा प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर का बेटा है।
5 मसीह के द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली। यीशु के नाम से हम सभी राष्ट्रों में विश्वास ले जाते हैं और वे परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं।
6 यीशु मसीह ने आपको इन राष्ट्रों से अपने पास बुलाया।
7 मैं इस पत्र को हर एक को लिखता हूँ जो रोम में रहता है। परमेश्वर आप से प्यार करता है, उसने आपको अपने पास बुलाया और आपको पवित्र बनाया। हमारे परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह से अनुग्रह और शान्ति आपको मिले।
8 आप यीशु पर विश्वास करते हैं और पूरी दुनियाँ के द्वारा अपना विश्वास फैलाते हैं। इसलिए सबसे पहले, मैं यीशु मसीह के नाम में आप सभी के लिए अपने परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहता हूँ।
9 जब मैं परमेश्वर के बेटे के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करता हूँ तब मैं अपनी आत्मा से परमेश्वर की सेवा करता हूँ। और परमेश्वर जानता है कि मैं आपको याद करता हूँ और लगातार आप के लिए प्रार्थना करता हूँ।
10 मैं आपसे मिलना चाहता हूँ लेकिन मैं हमेशा परमेश्वर से उसकी योजनाओं के बारे में पूछता हूँ।
11 मुझे आपके साथ एक आत्मिक उपहार बाँटने की इच्छा है जो आपको मज़बूत बनाएगा। इसलिए मुझे आपसे मिलने की बड़ी इच्छा है।
12 तब मेरा विश्वास आपको मज़बूत बनाएगा और आपका विश्वास मुझे मज़बूत बनाएगा।
13 हे भाइयों, आपको पता होना चाहिए कि मैंने कई बार आपसे मिलने की योजनाएँ बनाईं। लेकिन अब तक मुझे कुछ स्र्कावटों का सामना करना पड़ रहा है। मैंने दूसरे राष्ट्रों में अपने काम का परिणाम देखा है। और मैं आप के बीच में भी काम करना चाहूँगा।
14 मुझे सभ्य अन्यजाति लोगों, जंगली जनजातियों, पढ़े लिखे और अनपढ़ लोगों को प्रचार करना है।
15 इसलिए मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं मसीह की अच्छी खबर को आप के पास भी लाऊँ जो रोम में रहते हैं।
16 मैं मसीह के बारे में अच्छी खबर को फैलाने से नहीं डरता। जब मैं इस खबर का प्रचार करता हूँ तब परमेश्वर अपनी शक्ति से काम करता है। और परमेश्वर की शक्ति हर एक को बचाती है जो यीशु पर विश्वास करता है। सबसे पहले, यह यहूदी लोगों के बारे में कहता है लेकिन यह अन्यजाति लोगों के बारे में भी कहता है।
17 जो मसीह के बारे में अच्छी खबर पर विश्वास करेगा वह परमेश्वर की धार्मिकता को पाएगा। और व्यक्ति तब तक धर्मी बना रहेगा जब तक वह विश्वास करता रहेगा। शास्त्र कहते हैं, “धर्मी व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास करता है। धर्मी व्यक्ति अपना जीवन परमेश्वर के लिए जीता है।”
18 लेकिन नास्तिक लोग बुराई करते हैं। वे अपने बुरे कामों से सच्चाई की आवाज़ को दबा देते हैं। इसलिए परमेश्वर स्वर्ग से लोगों के अविश्वास और उनके सभी नीच कामों से गुस्सा हो रहा है।
19 लोग समझ सकते हैं कि परमेश्वर कौन है क्योंकि परमेश्वर ने लोगों को साफ़ रूप से दिखाया है कि वे उसके बारे में कैसे सीख सकते हैं।
20 परमेश्वर ने इस दुनियाँ को बनाया। और जब लोग परमेश्वर की रचना को देखते हैं तब सारी रचना साफ़ रूप से अनदेखे परमेश्वर, उसकी अनन्त शक्ति और उनके चरित्र के बारे में बताती हैं। इसलिए कोई भी नहीं कह सकता कि वह परमेश्वर की मौजूदगी के बारे में नहीं जानता था।
21 लोगों की समझ में आया कि परमेश्वर है और वह महिमा के योग्य है। लेकिन उन्होंने परमेश्वर की महिमा नहीं की और उसे धन्यवाद नहीं दिया। लोगों ने फालतू चीज़ों के बारे में सोचा और उनके बेवकूफ दिल अन्धकार से भर गये।
22 लोगों ने कहा कि वे बुद्धिमान हो गए लेकिन सच में वे पागल हो गए।
23 लोगों के अंदर अविनाशी परमेश्वर की महिमा करने की कोई इच्छा नहीं थी इसलिए उन्होंने नाशवान आदमी के रूप में परमेश्वर की मूर्तियाँ बनाई। उन्होंने पक्षियों, जानवरों और सांपों के रूप में भी मूर्तियाँ बनाईं।
24 इसलिए परमेश्वर लोगों से दूर हो गया। और लोगों ने वासना भरी इच्छाओं से अपने दिलों को भर लिया। लोगों ने भ्रष्ट जीवन जीना और अपने शरीर के साथ शर्मनाक काम करना शुरू कर दिया।
25 परमेश्वर ने इस दुनियाँ को बनाया इसलिए वह अनन्त महिमा के योग्य है। आमीन। लेकिन लोगों ने परमेश्वर की सच्चाई को झूठ से बदल दिया। वे सृष्टिकर्ता की बजाय सृष्टि की पूजा और सेवा करने लगे।
26 इसलिए परमेश्वर लोगों से दूर हो गया और उन्होंने खुद को शर्मनाक इच्छाओं से भर लिया। महिलाओं ने आदमियों के साथ प्राकृतिक रिश्तों को अप्राकृतिक रिश्तों के लिए बदल दिया।
27 आदमियों ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने महिलाओं के साथ प्राकृतिक संबंध बनाने से इनकार किया। आदमी एक दूसरे के लिए वासना भरी इच्छाओं से जलने लगे और उन्होंने गलत यौन संबंध बनाये। वे भटक गये और अपने अंदर उन्हें वह सजा मिलनी चाहिए जिसके वे लायक हैं।
28 लोग परमेश्वर को जानना नहीं चाहते थे इसलिए परमेश्वर उन से दूर हो गया। लोग यौन अशुद्धता के बारे में सोचने लगे और जो करने से मना किया गया था वही करने लगे।
29 लोग खुद को अलग-अलग तरह के पापों से भर लेते हैं। वे गलत यौन संबंधों में भाग लेते हैं। वे दुष्ट और लालची हैं। वे दूसरे लोगों से नफ़रत करते हैं और एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं। वे एक दूसरे से झगड़ा करते हैं, धोखा देते हैं और एक दूसरे की हत्या करते हैं। और जब कोई दूसरा व्यक्ति मुसीबत में पड़ता है तब वे खुशी मनाते हैं।
30 लोग चुगली करते और झूठे आरोप फैलाते हैं। वे परमेश्वर से नफ़रत करते हैं और वे दूसरों के साथ बेरहम हैं। वे घमंड करते हैं और खुद को एक दूसरे से ऊपर रखते हैं। वे बुरी योजनाएँ बनाते हैं और अपने माता-पिता का विरोध करते हैं।
31 लोग बेवकूफी भरे काम करते हैं और अपने वादे तोड़ देते हैं। वे किसी से भी प्यार नहीं करते, वे दुश्मनी से भरे हुए हैं और किसी पर दया नहीं करते।
32 ऐसे लोग जानते हैं कि परमेश्वर हर व्यक्ति का ईमानदारी से न्याय करता है। वे जानते हैं कि जो व्यक्ति ऐसे काम करता है वह मौत का हकदार है। लेकिन वे फिर भी इन कामों को करते हैं। और वे उन को ठीक समझते हैं जो उनकी तरह व्यवहार करते हैं।
1 I, Paul, became a slave of Jesus Christ when God called me to Himself. He appointed me as an apostle and chose me to preach His Good News.
2 Long ago God promised to fulfill what He revealed through His prophets. He spoke to them about the Good News, and they wrote it down in the Holy Scriptures.
3 And this is what the Good News is about. The Son of God was born in the human body and became the descendant of King David.
4 And when Christ died, God resurrected Him by the power of the Holy Spirit. That is why we know that our Lord Jesus Christ is the Son of God.
5 Through Christ we received grace and apostleship. In the name of Jesus we bring faith to all the nations, and they obey God.
6 Jesus Christ called you to Himself from these nations.
7 I write this letter to everyone who lives in Rome. God loves you, He called you to Himself and made you holy. Receive grace and peace from our God the Father and the Lord Jesus Christ.
8 You believe in Jesus and spread your faith through all the world. That is why first of all, in the name of Jesus Christ I want to thank my God for all of you.
9 When I preach the Good News about the Son of God, I serve God with my spirit. And God knows that I remember you and constantly pray for you.
10 I would like to visit you, but I always ask God about His plans.
11 I have a desire to share with you a spiritual gift which can strengthen you. So I would like to see you very much.
12 Then my faith will make you strong, and your faith will make me strong.
13 Brothers, you should know that I planned to visit you many times. But until now I faced some obstacles. I can see the results of my work among other nations. And I also would like to work among you.
14 I must preach to the civilized Gentiles, the wild tribes, the educated, and the uneducated people.
15 So I have a strong desire to bring the Good News about Christ to you also who live in Rome.
16 I am not afraid to spread the Good News about Christ. When I preach this News, God works by His power. And the power of God saves everyone who believes in Jesus. First, it refers to the Jews, but it also refers to the Gentiles.
17 The one who will believe in the Good News about Christ will receive the righteousness of God. And a person will remain righteous as long as he believes. The Scriptures say, “The righteous person believes in God. The righteous person lives for God.”
18 But godless people do evil. They silence the voice of the truth with their evil deeds. That is why God is getting angry from heaven at people's unbelief and at all their wicked deeds.
19 People are able to understand who God is because He clearly showed them how they can learn about Him.
20 God created this world. When people look at God’s creation, all creation clearly speaks about the invisible God, His eternal power, and His character. So no one can say that he did not know about the existence of God.
21 People understood that God exists, and He is worthy of glory. But they did not glorify Him and did not give thanks to Him. People thought about foolish things, and darkness filled their foolish hearts.
22 People said that they became wise, but in fact they became insane.
23 People had no desire to glorify the immortal God, so they made images of God in the form of a mortal man. They also made idols in the form of birds, animals and snakes.
24 So God turned away from the people who filled their hearts with lustful desires. People started living an immoral lifestyle and doing shameful things with their bodies.
25 God created this world that is why He is worthy of eternal glory. Amen. But people replaced the truth of God with a lie. They worshiped and served the creation instead of the Creator.
26 That is why God turned away from the people, and they filled themselves with shameful desires. Women replaced natural relationships with men for unnatural relationships.
27 Men did the same. They refused to have natural relationships with women. Men burned with lustful desires for each other and made perverted relationships. They fell into delusion, and within themselves they must receive the punishment which they deserve.
28 People did not want to know who God is that is why He turned away from them. People started thinking about sexual impurity and doing what was forbidden to do.
29 People fill themselves with various kind of sins and live an immoral lifestyle. They are evil and greedy. They hate others and envy one another. They quarrel, cheat and commit murder. They rejoice when another person faces trouble.
30 People spread gossip and false accusations. They hate God, and they are cruel to others. They boast and put themselves above one another. They make evil plans and rebel against their parents.
31 People do foolish things and break their promises. They love no one, they are hostile towards one another and do not have pity on anyone.
32 Such people know that God judges every person with justice. They know that those who do such things deserve death. But they do evil anyway and approve those who act like them.

अध्याय 2

Chapter 2

1 आपके पास दूसरे व्यक्ति पर दोष लगाने का कोई बहाना नहीं होगा क्योंकि जैसे वह पाप करता है वैसे ही आप भी पाप करते हैं। इसलिए जब आप दूसरे लोगों पर दोष लगाते हैं तब आप खुद पर भी दोष लगाते हैं।
2 हम जानते हैं कि परमेश्वर उन सभी का ईमानदारी से न्याय करेगा जो बुरे काम करते हैं।
3 आप दूसरे लोगों का न्याय करते हैं लेकिन आप भी वैसे ही पाप करते हैं जैसे वे करते हैं। क्या आप सोचते हैं कि आप परमेश्वर के न्याय से बच जाएंगे?
4 परमेश्वर की महान दया को तुच्छ न समझें। जब वह आपको माफ़ करता है और आपको अपना महान धीरज दिखाता है तब उसे तुच्छ न समझें। क्या आप नहीं समझते कि परमेश्वर की दया आपको मन फिराव की ओर ले जाती है?
5 लेकिन आप ज़िद्दी बन जाते हैं और आप अपने दिल में अपने पाप से मन नहीं फिराते। आप अपने खिलाफ़ परमेश्वर के क्रोध को इकट्ठा करते हैं। और जब परमेश्वर ईमानदारी से आपका न्याय करेगा उस दिन वह आपको अपना क्रोध दिखाएगा।
6 न्याय के दिन हर व्यक्ति परमेश्वर से वह पाएगा जिसके वह लायक है।
7 परमेश्वर उस व्यक्ति को अनन्त जीवन देगा जो धीरज से अच्छा काम करता है और परमेश्वर की महिमा करता है। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर का आदर करता है और अनंत जीवन में प्रवेश करने का हर संभव प्रयास करता है।
8 लेकिन अगर कोई व्यक्ति मतलबी रूप से व्यवहार करता है, सच्चाई का पालन नहीं करता और बुरे काम करता है तो परमेश्वर अपने क्रोध और गुस्से को ऐसे व्यक्ति पर निकालेगा।
9 अगर कोई व्यक्ति बुराई करता है तो उसका प्राण दु:ख उठाएगा और वह कठिन परिस्थितियों में जीवन जिएगा। सबसे पहले, यह यहूदी लोगों के बारे में कहता है लेकिन यह अन्यजाति लोगों के बारे में भी कहता है।
10 लेकिन जो व्यक्ति अच्छा काम करता है वह परमेश्वर की महिमा को देखेगा। लोग उसका आदर करेंगे और वह शान्ति से अपना जीवन जिएगा। सबसे पहले, यह यहूदी लोगों के बारे में कहता है लेकिन यह अन्यजाति लोगों के बारे में भी कहता है।
11 परमेश्वर सभी लोगों के साथ न्याय से व्यवहार करता है।
12 अन्यजाति लोगों के पास मूसा का कानून नहीं था। इसलिए परमेश्वर उनका न्याय कानून के अनुसार नहीं करेगा। लेकिन अन्यजाति लोगों ने पाप किया, इसलिए वे नाश होंगे। यहूदी लोगों के पास मूसा का कानून था। लेकिन उन्होंने भी पाप किया और कानून को तोड़ा। इसलिए परमेश्वर कानून के अनुसार यहूदी लोगों का न्याय करेगा।
13 अगर कोई व्यक्ति कानून को सुनता है और पाप में जीता है तो परमेश्वर ऐसे व्यक्ति का न्याय करेगा। परमेश्वर सिर्फ़ उसी को धर्मी बनाएगा जो मूसा के कानून को मानता है।
14 यीशु पर विश्वास करने वाले अन्यजाति लोगों के पास मूसा का कानून नहीं था। लेकिन वे अपने स्वभाव से वही करते हैं जो कानून कहता है। वे अपने दिल के अन्दर कानून को जानते हैं।
15 परमेश्वर ने मसीह पर विश्वास करने वाले अन्यजाति लोगों के दिलों में अपना कानून लिखा। इसलिए उनकी अंतरात्मा उन्हें बताती है कि वे सही काम करते हैं या गलत काम करते हैं। एक परिस्थिति में, उनके विचार उन पर आरोप लगाते हैं और दूसरी परिस्थिति में, उनके विचार बताते हैं कि वे सही कर रहे हैं। इस तरह से अन्यजाति लोग दिखाते हैं कि वह कानून उनके दिलों में काम करता है।
16 मैं मसीह के बारे में अच्छी खबर का प्रचार करता हूँ। और मैं कहता हूँ कि वह दिन आएगा जब परमेश्वर यीशु मसीह के द्वारा लोगों के गुप्त कामों का न्याय करेगा।
17 आप खुद को यहूदी कहते हैं और आप खुद को तसल्ली देते हैं कि आप मूसा के कानून को जानते हैं। आप परमेश्वर पर अपने विश्वास के बारे में घमंड करते हैं।
18 आप जानते हैं कि परमेश्वर क्या करना चाहता है। आप समझ गए कि कानून क्या सिखाता है और आप जानते हैं कि सही काम कैसे करने हैं।
19 आपको यकीन है कि आप अन्धों की अगुवाई कर सकते हैं। आपको पक्का विश्वास है कि जो लोग अन्धेरे में रहते हैं आप उन के लिए रोशनी बने गये।
20 आप सोचते हैं कि आप मूर्खों को ठीक कर सकते हैं। आपको यकीन है कि आप अपरिपक्व लोगों को सिखा सकते हैं। और आप कहते हैं कि कानून में अपने आप में ज्ञान और सच्चाई है।
21 लेकिन देखिए आप क्या करते हैं! आप दूसरे लोगों को सिखाते हैं लेकिन आप खुद को नहीं सिखाते।
22 आप प्रचार करते हैं, “चोरी न करें।” लेकिन आप चोरी करते हैं। आप कहते हैं, "अपने जीवनसाथी को धोखा न दें।" लेकिन आप दूसरों के साथ सोते हैं। आप मूर्तियों से नफ़रत करते हैं लेकिन आप अन्यजातियों के मन्दिरों को लूटते हैं।
23 आपको घमण्ड है कि आप मूसा के कानून को जानते हैं। लेकिन आप कानून को तोड़ते हैं और परमेश्वर को शर्मिंदा करते हैं।
24 शास्त्र ऐसे लोगों से कहते हैं, “अन्यजाति लोग आप के कारण परमेश्वर के नाम को श्राप देते हैं।”
25 अगर आप मूसा के कानून को मानते हैं तो खतने का मतलब है। लेकिन अगर आप इस कानून को तोड़ते हैं तो खतने का कोई मतलब नहीं। और आप खतनारहित व्यक्ति के जैसे हो जाते हैं।
26 मान लीजिए कि कोई खतनारहित व्यक्ति कानून को पूरा करता है। ऐसे मामले में, परमेश्वर उसके साथ खतना किए हुए व्यक्ति के रूप में व्यवहार करेगा।
27 आप खतना किए हुए यहूदी व्यक्ति हैं। आप शास्त्रों को जानते हैं लेकिन आप मूसा के कानून को तोड़ते हैं। अन्यजाति लोग खतना नहीं करते। लेकिन अगर कोई खतनारहित अन्यजाति व्यक्ति कानून को मानता है तो वह आपको दोषी ठहराएगा जो खतना किया हुआ यहूदी व्यक्ति है।
28 यहूदी परिवार में पैदा होने से आप यहूदी व्यक्ति नहीं बनेंगे। अगर आप अपने शरीर को बाहर से काटते है तो आपका खतना सच्चा नहीं।
29 अगर कोई व्यक्ति कानून में लिखी हुई हर एक बात को मानता है तो भी वह अपने दिल को बदल नहीं पाएगा। कोई व्यक्ति यहूदी तब बनता है जब वह अन्दर से बदलता है। पवित्र आत्मा सच्चा खतना करती है और यह दिल में होता है। परमेश्वर ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा करेगा लेकिन लोग ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा नहीं करेंगे।
1 You will have no excuse if you condemn another person because you sin like he does. So when you condemn others, you condemn yourself.
2 We know that God will judge with justice all who do evil deeds.
3 You judge other people, but you sin the same way they do. Do you think that you will escape the judgment of God?
4 Do not despise the great kindness of God when He forgives you and shows you His great patience. Don’t you understand that God's kindness leads you to repentance?
5 But you become stubborn, and you do not repent of your sin in your heart. You store up the wrath of God against yourself. And God will show His wrath on the day when He will judge you with justice.
6 On the day of judgment each person will receive from God what he deserved by his deeds.
7 God will give eternal life to the person who patiently does good things and glorifies Him. Such a person honors God and makes every effort to enter eternity.
8 But if anyone behaves selfishly, does not obey the truth, and does evil deeds then God will pour out His wrath and anger on such a person.
9 If a person does evil, his soul will suffer, and he will face difficult circumstances. First, it refers to the Jews, but it also refers to the Gentiles.
10 But a person who does good things will see the glory of God. People will respect him, and he will live in peace. First, it refers to the Jews, but it also refers to the Gentiles.
11 God treats all people with justice.
12 The Gentiles did not have the Law of Moses. So God will not judge them according to the Law. But the Gentiles sinned, so they will perish. The Jews had the Law of Moses. But they also sinned and broke it. And God will judge the Jews according to the Law.
13 If anyone listens to the Law and lives in sin, God will judge such a person. God will only make righteous the one who keeps the Law of Moses.
14 The Gentiles who believed in Jesus do not have the Law of Moses. But they naturally do what the Law says. They know the Law from within themselves.
15 God wrote His Law in the hearts of the Gentiles who believed in Christ. That is why their conscience tells them if what they do is right or not. In one situation, their thoughts accuse them, and in another situation, their thoughts confirm that what they do is right. This way the Gentiles show that the Law works in their hearts.
16 I preach the Good News about Christ. And I say that the day will come when God will judge the secret deeds of people through Jesus Christ.
17 You call yourself a Jew and comfort yourself that you know the Law of Moses. You boast about your faith in God.
18 You know what God wants to do. You understood the teaching of the Law, and you know how to do what is right.
19 You are sure that you can lead the blind. You are convinced that you became a light for those who live in the darkness.
20 You think you can correct the fools. You are sure that you can teach the immature people. And you say that the Law has the knowledge and truth in itself.
21 But look what you do! You teach others, but you do not teach yourself.
22 You preach “do not steal”, but you steal. You say “do not cheat on your spouse”, but you sleep with others. You hate idols, but you rob the temples of the Gentiles.
23 You are proud that you know the Law of Moses. But you break it and bring shame on God.
24 The Scriptures say to this kind of people, “The Gentiles curse the name of God because of you.”
25 Circumcision makes sense if you keep the Law of Moses. But if you break the Law, circumcision loses its meaning. And you become the same as an uncircumcised person.
26 Suppose, an uncircumcised person keeps the requirements of the Law. In such a case, God will treat him as a circumcised person.
27 You are a circumcised Jew. You know the Scriptures, but you break the Law of Moses. The Gentiles do not practice circumcision. However if an uncircumcised Gentile keeps the Law, he will condemn you, who is a circumcised Jew.
28 You will not become a Jew because you were born into a Jewish family. You will not do a true circumcision if you cut your body from outside.
29 A person is not able to change his heart if he follows letter by letter what is written in the Law. A person becomes a Jew when he changes from inside. The Holy Spirit does the true circumcision, and it happens in the heart. God will praise such a person, not people.

अध्याय 3

Chapter 3

1 यहूदी राष्ट्र के बारे में क्या खास बात है? और खतने का मतलब क्या है?
2 यहूदी लोग हर तरह से दूसरे राष्ट्रों से बहुत अलग हैं। लेकिन सबसे बड़ा अन्तर यह है कि परमेश्वर ने अपना वचन उन्हें सौंपा।
3 हाँ, कुछ यहूदी लोगों ने परमेश्वर पर विश्वास करना छोड़ दिया। लेकिन क्या उनका अविश्वास परमेश्वर की वफ़ादारी को खत्म कर सकता है?
4 बिल्कुल नहीं। हर इन्सान झूठ बोलता है लेकिन परमेश्वर सच कहता है। शास्त्र परमेश्वर के बारे में कहते हैं, “आपके सभी शब्द सच्चे हैं। और जब आप लोगों का न्याय करेंगे तब आप अदालत में जीतेंगे।”
5 लेकिन कुछ लोग कहते हैं, “अगर परमेश्वर हमारे पापों के कारण हमसे गुस्सा होता है तब यह उचित नहीं। जितना ज़्यादा हम पाप करते हैं उतना ही ज़्यादा परमेश्वर धर्मी दिखाई देता है।” जवाब में क्या कहें?
6 परमेश्वर दुनियाँ का न्याय करेगा। और बिल्कुल, परमेश्वर के पास पूरा अधिकार है कि वह लोगों के पापों के कारण उन पर गुस्सा हो।
7 लेकिन कोई बहस कर सकता है, “जब मैं बेईमानी से व्यवहार करता हूँ तब यह परमेश्वर की सच्चाई को और अधिक प्रकट करती है। मैं पाप करता हूँ लेकिन इससे परमेश्वर की महिमा होती है। इसलिए परमेश्वर को मेरे पापों के लिए मेरा न्याय नहीं करना चाहिए।”
8 ऐसे लोग कहते हैं, "हम बुराई करेंगे क्योंकि बुराई अच्छाई में बदल जाती है।" वे हमारे खिलाफ़ झूठे आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि हम दूसरे लोगों को इस तरह से जीवन जीना सिखाते हैं। परमेश्वर ईमानदारी से ऐसे लोगों का न्याय करेगा।
9 हम यहूदी लोग हैं। लेकिन क्या हम अन्यजाति लोगों से बेहतर हैं? बिल्कुल नहीं। हमने पहले ही साबित कर दिया कि सब यहूदी लोग और सब अन्यजाति लोग पाप की शक्ति के अधीन हैं।
10 शास्त्र कहते हैं, “कोई भी धर्मी नहीं। एक भी नहीं।
11 कोई समझदार नहीं। कोई परमेश्वर को नहीं ढूँढता।
12 सब लोग परमेश्वर से दूर हो गए। और कोई भी नहीं जो उसकी माँगों को पूरा करता। कोई भी भलाई नहीं करता। एक भी नहीं।
13 उनके मुँह खुली हुई कब्रों की तरह हैं। वे झूठ बोलते हैं। उनके शब्द सांप के ज़हर की तरह खतरनाक हैं।
14 वे श्राप बोलते हैं और कड़वे शब्दों से एक दूसरे को ठेस पहुँचाते हैं।
15 वे एक दूसरे को मारने के लिए तैयार हैं।
16 वे अपने रास्ते में सब कुछ बर्बाद कर देते हैं और दु:ख लाते हैं।
17 वे नहीं जानते कि दूसरे लोगों के साथ शान्ति से कैसे रहें।
18 और वे परमेश्वर से बिलकुल नहीं डरते।”
19 परमेश्वर ने यहूदी लोगों को अपना कानून दिया। और हम जानते हैं कि यहूदी लोग मूसा के कानून की शक्ति के अधीन रहते हैं। जब कानून बोलता है तब हर व्यक्ति चुप हो जाता है। वह खुद को सही ठहराने के लिए कुछ नहीं कह सकता। पूरी दुनियाँ परमेश्वर के सामने दोषी हो जाती है।
20 जो व्यक्ति मूसा के कानून को मानता है परमेश्वर उसको अपनी धार्मिकता नहीं देता। सभी लोग उस कानून को तोड़ते हैं और इसलिए वे समझते हैं कि पाप क्या है।
21 लेकिन अब परमेश्वर हमें मूसा के कानून को मानने से आज़ाद करता है। परमेश्वर हमें अपनी धार्मिकता देता है और कानून और भविष्यद्वक्ताओं ने उस धार्मिकता के बारे में बताया था।
22 परमेश्वर की धार्मिकता उन सभी के लिए है जो यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं। यहूदी लोगों और अन्यजाति लोगों में कोई अन्तर नहीं।
23 हर व्यक्ति ने पाप किया और कोई भी परमेश्वर की महिमा के नज़दीक नहीं आ सकता।
24 लेकिन परमेश्वर ने अपने अनुग्रह से हमें अपनी धार्मिकता दी। अपने खून से मसीह ने हमारे पाप से आज़ादी के लिए मूल्य चुकाया।
25 परमेश्वर ने पहले ही फ़ैसला किया था कि यीशु पाप के लिए बलिदान होगा ताकि अपने खून से वह हमारे पापों का मूल्य चुकाए। जो व्यक्ति यीशु पर विश्वास करता है यीशु का खून उसे पाप से साफ़ करता है। मसीह के बलिदान के द्वारा परमेश्वर ने अपनी धार्मिकता को प्रकट किया। परमेश्वर ने उन पापों को माफ़ कर दिया जो लोगों ने पहले किए थे।
26 उस समय परमेश्वर ने बहुत धीरज दिखाया। और इस समय वह मसीह के द्वारा अपनी धार्मिकता दिखाता है। परमेश्वर धर्मी है। और वह यीशु पर विश्वास करने वाले को अपनी धार्मिकता देता है।
27 क्या हम अपनी बड़ाई कर सकते हैं कि हमने मूसा के कानून को माना और इसलिए परमेश्वर ने हमें अपनी धार्मिकता दी? नहीं, यह नामुमकिन है। अब हम आनंद के साथ कहते हैं कि हम विश्वास के कानून से जीते हैं।
28 हम परिणाम निकालते हैं कि परमेश्वर किसी व्यक्ति को अपनी धार्मिकता देता है क्योंकि वह यीशु पर विश्वास करता है और इसलिए नहीं कि वह व्यक्ति मूसा के कानून को मानता है।
29 क्या परमेश्वर ने सिर्फ़ यहूदी राष्ट्र को बनाया? नहीं, परमेश्वर ने सभी राष्ट्रों को बनाया।
30 अगर खतना किया हुआ यहूदी व्यक्ति यीशु पर विश्वास करेगा तो परमेश्वर उसे अपनी धार्मिकता देगा। और वही परमेश्वर अपनी धार्मिकता खतनारहित अन्यजाति व्यक्ति को भी देगा अगर वह यीशु पर विश्वास करेगा।
31 क्या इसका मतलब यह है कि जब हम मसीह पर विश्वास करते हैं तब हम मूसा के कानून को खत्म कर देते हैं? बिल्कुल नहीं। व्यक्ति विश्वास से परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त करता है और कानून ने उसी धार्मिकता के बारे में बताया था।
1 What is so special about the Jewish nation? And what is the meaning of circumcision?
2 The Jews are very different from other nations in every way. But the biggest difference is that God entrusted His Word to them.
3 Yes, some Jews stopped believing in God. But can their unbelief nullify the faithfulness of God?
4 Of course not. Every human lies, but God speaks the truth. The Scriptures say about God, “All your words are just. And when You judge people, You will win.”
5 But some people say, “It is unfair if God gets angry with us because of our sins. The more we sin, the more righteous God looks.” How should we respond to this?
6 God will judge the world. And, of course, God has every right to get angry with people because of their sins.
7 But someone might argue, “When I behave dishonestly, it makes the truth of God more obvious. I sin, but it brings glory to God. So God should not judge me for my sins.”
8 Such people say, “We will do evil because evil turns into good.” They make false accusations against us and say that we teach others to live this way. God will judge such people with justice.
9 We are the Jews. But are we better than the Gentiles? Of course not. We already proved that all the Jews and all the Gentiles are under the power of sin.
10 The Scriptures say, “No one is righteous. Not even one.
11 No one has understanding. No one seeks God.
12 All people turned away from the Lord. And there is no one who would meet His requirements. No one does good. Not a single one.
13 Their mouths are like open graves. They tell lies. Their words are as dangerous as the poison of a snake.
14 They speak curses and offend one another with bitter words.
15 They are ready to kill one another.
16 They ruin everything on their way and bring misery.
17 They do not know how to live peacefully with other people.
18 And they are not afraid of God at all.”
19 God gave His Law to the Jews. And we know that they live under the power of the Law of Moses. When the Law speaks, every person is silent. He can say nothing to justify himself. The whole world becomes guilty before God.
20 God does not give His righteousness to the one who keeps the Law of Moses. All people break the Law that is why they understand what sin is.
21 But now God sets us free from keeping the Law of Moses. He gives us His righteousness, and the Law and the prophets spoke about that righteousness.
22 The righteousness of God belongs to everyone who believes in Jesus Christ. There is no difference between the Jews and the Gentiles.
23 Every person sinned, and no one can come close to the glory of God.
24 But God gave us His righteousness by His grace. With His blood Christ paid for our freedom from sin.
25 God decided in advance that Jesus would become a sacrifice for sin to pay with His blood for our sins. The blood of Jesus cleanses from sin the one who believes in Him. Through the sacrifice of Christ God manifested His righteousness. God forgave the sins which people committed in the past.
26 At that time God showed His great patience. And at the present time He shows His righteousness through Christ. God is righteous. And He gives His righteousness to the one who believes in Jesus.
27 Can we boast that we kept the Law of Moses, and that is why God gave us His righteousness? No, this is impossible. Now we say with joy that we live by the law of faith.
28 We conclude that God gives His righteousness to a person because he believes in Jesus, and not because the person keeps the Law of Moses.
29 Did God create only the Jewish nation? No, He created all the nations.
30 If a circumcised Jew believes in Jesus, God will give him His righteousness. And the same God will give His righteousness to an uncircumcised Gentile if he believes in Jesus.
31 Does it mean that when we believe in Christ, we nullify the Law of Moses? Of course not. Through faith a person receives the righteousness of God, and the Law spoke about that righteousness.

अध्याय 4

Chapter 4

1 हमें अपने पिता अब्राहम के बारे में क्या कहना चाहिए? मान लीजिए कि अब्राहम ने अपने कामों से अपनी धार्मिकता कमाई।
2 इस मामले में, अब्राहम अपने कामों के बारे में अपनी बड़ाई कर सकता था क्योंकि अगर उसने खुद अपनी धार्मिकता कमाई तो उसे परमेश्वर की धार्मिकता की ज़रूरत नहीं।
3 लेकिन शास्त्र क्या कहते हैं? अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया। परमेश्वर ने उसके विश्वास को देखा और अब्राहम को उपहार के रूप में अपनी धार्मिकता दी।
4 जब कोई व्यक्ति काम करता है तब उसे उसके काम की तनख्वाह मिलती है। वह अपने इनाम का हकदार है और वह इसे उपहार के रूप में नहीं पाता।
5 पापी व्यक्ति धार्मिकता कमाने के अच्छा व्यवहार नहीं कर सकता। लेकिन अगर वह परमेश्वर पर विश्वास करेगा तो परमेश्वर उसे उसके पाप से आज़ाद कर देगा। परमेश्वर पापी के विश्वास को देखेगा और उसे उपहार के रूप में अपनी धार्मिकता देगा।
6 राजा दाऊद भी कहता है कि वह व्यक्ति कितना आशीषित है जिसे परमेश्वर अपनी धार्मिकता देता है जबकि वह व्यक्ति अपने कामों से इसका हकदार नहीं था।
7 “वह व्यक्ति आशीषित है जिसके नीच कामों को परमेश्वर माफ़ करता है और उसे उसके पापों की याद नहीं दिलाता।
8 वह व्यक्ति आशीषित है जब परमेश्वर उससे पाप का दोष दूर कर देता है।”
9 परमेश्वर किसे यह आशीष देता है? खतना किए हुए यहूदी व्यक्ति को या खतनारहित अन्यजाति व्यक्ति को? हम कहते हैं कि अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया। परमेश्वर ने उसका विश्वास देखा और अब्राहम को अपनी धार्मिकता दी।
10 क्या परमेश्वर ने उसे अपनी धार्मिकता उसके खतना करने से पहले दी या उसके खतना करने के बाद दी? परमेश्वर ने अब्राहम के खतना करने से पहले उसे धर्मी व्यक्ति कहा था।
11 और खतने के द्वारा परमेश्वर ने पक्का किया कि उसने अब्राहम को अपनी धार्मिकता पहले से ही दे दी। खतना उस धार्मिकता की मुहर बना जिसे परमेश्वर ने उसके शरीर पर लगाया। लेकिन अब्राहम ने अपना खतना करने से पहले परमेश्वर पर विश्वास किया था। इसलिए अब्राहम सब विश्वासियों के पिता बने जिन्होंने खतना नहीं कराया। परमेश्वर उनके विश्वास को देखता है और वह उन्हें अपनी धार्मिकता देता है।
12 अब्राहम उन सभी के भी पिता बनें जिन्होंने खतना कराया। लेकिन खतना किए हुए यहूदी लोगों को अब्राहम के नक्शे कदम पर चलना चाहिए। उन्हें उसी तरह से विश्वास करना चाहिए जैसे अब्राहम ने खतने से पहले विश्वास किया था।
13 परमेश्वर ने अब्राहम को विश्वास के द्वारा अपनी धार्मिकता दी। परमेश्वर ने अब्राहम और उसके वंश से वादा किया कि वह उन्हें पूरी दुनियाँ विरासत के रूप में दे देगा। अब्राहम को विश्वास के द्वारा यह वादा मिला, न कि मूसा के कानून के आधार पर।
14 मान लीजिए कि परमेश्वर मूसा का कानून मानने वालों को अपनी विरासत देगा। इस मामले में, उन्हें विश्वास की ज़रूरत नहीं। और परमेश्वर को उस वादे को वापस लेना पड़ेगा जो अब्राहम ने विश्वास के द्वारा प्राप्त किया था।
15 परमेश्वर लोगों पर गुस्सा हो रहा है क्योंकि वे कानून को तोड़ते हैं। लेकिन अगर कोई कानून नहीं तो पाप के लिए कोई दोष भी नहीं।
16 हम विश्वास के द्वारा परमेश्वर का वादा प्राप्त करते हैं। परमेश्वर अपने अनुग्रह से यह करता है। यह वादा अब्राहम के सब वंशजों को मिलता है जो अब्राहम की तरह ही विश्वास करते हैं। और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति मूसा के कानून के अनुसार जीवन जीता है या नहीं। अब्राहम हम सभी का पिता बन गया जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं।
17 शास्त्र अब्राहम के बारे में कहते हैं, "मैंने आपको कई राष्ट्रों का पिता बनाया।" अब्राहम परमेश्वर की उपस्थिति में खड़ा हुआ और विश्वास किया कि परमेश्वर मरे हुओं को फिर से जिलाने के योग्य है। अब्राहम ने विश्वास किया कि जो चीजें अभी तक मौजूद नहीं परमेश्वर उन चीजों के बारे में ऐसे बोलते हैं जैसे कि वे पहले से मौजूद हैं।
18 परमेश्वर ने कहा, “हे अब्राहम, तुम्हारे बहुत से वंशज होंगे।" और जब कोई उम्मीद नहीं बची थी तब भी अब्राहम ने आशा और विश्वास करना जारी रखा। इसलिए वह कई राष्ट्रों के पिता बने।
19 अब्राहम का विश्वास कमज़ोर नहीं हुआ। उसने नहीं सोचा कि वह लगभग 100 साल का है और उसका शरीर बूढ़ा हो गया है। अब्राहम ने भी नहीं सोचा कि सारा बूढ़ी हो गई है और वह अब गर्भवती नहीं हो सकती।
20 अब्राहम को कोई शक नहीं था कि परमेश्वर अपना वादा पूरा करेगा इसलिए अब्राहम ने अविश्वास को मौका नहीं दिया। इससे उल्टा, उसने परमेश्वर की महिमा की और अपने विश्वास को और मज़बूत बनाया।
21 अब्राहम को पूरी तरह से यकीन था कि परमेश्वर वह करने में सक्षम है जो उसने वादा किया था।
22 इसलिए परमेश्वर ने अब्राहम को अपनी धार्मिकता दी।
23 शास्त्र कहते हैं, "परमेश्वर ने अब्राहम के विश्वास को देखा और उसे अपनी धार्मिकता दी।" लेकिन यह सिर्फ़ अब्राहम के बारे में नहीं लिखा गया था।
24 शास्त्र भी सभी विश्वासियों के बारे में एक ही बात कहते हैं। हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं जिसने हमारे प्रभु यीशु मसीह को मरे हुओं में से जिलाया। परमेश्वर हमारे विश्वास को देखता है और वह हमें अपनी धार्मिकता देता है।
25 यीशु हमारे पापों के लिए बलिदान बन गया। लेकिन परमेश्वर ने मसीह को फिर से जीवित किया ताकि हम परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त कर सकें।
1 What should we say about our father Abraham? Suppose, he earned his righteousness by his actions.
2 In this case, Abraham could boast about his works, because if he earned his own righteousness, then he does not need the righteousness of God.
3 But what do the Scriptures say? “Abraham believed God. God saw his faith and gave him His righteousness as a gift.”
4 When a person works, he gets paid for his work. He deserves his reward, and he does not receive it as a gift.
5 A sinner cannot behave in such a way to earn righteousness. But if he believes in God, God will set him free from his sin. He will see the faith of the sinner and will give him His righteousness as a gift.
6 King David also refers to a person as blessed when God gives him His righteousness, although the person did not deserve it by his deeds,
7 “Blessed is the person whom God forgives his wicked actions and does not remind him of his sins.
8 Blessed is the person when God takes away from him the guilt of sin.”
9 Who does God give this blessing to? To the circumcised Jew or to the uncircumcised Gentile? We say that Abraham believed God. God saw his faith and gave Abraham His righteousness.
10 When did God do it? Before or after circumcision? God called Abraham a righteous person before Abraham was circumcised.
11 And through circumcision God confirmed that He already gave His righteousness to Abraham. Circumcision became the seal of righteousness placed on his body by God. But Abraham believed God before his circumcision. That is why Abraham became the father of all believers who were not circumcised. God can see their faith, and He gives them His righteousness.
12 Abraham also became the father of all who did circumcision. But the circumcised Jews must follow in the footsteps of Abraham. They must believe the same way Abraham believed before circumcision.
13 God gave Abraham His righteousness through faith. God promised to Abraham and his descendants that He would give them the whole world as their inheritance. Abraham received this promise through faith, and not on the basis of the Law of Moses.
14 Suppose, God will give His inheritance to those who keep the Law of Moses. In this case, they would not need faith. And God has to cancel the promise which Abraham received through faith.
15 God is getting angry with people because they break the Law. But if there is no Law, there is no guilt for sin.
16 We receive the promise of God through faith. God does it by His grace. The promise expands to all descendants of Abraham who believe the same way Abraham did. And it doesn’t matter if a person lives according to the Law of Moses or not. Abraham became the father of all of us who believe in God.
17 The Scriptures say about Abraham, “I made you the father of many nations.” Abraham stood in the presence of God and believed that God is able to bring the dead back to life. Abraham believed that God speaks of nonexistent things as if they already exist.
18 God said, “Abraham, you will have many descendants.” And even when there was no hope left, Abraham continued to hope and believe. That is why he became the father of many nations.
19 Abraham’s faith did not get weak. He did not think that he was almost 100 years old, and his body became old. Abraham also did not think that Sarah grew old, and she could no longer get pregnant.
20 Abraham had no doubt that God would fulfill His promise so Abraham did not allow disbelief. Instead, he glorified God and made his faith stronger.
21 Abraham was fully convinced that God was able to do what He promised.
22 That is why God gave Abraham His righteousness.
23 The Scriptures say, “God saw Abraham’s faith and gave him His righteousness.” But it was not written about Abraham only.
24 The Scriptures speak the same about all believers. We believe in God who resurrected our Lord Jesus Christ from the dead. God can see our faith, and He gives us His righteousness.
25 Jesus became a sacrifice for our sins. But God resurrected Him so that we could receive God's righteousness.

अध्याय 5

Chapter 5

1 हमने विश्वास के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता पाई और परमेश्वर से मेल-मिलाप कर लिया। जो हमारे प्रभु यीशु मसीह ने किया उसके कारण यह हुआ।
2 हम उस अनुग्रह में जीवन जीते हैं, जो हमने यीशु पर विश्वास करने के द्वारा पाया। अनुग्रह हमें आनन्द देता है और हमें भरोसा देता है कि हम परमेश्वर की महिमा में प्रवेश करेंगे।
3 जब हम कष्टों से गुज़रते हैं तब भी हम आनन्द मनाते हैं। हम जानते हैं कि परीक्षाएँ हमें धीरजवंत बनाती हैं।
4 और धीरज मज़बूत चरित्र का विकास करता है। मज़बूत चरित्र वाला व्यक्ति पूरी तरह से परमेश्वर पर भरोसा रखेगा।
5 और जो परमेश्वर पर भरोसा रखता है वह कभी निराश नहीं होगा क्योंकि परमेश्वर ने हमें पवित्र आत्मा दी और उसके प्रेम ने हमारे दिल को भर दिया।
6 पिछले समय में हमने पाप किया और हम निराश थे। लेकिन परमेश्वर ने ठीक समय ठहराया जब मसीह को हमारे लिए मरना पड़ा।
7 इसकी संभावना नहीं कि कोई व्यक्ति अपना जीवन किसी दूसरे व्यक्ति के लिए देना चाहे, चाहे वह अच्छा व्यक्ति ही क्यों न हो। फिर भी हो सकता है कि कोई ऐसे व्यक्ति के लिए मरने की हिम्मत करे जिसने उसके साथ बहुत सारे अच्छे काम किये हों।
8 लेकिन मसीह उस समय हमारे लिए मरा जब हम पाप में जीवन जीते थे। और इस तरह से परमेश्वर ने साबित किया कि वह हमसे कितना प्यार करता है।
9 मसीह के खून ने हमें पाप से साफ़ किया और परमेश्वर ने हमें अपनी धार्मिकता दी। इसलिए अब हमें भरोसा है कि मसीह हमें परमेश्वर के क्रोध से बचाएगा।
10 परमेश्वर का बेटा मरा और उसकी मौत ने परमेश्वर से हमारा मेल-मिलाप करा दिया, हालांकि उस समय हम परमेश्वर के दुश्मन थे। लेकिन अब हमने खुद का परमेश्वर से मेल-मिलाप कर लिया। इसलिए हमें भरोसा हैं कि मसीह ने हमें जीवन दिया और वह हमें मौत से बचाएगा।
11 अब भी हम परमेश्वर में आनन्द मना रहे हैं क्योंकि हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें परमेश्वर के साथ शान्ति मिली है।
12 जब आदम ने पाप किया तब एक व्यक्ति के द्वारा पाप इस दुनियाँ में आया। इसलिए आदम के कारण सभी लोग पाप करने लगे। और एक व्यक्ति के पाप के द्वारा मौत इस दुनियाँ में आई। इसलिए आदम के कारण सभी लोग मरने लगे।
13 इससे पहले कि परमेश्वर ने मूसा के द्वारा कानून दिया, लोगों ने पाप किया। लेकिन पाप के लिए कोई दोष नहीं था क्योंकि उस समय परमेश्वर का कोई कानून नहीं था।
14 इसलिए लोग परमेश्वर की आज्ञा को नहीं तोड़ सकते थे जैसा कि आदम ने किया था। लेकिन आदम के समय से मूसा के समय तक लोग मर रहे थे। और मौत ने दुनियाँ पर राज किया। और जैसे आदम सभी लोगों के लिए मौत लाया वैसे ही मसीह सभी लोगों के लिए जीवन को लाया।
15 परमेश्वर ने हमें अपना अनुग्रह दिया। परमेश्वर का अनुग्रह और आदम का पाप उल्टा परिणाम लाए। जब आदम ने पाप किया तब एक व्यक्ति के कारण बहुत से लोग मर गए। लेकिन परमेश्वर ने अपना अनुग्रह उपहार के रूप में यीशु मसीह को दिया। और एक व्यक्ति के द्वारा बहुत से लोगों ने परमेश्वर का अनुग्रह और धार्मिकता बहुतायत में पाई। अनुग्रह और धार्मिकता पाप से बहुत अधिक शक्तिशाली हैं।
16 मसीह के द्वारा धार्मिकता का उपहार और आदम का पाप अलग-अलग परिणाम लाए। परमेश्वर ने आदम को एक पाप के लिए दोषी ठहराया और एक व्यक्ति ने सारी मानव जाति को दोषी बनाया। लेकिन मसीह के द्वारा परमेश्वर ने उपहार के रूप में अपना अनुग्रह दिया। उसने सारी मानव जाति को बहुत से पापों से छुटकारा दिया और अनुग्रह से परमेश्वर ने लोगों को अपनी धार्मिकता दी।
17 आदम ने पाप किया इसलिए एक व्यक्ति के कारण मौत ने इस दुनियाँ पर राज किया। लेकिन यीशु मसीह के द्वारा हमें बहुतायत में अनुग्रह और धार्मिकता का उपहार मिला। और एक व्यक्ति के द्वारा हम जीवन में राज करेंगे। मसीह ने हमें जीवन दिया और इस के पास मौत से बहुत अधिक शक्ति है।
18 जब आदम ने पाप किया तब एक व्यक्ति ने सभी लोगों को पाप का दोषी बनाया। लेकिन मसीह ने धार्मिकता से काम किया। और एक व्यक्ति ने सभी लोगों को पाप से आज़ाद कर दिया। उसने सभी लोगों को धार्मिकता और जीवन दिया।
19 आदम ने परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं किया और एक व्यक्ति के कारण बहुत से लोग पापी बन गए। लेकिन मसीह ने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया। और एक व्यक्ति के द्वारा बहुत से लोग धर्मी बन जाएंगे।
20 आदम ने पाप किया और बाद में परमेश्वर ने मूसा के द्वारा अपना कानून दिया। जब लोगों ने कानून तोड़ा तब वे समझ पाए कि वे कितने पाप करते थे। लोगों ने अधिक से अधिक पाप किया और तब परमेश्वर ने अपना अनुग्रह बहुतायत में दिया।
21 पाप ने सभी लोगों पर राज किया और उन्हें मार डाला। लेकिन अब अनुग्रह परमेश्वर की धार्मिकता के द्वारा राज करता है। और अनुग्रह ने हमें हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनन्त जीवन दिया।
1 Through faith we received God's righteousness and reconciled to God. It happened because of what our Lord Jesus Christ did.
2 We live in the grace which we received through faith in Jesus. Grace brings us joy and gives us the confidence that we will enter the glory of God.
3 We rejoice even when we go through sufferings. We know that trials make us patient.
4 And patience develops strong character. A person of strong character will trust in God completely.
5 And he who trusts in God will never be disappointed because God gave us the Holy Spirit, and His love filled our hearts.
6 In the past we sinned, and were desperate. But God appointed a certain time when Christ had to die for us.
7 It is unlikely that someone would like to give away his life for another person, even if this is a good person. Though maybe someone would dare to die for the one who did to him a lot of good things.
8 But Christ died for us at the time when we lived in sin. And this way God proved how much He loves us.
9 The blood of Christ cleansed us from sin, and God gave us His righteousness. So now we are confident that Christ will save us from God's wrath.
10 The Son of God died, and His death reconciled us to God, though at that time we were hostile to God. But now we ourselves reconciled to God. So we are confident that Christ gave us life, and He will save us from death.
11 Even now we are rejoicing in God because through our Lord Jesus Christ we received peace with God.
12 When Adam sinned, through one person sin came into the world. That is why because of Adam all people began to sin. And through the sin of one person death came into the world. That is why because of Adam all people began to die.
13 People sinned even before God gave the Law through Moses. But there was no guilt for sin because at that time there was no Law.
14 So people could not break God's command as Adam did. But from the time of Adam to the time of Moses people were dying. And death ruled over the world. And as Adam brought death to all people, so Christ brought life to all people.
15 God gave us His grace. His grace and the sin of Adam brought opposite results. When Adam sinned, because of one person a multitude of people died. But God gave His grace as a gift to Jesus Christ. And through one Person a multitude of people received God's grace and righteousness in abundance. Grace and righteousness are much more powerful than sin.
16 The gift of righteousness through Christ and the sin of Adam led to different consequences. God condemned Adam for one sin, and one person made all humanity guilty. But through Christ God gave His grace as a gift. He delivered all humanity from a multitude of sins, and by grace God gave His righteousness to people.
17 Adam sinned that is why because of one person death reigned in the world. But we received abundant grace and the gift of righteousness through Jesus Christ. And through one Person we will reign in life. Christ brought us life, and it has much greater power than death.
18 When Adam sinned, one person made all people guilty of sin. But Christ acted righteously. And one Person set all people free from sin. He gave righteousness and life to all people.
19 Adam did not submit to God, and because of one person a multitude of people became sinners. But Christ obeyed God. And through one Person a multitude of people will become righteous.
20 Adam sinned, and later God gave the Law through Moses. When people broke the Law, they could understand how many sins they did. People sinned more and more, and then God gave His grace in a great abundance.
21 Sin ruled over all people and brought them death. But now grace rules through the righteousness of God. And grace brought us the eternal life through our Lord Jesus Christ.

अध्याय 6

Chapter 6

1 कुछ लोग कहते हैं, "अगर हम पाप करते रहें तो परमेश्वर हमें और भी ज़्यादा अनुग्रह देगा।" लेकिन निश्चित रूप से, यह सच नहीं।
2 हमारा पापी स्वभाव मर गया। हम पाप में अपना जीवन जीना कैसे जारी रख सकते हैं?
3 हम सभी ने बपतिस्मा लिया। और आप जानते हैं कि बपतिस्मा ने हमें यीशु मसीह और उसकी मौत के साथ एकजुट कर दिया।
4 बपतिस्मा के दौरान हम पानी के नीचे गए। इसका मतलब है कि हमने खुद को मसीह के साथ दफन कर लिया। बपतिस्मा ने हमें मसीह की मौत के साथ एकजुट किया। लेकिन पिता परमेश्वर ने अपनी महिमा दिखाई और मसीह को मरे हुओं में से जिलाया। बपतिस्मा के दौरान हम भी पानी से ऊपर आए। इसका मतलब है कि हम मसीह के साथ फिर से जीवित हो गए और अब हम नया जीवन जीते हैं।
5 बपतिस्मा ने हमें मसीह की मौत के साथ एकजुट किया। और सच में, बपतिस्मा ने हमें मसीह के जिलाए जाने के साथ भी एकजुट किया।
6 हमें पाप से आज़ादी मिली जो हमारे शरीर में रहता था। अब हम गुलामों की तरह पाप के अधीन नहीं। हम जानते हैं कि हमने मसीह के साथ मिलकर अपने अन्दर के इंसान के पुराने पापी स्वभाव को क्रूस पर चढ़ा दिया।
7 मरा हुआ व्यक्ति पाप नहीं कर सकता क्योंकि उसे पाप से आज़ादी मिल गई है।
8 हम मसीह के साथ मर गए। और हम विश्वास करते हैं कि हम भी मसीह के साथ जियेंगे।
9 हम जानते हैं कि मसीह मरे हुओं में से जी उठा। वह कभी नहीं मरेगा क्योंकि मौत ने उसके ऊपर से अपनी शक्ति खो दी है।
10 मसीह एक बार मरा और हमें पाप से आज़ादी दी। अब मसीह जीवित है और उसका जीवन परमेश्वर का है।
11 इसलिए अपने आप के बारे में आज़ाद व्यक्ति की तरह सोचें जो पाप के लिए मर चुका है। यह भी सोचें कि अब आप परमेश्वर के लिए जीते हैं और आपका जीवन हमारे प्रभु यीशु मसीह का है।
12 पाप आपके नाशवान शरीर में राज न करने पाए। जब पाप वासना भरी इच्छाओं को आपके पास लाता है तब अपने आप को पाप के अधीन न करें।
13 अपने शरीर को पाप के अधिकार में न सौंपें। अगर आप पाप करते हैं तो आपका शरीर ऐसा औज़ार बन जाता है जो बुराई की सेवा करता है। पिछले समय में आपके पापों ने आपको मार दिया था लेकिन अब आप मरे हुओं में से वापस आ गए। इसलिए अपना जीवन परमेश्वर को सौंप दें और अपने शरीर को ऐसा औज़ार बनाएं जो धार्मिकता की सेवा करता है।
14 परमेश्वर ने आपको मूसा के कानून को मानने से आज़ाद किया और उसने आपको अनुग्रह दिया। इसलिए पाप आपके ऊपर राज नहीं करना चाहिए।
15 हम मूसा के कानून के अनुसार अपना जीवन नहीं जीते, हम अनुग्रह से जीते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम पाप में जी सकते हैं।
16 क्या आप नहीं समझते? आप उन चीजों के गुलाम बन जाते हैं जिनको आप मानते हैं। अगर आप पाप के अधीन होते हैं तो आप पाप के गुलाम बन जाते हैं। और पाप आपको मार डालेगा। और अगर आप परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं तो आप धार्मिकता के गुलाम बन जाते हैं। और धार्मिकता आपको जीवन देगी।
17 आप पाप की गुलामी में जीते थे। लेकिन अब आप हमारे उदाहरण का पालन करते हैं और आप ने पूरे दिल से मसीह की शिक्षाओं को माना। इसलिए हम आपके लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं।
18 अब आप पाप की गुलामी से आज़ाद हैं और धार्मिकता के गुलाम बन गए हैं।
19 मैं आपके जीवन से एक उदाहरण दूँगा जिस समय आप पाप में जीते थे। उस समय आपने अनैतिक काम करने के लिए अपने शरीर को गलत यौन संबंधों और बुराई की गुलामी में सौंप दिया था। उसी तरह से अब आपको पवित्र काम करने के लिए अपने शरीर को धार्मिकता की गुलामी में दे देना है।
20 जब आप पाप के गुलाम थे तब आप धार्मिकता से आज़ाद थे।
21 आपके नीच कामों ने बुरे फल पैदा किए। आपने ऐसे काम किए जिससे अब आपको शर्म महसूस होती है। आपके काम आपको मौत की ओर ले गए।
22 लेकिन अब आप परमेश्वर के गुलाम बन गए और पाप से आज़ाद हो गए। आप अच्छे काम करते हैं और पवित्रता का फल पैदा करते हैं। और पवित्रता आपको अनन्त जीवन की ओर ले जाती है।
23 मौत पाप की सजा है। लेकिन अनन्त जीवन परमेश्वर का उपहार है। और यह अनन्त जीवन हमारे प्रभु यीशु मसीह में है।
1 Some people say, “If we continue to sin, God will give us even more of His grace.” But, of course, this is not true.
2 Our sinful nature died. How can we continue to live in sin?
3 We all were baptized. And you know that through baptism we were united with Jesus Christ and His death.
4 During baptism we went under the water. It means that we buried ourselves along with Christ. Baptism united us with Jesus' death. But God the Father showed His glory when He raised Christ from the dead. During baptism we also rose from the water. It means that we were raised along with Christ, and now we live a new life.
5 Baptism united us with the death of Jesus. And, of course, baptism united us with His resurrection.
6 We received freedom from sin which lived in our body. Now we do not submit to sin like slaves. We know that along with Christ we crucified the old sinful nature of our inner person.
7 A dead person cannot sin because he received freedom from sin.
8 We died with Christ. And we believe that we will also live with Him.
9 We know that Christ rose from the dead. He will never die because death lost its power over Him.
10 Christ died once and gave us freedom from sin. Now Jesus lives, and His life belongs to God.
11 So think of yourselves as of a free person who died for sin. Think also that now you live for God, and your life belongs to our Lord Jesus Christ.
12 Sin must not reign in your mortal body. Do not submit to sin when it brings you lustful desires.
13 Do not let your body be under the control of sin. If you sin, your body becomes a tool that serves evil. In the past your sins made you dead, but now you have been raised from the dead. So dedicate your life to God and make your body a tool that serves righteousness.
14 God set you free from keeping the Law of Moses, and He gave you grace. That is why sin should not rule over you.
15 We do not live according to the Law of Moses, we live by grace. But it does not mean that we can live in sin.
16 Don’t you understand? You become slaves to the things which you obey. If you submit to sin, you become slaves to sin. And sin will kill you. And if you obey God, you become slaves of righteousness. And righteousness will bring you life.
17 You used to live in the slavery of sin. But now you follow our example, and you obeyed the teachings of Christ with all your heart. That is why we thank God for you.
18 Now you are free from the slavery of sin and became slaves of righteousness.
19 I will give you an example from your life when you lived in sin. At that time you gave your bodies into the slavery of immorality and evil to do wicked deeds. The same way now you must give your bodies into slavery of righteousness to do holy deeds.
20 When you were slaves of sin, you were free from righteousness.
21 Your wicked deeds produced terrible fruits. You did such things which make you feel ashamed now. Your actions led you to death.
22 But now you became the slaves of God and became free from sin. You do good deeds and produce the fruits of holiness. And holiness leads you to the eternal life.
23 Death is the punishment for sin. But the eternal life is a gift of God. And this eternal life is in our Lord Jesus Christ.

अध्याय 7

Chapter 7

1 हे भाइयों, मैं उन लोगों से कहता हूँ जो मूसा के कानून को जानते हैं। किसी व्यक्ति पर कानून का अधिकार तब तक होता है जब तक वह व्यक्ति जीवित है।
2 जब किसी औरत की शादी होती है तब मूसा का कानून उसे उसके पति के साथ बान्ध देता है। लेकिन अगर उसका पति मर जाता है तो कानून के अनुसार वह शादी से आज़ाद हो जाती है।
3 अगर वह अपने पति के जीवित रहते हुए किसी दूसरे आदमी से शादी करेगी तो वह विश्वासघाती हो जाएगी और वह व्यभिचार में दोषी होगी। लेकिन अगर उसका पति मर जाता है तो कानून के अनुसार वह शादी से आज़ाद हो जाती है। और अगर वह दूसरी बार शादी करेगी तो वह विश्वासघाती नहीं होगी।
4 हे भाइयों, मेरा मतलब यही है। जब मसीह क्रूस पर मरा तब आप भी उसके साथ मर गये। और मरे हुए व्यक्ति पर कानून का कोई अधिकार नहीं। अब आप मूसा के कानून से संबंध नहीं रखते। आप मसीह के हैं जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया। इसलिए आपको अच्छे काम करने चाहिए और आप ऐसे फल पैदा करेंगे जो परमेश्वर को खुश करेंगे।
5 पहले हमने पाप के बारे में सोचा और अपने पापी स्वभाव के अधीन हो गये। और उस समय हमारी पापी आदतों ने हमारे शरीर में काम किया। मूसा के कानून ने उन पापों की ओर इशारा किया जो हम करते थे। और हमारे जीवन में हमारी पापी आदतों ने ऐसे फलों को पैदा किया जो हमें मौत की ओर ले गए।
6 हम मूसा के कानून को मानते थे। लेकिन अब हम उस कानून के लिए मर गए और उस से आज़ादी पाई। पहले हमने हर एक अक्षर का पालन किया जो मूसा ने कानून में लिखा और इस तरह से हमने परमेश्वर की सेवा की। लेकिन अब हम पुराने तरीके से परमेश्वर की सेवा नहीं करते। उसने हमें पवित्र आत्मा दी और हम नए तरीके से परमेश्वर की सेवा करते हैं।
7 हमें पाप और मूसा के कानून के बारे में क्या कहना चाहिए? क्या मेरे जीवन में पाप इसलिए आया क्योंकि परमेश्वर ने अपना कानून दिया? बिल्कुल नहीं। लेकिन कानून ने मेरे पापों की ओर इशारा किया इसलिए मैं समझ पाया कि पाप क्या है। मान लीजिए कि कानून ईर्ष्या के बारे में कुछ नहीं कहता। इस मामले में, मैं यह समझ ही नहीं पाता कि ईर्ष्या करना गलत है।
8 लेकिन जब मैंने परमेश्वर की आज्ञा सुनी तब मुझे एहसास हुआ कि मैं पाप करता हूँ। और पाप ने मुझ में सभी प्रकार की ईर्ष्या भरी इच्छाओं को जगा दिया। लेकिन अगर कोई कानून नहीं होता तो लोग यह नहीं समझते कि पाप उनके अन्दर रहता है।
9 पहले मैं अपना जीवन जीता था और मुझे नहीं पता था कि कानून मौजूद है। लेकिन परमेश्वर की आज्ञा के कारण मुझे एहसास हुआ कि पाप मेरे अन्दर रहता था और मेरे पाप भरे कामों ने मुझे मार डाला।
10 परमेश्वर ने अपनी आज्ञा दी ताकि मैं जीवित रहूँ। लेकिन आज्ञा ने मेरे पाप की ओर इशारा किया और पाप मेरे लिए मौत को लाया।
11 मैंने परमेश्वर की आज्ञा को सुना और मुझे एहसास हुआ कि जब मैं इसे तोड़ता हूँ तब मैं पाप करता हूँ। लेकिन पाप ने मुझे धोखा दिया और मैं सोचने लगा कि यह परमेश्वर की आज्ञा थी जो मुझे मार रही थी, मेरा पाप नहीं।
12 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा का कानून दिया इसलिए वह कानून पवित्र है। और हर एक आज्ञा लोगों में पवित्रता, धार्मिकता और भलाई को लाती है।
13 इसलिए क्या इसका मतलब यह है कि परमेश्वर की आज्ञा ने मुझ में कुछ अच्छा करने के बजाय मुझे मार डाला? बिल्कुल नहीं। मेरे पाप भरे कामों ने मुझे मार डाला। जब मैं आज्ञा को तोड़ता हूँ तब मैं समझता हूँ कि पाप कितना भयानक है। पाप ने अच्छी आज्ञा का इस्तेमाल किया और मेरे लिए मौत को लाया।
14 हम जानते हैं कि कानून आत्मिक चीजों के बारे में बात करता है। और मुझे पाप की गुलामी में बेच दिया गया था। इसलिए मैं पाप के बारे में सोचता हूँ और अपने पापी स्वभाव के अधीन हो जाता हूँ।
15 मैं अपने आप को नहीं समझता। मैं वही करना चाहता हूँ जो सही है। लेकिन इससे उल्टा, मैं उन चीजों को करता हूँ जिनसे मैं नफ़रत करता हूँ।
16 मैं मानता हूँ कि परमेश्वर ने अपना कानून दिया जो लोगों के लिए अच्छाई लाता है। लेकिन मैं गलत काम करता हूँ, हालांकि मैं उन्हें नहीं करना चाहता।
17 इसलिए इन कामों को करने के लिए मुझे क्या मजबूर करता है? पाप मुझमें रहता है और पाप की शक्ति मेरी शक्ति से अधिक है।
18 मैं जानता हूँ कि मेरे अन्दर पापी स्वभाव रहता है और इसमें कुछ भी अच्छाई नहीं। मैं अच्छा करना चाहता हूँ लेकिन मेरे पास ऐसा करने की शक्ति नहीं।
19 मैं अच्छा काम करना चाहता हूँ लेकिन मैं यह नहीं करता। मैं बुरा काम नहीं करना चाहता लेकिन मैं यह करता हूँ।
20 मैं वह करता हूँ जो गलत है हालांकि मैं वह करना चाहता हूँ जो अच्छा है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पाप मेरे अन्दर रहता है और पाप की शक्ति मेरी शक्ति से अधिक है।
21 पाप का कानून मेरे अन्दर काम करता है। और जब मैं वह करना चाहता हूँ जो सही है तब मैं अपने पापी स्वभाव पर जीत नहीं सकता।
22 हे भाइयों, मैं आपको याद दिलाता हूँ कि मैं उन लोगों से कहता हूँ जो मूसा के कानून को जानते हैं। जब मैं परमेश्वर के कानून के बारे में सोचता हूँ तब मैं आनन्दित होता है।
23 लेकिन पाप का कानून मेरे शरीर में काम करता है और यह मुझे गुलामी में रखता है। मेरा पापी स्वभाव मेरे दिमाग की अच्छी इच्छाओं के साथ युद्ध करता हैं।
24 मैं कितना दुखी इन्सान हूँ! मुझे मेरे नाशवान शरीर से कौन बचाएगा जहाँ पाप रहता है?
25 अपने दिमाग में मैं परमेश्वर के कानून को मानना ​​चाहता हूँ। लेकिन मेरा पापी स्वभाव मुझे पाप का गुलाम बनाता है। लेकिन मैं अब परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि वह हमें हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा पाप से आज़ादी देता है।
1 Brothers, I speak to those who know the Law of Moses. The Law has power over a person as long as he lives.
2 When a woman gets married, the Law binds her with her husband. But if her husband dies, according to the Law she becomes free from the marriage.
3 If she marries another man while her husband is still alive, she will become unfaithful, and she will be guilty in adultery. But if her husband dies, according to the Law she becomes free from the marriage. And she will not become unfaithful if she marries a second time.
4 Brothers, this is what I mean. When Christ died on the cross, you died with Him. And the Law has no power over a dead person. Now you do not belong to the Law of Moses. You belong to Christ whom God raised from the dead. So you should do good deeds, and you will produce the fruits which will please God.
5 In the past we thought of sin and submitted to our sinful nature. And at that time our sinful habits worked in our body. The Law of Moses pointed out the sins we did. And our sinful habits produced such kinds of fruits in our lives which brought us death.
6 We used to keep the Law of Moses. But now we died to the Law and received freedom from the Law. In the past letter by letter we followed what Moses wrote in the Law, and this way we served God. But now we do not serve God in the old way. He gave us the Holy Spirit, and we serve God in the new way.
7 What should we say about sin and the Law of Moses? Did sin come into my life because God gave His Law? Of course not. But the Law pointed out my sins that is why I could understand what sin is. Suppose, the Law says nothing about envy. In that case, I would not even understand that it is wrong to envy.
8 When I heard God's commandment, I realized that I was sinning. And sin stirred up all kinds of envious desires within me. But if there is no Law, people do not understand that sin lives within them.
9 In the past I lived without knowing that there was the Law. But because of the commandment of God I realized that sin lived within me, and my sinful actions killed me.
10 God gave His commandment so that I would live. But the commandment pointed out my sin, and sin brought me death.
11 I heard God's commandment and realized that when I break it, I sin. But sin deceived me, and I started thinking that it was God’s commandment killing me, not my sin.
12 We know that God gave the Law of Moses that is why the Law is holy. And each commandment brings holiness, righteousness, and goodness to people.
13 So does it mean that God's commandment killed me instead of bringing me any good? Of course not. My sinful actions killed me. When I break the commandment, I understand how terrible sin is. Sin used the good commandment and brought me death.
14 We know that the Law speaks of spiritual things. And I was sold into the slavery of sin. That is why I think of sin and submit to my sinful nature.
15 I do not understand myself. I want to do what is right. But instead, I do things I hate.
16 I agree that God gave His Law which brings good to people. But I do what is wrong though I do not want to do it.
17 So what does make me do these actions? Sin lives within me, and sin has more power than I have.
18 I know that sinful nature lives within me, and there is nothing good in it. I have a desire to do what is right, but I have no power to do it.
19 I want to do good, but I do not do what is good. I do not want to do evil, but I do what is evil.
20 I do what is wrong though I want to do what is right. It happens because sin lives within me, and sin has more power than I have.
21 The law of sin works within me. And when I have a desire to do what is right, I cannot overcome my sinful nature.
22 Brothers, I remind you that I speak to those who know the Law of Moses. When I think of the Law of God, I rejoice.
23 But the law of sin works within my body, and it keeps me in slavery. My sinful nature is at war with good desires in my mind.
24 I am such a miserable person! Who will save me from my mortal body where sin lives?
25 In my mind I have a desire to obey the Law of God. But my sinful nature makes me a slave to sin. But now I thank God that He gives us freedom from sin through our Lord Jesus Christ.

अध्याय 8

Chapter 8

1 अब हम यीशु मसीह के हैं और परमेश्वर हमें पाप में दोषी नहीं ठहराता। इसलिए पवित्र आत्मा की इच्छाओं के पीछे चलें। और खुद को पुराने पापी स्वभाव के अधीन न करें।
2 पवित्र आत्मा ने हमारे दिलों में अपने कानून को लिखा और हमें जीवन दिया। यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर ने हमें पाप के नियम से आज़ाद किया जो मौत लाता है।
3 मूसा के कानून में पापी इन्सान के स्वभाव को बदलने की शक्ति नहीं थी। इसलिए परमेश्वर ने अपने बेटे को धरती पर भेजा और उसे ऐसा शरीर दिया जैसा पापी व्यक्ति का शरीर होता है। परमेश्वर ने हमारे पापों के लिए अपने बेटे को दे दिया ताकि उसका बेटा बलिदान हो जाए। और जब परमेश्वर के बेटे ने हमारे पाप को अपने ऊपर ले लिया तब परमेश्वर ने पाप पर दंड की आज्ञा सुनाई।
4 परमेश्वर ने हमें अपनी धार्मिकता दी और मूसा का कानून उस धार्मिकता के बारे में बात करता था। अब हमें पवित्र आत्मा की इच्छाओं का पालन करना है। हमें अपने पुराने पापी स्वभाव के अधीन नहीं होना है।
5 जो व्यक्ति अपने पापी स्वभाव के अधीन हो जाता है वह पाप के बारे में सोचता है। और जो व्यक्ति पवित्र आत्मा के अधीन हो जाता है वह आत्मिक चीजों के बारे में सोचता है।
6 अगर कोई व्यक्ति पाप के बारे में सोचता है तो वह मर जाएगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति आत्मिक चीजों के बारे में सोचता है तो वह जीवन और शान्ति पाएगा।
7 पापी इन्सान का स्वभाव परमेश्वर के कानून का पालन नहीं करता क्योंकि यह ऐसा नहीं कर सकता। जब कोई व्यक्ति पाप के बारे में सोचता है तब वह परमेश्वर का दुश्मन बन जाता है।
8 इसलिए जो कोई अपने पापी स्वभाव का पालन करता है वह परमेश्वर की योजनाओं को पूरा नहीं कर पाएगा।
9 लेकिन अब परमेश्वर की आत्मा आपके अन्दर रहती है। इसलिए अब आप अपने पापी स्वभाव के अधीन नहीं होते। आप परमेश्वर की आत्मा के अधीन हो जाते हैं। लेकिन अगर मसीह की आत्मा किसी व्यक्ति के अन्दर नहीं रहती तो ऐसा व्यक्ति मसीह का नहीं।
10 लेकिन मसीह आपके अन्दर रहता है। पाप के कारण आपका शरीर मर जाएगा। लेकिन आपकी आत्मा जीवित रहेगी क्योंकि परमेश्वर ने आपको अपनी धार्मिकता दी है।
11 परमेश्वर ने अपनी आत्मा के द्वारा यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। अब परमेश्वर की वही आत्मा आपके अन्दर रहती है। और जैसे परमेश्वर ने मसीह को जिलाया वैसे ही वह आपके नाशवान शरीर को जीवित कर देगा। परमेश्वर अपनी आत्मा के द्वारा यह करेगा जो आपके अन्दर रहती है।
12 हे भाइयों, हमें अपने पापी स्वभाव के अधीन नहीं होना है। हमें पाप में अपना जीवन नहीं जीना है।
13 लेकिन अगर आप पाप में जीते हैं तो आप मर जाएंगे। अपने शरीर की इच्छाओं के पीछे न चलें। पवित्र आत्मा की शक्ति से अपने पाप भरे कामों को मार डालें और तब आप जीवित रहेंगे।
14 अब आप परमेश्वर के बेटे बन गए। और परमेश्वर की आत्मा परमेश्वर के सभी बेटों की अगुवाई करती है।
15 आपको वह आत्मा मिली जिसने आपको बेटे बनाया, गुलाम नहीं। इसलिए गुलामों की तरह डर में न रहें। परमेश्वर ने हमें अपनाया और उसकी आत्मा के साथ हम परमेश्वर को “हे पिता, पिता!” कहकर ज़ोर से चिल्लाते हैं।
16 और परमेश्वर की आत्मा हमारी आत्मा की पुष्टि करती है कि हम परमेश्वर के बच्चे बन गए हैं।
17 और बच्चों को विरासत मिलती है। इसका मतलब है कि हम परमेश्वर के वारिस बन गए। और मसीह के साथ हम परमेश्वर की विरासत पाएंगे। इसका मतलब यह भी है कि हम मसीह के साथ दु:ख उठाएंगे। और उसके साथ हम परमेश्वर की महिमा में प्रवेश करेंगे।
18 आपको समझना चाहिए कि अब हम दु:ख उठाते हैं लेकिन वह समय आएगा जब हमारे दु:ख खत्म हो जाएंगे। और परमेश्वर हमें अपनी महिमा दिखाएगा जिस की तुलना हमारे दु:खों के साथ करना नामुमकिन है। दु:ख थोड़े समय का हैं लेकिन परमेश्वर की महिमा असीमित है।
19 परमेश्वर सारी सृष्टि को प्रकट करेगा कि परमेश्वर के बेटे कौन है। और परमेश्वर की सृष्टि उस दिन का बेसब्री से इन्तज़ार करती है।
20 सारी सृष्टि अपनी इच्छा के खिलाफ़ बेमतलब की मौजूदगी और मौत के अधीन थी। जब आदम ने पाप किया तब परमेश्वर ने पृथ्वी को श्राप दिया। लेकिन परमेश्वर ने सारी सृष्टि को आशा दी।
21 वह दिन आएगा जब परमेश्वर के बच्चे आज़ादी प्राप्त करेंगे और परमेश्वर की महिमा में प्रवेश करेंगे। और उस दिन सारी सृष्टि मौत की गुलामी से आज़ाद हो जाएगी।
22 हम जानते हैं कि आज तक सारी सृष्टि बच्चे पैदा करने के समय में दर्द से कराहते हुई औरत की तरह दु:खी है।
23 और हम भी दु:ख उठाते हैं। लेकिन परमेश्वर ने हमें अपनी आत्मा दी जो हमारे नए जीवन की शुरुआत बन गई। हम बेसब्री से उस दिन का इन्तज़ार करते हैं जब परमेश्वर हमें अपनाएगा और हमारे शरीर को छुटकारा देगा।
24 परमेश्वर ने हमें बचाया। और उसने हमें दृढ़ आशा दी कि हम परमेश्वर की महिमा में प्रवेश करेंगे। आशा क्या है? आशा देख सकती है कि भविष्य में क्या होगा। हम पूरे भरोसे के साथ उम्मीद करते हैं कि वह दिन आएगा जब परमेश्वर अपने वादे को पूरा करेगा। और तब हम देखेंगे कि हमारी आशा पूरी हुई।
25 जब हमें परमेश्वर के अनदेखे वादों में पूरी आशा है तब यह हमें धीरज देता है। और हम धीरज से उस समय का इन्तज़ार करते हैं जब परमेश्वर वह पूरा करेगा जिसकी हम आशा करते हैं।
26 अगर हम कमज़ोर या बीमार हो जाते हैं तो पवित्र आत्मा हमारी मदद करती है और हमें मजबूत बनाती है। हम नहीं जानते कि सही तरह से प्रार्थना कैसे करें। लेकिन आत्मा खुद ही बड़ी शक्ति के साथ हमारे लिए परमेश्वर से विनती करती है और प्रार्थना में कराहती है। और जो आत्मा कहती है उसे इंसानी शब्दों में प्रकट करना नामुमकिन है।
27 परमेश्वर देखता है कि हमारे दिलों में क्या चल रहा है। वह यह भी जानता है कि जो आत्मा हमारे दिलों में है वह बड़ी शक्ति से हमारे लिए प्रार्थना करती है। आत्मा परमेश्वर की इच्छा के साथ पूरी सहमति से ऐसा करती है ताकि हर विश्वासी उस योजना को पूरा कर सके जो परमेश्वर ने उसके जीवन के लिए बनाई है।
28 हम जानते हैं की परमेश्वर अपने लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए लोगों को अपनी बुलाहट देता है। और जो व्यक्ति परमेश्वर से प्यार करता है उस के जीवन में परमेश्वर सब कुछ बदलकर अच्छा कर देता है।
29 परमेश्वर पहले से जानता था और उन लोगों को चुन लिया जो उसके बेटे के रूप के समान बन जाएंगे। परमेश्वर का बेटा कई भाइयों में से पहिलौठा बन गया।
30 परमेश्वर ने पहले से उन लोगों को चुन लिया जिन्हें वह अपने पास बुलाए। और जब परमेश्वर ने उन्हें बुलाया तब वह उन्हें पाप से आज़ाद किया और उन्हें अपनी धार्मिकता दी। और उन लोगों ने परमेश्वर की महिमा में प्रवेश किया।
31 क्या आप समझते हैं कि इसका मतलब क्या है? परमेश्वर हमारी तरफ़ है। और कोई भी हमें हरा नहीं सकता।
32 परमेश्वर ने अपने बेटे को भी नहीं छोड़ा और सभी लोगों के पापों के लिए उसका जीवन दे दिया। क्या परमेश्वर हमें बाकी सब कुछ मसीह के साथ नहीं देगा?
33 परमेश्वर ने हमें चुना। कौन हम पर दोष लगाने की हिम्मत करेगा? परमेश्वर ने हमें पाप से आज़ाद किया और हमें अपनी धार्मिकता दी।
34 हमारी निंदा करने की हिम्मत कौन करेगा? यीशु मसीह मरा, लेकिन वह फिर से जी भी उठा। और परमेश्वर ने मसीह को स्वर्ग में बैठाया। परमेश्वर ने उसे अपने दाहिने हाथ पर आदर का स्थान दिया जहाँ मसीह हमारे लिए बहुत शक्ति के साथ परमेश्वर से विनती करता है।
35 हम मुसीबतों और मुश्किल परिस्थितियों से गुज़रते हैं। लोग हमें सताते हैं, हम भूख से मर रहे हैं और हमारे पास कोई कपड़े नहीं। हमारे जीवन खतरे में हैं और लोग हमें तलवार से मार सकते हैं। लेकिन कौन सी बात हमें मसीह से अलग कर सकती है जो हम से प्यार करता है? शास्त्र कहते हैं,
36 “हर रोज़ लोग हमें मारते हैं क्योंकि हम आप पर विश्वास करते हैं। वे हमारे साथ बलिदान होने वाली भेड़ की तरह व्यवहार करते हैं।”
37 लेकिन हम सभी दु:खों पर जय पाते हैं और पूरी जीत को प्राप्त करते हैं क्योंकि मसीह हमसे प्यार करता है।
38 मुझे यकीन है कि न मौत, न जीवन, न स्वर्गदूत, न ही बुरी आत्माएँ हमें परमेश्वर से अलग कर सकते हैं। कोई भी शक्तियाँ न आज और न ही भविष्य में यह कर सकती हैं।
39 ऊँचाई या गहराई में कोई भी रचना हमें परमेश्वर से अलग नहीं कर सकती जो हमसे प्यार करता है और जिसने हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें अपना प्यार दिखाया।
1 Now we belong to Jesus Christ, and God does not condemn us for sin. So follow the desires of the Holy Spirit. And do not submit to your old sinful nature.
2 The Holy Spirit wrote His law in our hearts and gave us life. Through Jesus Christ God set us free from the law of sin which brings death.
3 The Law of Moses had no power to change sinful human nature. That is why God sent His Son to the earth and gave Him a body like a body of a sinful man. God gave His Son as a sacrifice for our sins. And when the Son of God took our sin upon Himself, God pronounced His judgment over sin.
4 God gave us His righteousness which the Law of Moses spoke about. Now we should follow the desires of the Holy Spirit. We should not submit to our old sinful nature.
5 He who submits to his sinful nature thinks of sin. But he who submits to the Holy Spirit thinks of spiritual things.
6 If a person thinks of sin, he will die. But if a person thinks of spiritual things, he will receive life and peace.
7 The sinful human nature does not obey the Law of God because it is not able to do it. When a person thinks of sin, he becomes hostile to God.
8 So the one who obeys his sinful nature will not be able to fulfill the will of God.
9 But now the Spirit of God lives within you. So you no longer submit to your sinful nature. You submit to the Spirit of God. But if the Spirit of Christ does not live within a person, he does not belong to Christ.
10 But Christ lives within you. Your body will die because of sin. However your spirit will live because God gave you His righteousness.
11 God raised Jesus from the dead by His Spirit. Now the same Spirit lives within you. And as God raised Christ, so He will make alive your mortal bodies. God will make it by His Spirit which lives within you.
12 Brothers, we do not have to submit to our sinful nature. We must not live in sin.
13 But if you live in sin, you will die. Do not follow the desires of your body. Put to death your sinful actions by the power of the Holy Spirit, and then you will live.
14 Now you have become the sons of God. And the Spirit of God leads all the sons of God.
15 You received the Spirit which made you sons, not slaves. So do not live in fear like slaves. God adopted us, and with His Spirit we cry out to God, “Father, Father!”
16 And the Spirit of God confirms to our spirit that we became the children of God.
17 And children receive inheritance. It means that we became the heirs of God. And along with Christ we will receive God's inheritance. It also means that we will suffer along with Christ. And along with Him we will enter the glory of God.
18 You should understand that now we suffer, but the time will come when our sufferings end. And God will show within us His glory which is impossible to compare with our sufferings. Sufferings are temporary, but the glory of God is unlimited.
19 God will reveal to all creation who the sons of God are. And God's creation eagerly waits for this day.
20 All creation submitted to a meaningless existence and death against its will. When Adam sinned, God cursed the earth. But God gave hope to all creation.
21 The day will come when the children of God will receive freedom and enter the glory of God. And on that day all creation will become free from the slavery of death.
22 We know that until today all creation groans and suffers like a woman during her childbirth.
23 And we also suffer. But God gave us His Spirit which became the beginning of our new life. We eagerly wait for the day when God will adopt us and redeem our bodies.
24 God saved us and gave us firm hope that we will enter the glory of God. What is hope? Hope can see what will happen in the future. We await with full confidence that the day will come when God fulfills His promise. Then we will see that our hope came true.
25 When we have complete hope in the invisible promise of God, it makes us patient. And we patiently wait for the time when God fulfills what we hope for.
26 If we become weak or sick, the Holy Spirit helps us and strengthens us. We do not know how to pray properly. But the Spirit Himself prays for us with great power and groans in prayer. And what He says cannot be expressed in human words.
27 God can see what is happening in our hearts. He also knows that the Spirit who fills our hearts prays for us with great power. The Spirit does it in complete agreement with God's will so that each believer could fulfill what God has planned for his life.
28 We know that God gives calling to people to fulfill His purposes. And He turns for good everything what happens in the life of a person who loves God.
29 God knew in advance and predetermined those people who would become like the image of His Son. The Son of God became the firstborn among many brothers.
30 God determined in advance those people whom He would call to Himself. And when God called them, He set them free from sin, and gave them His righteousness. And these people entered the glory of God.
31 Do you understand what it means? God is on our side. And no one can defeat us.
32 God did not spare His Son and gave His life for the sins of all people. Would God not give us everything else along with Christ?
33 God chose us. Who would dare to blame us? God set us free from sin and gave us His righteousness.
34 Who would dare to condemn us? Jesus Christ died, but He also rose again. And God seated Christ in heaven. God gave Him a place of honor at His right hand where Christ appeals to God for us with great power.
35 We go through troubles and difficult circumstances. We are persecuted, starving, and have no clothes. Our lives are in danger, and we can be killed with the sword. But what can separate us from Christ who loves us? The Scriptures say,
36 “Every day people kill us because we believe in You. They treat us like sheep who are being led to the slaughter.”
37 But we overcome all sufferings and gain complete victory because Christ loves us.
38 I am sure that neither death, nor life, nor angels, nor evil spirits can separate us from God. No powers can do it either in the present or in the future.
39 No creation high above or deep below can separate us from God who loves us and who showed us His love through our Lord Jesus Christ.

अध्याय 9

Chapter 9

1 मैं मसीह का हूँ और मैं आपको सच बताता हूँ। मेरी अंतरात्मा और पवित्र आत्मा इस बात की पुष्टि करते हैं कि मैं झूठ नहीं बोल रहा।
2 मुझे बहुत दु:ख होता है और मेरा दिल लगातार शोक मनाता है।
3 मेरी बड़ी इच्छा है कि मेरे अपने देश के यहूदी लोग मसीह की ओर फिरें। और अगर मैं ऐसा कर सकता तो मैं अपना उद्धार अपने लोगों को दे देता। और मैं खुद श्राप में गिर जाता और मसीह से अलग हो जाता।
4 परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों को अपनाया और उन्हें अपनी महिमा दिखाई। उसने यहूदी लोगों के साथ अटूट समझौते किए और उन्हें अपना कानून दिया। इस्राएलियों ने परमेश्वर की आराधना की और परमेश्वर ने उन्हें अपने वादे दिए।
5 अब्राहम, इसहाक और याकूब इस्राएल के लोगों के पूर्वज हैं। और इस राष्ट्र में मसीह इन्सान के शरीर में पैदा हुआ था। मसीह परमेश्वर है। वह सारी सृष्टि पर राज्य करता है और वह अनन्त महिमा के योग्य है। आमीन।
6 लेकिन इस्राएलियों ने मसीह को ठुकरा दिया। क्या इसका मतलब यह है कि परमेश्वर ने अपना वचन पूरा नहीं किया? बिल्कुल नहीं। इस्राएल इस्राएलियों का पूर्वज था। लेकिन सभी जो इस्राएल राष्ट्र में पैदा हुए, वे परमेश्वर के लोग नहीं बनें।
7 और अब्राहम के सभी बच्चों को वे वादे विरासत में नहीं मिले जो परमेश्वर ने अब्राहम से किए। लेकिन परमेश्वर ने अब्राहम को बताया, "सारा इसहाक को जन्म देगी और तुम्हारे वंशज उससे आएंगे।”
8 इसहाक के अलावा, अब्राहम के कई दूसरे बच्चे थे। लेकिन वे मनुष्य की इच्छा से पैदा हुए थे। और परमेश्वर ने उन बच्चों के बारे में कुछ नहीं कहा। लेकिन इसहाक के द्वारा परमेश्वर ने अपना वादा पूरा किया जो उसने अब्राहम से किया था। इसहाक ने उसके परिवार को आगे बढ़ाया।
9 और परमेश्वर ने अब्राहम से यह वादा किया, "एक साल के बाद मैं फिर से आऊँगा और सारा का एक बेटा होगा।"
10 परमेश्वर ने ऐसा वादा सिर्फ़ अब्राहम को ही नहीं दिया। रिबका इसहाक की पत्नी बनी और वह सारा की तरह गर्भवती नहीं हो सकी। लेकिन परमेश्वर ने अपना वादा पूरा किया और रिबका ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। इसहाक ने अब्राहम के परिवार को आगे बढ़ाया।
11 परमेश्वर ने रिबका से उसके बेटों के जन्म से पहले ही इस बारे में बात की। उस समय उन्होंने कुछ भी बुरा या अच्छा नहीं किया। परमेश्वर अपना लक्ष्य पहले से ही निर्धारित करता है और उसे चुनता है जो उसकी योजना को पूरा करेगा।
12 परमेश्वर किसी व्यक्ति को उसके कामों के अनुसार बुलाहट नहीं देता। जुड़वा बच्चों के जन्म से पहले परमेश्वर ने रिबका को बताया, "सबसे बड़ा बेटा छोटे की सेवा करेगा।"
13 परमेश्वर शास्त्रों में कहता है, “मैंने याकूब से प्यार किया। और मैंने एसाव से नफ़रत की।”
14 हमें क्या कहना चाहिए? क्या परमेश्वर अन्याय से काम करता है? बिल्कुल नहीं।
15 परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं फ़ैसला करता हूँ कि मैं किस को दया दिखाऊँगा। मैं फ़ैसला करता हूँ कि मैं किस को करुणा दिखाऊँगा।”
16 परमेश्वर की दया मनुष्य की इच्छाओं या कोशिशों पर निर्भर नहीं करती। परमेश्वर की दया खुद परमेश्वर पर निर्भर करती है।
17 परमेश्वर ने शास्त्रों में कहा, “हे फिरौन, मेरा एक लक्ष्य था कि सारी पृथ्वी मेरा नाम जान सके। इसलिए मैंने तुम्हें ऊँचा किया और तुम्हारे ऊपर अपनी शक्ति दिखाई।"
18 इसलिए अगर परमेश्वर चाहता है तो वह किसी व्यक्ति पर दया करेगा। और अगर परमेश्वर चाहता है तो वह किसी व्यक्ति का दिल कठोर बना देगा।
19 और आप मुझसे पूछ सकते हैं, “इस मामले में, मेरा दोष क्या है? जो परमेश्वर करना चाहता है क्या कोई उसका विरोध कर सकता है?”
20 हे मनुष्य, तुम परमेश्वर के साथ बहस कर रहे हो। लेकिन तुम हो कौन? क्या बनाई हुई चीज़ अपने बनाने वाले से कह सकती है, "तुमने मुझे ऐसा क्यों बनाया?”
21 कुम्हार अलग-अलग प्रकार के बर्तन बनाता है। क्या उसे मिट्टी के एक ही टुकड़े से एक महंगा बर्तन और कूड़े के लिए दूसरा साधारण बर्तन बनाने का अधिकार नहीं?
22 लोगों ने खुद को अशुद्धता से भर लिया। इसलिए परमेश्वर उन पर अपना क्रोध उण्डेलना चाहता था और उन्हें कूड़े के बर्तन की तरह नष्ट करना चाहता था। परमेश्वर को अपनी शक्ति दिखाने का अधिकार था। लेकिन जिन लोगों को नष्ट करने के लिए वह तैयार था, उनके लिए उसके मन में बहुत धीरज था।
23 और उसी समय परमेश्वर ने दूसरे लोगों को अपनी महिमा का धन दिखाया। ये लोग महंगे बर्तनों की तरह हैं। और उन्हें परमेश्वर ने अपनी दया दिखाई। परमेश्वर ने इन लोगों को पहले से तैयार किया ताकि वे उसकी महिमा में प्रवेश कर सकें।
24 और हम ये लोग हैं। परमेश्वर ने हमें अपने पास बुलाया। और सिर्फ़ यहूदी लोग ही नहीं लेकिन अन्यजाति लोग भी उसके पास आए।
25 परमेश्वर ने होशे भविष्यवक्ता की किताब में अन्यजाति लोगों के बारे में कहा, “जो लोग मेरे लोगों में से नहीं थे, अब उन्हें मैं अपने लोग बुलाऊँगा। जिनसे मैं पहले प्यार नहीं करता था, अब उन्हें मैं अपने प्रिय लोग कहूँगा।”
26 पिछले समय में परमेश्वर ने अन्यजाति लोगों से कहा, "आप मेरे लोग नहीं।" लेकिन अब उसी स्थान पर परमेश्वर उनसे कहते हैं, "आप जीवित परमेश्वर के बेटे बन गए।"
27 और यशायाह भविष्यवक्ता ने इस्राएल के बेटों के बारे में घोषणा की, ''इस्राएल में उतने लोग हैं जितनी समुद्र में रेत है। लेकिन परमेश्वर अपने लोगों में से छोटे समूह को ही बचाएगा।
28 प्रभु पृथ्वी पर अपना आखिरी न्याय जल्दी ही पूरा करेगा।"
29 यशायाह ने भी भविष्यवाणी की, “सर्वशक्तिमान प्रभु ने हम पर दया की और हमारे लिए उन वंशजों को छोड़ दिया जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। नहीं तो, हम सदोम और अमोरा के जैसे हो जाते।”
30 हमें क्या कहना चाहिए? अन्यजाति लोगों ने धर्मी बनने के लिए कोई कोशिश नहीं की। लेकिन उन्होंने मसीह पर विश्वास किया और इसलिए उन्होंने परमेश्वर की धार्मिकता पाई।
31 लेकिन इस्राएल के लोग धार्मिकता पाना चाहते थे और इसलिए उन्होंने मूसा के कानून का पालन किया। लेकिन कानून के द्वारा इस्राएल ने परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त नहीं की।
32 क्यों? क्योंकि लोगों ने परमेश्वर पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी बनने की कोई कोशिश नहीं की। लोगों ने मूसा के कानून के अनुसार किए गए कामों के द्वारा धर्मी बनने की कोशिश की। और मसीह वही ठोकर का पत्थर बन गया जिस पर उन्होंने ठोकर खाई।
33 परमेश्वर शास्त्रों में कहता है, “मैंने सिय्योन के पर्वत पर ठोकर खाने का पत्थर रखा। इस पत्थर पर लोग ठोकर खाएंगे। इस चट्टान के कारण लोग गिर जाएंगे। लेकिन जो कोई उस पर विश्वास करेगा वह निराश नहीं होगा।”
1 I belong to Christ, and I tell you the truth. My conscience and the Holy Spirit confirm that I am not lying.
2 I feel great sadness, and my heart grieves constantly.
3 I want so much for my native Jewish people to turn to Christ. And if I could, I would give away my salvation to my people. And I would fall under the curse and be separated from Christ.
4 God adopted the people of Israel and showed them His glory. He made the Unbreakable Agreements with the Jews and gave them His Law. The Israelites worshiped God, and He gave them His promises.
5 Abraham, Isaac, and Jacob are the forefathers of the people of Israel. And in this nation Christ was born in a human body. Christ is God. He reigns over all creation, and He is worthy of eternal glory. Amen.
6 But the Israelites rejected Christ. Does it mean that God did not fulfill His word? Of course not. Israel was a forefather of the people of Israel. But not everyone who was born in the nation of Israel became God's people.
7 And not all the children of Abraham inherited the promises given to him by God. But God said to Abraham, “Sarah will give birth to Isaac, and your descendants will come from him.”
8 Besides Isaac, Abraham had many children. But they were born out of human desire. And they were not the children God spoke about. But through Isaac God fulfilled His promise He made to Abraham. Isaac continued his family line.
9 This is a promise God made to Abraham, “In a year I will come again, and Sarah will have a son.”
10 God made the same promise not only to Abraham. When Rebekah became Isaac's wife, she could not get pregnant like Sarah. But God fulfilled His promise, and Rebekah gave birth to twins. Isaac continued Abraham's family line.
11 God spoke to Rebekah about her sons before they were born. At that time they did not do anything bad or good. God predetermines His purpose and chooses the one who will fulfill His plan.
12 God does not give calling based on a person's works. God told Rebekah before the twins were born, “The eldest son will serve the younger one.”
13 God says in the Scriptures, “I loved Jacob, but I hated Esau.”
14 What should we say? Does God act unjustly? Of course not.
15 God said to Moses, “I decide who I will show mercy. And I decide who I will show compassion.”
16 The mercy of God does not depend on man's desires or his efforts. The mercy of God depends only on God Himself.
17 God said in the Scriptures, “Pharaoh, my purpose was that all the earth might know My name. That is why I exalted you and showed My power over you.”
18 So if God wants, He will have mercy on a person. And if God wants, He will harden the heart of a person.
19 And you may ask me, “In that case, what is my fault? Can anyone resist what God wants to do?”
20 O man, you are arguing with God. But who are you? Can a created thing say to its creator, “Why did you make me like this?”
21 A potter makes different jars. Doesn’t he have a right to make from the same piece of clay an expensive vessel and a simple waste pot?
22 People filled themselves with impurity. That is why God wanted to pour out His wrath and destroy them like waste pots. God had a right to show His power. But He showed great patience towards the people whom He was ready to destroy.
23 And at the same time God showed the riches of His glory to other people. These people are like expensive vessels. And God showed His mercy to them. He prepared these people in advance so that they could enter His glory.
24 And we are these people. When God called us to Himself, not only Jews, but also Gentiles turned to Him.
25 God said about the Gentiles in the Book of the prophet Hosea, “Those who did not belong to My people I will call My people. The one I didn’t love before I will call my beloved.”
26 In the past God said to the Gentiles, “You do not belong to My people.” But now at the same place God says to them, “You became the sons of the living God.”
27 And the prophet Isaiah proclaims about the sons of Israel, “There are as many people in Israel as the sand in the sea. But God will only save a small group from among His people.
28 The Lord will quickly execute His final judgment upon the earth.”
29 Isaiah also predicted, “The Almighty Lord spared us and left us the descendants who believe in God. Otherwise, we would become like Sodom and Gomorrah.”
30 What should we say? The Gentiles did not make any effort to become righteous. But they believed in Christ, and that is why they received God's righteousness.
31 But the people of Israel wanted to receive righteousness so they obeyed the Law of Moses. But through the Law Israel did not receive God's righteousness.
32 Why? Because people did not make any effort to become righteous through faith in God. They made efforts to become righteous through the works they did based on the Law of Moses. And Christ became the very stumbling stone they stumbled over.
33 God says in the Scriptures, “I am placing a stumbling stone on Mount Zion. Because of this rock people will fall. Over this stone they will stumble. But the one who believes in Him will not be disappointed.”

अध्याय 10

Chapter 10

1 हे भाइयों, मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि इस्राएल को उद्धार मिले। और मेरा दिल इस इच्छा से भरा है।
2 मैं इस बात को पक्का कर सकता हूँ कि यहूदी लोग तड़प के साथ परमेश्वर के पास आने का हर संभव प्रयास करते हैं। लेकिन उनकी तड़प गलतफहमी पर आधारित है।
3 इस्राएल के लोग नहीं समझते कि परमेश्वर की धार्मिकता क्या है। वे अपनी धार्मिकता का पीछा करने का हर संभव प्रयास करते हैं। इसलिए वे परमेश्वर की धार्मिकता को ठुकरा देते हैं।
4 जब मसीह आया तब मूसा के कानून ने अपनी शक्ति खो दी। अब परमेश्वर उसे अपनी धार्मिकता देता है जो यीशु पर विश्वास करता है।
5 मूसा लिखता है कि कानून के आधार पर धार्मिकता कैसे प्राप्त करें, “लोगों को कानून को मानना है। और जो व्यक्ति कानून को मानता है वह कानून के लिए जीता है।”
6 जो धार्मिकता व्यक्ति को विश्वास से मिलती है, उसके विषय में शास्त्र कहते हैं, “आप परमेश्वर के वचन पर विश्वास कर सकते हैं क्योंकि वह ऊपर स्वर्ग में नहीं। इसलिए अपने दिल में ऐसा न कहें, “अगर मसीह ऊपर स्वर्ग में जाकर मेरे पास परमेश्वर का वचन लेकर आए, तब मैं इस वचन पर विश्वास करूँगा।”
7 परमेश्वर का वचन पृथ्वी की सबसे गहराई वाली जगह में भी नहीं। इसलिए ऐसा न कहें, "अगर मसीह मरे हुओं की दुनियाँ में जाएगा, फिर से जीवित होगा और मेरे पास परमेश्वर का वचन लाएगा तब मैं इस वचन पर विश्वास करूँगा।”
8 लेकिन शास्त्र क्या कहते हैं? “परमेश्वर का वचन आपके नज़दीक है। इस शब्द को बोलें और अपने दिल में इस पर विश्वास करें।” हम परमेश्वर के उस वचन का प्रचार करते हैं जो विश्वास लाता है।
9 और अगर आप खुलकर अंगीकार करें कि यीशु आपका प्रभु बन गया और आप अपने दिल में विश्वास करें कि परमेश्वर ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया तब आपको उद्धार मिलेगा।
10 जब हम अपने दिलों में विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने मसीह को जिलाया तब परमेश्वर हमें अपनी धार्मिकता देता है। और जब हम खुलकर अंगीकार करते हैं कि हम यीशु को अपने प्रभु तरह अपनाते हैं तब परमेश्वर हमें उद्धार देता है।
11 शास्त्र कहते हैं, "जो व्यक्ति मसीह पर विश्वास करता है वह परमेश्वर से कभी निराश नहीं होगा।”
12 और यहूदी व्यक्ति और अन्यजाति व्यक्ति में कोई अन्तर नहीं क्योंकि हम एक प्रभु पर विश्वास करते हैं। परमेश्वर अपने धन को हर एक को देता है जो उसे पुकारता है।
13 हर व्यक्ति जो यीशु के नाम को पुकारता है और उसे प्रभु के रूप में अपनाता है वह उद्धार पाएगा।
14 जब कोई व्यक्ति मसीह के बारे में सुनता है तब उसके दिल में विश्वास आता है और वह यीशु को पुकारता है। लेकिन अगर कोई मसीह के बारे में प्रचार न करें तो कोई व्यक्ति उस के बारे में कैसे जाने?
15 इसलिए परमेश्वर लोगों को यीशु के बारे में प्रचार करने के लिए भेजता है। यशायाह भविष्यवक्ता कहता है, “कितने सुंदर हैं वे लोग जो दूसरों के साथ अच्छी खबर बाँटने के लिए जाते हैं। वे शान्ति और दया लाते हैं।”
16 लेकिन हर किसी ने अच्छी खबर को स्वीकार नहीं किया। यशायाह भविष्यवक्ता कहता है, “हे प्रभु, हमने उन्हें प्रचार किया! लेकिन जो हमने कहा उसका किसने विश्वास किया?”
17 जब कोई व्यक्ति परमेश्वर के वचन को सुनता है तब उसके दिल में विश्वास आता है।
18 लेकिन मैं पूछना चाहता हूँ, "क्या उन्होंने परमेश्वर के वचन को नहीं सुना?" बिल्कुल, उन्होंने सुना। पूरी पृथ्वी ने प्रचारकों की आवाज़ सुनी। और पूरी दुनियाँ ने सुना कि उन्होंने किसके बारे में कहा।
19 मैं फिर से पूछूँगा, "क्या इस्राएल नहीं जानता कि परमेश्वर ने किस के बारे में बात की?” इस्राएल जानता था क्योंकि शुरुआत में परमेश्वर ने मूसा के द्वारा कहा, “मैं अपने लोगों को अन्यजाति लोगों से ईर्ष्या कराऊँगा जो कोई राष्ट्र भी नहीं। और मूर्ख अन्यजाति लोग मेरे लोगों को गुस्सा दिलाएंगे।”
20 और फिर यशायाह भविष्यवक्ता ने बहादुरी से परमेश्वर की ओर से कहा, “जिन्होंने मुझे नहीं ढूँढा उन्होंने मुझे पा लिया। मैंने खुद को उन लोगों पर प्रकट किया जिन्होंने मुझसे इसके बारे में नहीं माँगा।”
21 और परमेश्वर ने इस्राएल के बारे में यशायाह के द्वारा कहा, “दिन भर मैं अपने हाथों को उस आज्ञा न मानने वाले राष्ट्र की ओर बढ़ाए रहा, जिसने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया।”
1 Brothers, I pray to God that Israel would receive salvation. And this desire fills my heart.
2 I can confirm that the Jews zealously strive towards God. But their zeal is based on misunderstanding.
3 The people of Israel do not understand what God's righteousness is. They make efforts to follow their own righteousness. That is why they reject the righteousness of God.
4 When Christ came, the Law of Moses stopped being effective. Now God gives His righteousness to the one who believes in Jesus.
5 Moses writes about how to receive righteousness based on the Law, “People must obey the Law. And the one who obeys the Law lives for the Law.”
6 This is what the Scriptures say about the righteousness a person receives through faith, “You can believe in the Word of God because it is not high in heaven. So do not say in your heart, “If Christ goes up to heaven and brings me the Word of God down then I will believe in this Word.”
7 The Word of God is also not in the deepest parts of the earth. So do not say, “If Christ comes down to the world of the dead, returns to life and brings me the Word of God then I will believe in this Word.”
8 But what do the Scriptures say? “The Word of God is close to you. Speak this Word and believe it in your heart.” We preach the Word of God which brings faith.
9 And if you openly confess that Jesus became your Lord, and believe in your heart that God raised Christ from the dead, you will receive salvation.
10 When we believe in our heart that God raised Christ, God gives us His righteousness. And when we openly confess that we accept Jesus as our Lord, God gives us salvation.
11 The Scriptures say, “He who believes in Christ will not be disappointed in God.”
12 There is no difference between Jew and Gentile, because we believe in one Lord. God gives His riches to all who call on Him.
13 Everyone who calls on the name of Jesus and accepts Him as Lord will receive salvation.
14 When a person hears about Christ, faith comes into his heart, and he turns to Jesus. But how can a person learn about Christ if no one shares with him the message about Christ?
15 That is why God sends people to preach about Jesus. The prophet Isaiah says, “How beautiful are those who go to share the Good News. They bring peace and goodness.”
16 But not everyone accepted the Good News. The prophet Isaiah says, “Lord, we preached to them! But who believed in what we said?”
17 When a person hears the Word of God, faith comes into his heart.
18 But I would like to ask, “Didn’t they hear the Word of God?” Of course, they did. The whole earth heard the voice of the preachers. And the whole world heard what they said.
19 I will ask again, “Didn’t Israel know what God was saying?” Israel knew because in the beginning God said through Moses, “I will make My people jealous of the Gentiles who are not even a nation. And the foolish Gentiles will provoke My people to anger.”
20 Then the prophet Isaiah boldly said in the name of God, “Those who did not seek Me found Me. I revealed Myself to those who did not ask Me for it.”
21 And about Israel God said through Isaiah, “All day long I stretched my hands out to the disobedient nation who rebelled against Me.”

अध्याय 11

Chapter 11

1 मैं फिर से पूछना चाहूँगा, "क्या परमेश्वर ने अपने लोगों को ठुकरा दिया?" बिल्कुल नहीं। मैं इस्राएली हूँ। और मैं बिन्यामीन के गोत्र से अब्राहम का वंशज हूँ।
2 परमेश्वर ने अपने लोगों को नहीं ठुकराया। परमेश्वर पहले से जानता था कि उसके लोगों के साथ क्या होगा। क्या आप नहीं जानते कि शास्त्र एलिय्याह भविष्यवक्ता के बारे में क्या कहते हैं? एलिय्याह इस्राएल के बारे में परमेश्वर से शिकायत करता है और कहता है,
3 “हे प्रभु, उन्होंने आपके भविष्यवक्ताओं को मार डाला और उन स्थानों को नष्ट कर दिया जहाँ वे आपके लिए बलिदान लाते थे। मैं अकेला बच गया हूँ और वे मुझे मारने की कोशिश कर रहे हैं।”
4 परमेश्वर ने एलिय्याह को क्या जवाब दिया? “मेरे पास सात हज़ार लोग और हैं जिन्होंने बाल नाम की मूर्ति के आगे घुटने नहीं टेके।”
5 हमारे समय में भी ऐसा ही होता है। परमेश्वर ने इस्राएलियों को अपना अनुग्रह दिया और उनमें से छोटा समूह को चुना जो परमेश्वर के लिए वफ़ादार रहे।
6 अनुग्रह परमेश्वर का उपहार है जिसे हमारे कामों के द्वारा कमाना नामुमकिन है। और अगर हम अपने कामों के द्वारा कुछ कमाते हैं तो हम इसे अनुग्रह नहीं कह सकते।
7 इसलिए क्या हुआ? इस्राएल अपने कामों के द्वारा अनुग्रह कमाना चाहता था इसलिए उन्हें यह नहीं मिला। लेकिन परमेश्वर ने अपना अनुग्रह उन लोगों को दिया जिन्हें उसने चुना। और बाकी लोगों ने अपने दिलों को कठोर बना लिया।
8 शास्त्र कहते हैं, "परमेश्वर ने उन्हें ऐसी आत्मा दी जिसने उन्हें नींद में डाल दिया। उनकी आँखें अंधी हो गईं, उनके कान बहरे हो गए और यह इन दिनों तक ऐसा ही है।’’
9 राजा दाऊद कहता है, “भोजन की मेज़ उनके लिए जाल बन जाएगी और वे फन्दे में फंस जाएंगे। वे पत्थर पर ठोकर खाएंगे और वे वही पाएंगे जिसके वे लायक हैं।
10 उनकी आँखें अंधी हो जाएंगी और देखना बन्द कर देंगी। उनकी पीठ हमेशा के लिए झुक जायेगी।”
11 और मैं पूछूँगा, "क्या इस्राएल ने ठोकर खाई और वे कभी नहीं उठेंगे?" बिल्कुल, वे उठेंगे। इस्राएल ने परमेश्वर को छोड़ दिया, इसलिए अब परमेश्वर अन्यजाति लोगों को बचाता है। और यह इस्राएल को तड़प के साथ परमेश्वर को ढूँढने के लिए प्रेरित करेगा।
12 इस्राएल ने परमेश्वर को छोड़ दिया लेकिन इससे दुनियाँ में समृद्धि आई। इस्राएल ने परमेश्वर को खो दिया लेकिन इसने अन्यजातियों को समृद्ध किया। और जब इस्राएल मसीह को पाएगा तब पूरी आशीष आएगी।
13 मैं अन्यजाति लोगों का प्रेरित बन गया। और हे अन्यजाति लोगों, मैं आपको बताता हूँ कि मैं अपनी सेवा को बहुत महत्व देता हूँ।
14 मैं यह चाहता हूँ कि अन्यजाति लोगों के लिए मेरी सेवा से मेरे अपने लोग तड़प के साथ परमेश्वर की खोज कर सकें। और कम से कम कुछ इस्राएली उद्धार प्राप्त करें।
15 इस्राएल ने मसीह को ठुकरा दिया और इससे दुनियाँ ने परमेश्वर के द्वारा शान्ति पाई। तब क्या होगा जब इस्राएल मसीह को स्वीकार करेगा? यह दुनियाँ में जीवन लाएगा और मरे हुओं को जिलाएगा।
16 जब पहली फ़सल आती है तब आप कुछ आटा गूंथते हैं और आप पहली रोटी परमेश्वर के लिए लाते हैं। उसके बाद परमेश्वर पूरे गूंथे हुए आटे को पवित्र करता है। परमेश्वर ने अब्राहम को पवित्र किया इसलिए उसके वंशज भी पवित्र हो गये। अगर जड़ पवित्र है तो डालियाँ भी पवित्र हैं।
17 लेकिन अब्राहम के कुछ वंशज जैतून के पेड़ की डालियों की तरह टूट गए। और आप अन्यजाति लोग हैं। आप जंगली जैतून का पेड़ हैं। और आप टूटी हुई डालियों की जगह पर लगाए गए। अब जड़ आपको पोषण देती है और बढ़ाती है। और आप वही आशीषें पाते हैं जो परमेश्वर ने अब्राहम और उसके वंशजों को देने का वादा किया था।
18 लेकिन अपने आप को उन डालियों से बेहतर न समझें, जो पेड़ से टूट गईं। याद रखें कि आप जड़ को नहीं खिलाते लेकिन जड़ आपको खिलाती है।
19 और कोई कहेगा, "लेकिन मैं पेड़ में लगाया हूँ और मैंने उन डालियों की जगह ले ली जो टूट गई थीं।”
20 हाँ, यह सच है। लेकिन याद रखें कि इस्राएल के लोगों ने मसीह पर विश्वास नहीं किया इसलिए वे पेड़ से टूट गए। और आपने मसीह पर विश्वास किया इसलिए आप पेड़ में लगाये गये। इस पर घमंड न करें लेकिन परमेश्वर का भय मानें।
21 परमेश्वर ने असली डालियों को माफ़ नहीं किया। और अगर आप मसीह पर विश्वास खो देंगे तो परमेश्वर आपको भी माफ़ नहीं करेगा।
22 आप परमेश्वर की दया और परमेश्वर की सख्ती को देख सकते हैं। परमेश्वर उन लोगों के साथ सख्ती से व्यवहार करता है जो उसकी आज्ञा नहीं मानते। लेकिन परमेश्वर आपको अपनी दया दिखाता है। उसकी दया को अनदेखा न करें और परमेश्वर आपको पेड़ की डाली की तरह नहीं काटेंगे।
23 परमेश्वर इस्राएल के लोगों को अपने पास वापस ला सकता है। और अगर इस्राएल मसीह पर विश्वास करेगा तो वह ऐसा करेगा।
24 हे अन्यजाति, परमेश्वर ने आपको जंगली जैतून के पेड़ की डाली की तरह काट दिया। और प्रकृति से उल्टा उसने आपको बगीचे के जैतून के पेड़ में लगाया। और बिल्कुल, परमेश्वर इस्राएल के लोगों को अपने पास वापस लाने में सक्षम होगा जिन्होंने उसे छोड़ दिया था। वह माली की तरह यह करेगा जो पेड़ की टूटी हुई डालियों को वहाँ लगाता है जहाँ वे पहले बढ़ते थे।
25 हे भाइयों, ऐसा न सोचें कि आप इस्राएल के लोगों से बेहतर हैं। मैं आपको भेद की बात बताना चाहता हूँ। परमेश्वर ने पहले से ही अन्यजाति लोगों की एक संख्या के बारे में फ़ैसला कर लिया था जो उसके राज्य में प्रवेश करेंगे। इस्राएल के लोगों के कुछ भाग ने मसीह के खिलाफ़ अपने दिलों को कठोर कर लिया। और ऐसा तब तक रहेगा जब तक अन्यजातियों की पूरी संख्या मसीह के पास नहीं आ जाती।
26 इसलिए पूरा इस्राएल उद्धार पाएगा। शास्त्र कहते हैं, “छुटकारा देने वाला सिय्योन पर्वत से यरूशलेम आएगा और वह इस्राएल को परमेश्वर की ओर मोड़ देगा।
27 परमेश्वर ने वादा किया, “मैं अपने लोगों को पाप से आज़ादी दूँगा और उनके साथ अटूट समझौता करूँगा।”
28 इस्राएल मसीह की अच्छी खबर का दुश्मन बन गया। और हे अन्यजाति लोगों, यह आपके लिए उद्धार लाया। लेकिन परमेश्वर ने इस्राएल को चुना। और परमेश्वर उन्हें प्यार करते रहे क्योंकि उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से वादे किए थे, जो यहूदी लोगों के पूर्वज बनें।
29 परमेश्वर अपने उपहारों को वापस नहीं लेता। परमेश्वर उस बुलाहट को वापस नहीं लेता जो उसने किसी व्यक्ति को दी।
30 हे अन्यजाति लोगों, पहले आपने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी। लेकिन अब परमेश्वर ने आप पर दया की। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस्राएल ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी।
31 और हे अन्यजाति लोगों, अब परमेश्वर आप को अपनी दया देता है लेकिन इस्राएल परमेश्वर का विरोध करता है। लेकिन वह समय आएगा जब परमेश्वर इस्राएल पर अपनी दया करेगा।
32 किसी ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी। लेकिन परमेश्वर सब पर दया करेंगे जैसे कैदियों पर दया होती है।
33 ओह, परमेश्वर के पास कितना महान धन, बुद्धि और ज्ञान है! परमेश्वर अपने सभी फैसलों को कितने महान भेद के साथ छिपाता है! और उसके सभी तरीकों को समझना नामुमकिन है!
34 प्रभु के विचारों को कौन समझ सकता है? कौन उसे सलाह दे सकता है?
35 क्या कोई व्यक्ति परमेश्वर को अपना कर्जदार बना सकता है? हम परमेश्वर को कुछ भी उधार नहीं दे सकते।
36 परमेश्वर ही सब कुछ का सोता है। वह अपनी शक्ति से हर चीज़ को संभालता है। और जो कुछ परमेश्वर ने बनाया वह सब उसके लिए है। सभी सृष्टि हमेशा परमेश्वर को महिमा दें। आमीन।
1 I would like to ask again, “Did God reject His people?” Of course not. I am an Israelite, a descendant of Abraham from the tribe of Benjamin.
2 God did not reject His people. He foresaw what would happen to Israel. Don't you know what is written in the Scriptures about the prophet Elijah? He complains to God about Israel and says,
3 “Lord, they killed Your prophets and destroyed the places where they offered sacrifices to You. I am left alone, and they are trying to kill me.”
4 What did God answer Elijah? “I have seven thousand more people who did not kneel down before the idol called Baal.”
5 The same thing happens in our time. God gave the Israelites His grace and chose a small group from among them who remained faithful to Him.
6 Grace is a gift from God which is impossible to earn by our deeds. And if we earn something by our deeds, it would not be considered grace.
7 So what happened? Israel wanted to earn grace by their deeds that is why they did not receive it. But God gave His grace to those whom He chose. And the rest of the people hardened their hearts.
8 The Scriptures say, “God gave them a spirit which caused them to sleep. Their eyes became blind, their ears became deaf, and it continues to this day.”
9 King David says, “The table set up with food will become a snare for them, and they will fall into a trap. They will stumble over a stone and receive what they deserved.
10 Their eyes will become blind and stop seeing. Their backs will be bent forever.”
11 And I will ask, “Did Israel stumble and will never rise?” Of course, they will rise. Israel turned away from God that is why now God is saving the Gentiles. And it will cause Israel to seek God zealously.
12 Israel turned away from God, but it brought riches to the world. Israel lost God, but it enriched the Gentiles. And when Israel accepts Christ, then complete blessing will come.
13 I became an apostle to the Gentiles. And I tell you, Gentiles, that I value my ministry very much.
14 I want my ministry to the Gentiles to inspire my Jewish people to seek God zealously so that at least some of them might be saved.
15 Israel rejected Christ, and it brought reconciliation with God to the world. Then what will happen when Israel accepts Christ? It will bring life to the world and raise people from the dead.
16 When the first harvest is ripe, you knead the dough and offer the first bread to God. After that God sanctifies the whole dough. God sanctified Abraham that is why his descendants are also sanctified. If the root is holy, the branches are also holy.
17 But some descendants of Abraham were broken off like the branches of an olive tree. And you are a Gentile. You are a wild olive tree. And you were grafted into the place of the broken branches. Now the root nourishes and enriches you. And you receive the same blessings God promised to give to Abraham and his descendants.
18 But do not consider yourself better than those branches that were broken off from the tree. Remember that it is not you who nourishes the root, but the root nourishes you.
19 And someone may say, “I was grafted into the tree and took the place of those branches that were broken off.”
20 Yes, it is true. But you should remember that the people of Israel did not believe in Christ that is why they were broken off from the tree. And you believed in Christ that is why you were grafted into the tree. Do not be proud of it, but fear God.
21 God did not spare the original branches. And if you lose your faith in Christ, God will not spare you either.
22 You can see God's kindness and strictness. God is strict with those who disobey Him. But He shows you His kindness. Do not neglect His kindness, and God will not cut you off like a branch from a tree.
23 God can bring the people of Israel back to Himself. And He will do it if Israel believes in Christ.
24 Gentile, God cut you off like a branch from a wild olive tree. And contrary to nature He grafted you into the garden olive tree. And, of course, God will be able to bring the fallen Israelite people back to Himself. He will do it like a gardener who grafts broken branches into the tree where they originally grew.
25 Brothers, do not think that you are better than the people of Israel. I want to share a secret with you. God decided in advance the number of the Gentiles who would enter His Kingdom. Some of the people of Israel hardened their hearts against Christ. And it will continue until the full number of Gentiles turns to Jesus.
26 So the entire nation of Israel will receive salvation. The Scriptures say, “The Deliverer will come from Mount Zion in Jerusalem, and He will turn Israel to God.”
27 God promised, “I will give My people freedom from sin and make an Unbreakable Agreement with them.”
28 Israel is hostile to the Good News about Christ. And it brought salvation to you, Gentiles. But God chose Israel. And God continues to love them because He made His promises to Abraham, Isaac and Jacob who became the forefathers of the Jewish people.
29 God does not take His gifts away or cancel the calling He has given to a man.
30 Gentiles, before you were disobedient to God. But now He had mercy on you. It happened because Israel did not submit to God.
31 And now God gives His mercy to you, Gentiles, while Israel opposes God. But the time will come when God gives His mercy to Israel.
32 No one obeyed God. But God will have mercy on everyone, as prisoners receive mercy.
33 What great riches, wisdom and knowledge God has! What a mystery He covers all His decisions with! And how unexplainable are all His ways!
34 Who can understand the thoughts of the Lord? Who can give Him advice?
35 Can a man make God his debtor? We cannot lend anything to God.
36 God is the source of everything. He sustains everything by His power. And everything what He created exists for Him. Let all creation praise God forever. Amen.

अध्याय 12

Chapter 12

1 हे भाइयों, परमेश्वर ने हमें अपनी दया दिखाई। इसलिए मैं आप में से हर एक से विनती करता हूँ कि आप अपना जीवन परमेश्वर को सौंप दें। जब लोग बलिदान चढ़ाते हैं तब वे पूरी तरह से इसे परमेश्वर को सौंप देते हैं। उसी तरह से आपको भी अपने शरीरों को पूरी तरह से परमेश्वर को सौंपना है और पवित्र जीवन जीना है। परमेश्वर ऐसे बलिदान को खुशी के साथ स्वीकार करेगा। तब आप समझेंगे कि आप उसकी सेवा कैसे कर सकते हैं।
2 इस दुनियाँ के लोगों की तरह व्यवहार न करें। नए तरीके से सोचना सीखें और आप पूरी तरह से बदल जाएंगे। तब आप परमेश्वर की योजना को जानेंगे जो आपके लिए अच्छी होगी। आप आनन्द के साथ परमेश्वर की इच्छा पूरी करने की इच्छा करेंगे क्योंकि आप देखेंगे कि यह आपके लिए बिल्कुल उपयुक्त है।
3 परमेश्वर ने मुझे अपना अनुग्रह दिया और मैं आप में से हर एक से कहता हूँ, “ऐसा न सोचें कि आपकी सेवा दूसरों से बेहतर है। परमेश्वर ने सभी को माप कर विश्वास दिया है ताकि हर कोई परमेश्वर का काम कर सके। इसलिए आपको ईमानदारी से खुद को परखना चाहिए। आपकी सेवा उस विश्वास के अनुसार होनी चाहिए जो परमेश्वर ने आपको दिया।”
4 मानव शरीर के कई अंग होते हैं। और शरीर का हर अंग अपना काम करता है।
5 चर्च में भी ऐसा ही होता है। चर्च मसीह का शरीर है जिसके कई अलग-अलग अंग हैं। और मसीह के शरीर के सभी सदस्य एक दूसरे पर निर्भर हैं।
6 परमेश्वर ने हमें अपना अनुग्रह दिया और हमें अलग-अलग उपहार मिले। अगर आपके पास भविष्यवाणी का उपहार है तो भविष्यवाणी करें। भविष्यवाणी उस विश्वास के अनुसार होनी चाहिए जो परमेश्वर ने आपको दिया।
7 अगर आपके पास दूसरों की सेवा करने का उपहार है तो जिनको मदद की ज़रूरत है उनकी मदद करें। अगर परमेश्वर ने आपको सिखाने का उपहार दिया है तो दूसरों को सिखाएं।
8 अगर आपके पास लोगों को उत्साहित करने का उपहार है तो उनका विश्वास मज़बूत बनाएं। अगर परमेश्वर ने आपको उपहार दिया है और आप दान दे सकते हैं तो उदारता के साथ यह करें। अगर आपके पास अगुवाई करने की क्षमता है तो गंभीरता से अपनी जिम्मेदारी को लें। अगर परमेश्वर ने आपको करुणा का उपहार दिया है तो उन लोगों की मदद करें जो मुसीबत में हैं और बिना झुंझलाहट के ऐसा करें।
9 पूरे दिल से एक दूसरे से प्यार करें। बुराई लाने वाली हर चीज़ से नफ़रत करें और जो अच्छा है उसे करने का हर संभव प्रयास करें।
10 भाइयों की तरह एक दूसरे से प्यार करें। अपने चर्च में परिवार की तरह एक दूसरे के साथ मधुर संबंध बनाएं। एक दूसरे की बड़ाई करें और दूसरों के विचार का आदर करें।
11 प्रभु के लिए अपनी सेवा को गंभीरता से लें। पवित्र आत्मा की आग में उसकी सेवा करें।
12 कष्टों से गुज़रते समय धीरज रखें। परमेश्वर में मजबूत आशा रखें और यह आशा आपको आनन्द देगी। नियमित रूप से अपना समय प्रार्थना के लिए समर्पित करें।
13 अपने मसीही भाइयों और बहनों की मदद करें जो मुसीबतों से गुजरते हैं। जो आपके पास है, उसे उनके साथ बाँटें और मेहमाननवाज़ी करने का हर संभव प्रयास करें।
14 जो आपको सताते हैं उन्हें आशीष दें। उन्हें आशीष दें और श्राप न दें।
15 जो आनन्द करते हैं उनके साथ आनन्द करें। और जो रोते हैं उनके साथ रोएं।
16 समझ के साथ एक दूसरे के साथ व्यवहार करें। ऐसा न सोचें कि आप दूसरों से बेहतर हैं। छोटे पद के लोगों के साथ संगति को नजरअंदाज न करें। और ऐसा न सोचें कि आप बाकी सभी लोगों से ज़्यादा बुद्धिमान हैं।
17 जिन्होंने आप के साथ बुराई की उनके साथ बुराई न करें। लेकिन सभी लोगों के लिए अच्छा करने का हर संभव प्रयास करें और वे इसके लिए आपका आदर करेंगे।
18 जो कुछ भी आप कर सकते हैं वह सब कुछ करें ताकि आप सभी लोगों के साथ शान्ति से रह सकें।
19 परमेश्वर आपसे प्यार करता है इसलिए बदला न लें। लेकिन अपनी परिस्थिति को परमेश्वर को दें और वह अपना गुस्सा आपके दुश्मनों पर उंडेल देगा। प्रभु शास्त्रों में कहता है, “मैं बदला लूँगा। और हर व्यक्ति मुझ से वह पाएगा जिसके वह लायक है।”
20 अगर आपका दुश्मन भूखा है तो उसे खाना दें। अगर वह प्यासा है तो उसे पानी दें। इस तरह से आप अपने विरोधी को शर्म से ऐसा जलाएंगे जैसे उसके सिर पर जलते हुए अंगारे डाल दिए गए हों।
21 बुराई को अपने ऊपर विजय न पाने दें। अगर आप अच्छाई से बुराई को जवाब देंगे तो आप बुराई पर विजय पा सकेंगे।
1 Brothers, God showed us His mercy. So I urge you to dedicate your lives to Him. When people offer a sacrifice, they completely dedicate it to God. The same way, you should fully dedicate your bodies to Him in order to live a holy life. And God will gladly accept such a sacrifice. Then you will understand how you can serve Him.
2 Do not behave like the people of this world. Learn to think in a new way, and you will be completely transformed. Then you will be able to discover God's plan which will bring you good. You will joyfully desire to fulfill God’s will because you will see that it suits you perfectly.
3 God gave me His grace, and I say to each of you, “Do not think that your ministry is better than others. God gave a measure of faith to every person so that everyone could do His work. That is why you should evaluate yourselves honestly. Your ministry should be according to the faith given to you by God.”
4 The human body consists of many parts. And each part of the body does its work.
5 The same thing happens in the Church. The Church is the body of Christ which consists of many different parts. And all the members of the Body of Christ depend on one another.
6 God gave us His grace, and we received different gifts. If you have the gift of prophecy then prophesy. The prophecy should be according to the faith given to you by God.
7 If you have the gift of serving others, help those who need help. If God gave you the gift of teaching, teach others.
8 If you have the gift of encouraging, strengthen people’s faith. If God gave you the gift, and you are able to do charity, do it with generosity. If you have the ability to lead, take your responsibility seriously. If God gave you the gift of compassion, help those who are in trouble, and do it without irritation.
9 Love one another sincerely. Hate everything that brings evil and make every effort to do what is good.
10 Love one another like brothers. Build warm relationships in your church like in a family. Appreciate one another and respect the opinion of others.
11 Take your ministry to the Lord seriously. Serve Him in the fire of the Holy Spirit.
12 Be patient when you go through sufferings. Have firm hope in God, and this hope will bring you joy. Regularly dedicate time to prayer.
13 Help your brothers and sisters in Christ who are going through difficulties. Share with them what you have and do your best to be hospitable.
14 Bless those who persecute you. Bless them, do not curse them.
15 Rejoice with those who rejoice. And cry with those who cry.
16 Treat one another with understanding. Do not think that you are better than others. Do not neglect fellowship with people of low position. And do not think that you are wiser than everyone else.
17 Do not do evil to those who did evil to you. But make every effort to do good to all people, and they will respect you for that.
18 Do everything you can to live in peace with all people.
19 God loves you so do not take revenge for yourselves. But surrender your situation to God, and He will pour out His wrath on your enemies. The Lord says in the Scriptures, “I will take revenge. And every person will receive from Me what he deserves.”
20 If your enemy is hungry, give him food. If he is thirsty, give him water. Then you will make your adversary burn with shame as if burning coals were poured on his head.
21 Evil must not overcome you. You will be able to defeat evil if you do good in response to evil.

अध्याय 13

Chapter 13

1 परमेश्वर से बढ़कर कोई दूसरा अधिकारी नहीं। परमेश्वर लोगों को अधिकार देता है और शासन करने वाले अधिकारियों को नियुक्त करता है जो इस दुनियाँ में हैं। इसलिए हर व्यक्ति को सरकारी अधिकारियों की बात माननी चाहिए।
2 जो व्यक्ति अधिकारियों के खिलाफ़ विद्रोह करता है वह उस व्यवस्था के खिलाफ़ विद्रोह करता है जो परमेश्वर ने नियुक्त की। और जो व्यक्ति बगावत में भाग लेता है उसे सजा मिलेगी।
3 जो व्यक्ति अच्छे काम करता है उसे सरकारी अधिकारियों से सजा मिलने का कोई डर नहीं होता। और जो व्यक्ति बुरे काम करता है वह इस डर में जिएगा कि अधिकारी उसे सजा देंगे। तो सजा देने वाले अधिकारियों के डर के बिना कैसे जियें? अच्छे काम करें और अधिकारी आपको पसंद करेंगे।
4 सरकारी अधिकारी परमेश्वर की सेवा करते हैं और आपके लाभ के लिए काम करते हैं। मैं आपको चेतावनी देता हूँ कि परमेश्वर का सेवक अपनी तलवार को व्यर्थ में पकड़े नहीं रहता। अगर आप बुराई करते हैं तो वह आप से गुस्सा होगा। और वह आपको आपके बुरे कामों के लिए सजा देगा।
5 जो सही है आपको वही करना है और अच्छी अंतरात्मा के अनुसार जीवन जियें। और तब आप सिर्फ़ सजा के डर के कारण अधिकारियों के अधीन नहीं होंगे।
6 अधिकारी लगातार अपने कर्तव्यों को पूरा करते हैं और इस तरह से वे परमेश्वर की सेवा करते हैं। इसलिए आपको अच्छी अंतरात्मा के अनुसार व्यवहार करना चाहिए और टैक्स देने चाहिए।
7 जो कुछ आपको देना है वह सब कुछ दें। उन्हें टैक्स और शुल्क दें, जो उन्हें इकट्ठा करते हैं। उन लोगों को आदर और सम्मान दें जिन्हें आदर और सम्मान देना चाहिए।
8 आपके पास एक को छोड़कर कोई कर्ज नहीं होना चाहिए। आपको हमेशा एक दूसरे से प्यार करना है। जो दूसरे व्यक्ति से प्यार करता है उसने मूसा के कानून का पालन किया।
9 ये वही आज्ञाएँ हैं जो परमेश्वर ने मूसा के द्वारा दी थी, “हत्या न करें। अपने जीवन साथी को धोखा न दें। चोरी न करें। झूठी गवाही न दें। जो दूसरों के पास है उससे जलन न करें।” ये आज्ञाएँ और बाकी आज्ञाएँ एक बात के बारे में बोलती हैं, “जैसे आप खुद से प्यार करते हैं वैसे ही दूसरे व्यक्ति से प्यार करें।”
10 जो व्यक्ति प्यार करता है वह दूसरे व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुँचाता। इसलिए जो प्यार करता है वह मूसा के कानून को मानता है।
11 एक दूसरे के साथ प्यार से व्यवहार करें। आपको समझना चाहिए कि वह समय आ गया है जब हमें आत्मिक रूप से जागना है। हमने मसीह पर विश्वास किया और अब हम उस पल के नज़दीक आ रहे हैं जब परमेश्वर हमें बचाएगा।
12 रात बीत गई है और दिन जल्दी ही आएगा। इसलिए जो आपने अन्धेरे में किया, उसे करना बन्द करें। रोशनी में जीवन जियें और अच्छे काम करें। और यह अंधकार के खिलाफ़ आपका हथियार बन जाएगा।
13 हम दिन की रोशनी में जीते हैं। इसलिए जो सही है वही करें। अनैतिक तरीके से अपना जीवन न जियें और शराबी न बनें। गलत यौन संबंधों और चरित्रहीन कामों से कोई लेना-देना न रखें। झगड़ा न करें और एक दूसरे से ईर्ष्या न करें।
14 परमेश्वर के नए स्वभाव को अपने अन्दर के इंसान को पहनाएं। तब आप हमारे प्रभु यीशु मसीह के जैसा व्यवहार करेंगे। और आप ऐसा नहीं सोचेंगे कि आपके शरीर की पापी इच्छाओं को कैसे संतुष्ट करें।
1 There is no other higher authority than God. God gives authority to people and establishes governing authorities which exist in this world. That is why every person should submit to governing authorities.
2 He who rebels against authorities rebels against the order established by God. And the one who takes part in rebellion will receive punishment.
3 The one who does good deeds has no fear of punishment from the government officials. And the one who does evil will live in fear that the authorities will punish him. So how to live without fear of the authorities punishing you? Do good deeds, and you will receive approval from the authorities.
4 Government officials serve God and work for your benefit. And I warn you that God's servant does not carry a sword for no reason. If you do evil, you will bring his wrath upon yourself, and he will punish you.
5 You should do what is right and live according to your conscience. Then you will submit to authorities not only out of fear of punishment.
6 The authorities constantly fulfill their duties, and this way they serve God. That is why you should act according to your conscience and pay taxes.
7 Give away everything you should give away. Pay taxes and fees to those who collect them. Show respect and honor to those whom you should respect and honor.
8 You should have no debt except this: that you should always love one another. The one who loves another person has fulfilled the Law of Moses.
9 These are the commandments God gave through Moses, “Do not murder. Do not be unfaithful to your spouse. Do not steal. Do not give false testimony. Do not envy what others have.” These commandments and the rest of them can be summarized in one thing, “Love another person as you love yourself.”
10 He who loves does not harm another person. That is why he who loves fulfills the Law of Moses.
11 Treat one another with love. You should understand that the time came for us to wake up spiritually. We believed in Christ, and now we are approaching the moment when God saves us.
12 The night has passed, and the day is coming soon. So stop doing what you were doing in the darkness. Live in the light and do good deeds. And it will become your weapon against the darkness.
13 We live in the light of the day. So let’s do what is right. Do not live an immoral life and do not get drunk. Do not indulge in sexual immorality and immoral activities. Do not quarrel and do not envy one another.
14 Put the new nature of God on your inner person. Then you will act as our Lord Jesus Christ did. And you will not think about how to satisfy the sinful desires of your body.

अध्याय 14

Chapter 14

1 जिनका विश्वास कमज़ोर है उनके साथ संगति करें। और विवादित विषयों पर उनके साथ झगड़ा न करें।
2 एक व्यक्ति विश्वास करता ​​है कि आप कुछ भी खा सकते हैं। और दूसरा व्यक्ति सिर्फ़ सब्जियाँ खाता है क्योंकि उसका विश्वास कमज़ोर है।
3 अगर आप सब कुछ खाते हैं तो शाकाहारी को नीचा न देखें। और अगर आप शाकाहारी हैं तो हर चीज़ खाने वाले को दोष न दें। याद रखें कि परमेश्वर ने आप दोनों को अपनाया है।
4 क्या आप सोचते हैं कि आपके पास किसी और के गुलाम को दोषी ठहराने का अधिकार है? सिर्फ़ प्रभु ही फ़ैसला करता है कि उसका गुलाम सही या गलत है। और अगर उसका गुलाम गलत है तो परमेश्वर उसे सही कर सकता है।
5 एक व्यक्ति सोचता है कि कुछ दिन बाकी दिनों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। और दूसरा व्यक्ति सोचता है कि सभी दिन एक जैसे हैं। हर किसी को उसके विश्वास के अनुसार काम करने दें।
6 कुछ लोग एक दिन को अलग रखते हैं और इस दिन को प्रभु को सौंपते हैं। दूसरे लोग विश्वास करते ​​हैं कि कोई दिन खास नहीं। और वे हर दिन को प्रभु को समान रूप से सौंपते हैं। परमेश्वर ने उन लोगों को अपनाया जो विश्वास करते हैं कि वे कुछ भी खा सकते हैं। और जब वे खाना खाते हैं तब वे उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। प्रभु ने उन लोगों को भी अपनाया जो कुछ खाना खाने से मना करते हैं। और वे भी उसके लिए परमेश्वर का धन्यवाद देते हैं।
7 हम परमेश्वर के हैं इसलिए हम अपने लिए नहीं जीते। और हम में से कोई भी अपनी मौत के दिन को नहीं चुन सकता।
8 हम प्रभु की महिमा के लिए जीते हैं। और हमारी मौत के द्वारा भी उसकी महिमा होनी चाहिए। इस जीवन में हम परमेश्वर के हैं। और जब हम मरेंगे तब हम भी उसी के होंगे।
9 इसलिए मसीह मरा और फिर से जी उठा। अब वह जीवित और मरे हुए लोगों पर राज्य करता है।
10 इसलिए आप अपने भाई का न्याय क्यों करते हैं? आप उससे घृणा क्यों करते हैं? याद रखें कि हम सभी मसीह के सामने खड़े होंगे और वह हमारा न्याय करेगा।
11 प्रभु ने शास्त्रों में कहा, “मैं जीवित परमेश्वर हूँ। हर व्यक्ति मेरे सामने घुटने टेकेगा। हर व्यक्ति मेरी महिमा करेगा और स्वीकार करेगा कि मैं परमेश्वर हूँ।”
12 इसलिए हम में से हर एक परमेश्वर को अपने जीवन का हिसाब देगा।
13 इसलिए एक दूसरे का न्याय करना बन्द करें। इसके बजाय, अपने आप को जाँचें। इस तरह से व्यवहार करें कि आप दूसरे विश्वासियों का अपमान न करें और उन्हें पाप के लिए न उकसाएं।
14 प्रभु यीशु के कारण मैं जानता हूँ और मुझे पूरा आत्मविश्वास है कि कोई भी भोजन किसी व्यक्ति को अशुद्ध नहीं कर सकता। लेकिन अगर कोई व्यक्ति विश्वास करता है कि कुछ भोजन उसे अशुद्ध बनाता है तो यह खाना उसके लिए अशुद्ध हो जाता है।
15 अगर आपका भाई इस बात से परेशान है कि आप किस तरह का खाना खाते हैं तो इसका मतलब है कि आप उससे बिना प्यार के व्यवहार करते हैं। ऐसा काम न करें कि आपके खाने से आपके भाई का नाश हो जाए जिसके लिए मसीह मरा।
16 आप विश्वास करते हैं कि जो आप कर रहे हैं वह सही है। लेकिन आपका सही विश्वास इसका कारण नहीं बनना चाहिए कि लोग आपसे झगड़ा करें।
17 हम परमेश्वर के राज्य में जीते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण नहीं कि हम कौन सा खाना खाते हैं और क्या पीते हैं। लेकिन सचमुच में यह महत्वपूर्ण है कि हम धार्मिकता से काम करें, दूसरे लोगों के साथ शान्ति से रहें और पवित्र आत्मा में आनन्द करें।
18 जो व्यक्ति इन कामों को करता है वह मसीह की सेवा करता है। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर को खुशी देता है और लोगों के आदर का हकदार है।
19 शान्ति से जीने और एक दूसरे के विश्वास को मज़बूत बनाने के लिए हर संभव प्रयास करें।
20 खाने के सवाल पर झगड़ा न करें, परमेश्वर के काम को नष्ट न करें। कोई भोजन किसी व्यक्ति को अशुद्ध नहीं बना सकता। लेकिन अगर आपका भाई इस बात से परेशान है कि आप किस तरह का खाना खाते हैं तो आप गलत हैं।
21 मांस न खाएं और शराब न पियें अगर यह आपके भाई को परेशान करता है या उसे पाप करने के लिए उकसाता है। इस तरह से काम न करें कि आपके काम किसी दूसरे व्यक्ति के विश्वास को कमज़ोर बना दें।
22 क्या आप विश्वास करते हैं कि आप सही हैं? इसे अपना व्यक्तिगत विश्वास बने रहने दें और इसे आपके और परमेश्वर के बीच में रहने दें। जिस व्यक्ति ने अपना चुनाव किया और दोषी महसूस नहीं करता वह आशीषित है।
23 अगर आप कुछ खाते हैं और शक करते हैं कि क्या आप सही काम कर रहे हैं तो आप दोषी महसूस करेंगे। आप अपने विश्वास के खिलाफ़ जाते हैं। और इसका मतलब है कि आप पाप कर रहे हैं।
1 Keep fellowship with those who have weak faith. And do not quarrel with them over controversial issues.
2 One person believes that he can eat anything. And another one eats only vegetables because he has weak faith.
3 If you eat everything, do not look down on a vegetarian. And if you are a vegetarian, do not judge the one who eats everything. You should remember that God accepted each of you.
4 Do you think that you have right to judge someone else's slave? Only the Lord decides whether His slave is right or wrong. And if His slave is wrong, God is able to correct him.
5 One person thinks that some days are more important than the others. And another person thinks that all days are the same. Let everyone act according to his beliefs.
6 Some people set aside one day and dedicate it to the Lord. Others believe that there are no special days. And every day they devote equally to God. The Lord accepted people who believe that they can eat anything. And when they eat, they thank God for that. The Lord also accepted people who refuse to eat certain food. And they also thank God for that.
7 We belong to God so we do not live for ourselves. And none of us can choose the day of our death.
8 We live to glorify the Lord. And our death should also bring glory to Him. In this life we belong to God. And when we die, we will also belong to Him.
9 This is why Christ died and rose again. Now He rules over the living and the dead.
10 So why do you judge your brother? Why do you despise him? Remember that we all will stand before Christ, and He will judge us.
11 The Lord says in the Scriptures, “I am the living God. Every person will kneel down before Me. Every person will praise Me and acknowledge that I am God.”
12 So each of us will give an account to God for his life.
13 So stop judging one another. Instead, watch yourself. Behave in such a way that you would not offend other believers and would not provoke them to sin.
14 Because of the Lord Jesus I know, and I am fully confident that no food can make a person unclean. But if a person believes that certain food makes him unclean then for him this food becomes unclean.
15 If your brother is upset about the food you eat, it means you are treating him without love. Do not act in a way that your food ruins your brother for whom Christ died.
16 You believe that what you are doing is right. But your correct beliefs should not be a reason why people quarrel with you.
17 We live in the Kingdom of God. So it is not important what food we eat and what we drink. But it is really important that we would act righteously, live in peace with others, and rejoice in the Holy Spirit.
18 The one who does these things serves Christ. Such a person brings joy to God and deserves the respect of people.
19 Make efforts to live peacefully and to strengthen one another's faith.
20 Do not quarrel over the issue of eating, do not destroy God's work. No food can make a person unclean. But if your brother is upset about the food you eat then what you are doing is wrong.
21 Do not eat meat and do not drink wine if it makes your brother upset or causes him to sin. Do not behave in a way that someone’s faith is weakened because of your actions.
22 Do you believe that you are right? Let it be your personal conviction and remain between you and God. Blessed is the man who made his choice and does not feel guilty.
23 If you eat and doubt whether you are doing a right thing, you will feel guilty. You are going against your faith. And it means you are sinning.

अध्याय 15

Chapter 15

1 हम मजबूत बन गए। इसलिए हमें धीरज से उन लोगों की कमज़ोरियों को सहना चाहिए जो हमसे कमज़ोर हैं। हमें सिर्फ़ अपने स्वार्थ की परवाह नहीं करनी चाहिए।
2 हमें एक दूसरे की परवाह करनी चाहिए और भलाई करनी चाहिए। और तब हमारा विश्वास मजबूत हो जाएगा।
3 मसीह ने अपने लिए जीवन नहीं जिया, मसीह परमेश्वर के लिए जिया। शास्त्र कहते हैं, “हे परमेश्वर, लोगों ने आपका अपमान किया और मैंने ये अपमान अपने ऊपर ले लिया।”
4 हम उन शास्त्रों को पढ़ते हैं जो बहुत पहले भविष्यवक्ताओं ने हमारे लिए लिखे थे। सभी शास्त्र हमें धीरज रखना सिखाते हैं। शास्त्र हमें उत्साहित करते हैं ताकि हम अपनी आशा न खोएं।
5 परमेश्वर हमें धीरज देता है और हमें उत्साहित करता है। वह आपको एक दूसरे के साथ सहमति से रहने और यीशु मसीह की शिक्षा का पालन करने में मदद करेगा।
6 एक जैसे नज़रिये रखें। और एकता में परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता की महिमा करें।
7 मसीह ने आपको अपनाया इसलिए आपको भी एक दूसरे को अपनाना है। और इससे परमेश्वर को महिमा होगी।
8 मैं आपको बताता हूँ कि जो वादा परमेश्वर ने हमारे बाप दादों इब्राहीम, इसहाक और याकूब से किया था, उसे पूरा करने के लिए मसीह ने खतना किए हुए यहूदियों की सेवा की। और मसीह के द्वारा परमेश्वर ने यहूदी लोगों को अपनी सच्चाई दिखाई।
9 मसीह ने अन्यजाति लोगों के बीच में भी सेवा की। और परमेश्वर ने अपनी दया के कारण ऐसा किया ताकि अन्यजाति लोग परमेश्वर की महिमा करें। शास्त्र कहते हैं, “हे प्रभु, मैं अन्यजाति लोगों के बीच में आपकी स्तुति करूँगा। मैं आपके नाम की प्रशंसा गाऊँगा।”
10 शास्त्र भी कहते हैं, “हे अन्यजातियों, परमेश्वर के लोगों के साथ आनन्द मनाओ।”
11 हम शास्त्रों में भी पढ़ते हैं, “हे सभी अन्यजातियों, प्रभु की स्तुति करो। और हे सभी राष्ट्रों, परमेश्वर की महिमा करो।”
12 यशायाह भविष्यवक्ता भी कहता है, “एक वंशज दाऊद राजा के परिवार में से उठेगा। वह राष्ट्रों पर राज करेगा और अन्यजातियाँ उस पर आशा रखेंगी।”
13 परमेश्वर आशा का सोता है। उस पर भरोसा करें और वह आपको सारे आनन्द और शान्ति से भर देगा। परमेश्वर आपको पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा आशा से अमीर बनाएगा।
14 हे भाइयों, मुझे यकीन है कि आप एक दूसरे के साथ दयालु हैं। आप बहुत सी बातें जानते हैं और आप एक दूसरे को सिखा सकते हैं।
15 हे भाइयों, मैं आपको बहादुरी से लिखता हूँ क्योंकि मैं आपको उस उपहार के बारे में याद दिलाना चाहता हूँ जो मुझे परमेश्वर से मिला था।
16 परमेश्वर के अनुग्रह से मैं यीशु मसीह की सेवा करता हूँ जिसने मुझे अपना याजक बनाया। इसलिए मैं अन्यजाति लोगों के बीच में अच्छी खबर को फैलाता हूँ और पवित्र आत्मा उन्हें पवित्र करती है। याजक की तरह मैं अन्यजाति लोगों को परमेश्वर के पास लाता हूँ और मेरी सेवा उसे आनन्द देती है।
17 मैं यीशु मसीह का हूँ। मैं परमेश्वर की सेवा करता हूँ और यह मुझे आनन्दित बनाता है।
18 मैं बहादुरी से आपको उस काम के बारे में बताना चाहता हूँ जो मसीह ने मेरे द्वारा किया। जब मैंने अन्यजाति लोगों के बीच में मसीह का प्रचार किया तब उन्होंने मेरी बातों पर विश्वास किया और उन्होंने मेरे कामों को देखा। और इस तरह से अन्यजाति लोगों ने परमेश्वर की आज्ञा मानी।
19 परमेश्वर ने मेरे द्वारा बहुत महान काम किया। पवित्र आत्मा की शक्ति ने चमत्कार किए और लोगों ने अलौकिक दर्शनों को देखा। जब मैं यरूशलेम से इल्लुरिकुम को गया तब रास्ते में मैंने मसीह के बारे में अच्छी खबर को फैलाया।
20 मैं किसी और की नींव पर अपनी सेवा शुरू नहीं करना चाहता था। इसलिए मैंने उन जगहों पर अच्छी खबर को ले जाने का हर संभव प्रयास किया जहाँ लोगों ने मसीह के नाम के बारे में कुछ भी नहीं सुना था।
21 शास्त्र कहते हैं, “जो लोग उसके बारे में कुछ नहीं जानते थे, वे उसे देखेंगे। जिन लोगों ने उसके बारे में कभी नहीं सुना, वे उसके बारे में जानेंगे।”
22 कई बार मैं आपसे मिलना चाहता था। लेकिन मैंने दूसरी जगहों पर सेवा की इसलिए मैं आपके पास नहीं आ सका।
23 कई सालों से मैं आपसे मिलना चाहता था। और अब मैंने अपना काम पूरा कर लिया है जहाँ मैंने पहले प्रचार किया था।
24 मैं अपनी स्पेन यात्रा की योजना बना रहा हूँ और रास्ते में मैं रोम में आपके स्थान पर रुकूँगा। मैं आशा करता हूँ कि मैं आप से मिलूँगा और आपके साथ अच्छा समय बिताऊँगा। उसके बाद मैं चाहता हूँ कि आप स्पेन जाने में मेरी मदद करें।
25 लेकिन सबसे पहले मैं परमेश्वर के पवित्र लोगों की सेवा करने के लिए यरूशलेम जाऊँगा।
26 मकिदुनिया और अखया के विश्वासियों ने यरूशलेम में रहने वाले गरीब विश्वासियों के लिए भेंट इकट्ठा की है।
27 उन्होंने यहूदी लोगों को धन्यवाद देने के लिए आनन्द के साथ ऐसा किया। शुरुआत में यहूदी लोगों ने अन्यजाति लोगों के साथ अपनी आत्मिक आशीषों को बाँटा। और अब अन्यजाति लोगों को सांसारिक आशीषों के साथ यहूदी लोगों की सेवा करनी चाहिए।
28 मैं इस काम को पूरा करूँगा और खुद उनकी भेंट यरूशलेम ले जाऊँगा। उसके बाद मैं स्पेन जाऊँगा और रोम में आपके स्थान पर रुकूँगा।
29 जब मैं आपके पास आऊँगा तब मैं आपके पास मसीह की अच्छी खबर लाऊँगा। और मुझे यकीन है कि परमेश्वर आपको बहुतायत से आशीष देगा।
30 हे भाइयों, पवित्र आत्मा ने हमें अपने प्रेम से एक कर दिया। इसलिए हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में मैं आपसे विनती करता हूँ कि मेरे लिए और मेरी चुनौती भरी सेवा के लिए लगातार प्रार्थना करते रहें।
31 प्रार्थना करें कि परमेश्वर मुझे उन अविश्वासियों से छुड़ाए जो यहूदिया में रहते हैं। इसके बारे में भी प्रार्थना करें कि परमेश्वर के पवित्र लोग यरूशलेम में मेरी सेवा को अच्छी तरह से स्वीकार करें।
32 और अगर परमेश्वर की इच्छा होगी तो उसके बाद मैं आनन्द से आपके साथ जाऊँगा और आपके स्थान पर कुछ आराम करूँगा।
33 परमेश्वर आपको शान्ति दे। और परमेश्वर हमेशा आपके साथ रहे। आमीन।
1 We became strong. So we should patiently endure the weaknesses of those who are weaker than us. We should not care only about our interests.
2 We should take care of one another and do good. This way our faith will become strong.
3 Christ lived for God, not for Himself. The Scriptures say, “God, people insulted You, and I took these insults upon Myself.”
4 We read the Scriptures written down for us by the prophets long ago. All the Scriptures teach us to be patient and encourage us to never lose hope.
5 God gives us patience and encourages us. He will help you live in agreement with one another and follow the teaching of Jesus Christ.
6 You should share the same points of view. And in unity you should glorify God and the Father of our Lord Jesus Christ.
7 Christ accepted you so you should also accept one another. And it will bring glory to God.
8 I tell you that Christ ministered to the circumcised Jews to fulfill the promise God made to our fathers — Abraham, Isaac and Jacob. And through Christ God showed His truth to the Jews.
9 Christ also ministered to the Gentiles. God did it out of His mercy so that they would glorify Him. The Scriptures say, “Lord, I will glorify You among the Gentiles. I will sing praises to Your name.”
10 The Scriptures also say, “Gentiles, rejoice with the people of God.”
11 We also read in the Scriptures, “All the Gentiles, praise the Lord. And all the nations, glorify God.”
12 The prophet Isaiah also says, “The Descendant will arise from the family of King David. He will reign over the nations, and the Gentiles will put their hope in Him.”
13 God is the source of hope. Trust Him, and He will fill you with boundless joy and peace. God will enrich you with hope through the power of the Holy Spirit.
14 Brothers, I am confident that you are kind to one another. You have a lot of knowledge, and you can teach one another.
15 Brothers, I write to you boldly because I want to remind you of the gift I received from God.
16 By God's grace I serve Jesus Christ who made me His priest. That is why I spread the Good News among the Gentiles, and the Holy Spirit sanctifies them. As a priest I bring the Gentiles to God, and my ministry brings joy to Him.
17 I belong to Jesus Christ. I serve God, and it makes me joyful.
18 I would like to boldly tell you about the work Christ did through me. When I preached to the Gentiles about Christ, they believed my words and witnessed what I did. This way the Gentiles submitted to God.
19 God worked mightily through me. The power of the Holy Spirit performed miracles, and people saw supernatural manifestations. When I traveled from Jerusalem to Illyricum, I spread the Good News about Christ everywhere along the way.
20 I did not want to build my ministry on someone else’s foundation. That is why I made every effort to bring the Good News to those places where people never heard about the name of Christ.
21 The Scriptures say, “Those who knew nothing about Him will see Him. Those who never heard of Him will know about Him.”
22 Many times I wanted to visit you. But I ministered in other places, and I could not come to you.
23 For many years I wanted to meet you. And now I finished my work where I preached before.
24 I am planning a trip to Spain, and on the way I will stop at your place in Rome. I hope to see you and to enjoy some time together with you. After that I would like you to help me travel to Spain.
25 But first I will go to Jerusalem to minister to the holy people of God there.
26 The believers from Macedonia and Achaia collected an offering for the poor believers who live in Jerusalem.
27 They did it joyfully to thank the Jews. In the past the Jews shared their spiritual blessings with the Gentiles. And now the Gentiles should minister to the Jews with their financial blessings.
28 I will fulfill this task and personally deliver their donation to Jerusalem. After that I will travel to Spain and will stop at your place in Rome.
29 When I come to visit you, I will bring you the Good News about Christ. And I am confident that God will abundantly bless you.
30 Brothers, the Holy Spirit has united us in His love. So in the name of our Lord Jesus Christ I ask you to continually pray for me and my challenging ministry.
31 Pray that God would deliver me from the unbelievers who live in Judea. Pray also that the holy people of God in Jerusalem would gladly accept my ministry.
32 And if it is God’s will, after that I will joyfully go to you and have rest at your place.
33 May God give you peace. And may God always be with you. Amen.

अध्याय 16

Chapter 16

1 मैं हमारी बहन फीबे को आपसे मिलवाना चाहता हूँ। वह किंख्रिया शहर में रहती है और चर्च में सेविका के रूप में सेवा करती है।
2 आप परमेश्वर के पवित्र लोगों में से हैं। और मैं प्रभु के नाम में आपसे विनती करता हूँ, अच्छे तरीके से उसे अपनाएं। उसने मेरी और कई दूसरे लोगों की मदद की। इसलिए आपको भी उसकी मदद करनी चाहिए और उसे ज़रूरत की हर चीज़ देनी चाहिए।
3 प्रिस्किला और अक्विला को मेरा नमस्कार दें जिनके साथ हमने यीशु मसीह के लिए काम किया।
4 उन्होंने मेरे लिए अपने जीवन खतरे में डाले और मैं ऐसा करने के लिए उन्हें धन्यवाद देता हूँ। और सभी अन्यजाति लोगों के चर्च भी इसके लिए उन्हें धन्यवाद देते हैं। उनके घर पर इकट्ठा होने वाले चर्च को मेरा नमस्कार दें।
5 हमारे प्यारे भाई इपैनितुस को मेरा नमस्कार दें। वह पहला व्यक्ति था जो आसिया में मसीह की ओर फिरा।
6 मरियम को नमस्कार दें जिस ने हमारे लिए बहुत अच्छा काम किया।
7 मेरे रिश्तेदारों अन्द्रुनीकुस और यूनियास को मेरा नमस्कार दें जो मेरे साथ जेल में थे। उन्होंने मुझसे पहले मसीह पर विश्वास किया और वे प्रेरितों के बीच बहुत आदर पाते हैं।
8 भाई अम्पलियातुस को नमस्कार दें जो प्रभु में मेरा प्यारा बन गया।
9 उरबानुस को मेरा नमस्कार दें जिसके साथ हमने मसीह के लिए काम किया। हमारे प्यारे भाई इस्तखुस को भी नमस्कार दें।
10 अपिल्लेस को मेरा नमस्कार दें जो परीक्षाओं से गुज़रा और मसीह को अपनी विश्वासयोग्यता दिखाई। अरिस्तूबुलुस के परिवार के विश्वासियों को मेरा नमस्कार दें।
11 मेरे रिश्तेदार हेरोदियोन को मेरा नमस्कार दें। नरकिस्सुस के परिवार के उन लोगों को नमस्कार दें जो प्रभु की ओर फिरे हैं।
12 त्रूफेना और त्रूफोसा को मेरा नमस्कार दें जो प्रभु के लिए काम करती हैं। प्यारे परसिस को नमस्कार दें जिसने प्रभु के लिए महान काम किया।
13 रूफुस को मेरा नमस्कार दें जिसे प्रभु ने चुन लिया। उसकी माँ को नमस्कार दें जो मेरे लिए भी माँ बन गई।
14 अंसुक्रितुस, फिलगोन, हिर्मेस, पत्रूबास, हिरमास और दूसरे भाइयों को नमस्कार दें जो उनके साथ हैं।
15 फिलुलुगुस, यूलिया, नेर्युस और उसकी बहन, उलुम्पास और उन सभी विश्वासियों को मेरा नमस्कार दें जो उनके साथ हैं।
16 एक दूसरे को पवित्र चुम्बन के साथ नमस्कार करें। मसीह के सभी चर्च आपको नमस्कार भेजते हैं।
17 हे भाइयों, आप मसीह की शिक्षा पर विश्वास करते हैं। और मैं आपसे विनती करता हूँ कि जो लोग इस शिक्षा के खिलाफ़ जाते हैं, उनसे दूर रहें। ऐसे लोग फूट लाते हैं और दूसरे लोगों को पाप करने के लिए उकसाते हैं। ऐसे लोगों की संगति से दूर रहें।
18 ऐसे लोग हमारे प्रभु यीशु मसीह की सेवा नहीं करते लेकिन वे अपने ही स्वार्थ की सेवा करते हैं। वे अपनी बोली को आकर्षक बनाते हैं। वे चापलूसी करते हैं और भोले लोगों के दिलों को धोखा देते हैं।
19 हर कोई जानता है कि आपने परमेश्वर पर विश्वास किया और उसकी आज्ञा मानी। और यह मुझे आनन्द देता है। मैं चाहता हूँ कि आप बुद्धिमान लोग बनें जो अच्छा काम करते है और जिनका बुराई से कोई लेना-देना नहीं।
20 परमेश्वर शान्ति का सोता है। और वह शैतान को जल्दी ही आपके पैरों के नीचे कुचलवा देगा। हमारे प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह में जियें। आमीन।
21 मैं तीमुथियुस के साथ प्रभु के लिए काम करता हूँ और वह आपको नमस्कार भेजता है। और मेरे रिश्तेदार लुकियुस, यासोन और सोसिपत्रुस भी आपको नमस्कार करते हैं।
22 मैं तिरतियुस हूँ। और मैंने पौलुस के लिए इस पत्र को लिखा। मैं प्रभु पर विश्वास करता हूँ और मैं भी आपको नमस्कार करता हूँ।
23 गयुस ने खुशी से मुझे और पूरे चर्च को अपने घर में स्वीकार किया। वह आपको नमस्कार करता है। भाई क्वारतुस और भाई इरास्तुस जो शहर के भण्डारी है आपको नमस्कार करते हैं।
24 हमारे प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह में जियें। आमीन।
25 मैं यीशु मसीह की अच्छी खबर का प्रचार करता हूँ। और परमेश्वर आपको इस खबर के द्वारा मजबूत बना सकता है। परमेश्वर ने मुझे अपने रहस्य के बारे में प्रकाशन दिया जिसे उसने युगों से किसी पर प्रकट नहीं किया था।
26 भविष्यवक्ताओं ने शास्त्रों में भविष्यवाणी की थी कि वह समय आएगा जब परमेश्वर इस रहस्य को लोगों पर प्रगट करेगा। और अब अनन्त परमेश्वर ने हमें आज्ञा दी है कि हम सभी राष्ट्रों को यह रहस्य बताएं ताकि वे परमेश्वर पर विश्वास करें और उसकी आज्ञा मानें।
27 और यीशु मसीह के द्वारा हम सभी युगों में एकमात्र बुद्धिमान परमेश्वर की महिमा करेंगे। आमीन।
1 I would like to introduce our sister Phoebe to you. She lives in the city of Cenchrea and serves as a deacon in the church.
2 You belong to the holy people of God. And in the name of the Lord I ask you to accept her in a worthy manner. She helped me and many other people. That is why you also should help her and provide her with everything she needs.
3 Give my greetings to Priscilla and Aquila with whom we worked together for Jesus Christ.
4 I thank them for risking their lives for me. All the Gentile churches also thank them for this. Give my greetings to their church which meets at their home.
5 Give my greetings to our dear brother Epenetus who was the first to turn to Christ in Achaia.
6 Greet Mary who did a great job for us.
7 Give my greetings to my relatives Andronicus and Junia who were put to prison with me. They believed in Christ before I did, and they are highly respected among the other apostles.
8 Greet brother Ampliatus who became dear to me in the Lord.
9 Give my greetings to Urbanus with whom we ministered together for Christ. Also greet our dear brother Stachys.
10 Give my greetings to Apelles who went through trials and showed his faithfulness to Christ. Greet the believers from the family of Aristobulus.
11 Give my greetings to my relative Herodion. Greet those who have turned to the Lord in the family of Narcissus.
12 Give my greetings to Tryphena and Tryphosa who minister for the Lord. Greet dear Persis who did a great work for the Lord.
13 Give my greetings to Rufus chosen by the Lord. Greet his mother who also became a mother to me.
14 Greet Asyncritus, Phlegon, Hermes, Patrobas, Hermas, and the other brothers who are with them.
15 Give my greetings to the Philologus, Julia, Nereus and his sister, Olympas and all the believers who are with them.
16 Greet one another with a holy kiss. All the churches which belong to Christ send you greetings.
17 Brothers, you believe in the teaching of Christ. And I urge you to stay away from those who go against this teaching. Such people bring divisions and lead others to sin. That is why you should avoid fellowship with them.
18 These people do not serve our Lord Jesus Christ, but they pursue their own interests. They make their speech attractive. They flatter and deceive the hearts of naive people.
19 Everyone knows that you believed in God and submitted to Him. So it brings me joy. I want you to be wise people who do good and have nothing to do with evil.
20 God is the source of peace. And soon He will crush Satan under your feet. Live in the grace of our Lord Jesus Christ. Amen.
21 I work for the Lord together with Timothy, and he sends you greetings. And my relatives Lucius, Jason and Sosipater also greet you.
22 I, Tertius, wrote this letter under the dictation of Paul. I believe in the Lord, and I also greet you.
23 Gaius who gladly received me and the whole church into his house sends you greetings. Brother Quartus and brother Erastus who is the city financial manager greet you.
24 Live in the grace of our Lord Jesus Christ. Amen.
25 I preach the Good News about Jesus Christ. And through this Message God can strengthen you. God gave me a revelation about a secret which He did not reveal to anyone for ages.
26 The prophets predicted in the Scriptures that the time would come when God would reveal this mystery to people. And now the eternal God gave us a command to share this secret with all nations so that they would believe in God and submit to Him.
27 And through Jesus Christ we will praise the only wise God throughout all the ages. Amen.